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क्या करें, जब ये पता चले कि शानदार, मानवीय और प्रगतिशील फिल्में, किताबें, नाटक, पेंटिंग, कविताएं रचने वाले का निजी जीवन यौन अपराधों से कलंकित है.
बोहेमियन राप्सोडी अपने समय के रॉक म्यूजिक सुपरस्टार फ्रेडी मर्करी (1946-1991) की जिंदगी की कहानी है. वे क्विन नाम के बैंड के लिए गाते थे और बोहेमेयिन राप्सोडी इसी ग्रुप का कंपोजिशन है. इस ग्रुप ने अपने समय में जो म्यूजिक बनाया, उसकी लोकप्रियता की बराबरी आज तक कम ही बैंड कर पाए हैं.
मर्करी इमिग्रेंट थे और गे भी थे. उनकी मौत एड्स की वजह से हुई थी.
फ्रेडी मर्करी का असली नाम फारुख बलसारा था. वे भारतीय मूल के पारसी थे और उनका जन्म अफ्रीका के जिंजिबार में हुआ था.
बहरहाल, बोहेमियन राप्सोडी फिल्म (2018) ने भी कामयाबी के ऊंचे झंडे गाड़े. ये किसी जीवनी पर बनी सफलतम फिल्म है. 5 करोड़ डॉलर में बनी ये फिल्म 80 करोड़ डॉलर कमा चुकी है. ये फिल्म ढेरों अवार्ड जीत चुकी है और इस साल इसे चार ऑस्कर यानी एकेडमी अवार्ड मिले हैं.
इस फिल्म में फ्रेडी मर्करी बने रामी मलेक ने बेस्ट एक्टर का अवार्ड जीता तो एक दिलचस्प बात हुई. इस फिल्म के निर्माता ग्राहम किंग ने अवार्ड लेते समय बहुत कुछ कहा, लेकिन उन्होंने फिल्म के डायरेक्टर का नाम नहीं लिया.
रामी मलेक ने भी तमाम लोगों का जिक्र करते हुए और शुक्रिया अदा करते हुए फिल्म के डायरेक्टर का जिक्र नहीं किया. इससे पहले भी जब इस फिल्म ने इस साल ड्रामा कैटेगरी में गोल्डन ग्लोब अवार्ड जीता, तो भी रामी मलेक ने फिल्म के डायरेक्टर का जिक्र नहीं किया. इस फिल्म के लिए ऑस्कर जीतने वाले किसी भी शख्स ने फिल्म के डायरेक्टर का नाम नहीं लिया.
फिल्म के क्रेडिट रोल में डायरेक्यर ब्रायन सिंगर का नाम है. तो फिर कोई उनका नाम ले क्यों नहीं रहा है? दरअसल फिल्म की शूटिंग पूरी होने से चार हफ्ते पहले ब्रायन सिंगर को डायरेक्टर की भूमिका से निकाल दिया गया था. निर्माताओं ने इसकी वजह ये बताई कि ब्रायन सिंगर काम पर नियमित आ नहीं रहे थे और इससे फिल्म के प्रोडक्शन में बाधा आ रही थी.
हालांकि ब्रायन को हटाए जाने का सच एक ऐसा रहस्य है जिसे सभी जानते हैं. इस फिल्म के निर्माण के दौरान ये खबर आई कि ब्रायन ने 2003 में एक याट पार्टी में 17 साल के एक लड़के के साथ यौनाचार की कोशिश की थी. इसके अलावा भी ऐसी खबरें आ रही थीं कि ब्रायन सेक्सुअल एक्सप्लोइटेशन के कई और मामलों में शामिल हैं.
सेक्सुअल मिसकंडक्ट के खिलाफ अभियान #MeToo के जमाने में ये एक ऐसी बात है, जिसकी वजह से फिल्म से जुड़ा कोई भी शख्स ब्रायन का नाम तक नहीं ले रहा है. निर्माताओं ने ये फिल्म डेक्सटर फ्लेचर के निर्देशन में पूरी की, हालांकि तब तक फिल्म का काम लगभग समाप्त हो चुका था.
इस घटना ने कला, संस्कृति, लेखन और पत्रकारिता ही नहीं, लोकजीवन के तमाम क्षेत्रों को लेकर एक बहस छेड़ दी है. क्या किसी कलाकृति, पेंटिंग, म्यूजिक, फिल्म, किताब आदि का अच्छा होना इस बात से साबित होगा कि उसे बनाने वाले का निजी जीवन कैसा है?
एक सीधी लाइन तो ये खींची जा सकती है कि जिसका निजी जीवन अच्छा नहीं है, उसका काम कितना भी लोकप्रिय और सौंदर्यबोध से परिपूर्ण हो, उसे खारिज किया जाना चाहिए. इसके पीछे दो तर्क हैं. एक तो इससे कला क्षेत्र में लोगों को निजी जीवन को भी शुचितापूर्ण रखने का दबाव होगा और इसका प्रोत्साहन नहीं मिलेगा कि निजी जीवन में तमाम घपले करके भी कोई आदमी कामयाब और लोगों की नजरों में महान हो सकता है.
दूसरा, फिलॉसफी के स्तर पर किसी काम को उसके करने वाले से निरपेक्ष रूप से नहीं देखा जा सकता है. उस व्यक्ति की छाप अगर उसके काम पर है, तो उसके निजी जीवन से उसका काम कैसे अलग हो सकता.
इसलिए जब पता चल जाए, ऐसे लोगों के काम को खारिज किया जाना चाहिए.
लेकिन इसमें एक समस्या है. जब किसी को फिल्म या कला क्षेत्र में कोई काम सौंपा जाता है, तब बेशक उससे ये पूछ लिया जा सकता है कि उसके निजी जीवन में कोई घपला तो नहीं है, उसने कोई अपराध तो नहीं किया है, लेकिन इस बात की क्या गारंटी है कि वह सच बोले. और फिर ये भी तो हो सकता है कि जिसे वह अपराध न मानता हो वो दरअसल अपराध हो या बाद में किसी नए कानून या समाज में नई मान्यताएं आने की वजह से उसके पहले किए गए काम अब अपराध बन गए हों.
इससे भी बड़ा सवाल. आप और हम यानी किसी पुस्तक के लेखक, किसी म्यूजिक के श्रोता, किसी नाटक या फिल्म के दर्शक, किसी कला के प्रशंसक किसी व्यक्ति के काम से सकारात्मक रूप से प्रभावित हो सकते हैं.
लेकिन उस अवधि का क्या, जब उसके काम ने आपको जीवन में कुछ अच्छा, सुंदर या मानवीय असर छोड़ा था.
ये जटिल प्रश्न हैं. और मेरे पास इनमें से हर सवाल का जवाब नहीं है. लेकिन आप इतना तो समझ ही गए होंगे कि ऐसे सवाल जब आपके पास आते हैं, तो आप दुविधा में होते हैं.
मेरी राय है कि जैसे ही आपको ऐसा कुछ पता चले, उस कलाकर्म को खारिज कीजिए. इसका सबसे बड़ा फायदा वही है, जिसका जिक्र मैंने पहले किया है- ऐसे कामों को खारिज करने से “कला-संस्कृति क्षेत्र में लोगों को निजी जीवन को भी शुचितापूर्ण रखने का दबाव होगा और इसका प्रोत्साहन नहीं मिलेगा कि निजी जीवन में तमाम घपले करके भी कोई आदमी कामयाब और लोगों की नजरों में महान हो सकता है.”
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