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अमृतपाल सिंह (Amritpal Singh) भारत में लगातार भागमभाग कर रहा है, ब्रिटेन, अमेरिका, कनाडा और ऑस्ट्रेलिया में खालिस्तानी समर्थक समूह विरोध प्रदर्शन कर रहे हैं. यह काफी चिंता की बात है. पिछले हफ्ते यूके सिख फेडरेशन के विरोध प्रदर्शनों के दौरान एक प्रदर्शनकारी ने कहा कि हम अपने कैदियों को आजाद करना चाहते हैं और चाहते हैं कि ड्रग्स के इस्तेमाल को कम किया जाए. हम उस देश से आजाद होना चाहते हैं, जो बेकसूर लोगों को मार रहा है.
लंदन में गुरुवार से तीन दिनों का विरोध प्रदर्शन शुरू हुआ है. इस बार यह प्रदर्शन भारतीय उच्चायोग के सामने फ्री सिख प्रिजनर्स (Free Sikh Prisoners) नाम का एक ग्रुप कर रहा है. भले इस ग्रुप को बहुत से लोगों का समर्थन नहीं है, लेकिन फिर भी यह गड़बड़ी फैलाने, विवाद पैदा करने पर आमादा है.
हालांकि 19 मार्च के प्रदर्शन ने मेट्रोपॉलिटन पुलिस को हैरान कर दिया. शायद रविवार की वजह से या इसलिए क्योंकि कोई लाल झंडे नहीं दिखाए गए थे. लेकिन इस दौरान वर्दीधारी और सिविलियन कपड़ों वाले पुलिसकर्मियों को विरोधियों की पूरी ताकत नजर आई.
जब मैं इस हफ्ते की शुरुआत में भारतीय उच्चायोग गई तो पुलिस अधिकारियों को परिसर की रखवाली करते देखा. यह अनुभव देजा-वु जैसा था. 1980 और 1990 के दशकों में हममें से कुछ लोगों ने क्रूर खालिस्तान समर्थक आंदोलन देखा है. यह उन भयावह घटनाओं की याद दिलाता है. लेकिन मैं इतना जरूर कहना चाहूंगी कि उस वक्त के प्रदर्शनों की तुलना में यह विरोध कुछ भी नहीं हैं.
विरोध प्रदर्शनों के संबंध में एसएफ (यूके) के जस सिंह ने दावा किया कि
लंदन स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स में सोशल एंथ्रोपोलॉजी में एसोसिएट प्रोफेसर डॉ मुकुलिका बनर्जी का कहना है कि कि भारत और विदेशों में पंजाब के अधिकतर लोगों ने साफ कर दिया है कि वे लोग अलगाववादियों की हिमायत नहीं करते. इसलिए मौजूदा विरोध प्रदर्शन हैरान करने वाले हैं. उनकी निंदा की जानी चाहिए. इस समय पंजाब में गैर-बीजेपी सरकार है और इसीलिए यह मौका नहीं दिया जाना चाहिए कि इस मुद्दे के चलते नई दिल्ली, राज्य को अपनी उंगलियों पर नचाने लगे.
पिछले हफ्ते पश्चिमी देशों में विरोध प्रदर्शनों ने यह स्पष्ट कर दिया कि वे अच्छी तरह से संचालित किए गए थे. हालांकि मेट्रोपॉलिटन पुलिस ने एक व्यक्ति को गिरफ्तार किया है. उससे पूछताछ जारी है. विरोध प्रदर्शनों की सभी राजनीतिक दलों ने निंदा की है और उन्हें 'गुंडागर्दी' कहा गया है. सालों शांति के साथ रहने के बाद खालिस्तान समर्थक घटते जा रहे हैं. लेकिन क्या अब उनका नया जन्म हो रहा है? हालांकि प्रदर्शनों में शिरकत कम थी, लेकिन क्या यह उबाल फौरी है, क्या कुछ लोग इस आंदोलन को दोबारा जिंदा करने की बेताब कोशिश कर रहे हैं?
इन खालिस्तानी समर्थकों की आखिरी कारस्तानी शायद आपको याद हो, जब सितंबर 2012 में मध्य लंदन में पूर्व लेफ्टिनेंट जनरल कुलदीप सिंह बरार पर हमला किया गया था. इस सिलसिले में पांच लोगों को गिरफ्तार किया गया था और उन्हें जेल हुई थी. इनमें एक महिला भी शामिल थी.
बर्मिंघम के 35 साल के मनदीप सिंह संधू और 37 साल के दिलबाग सिंह को 14 साल कैद की सजा दी गई थी. मिडिलसेक्स के हायस की 39 साल के हरजीत कौर को 11 साल की जेल हुई थी. एक अन्य व्यक्ति, वॉल्वरहैम्प्टन के 34 साल के बरजिंदर सिंह संघा को साढ़े 10 साल की सजा सुनाई गई थी. इससे पहले उसे इरादत घायल करने के एक मामले में सजा हो चुकी थी.
मेरे सवाल के जवाब में, न्याय मंत्रालय ने द क्विंट को एक्सक्लूसिव तौर पर बताया कि
दिलचस्प बात यह है कि भारतीय उच्चायोग पर 19 मार्च को हुए हमले के सिलसिले में इस बार दिल्ली पुलिस ने भी यूएपीए के तहत मामला दर्ज किया है. सूत्रों का कहना है कि इसकी वजह महज यह नहीं कि इनमें से किसी के पास भारतीय पासपोर्ट हो सकता है. ऐसा भी हो सकता है कि किसी के पास भारतीय या यूके का पासपोर्ट न हो और उनका “कोई निश्चित आवास” ही न हो.
इसमें कोई शक नहीं है कि भारतीय उच्चायोग के सीनियर अधिकारियों और सत्ताधारी कंजर्वेटिव पार्टी और लेबर पार्टी, इन सबके बीच तालमेल बना हो. असल में लेबर नेता सर कीर स्टारर ने 2020 में पीयरेज से दबिंदरजीत सिंह सिद्धू का नाम अचानक हटा दिया था, जब उन्हें पता चला कि दबिंदर जीत खालिस्तान समर्थक हैं.
पिछले हफ्ते के विरोध के बारे में सिख यूथ यूके से दीपा सिंह ने कहा-
संयोग से, 2019 में इसी दीपा सिंह उर्फ कलदीप सिंह लेहल और उसकी बहन राजबिंदर कौर को वेस्ट मिडलैंड्स काउंटर टेररिज्म पुलिस ने सिख यूथ यूके को चंदे में मिली धनराशि के दुरुपयोग के लिए गिरफ्तार किया था.
राजबिंदर कौर पर मनी लॉन्ड्रिंग और 50 हजार पाउंड की चोरी के 6 मामलों का आरोप लगाया गया था. लेहल और उस पर चैरिटी कमीशन को जानबूझकर या लापरवाही से गलत या भ्रामक जानकारी देने का आरोप लगाया गया था.
विरोध प्रदर्शनों के इस मौजूदा दौर में यह समझना जरूरी है कि विरोध के संभावित कारण क्या हैं और इन समूहों को कौन समर्थन और वित्तीय सहयोग दे रहा है. यह कोई छिपी हुई बात नहीं है कि खालिस्तान समर्थक समूहों को वर्षों से पाकिस्तान का मौन समर्थन मिला हुआ है.
मुझे याद है कि जब ब्रिटेन में खालिस्तान आंदोलन खत्म हो गया था, तब भी इंडिया हाउस में पाकिस्तान के भारत विरोधी प्रदर्शनों में कई बार सिख दिख जाते थे. करीब पांच-छह साल पहले मैं अमेरिका में रहने वाले 'सिख्स फॉर जस्टिस' (SFJ) के संस्थापक गुरपतवंत सिंह पन्नू से मिली थी. उनसे इंटरव्यू करने के बाद मुझे शक हुआ था कि कहीं तो कुछ पक रहा है और यूके में इस आंदोलन के लिए समर्थन जुटाया जा रहा है. उसके बाद जो हुआ, उससे मेरा शक पुख्ता हुआ है.
ये खालिस्तान समर्थक समूह तब निराश हो गए, जब उन्हें अपने तथाकथित 2020 पंजाब जनमत संग्रह के लिए यूके या कनाडा की सरकारों से कोई समर्थन नहीं मिला. इसीलिए यकीन नहीं होता कि पश्चिम में ये समूह फिर से उठ खड़े हो रहे हैं और एकजुट भी हो रहे हैं लेकिन कनाडा के खालिस्तान समर्थक समूहों की बढ़ती भागीदारी पर भी ध्यान देना जरूरी है.
पंजाब 2020 जनमत संग्रह की नाकामी से पता चलता है कि बड़ी संख्या में सिख डायस्पोरा की सोच बदल गई है. इसके बाद खालिस्तानी समर्थकों के विरोध प्रदर्शनों से उनकी नाउम्मीदी जाहिर होती है. इसके आगे न पश्चिम की सरकारें और न ही भारत झुकने वाला है. इसके बावजूद कि पाकिस्तान को इनका पूरा समर्थन है.
अब वक्त आ गया है कि यूके और भारत तय करें कि किसे प्रतिबंधित करना है और इस नए आंदोलन को शुरुआत में ही दबा दें.
एक अहम सवाल यह भी है कि जब भारत में सिख अस्थिरता पैदा नहीं करना चाहते तो विदेशी जमीन पर सिख अशांति भड़काने की कोशिश क्यों कर रहे हैं?
(नबनिता सरकार लंदन में एक वरिष्ठ पत्रकार हैं. वह @sircarnabanita पर ट्वीट करती हैं. यह एक ओपिनियन पीस है और ऊपर व्यक्त किए गए विचार लेखक के अपने हैं. द क्विंट न तो इसका समर्थन करता है और न ही इसके लिए जिम्मेदार है.)
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Published: 03 Apr 2023,12:24 PM IST