मेंबर्स के लिए
lock close icon
Home Created by potrace 1.16, written by Peter Selinger 2001-2019Voices Created by potrace 1.16, written by Peter Selinger 2001-2019Opinion Created by potrace 1.16, written by Peter Selinger 2001-2019गोवा चुनाव: BJP और कांग्रेस की विश्वसनीयता को क्यों खतरा?

गोवा चुनाव: BJP और कांग्रेस की विश्वसनीयता को क्यों खतरा?

Goa Elections: इस साल के नतीजे दिखाएंगे कि वोटर्स किस पार्टी से ज्यादा नाराज हैं और उनकी नाराजगी किस हद तक है.

डेविड देवदास
नजरिया
Published:
<div class="paragraphs"><p>गोवा चुनाव: BJP और कांग्रेस की विश्वसनीयता को क्यों खतरा?</p></div>
i

गोवा चुनाव: BJP और कांग्रेस की विश्वसनीयता को क्यों खतरा?

(फोटो- क्विंट)

advertisement

हाई प्रोफाइल नेताओं की चमक, नेताओं का दलबदल और बागी उम्मीदवार- इन सभी ने गोवा के विधानसभा चुनावों (Goa assembly election) को समुद्री रेत सा चंचल बना दिया है. जैसे तेज हवा से समुद्री रेत में लहरें उठती हैं, उसी तरह गोवा विधानसभा चुनावों में तरह-तरह के उतार-चढ़ाव देखने को मिल रहे हैं.

चुनाव प्रचार में पिछले एकाध हफ्ते में रंगत आई है. अलग-अलग पार्टियों के रंगों और चिन्हों से सजे टैंपो-ट्रक गोवा की सड़कों को रौंद रहे हैं. ऊंची आवाज में वादे किए जा रहे हैं. लेकिन 14 फरवरी को चुनाव वाले दिन ऊंट किस करवट बैठेगा, कोई अंदाजा नहीं लगा सकता.

तृणमूल और आम आदमी पार्टी जबरदस्त प्रचार कर रहे हैं

तृणमूल का आधार जरूर पश्चिम बंगाल है, लेकिन उसने राष्ट्रीय दर्जा हासिल करने के लिए गोवा को जंग का मैदान बना लिया है. उसने पिछले कुछ महीनों के दौरान गोवा में होर्डिंग्स लगाने के लिए काफी खर्च किया है. पार्टी में कांग्रेस के कई नेता भी आ मिले हैं, जिनमें से एक (पूर्व मुख्यमंत्री लुईजिन्हो फलेरियो) को उसने आनन-फानन में राज्यसभा पहुंचा दिया है. हालांकि कुछ वापस अपनी पार्टी में लौट गए हैं जिससे हालात और खराब हुए हैं.

गोवा में पार्टी का चेहरा ममता बैनर्जी ही हैं, और इसका सीधा-सीधा यही मतलब है कि उन्हें प्रधानमंत्री के पद के लिए राष्ट्रीय विकल्प के तौर पर पेश किया जा रहा है. अरविंद केजरीवाल को लेकर आम आदमी पार्टी की भी यही कोशिश है. दोनों पार्टियां गोवा में जबरदस्त चुनाव प्रचार कर रही हैं.

आम आदमी पार्टी साफ तौर से इस बात को लेकर फिक्रमंद नहीं कि 2017 के पिछले विधानसभा चुनावों के समय ऐसा ही एक हाई प्रोफाइल कैंपेन फिजूल गया था. पार्टी का मुख्यमंत्री चेहरा एलविस गोम्स अब कांग्रेस में पहुंच गए हैं और राजधानी पणजी से कांग्रेस का प्रतिनिधित्व कर रहे हैं.

पर बीजेपी और कांग्रेस की जड़ें गहरी हैं

गोवा में पहले से ही मजबूत स्थानीय पार्टियां हैं, जैसे गोवा फॉरवर्ड (इसने इस बार कांग्रेस से गठबंधन किया है) और महाराष्ट्रवादी गोमांतक पार्टी, जिसका जन्म ही इस मांग के साथ हुआ था कि गोवा का विलय महाराष्ट्र के साथ कर दिया जाए.

अपने नेताओं के प्रभाव वाले इलाकों में ये पार्टियां कुछ सीटें जीत सकती हैं, और अगर गठजोड़ की जरूरत पड़ी तो ये किंगमेकर बन सकती हैं.

हालांकि बीजेपी और कांग्रेस मुख्य दावेदार बनी रहेंगी. उनका जनाधार बड़ा है और हर छोटे इलाके में उनके कार्यकर्ता मौजूद हैं. पिछली बार के नतीजों ने दोनों की गहरी जड़ों का सबूत दिया था, भले ही वे इस समय कुछ परेशान नजर आ रही हों और नए दावेदारों के चुनाव अभियान कितने भी जोरदार क्यों न हों.

पिछली बार, और उसके बाद भी स्थितियां बदलीं, और 2017 में दोनों को वोटर्स के गुस्से का सामना करना पड़ा. किसी पार्टी को बहुमत नहीं मिला. सातवीं विधानसभा में कांग्रेस को 40 में से 17 सीटें मिलीं जबकि बीजेपी को सिर्फ 13. छठी विधानसभा में उसके पास 21 सीटें थीं. यह बात और है कि उसने जनता के फैसले को अनदेखा किया और पिछले दरवाजे से बहुमत बटोर लिया.

दूसरी तरफ बहुत से लोगों ने कांग्रेस की खिल्ली उड़ाई. चुनाव नतीजों के बाद वह गठबंधन नहीं बना पाई, उसके बहुत से विधायक कई स्तरों पर दलबदल करते रहे. आखिर में सदन में उसकी कुछ ही सीटें रह गईं. तो, पार्टी के लालची दलबदलुओं से उसकी छवि को नुकसान होगा.

इस साल के नतीजे दिखाएंगे कि वोटर्स किस पार्टी से ज्यादा नाराज हैं और उनकी नाराजगी किस हद तक है. क्या यह मोहभंग उन्हें नए विकल्पों की तरफ ले जाता है.

ADVERTISEMENT
ADVERTISEMENT

हिंदुत्व नहीं, विकास

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने गुरुवार को मापुसा में अपनी सार्वजनिक रैली में कांग्रेस पर हमला करना मुनासिब समझा. इससे यह साफ लगता है कि सत्तासीन पार्टी नए विकल्पों के मुकाबले अपने पारंपरिक प्रतिद्वंद्वी को बड़ी चुनौती के रूप में देखता है.

मोदी ने खास तौर से नेहरू का जिक्र किया कि कैसे उन्होंने देश की आजादी के बाद भी गोवा के स्वतंत्रता सेनानियों को कई साल तक उनके हाल पर छोड़ दिया. इसके साथ प्रधानमंत्री ने विकास परियोजनाओं और गोवा में पर्यटन की संभावनाओं पर जोर दिया.

मोदी ने युवा मुख्यमंत्री प्रमोद सावंत की तारीफों के पुल बांधे और इस बात की तरफ इशारा किया कि अगर बीजेपी जीतती है तो वही मुख्यमंत्री बनेंगे. 2017 में अमित शाह पार्टी के अध्यक्ष थे, और उन्होंने चुनावी रैली में मौजूदा मुख्यमंत्री लक्ष्मीकांत पारसेकर को चेतावनी तक दे डाली थी. थे. पारसेकर इस बार अपनी मंड्रेम सीट से निर्दलीय चुनाव लड़ रहे हैं.

शायद बीजेपी आलाकमान उस समय पर्रिकर को दोबारा मुख्यमंत्री बनाने की तैयारी कर रहा था. 2015 के बाद से रक्षा संबंधी बड़े फैसलों में पर्रिकर की राय नहीं ली जाती थी. जैसे राफेल लड़ाकू जेट खरीदते समय उनसे कोई सलाह मशविरा नहीं किया गया था.

चुनाव प्रचार के दूसरे दिन मोदी को सुनने के लिए मापुसा मैदान में जुटी भारी भीड़ अधिकांश समय शांत रही. मौन को पढ़ना यूं मुश्किल होता है लेकिन अगर बीजेपी गोवा जीतती है, तो इसकी वजह हिंदुत्व से कहीं बढ़कार विकास होगा.

सामाजिक मेलजोल

हालांकि गोवा में हिंदू और ईसाई लोग बहुत बड़ी तादाद में हैं लेकिन धार्मिक समुदायों का ध्रुवीकरण नहीं हुआ है. यहां हालत उत्तर प्रदेश जैसी स्थिति नहीं है जहां चुनाव प्रचारों के जरिए उनकी राजनीतिक खेमेबंदी कर दी जाती है. गोवा में समाज अच्छी तरह से जुड़े हुए हैं और समुदायों के आपसी रिश्ते तनावपूर्ण नहीं हैं.

एक बात तो यह है कि ईसाइयों का अनुपात कई दशक पहले के मुकाबले आधे के घटकर करीब चौथाई रह गया है जिसकी वजह स्थायी प्रवास है- राज्य में और राज्य के बाहर, दोनों जगह.

वैसे पुर्तगाली शासकों के भेदभाव की ऐतिहासिक स्मृति मौजूदा दौर में कड़वाहट पैदा नहीं करती. इसलिए हिंदुओं, ईसाइयों और छोटी मुस्लिम आबादी के बीच मेलजोल है (पुर्तगालियों ने बीजापुर के सुल्तानों से गोवा जीता था).

चूंकि गोवा की संस्कृति, परंपराओं, व्यंजनों, स्थानीय देवताओं और (प्रत्येक इलाके के) वार्षिक धार्मिक जुलूसों के प्रति लोगों में स्नेह और प्रतिबद्धता है, इसलिए यह मेलजोल कायम है. देश के अलग-अलग हिस्सों से आने वाले प्रवासियों की मौजूदगी के बावजूद इस प्रतिबद्धता की जड़े गहरी हैं. यह बात और है कि असगाओ जैसी जगहों पर नया बसेरा बनाने वालों को कई बार गोवा के बाशिंदे मीठे उलाहने देते हैं कि उन्होंने नए रिश्तों के लिए पुराने रिश्तों से बेवफाई की है.

हैरानी नहीं कि दूसरे राज्यों के राष्ट्रीय नेता चुनाव प्रचार में कोंकणी भाषण का तड़का लगा रहे हैं और कोंकणी में नारे लगाने की भी कोशिश कर रहे हैं. अब चार हफ्ते बाद वोटों की गिनती होनी है. इसी से साबित हो जाएगा कि क्या यह सब काफी था या नए नवेले ‘बाहरी लोगों’ के लिए गोवा के लोगों के दिल में थोड़ी जगह बन गई है.

(डेविड देवदास ‘द स्टोरी ऑफ कश्मीर’ और ‘द जनरेशन ऑफ रेज इन कश्मीर’ (ओयूपी, 2018) के लेखक हैं. उनका ट्विटर हैंडिल है, @david_devadas. यह एक ओपनियन पीस है. यहां व्यक्त विचार लेखक के अपने हैं. क्विंट का उनसे सहमत होना जरूरी नहीं है.)

(क्विंट हिन्दी, हर मुद्दे पर बनता आपकी आवाज, करता है सवाल. आज ही मेंबर बनें और हमारी पत्रकारिता को आकार देने में सक्रिय भूमिका निभाएं.)

अनलॉक करने के लिए मेंबर बनें
  • साइट पर सभी पेड कंटेंट का एक्सेस
  • क्विंट पर बिना ऐड के सबकुछ पढ़ें
  • स्पेशल प्रोजेक्ट का सबसे पहला प्रीव्यू
आगे बढ़ें

Published: undefined

ADVERTISEMENT
SCROLL FOR NEXT