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सरोगेसी पर फिर से चर्चा है. नए बजट सत्र में सरोगेसी विधेयक नए सिरे से पेश किया गया है. प्रावधान पुराने है, पर विधेयक नया है. तीन साल पहले इस विधेयक को लोकसभा में पेश किया गया था. इसके बाद स्वास्थ्य और परिवार कल्याण संबंधी स्थायी समिति ने इस विधेयक की समीक्षा की और तमाम तरह के सिफारिशें पेश कीं. फिर 16वीं लोकसभा के भंग होने के साथ विधेयक निरस्त हो गया. अब एक बार फिर सरकार यह विधेयक लेकर आई है.
अगर यह विधेयक दोनों सदनों में पारित हो जाता है तो कमर्शियल सरोगेसी पूरी तरह प्रतिबंधित हो जाएगी, यानी पैसों के लेनदेन से सरोगेसी नहीं करवाई जा सकेगी. सिर्फ शादीशुदा जोड़े सरोगेसी करवा पाएंगे- वो भी अपनी किसी रिश्तेदार से. सिंगल, लिव-इन में रहने वाले, एलजीबीटीक्यू+ लोग पैसे देकर किसी से सरोगेसी नहीं करवा पाएंगे.
सेरोगेसी से अक्सर फिल्मी सितारे याद आते हैं. आमिर खान, शाहरुख खान, तुषार कपूर, करण जौहर- सभी कमर्शियल सरोगेसी से पिता बने हैं. यदा-कदा उनकी तस्वीरें सोशल मीडिया पर अपने बच्चों के साथ छाई रहती हैं.
दुनिया के बहुत से देशों में सरोगेसी प्रतिबंधित है. जहां सरोगेसी की मंजूरी है वहां भी अनेक प्रकार के रेगुलेशंस हैं. जैसे नीदरलैंड्स, यूके, दक्षिण अफ्रीका, ग्रीस वगैरह में कमर्शियस सरोगेसी प्रतिबंधित है. रूस में इसके लिए मंजूरी है, लेकिन कोई सरोगेसी तभी करवा सकता है, जब मेडिकल कारण से वह गर्भधारण में असमर्थ हो और बच्चे को जन्म न दे पाए.
1986 में अमेरिका के बेबी एम का किस्सा याद कीजिए, जब सरोगेट मां ने प्रसव के बाद अपना मन बदल दिया पर अनुबंध अवैध होने की वजह से उसे अपनी बच्ची को कानूनी माता-पिता को सौंपना पड़ा. एक किस्सा जापान के अरबपति मित्सुटोकी शिगेटा का भी है, जिसने 2014 में थाईलैंड में सरोगेसी से 14 बच्चे पैदा किए और पिछले साल बैंकॉक की अदालत ने उसे सभी बच्चों के पैटरनिटी राइट्स दे दिए.
कई साल पहले तीसरी बार सरेगेसी करने वाली एक अमेरिकी महिला की मौत हो गई थी, और एक मामला ऐसा भी हुआ था जब कनेक्टिकट में एक सरोगेट महिला को गर्भपात के लिए दंपत्ति ने 10 हजार डॉलर देने की पेशकश की थी- कारण यह था कि उसकी होने वाली बच्ची विकलांग थी.
सुनने में यह आदमजात की खरीद फरोख्त ही लगता है. एक क्रेता है, दूसरा विक्रेता. अमीर देश गरीब देशों से प्रजनन को आउटसोर्स करते हैं, जैसे औद्योगिक उत्पादन की आउटसोर्सिंग की जाती है. सरकार इस दृष्टिकोण से सरोगेसी पर कानून बनाने की कोशिश कर रही, पर कुछ ढिलाई दी गई है. इच्छुक दंपत्ति कुछ शर्तें पूरी करके सरोगेसी करवा सकता है.
2019 के विधेयक से पहले 2005 में भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद ने सरोगेसी को रेगुलेट करने के लिए दिशा-निर्देश जारी किए थे. 2008 में एक मामले की सुनवाई के दौरान सर्वोच्च न्यायालय ने भी सरोगेसी को रेगुलेट करने की बात कही थी. फिर 2009 में विधि आयोग साफ कहा कि देश में सरोगेसी का इस्तेमाल विदेशी लोग करते हैं और गरीब महिलाओं का शोषण होता है. फिर 2015 में विदेशी नागरिकों के लिए सरोगेसी को प्रतिबंधित किया गया.
इस विधेयक से पहले की सारी कहानी यही है. देखने से यही लगता है कि सरकार नए विधेयक के साथ सरोगेसी के कारोबार का बंद करना चाहती है, लेकिन जैसे लिंग परीक्षण और अंगदान का सारा कारोबार चुपके-चुपके फलता फूलता रहा है, सरोगेसी के साथ भी वही होने वाला है.
विधेयक में कई तरह के झोल हैं. विधेयक के अंतर्गत शादीशुदा दंपत्ति के अलावा कोई दूसरा सरोगेसी नहीं करवा सकता. उनके लिए भी इनफरटिलिटी एक शर्त है. इसमें वो स्थितियां शामिल नहीं है, जिनके कारण बच्चा पैदा करना मुश्किल हो, जैसे मल्टीपल फाइब्रॉयड्स, हाइपरटेंशन और डायबिटीज.
सरोगेट को दंपत्ति का संबंधी भी होना चाहिए. इसके चिकित्सकीय पहलू भी हैं. डब्ल्यूएचओ का कहना है कि जैविक माता-पिता में रक्त संबंध होने से बच्चे में जेनेटिक समस्याएं हो सकती हैं. विधेयक सरोगेसी के लिए एंब्रयो और गैमेट्स को स्टोर करन पर प्रतिबंध लगाता है. ऐसे में महिला के एग्स को सेरोगेट के गर्भाशय में प्रत्यारोपित करने के लिए कई बार हारमोनल उपचार करना पड़ेगा- चूंकि एक प्रत्यारोपण की सफलता की दर 30 प्रतिशत से भी कम होती है. इससे सरोगेट महिला के दूसरे तरह के रोग होने का खतरा है.
एक सवाल यह भी है कि अकेला व्यक्ति अपना परिवार क्यों नहीं हो सकता- जिसे सरोगेसी में परिवार माना ही नहीं गया. इसके मानदंड परिवार की बहुसंख्य अवधारणा पर आधारित हैं जिसमें माता-पिता, दोनों बच्चे के पालक हैं. इस मानदंड पर अकेली औरत, अकेला आदमी, कोई ट्रांसजेंडर खरे नहीं उतरते. कानून की भाषा फिलहाल सीमित ही है. और हमें इंतजार नाना रूपी मान्यताओं की स्वीकारोक्ति का. फिलहाल सरोगेसी विधेयक पर संसद में चर्चा का इंतजार है.
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