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70 साल के बुजुर्ग- करतारपुर जाने का उत्साह ऐसा कि रो पड़ते हैं. कहते हैं -
40-45 साल के शख्स - पाकिस्तान के करतारपुर में भारतीयों को देख अपने शहर की खुशी के बारे में बताते-बताते रो पड़ते हैं. कहते हैं-
एक भारतीय.
एक पाकिस्तानी.
दोनों की आंखों में खुशी के इन आंसुओं की वजह क्या थी?
दोनों देशों के रहनुमा इन आंसुओं के रहबर बन जाएं, इन आंसुओं की आरजू पूरी कर दें तो खुशियां झूम उठें. इधर भी, उधर भी.
जरा कल्पना कीजिए. अपने बाबा जी के आखिरी डेरे के दीदार करने के लिए आजाद भारत के सिखों को 70 साल से ज्यादा लग गए. वो गुरदासपुर जाते थे. दूरबीन से दरबार साहिब के दर्शन करते थे. 70 साल से टकटकी लगाए निगाहों को कैसा सुकून मिला होगा, जब उन्होंने गुरुनानक देव के आखिरी डेरे को सामने से देखा होगा? समझने के लिए करतारपुर गए इन दो श्रद्धालुओं को सुनिए, जिनसे बात की क्विंट के रिपोर्टर नीरज गुप्ता ने.
पहले जत्थे के साथ जो लोग करतारपुर गए थे. वो करतारपुर की जमीन को चूम रहे थे. वो गुरुद्वारे के बाहर भी खाली पांव चल रहे थे. पूरा माहौल ऐसा था, जिसे शब्दों में बयां नहीं किया जा सकता. इसे सिर्फ महसूस किया जा सकता है.
इस कॉरिडोर के धार्मिक छोर को आप महसूस कर रहे होंगे. अब जरा इसके दूसरे छोर का एहसास लीजिए. क्विंट की रिपोर्टर पूनम अग्रवाल ने करतारपुर में पाकिस्तानी पोस्ट के इंचार्ज सर सैय्यद फुरहान से बात की.
फुरहान ने बताया कि करतारपुर के लोग भारतीयों के आने से इतने खुश हैं कि वो उनके हाथों को चूम लेना चाहते हैं. सुरक्षा एजेंसियों ने दोनों आबादियों को कॉन्टेक्ट की इजाजत नहीं दी. लेकिन मोहब्बत ऐसी कि लोग अपने घरों की छतों पर जमा हो जाते हैं, गलियारे से दूर ही सही, खड़े होकर हाथ हिलाते हैं. खुद फुरहान अपने बारे में बताते हैं- ''मैं मुसलमान हूं लेकिन मैं भारत से आने वाले लोगों को अस्सलाम वालेकुम नहीं बोलता, मैं कहता हूं-सत श्री अकाल और वाहे गुरु जी की फतेह बोलता हूं.''
अपने दादाजी की कहानी बताते-बताते फुरहान रो पड़ते हैं. तो ये था कॉरिडोर का दूसरा छोर जिससे सरहद के इधर और उधर के वाबस्ता रिश्तों की डोर पकड़ में आती है.
करतारपुर के वाकये से भारत-पाकिस्तान के बीच दूरियों-दुश्वारियों का एक और सिरा, एक और दीगर पहलू भी पकड़ में आता है. हमने यहां हिंदोस्तानी न्यूज चैनलों पर यही सुना है कि पाकिस्तान बड़ा जालिम मुल्क है. खून के प्यासे हैं पाकिस्तानी. वहां की सरकार अल्पसंख्यकों की कातिल है. वहां अल्पसंख्यकों के पूजा स्थलों की कोई कद्र नहीं है. लेकिन दरबार साहिब गुरुद्वारे की तस्वीरों में तो कुछ और ही नजर आता है. ये गुरुद्वारा बड़ा अजीम है.
गुरुनानक देव जी की 550वीं जयंती पर इसी मुहिम को एक और मुकाम मिला है. उम्मीद है कई पड़ाव और पार होंगे. कई खाइयां पटेंगी. कई पहाड़ दिल खोलेंगे, दिलों को जोड़ने के और गलियारे खुलेंगे.
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Published: 12 Nov 2019,08:53 PM IST