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हेट स्पीच पर अगर सुप्रीम कोर्ट की बात न मानी जाए तो वह क्या कर सकता है?

Supreme Court की एक बेंच ने पिछले हफ्ते कहा कि निर्देश के बावजूद कोई भी हेट स्पीच के खिलाफ कार्रवाई नहीं कर रहा.

जस्टिस गोविंद माथुर
नजरिया
Published:
<div class="paragraphs"><p>hate speech, Supreme Court instructions</p></div>
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hate speech, Supreme Court instructions

(फोटो- आई स्टॉक)

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सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने अक्टूबर 2022 में उत्तर प्रदेश (Uttar Pradesh), उत्तराखंड (Uttarakhand) और दिल्ली (Delhi) की सरकारों को निर्देश दिया था कि वे इस बाबत एक रिपोर्ट तैयार करें कि हेट स्पीच (Hate Speech) के मामलें में उन्होंने क्या कार्रवाई की (अदालत में दायर रिट याचिका में इसका जिक्र किया गया है). सुप्रीम कोर्ट ने मौलिक अधिकारों और संवैधानिक मूल्यों की रक्षा करने के अपने दायित्व को निभाते हुए यह निर्देश दिया था.

अदालत ने राज्य सरकारों से यह भी कहा था कि जब भी उनके क्षेत्राधिकार में ऐसी कोई करतूत की जाती है जोकि हेट स्पीच से संबंधित अपराध (जैसे आईपीसी की धारा 153ए, 153बी, 295ए और 506 के तहत आने वाले अपराध) का कारण बनती है तो वे जरूरी कदम उठाएं, और अपने अधीनस्थ अधिकारियों को निर्देश दें कि वे जल्द से जल्द उपयुक्त कार्रवाई करें, चाहे हेट स्पीच देने वाला किसी भी धर्म का हो.

ये निर्देश इसलिए दिए गए थे ताकि कानून का शासन बना रहे और हमारे देश के धर्मनिरपेक्ष चरित्र की हिफाजत हो.

फिर 14 जनवरी को एपेक्स कोर्ट ने अपने पहले के रुख को बरकरार रखते हुए कहा कि अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की रक्षा की जानी चाहिए और इस बीच किसी को भी, मीडिया को भी इस स्वतंत्रता का दुरुपयोग करने की इजाजत नहीं दी जानी चाहिए. अदालत ने कहा कि कुछ क्षेत्रों में टीवी न्यूज एंकरों का गैर-जिम्मेदाराना बर्ताव सामाजिक सद्भाव को नुकसान पहुंचाता है.

इसके बावजूद कि एपेक्स कोर्ट बार-बार इस मामले में कड़ाई का इस्तेमाल कर रहा है, अपने फैसले पर कायम है, लेकिन सरकार बिल्कुल संजीदा नहीं है. समाज के शरारती तत्व अभद्र भाषा का खुले तौर पर, बेरोकटोक इस्तेमाल कर रहे हैं. हेट स्पीच लगातार दी जा रही है.

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अभी पिछले हफ्ते सुप्रीम कोर्ट की एक बेंच ने कहा कि उसके निर्देश के बावजूद कोई भी हेट स्पीच के खिलाफ कार्रवाई नहीं कर रहा. अगर उसे फिर से कहा गया कि वह हेट स्पीच पर पाबंदी लगाने का निर्देश दे, तो उसे "बार-बार शर्मिंदा" होना पड़ेगा.

तो, सुप्रीम कोर्ट अब क्या कर सकती है?

यही सही समय है कि सुप्रीम कोर्ट केंद्रीय स्तर पर एक मॉनिटरिंग कमिटी बनाए और राज्य सरकार पर सब-कमिटीज़. इनमें जिम्मेदार और धर्मनिरपेक्ष साख वाले लोग शामिल होने चाहिए और वे समाज के सद्भाव को चोट पहुंचाने वाले सभी व्यक्तियों और मीडिया संगठनों के भाषणों और कृत्यों की निगरानी करें.

सुप्रीम कोर्ट उन भाषणों और कृत्यों का स्वतः संज्ञान ले सकता है जोकि धर्मनिरपेक्ष मूल्यों को नुकसान पहुंचाने वाले महसूस होते हों और इसके लिए जिम्मेदार व्यक्तियों के खिलाफ कड़े कदम उठा सकता है.

किसी भी मामले में अदालत को ऐसे व्यक्तियों और मीडियाकर्मियों के खिलाफ संबंधित आपराधिक कानूनों के तहत कार्रवाई सुनिश्चित करनी चाहिए.

जहां तक हमारी कार्यपालिका का संबंध है, यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि इन दिनों वह शासन के मूल सिद्धांतों और संबंधित कानूनों की बजाय राजनीतिक आकाओं के निर्देशों और हितों को वरीयता देती है. पिछले कुछ सालों में ऐसा लगता है कि कार्यपालिका ने अपनी जिम्मेदारियों से बचने और अदालतों पर ठीकरा फोड़ने की आदत डाल ली है, खास तौर से राजनीतिक रूप से विवादास्पद मामलों में, या ऐसे मामलों में जहां जनता के एक वर्ग में खलबली मच सकती है. इस प्रवृत्ति के बारे में सोचना होगा.

इसके अलावा सुप्रीम कोर्ट को संविधान के अनुच्छेद 129 और न्यायालय की अवमानना एक्ट, 1971 के तहत सरकारी अधिकारियों के खिलाफ मामला दर्ज करना चाहिए और कार्रवाई करनी चाहिए, अगर वे सही मायने में अदालत के निर्देशों का पालन नहीं करते हैं.

अभी इस हफ्ते सुप्रीम कोर्ट ने एक शख्स की रिट याचिका पर सुनवाई की थी. उस शख्स ने यूपी पुलिस के खिलाफ यह याचिका दायर की थी कि यूपी पुलिस ने उसकी शिकायत पर कोई कार्रवाई नहीं की. इस पर सुप्रीम कोर्ट के जज केएम जोसेफ ने कहा था:

एक धर्मनिरपेक्ष देश में हेट क्राइम के लिए कोई जगह नहीं है.

(जस्टिस गोविंद माथुर इलाहाबाद हाईकोर्ट के पूर्व चीफ जस्टिस हैं. यह एक ओपिनियन आर्टिकल है और व्यक्त विचार लेखक के अपने हैं. द क्विंट न तो इसका समर्थन करता है और न ही इसके लिए जिम्मेदार है.)

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