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भूखे पेट, दोपहर लू में मजदूरी... श्रमिकों के लिए हीट इमरजेंसी का क्या मतलब है?

सरकार को श्रमिकों को "व्यावसायिक गर्मी जोखिम" से बचाने के लिए अपने वर्तमान दृष्टिकोण की तत्काल समीक्षा करने की आवश्यकता है

मोक्ष तारिणी
नजरिया
Published:
<div class="paragraphs"><p>लखनऊ में सड़क के किनारे खुले में सोते भारतीय मजदूरों के बीच एक आदमी पानी पीता हुआ</p></div>
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लखनऊ में सड़क के किनारे खुले में सोते भारतीय मजदूरों के बीच एक आदमी पानी पीता हुआ

(फोटो- क्विंट हिंदी)

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अप्रैल की शुरुआत से ही बढ़ते तापमान और खतरनाक स्तर के लू (Heatwaves) के बारे में बहुत कुछ लिखा जा चुका है. लेकिन सवाल है कि कठिन शारीरिक श्रम करने वाले मजदूरों के लिए बढ़ते तापमान का क्या मतलब है?

अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन यानी ILO की एक नई रिपोर्ट में चेतावनी दी गई है कि 3.4 अरब के वैश्विक कार्यबल/ वर्कफोर्स में से 2.4 अरब से अधिक श्रमिकों को एक वक्त पर अत्यधिक गर्मी का सामना करना पड़ सकता है.

भारत में, 90 प्रतिशत श्रम शक्ति अनौपचारिक क्षेत्र में लगी हुई है, जो घर से बाहर का काम करती है. इसमें कृषि, निर्माण, ईंट भट्टों और अन्य ऐसे ही क्षेत्रों में शारीरिक रूप से मांग वाले काम शामिल होते हैं. ऐसे में श्रमिकों से गर्मी के तनाव के कारण महत्वपूर्ण जोखिम का सामना करना पड़ता है.

मजदूरों पर गर्मी का प्रभाव "खतरों का कॉकटेल" बनाता है, जिसके परिणामस्वरूप क्रोनिक किडनी रोग, अंगों को क्षति पहुंचाने वाली गर्मी की थकावट, गर्मी ऐंठन, हीट स्ट्रोक, गर्भपात या मृत जन्म, बेहोशी, फंगल संक्रमण, श्वसन संबंधी गंभीर स्वास्थ्य समस्याएं होती हैं. और आखिर में मौत का खतरा.

काम करने की ऐसी स्थितियों को टेक्निकल शब्द "व्यावसायिक गर्मी जोखिम" (occupational heat exposure) दिया गया है. इसमें बाहरी तापमान और परिश्रम से मेटाबोलिक हीट जैसे फैक्टर शामिल होते हैं.

सरकार ने अब तक क्या कदम उठाए हैं?

भारत सरकार ने 2015 के अंत में हीटवेव को राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन अधिनियम 2005 के तहत एक प्राकृतिक आपदा घोषित कर दिया. अप्रैल 2016 में, एनडीएमए ने राष्ट्रीय दिशानिर्देश 'कार्य योजना की तैयारी-हीट वेव की रोकथाम और प्रबंधन' तैयार किए, जिन्हें दो बार संशोधित किया गया, 2017 में और फिर 2019 में.

कुछ दिन पहले केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय ने राज्यों के साथ हीटवेव तैयारियों पर समीक्षा बैठक की थी. राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों से अपने स्वयं के हीट एक्शन प्लान विकसित करके अत्यधिक गर्मी के कारण होने वाली घटनाओं को रोकने के लिए सक्रिय उपाय करने का आग्रह किया गया.

उदाहरण के लिए, दिल्ली आपदा प्रबंधन प्राधिकरण 2024-25 द्वारा कुछ उपाय प्रस्तावित किए गए थे- भारत मौसम विज्ञान विभाग प्रारंभिक चेतावनी जारी करे, आश्रयों का निर्माण हो, प्रमुख बिंदुओं पर पीने का पानी सुनिश्चित हो और साथ ही ट्रैफिक पर लगे कर्मियों को छाया सुनिश्चित किया जाए.

इसके बाद, दिल्ली के श्रम विभाग ने 30 मई को एक सर्कुलर जारी कर प्रतिष्ठानों से कार्यस्थल पर स्वच्छ पेयजल, कूलर और पंखे सुनिश्चित करने के लिए कहा और श्रमिकों को अन्य उपायों के अलावा सिर ढकने जैसी सावधानियां बरतने के लिए भी जागरूक किया. सर्कुलर में यह भी कहा गया है कि किसी भी कर्मचारी को सूरज की रोशनी के सीधे संपर्क में काम करने की अनुमति नहीं दी जानी चाहिए और दोपहर 12 बजे से शाम 4 बजे के बीच व्यस्त समय से बचने के लिए काम की शिफ्ट में बदलाव की सलाह दी जाती है.

देश में हीट एक्शन प्लान (HAP) की सटीक संख्या अज्ञात है, लेकिन राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन एजेंसी और भारत मौसम विज्ञान विभाग वर्तमान में HAP विकसित करने के लिए 23 राज्यों के साथ काम कर रहे हैं.

इन प्रयासों के बावजूद, भारत सरकार को मजदूरों को "व्यावसायिक गर्मी जोखिम" से बचाने के लिए अपने वर्तमान दृष्टिकोण की तत्काल समीक्षा करने की आवश्यकता है. कमजोर वर्गों की सुरक्षा के लिए हीट एक्शन प्लान एक स्वागत योग्य कदम है, लेकिन वर्तमान में इन उपायों की प्रभावशीलता की निगरानी नहीं की जा रही है. राज्य और स्थानीय सरकारों द्वारा जारी HAP अपने नेचर में सलाहकारी हैं और नियोक्ताओं यानी मजदूरी पर रखने वाले 'मालिकों' पर बाध्यकारी नहीं हैं.

यह सुनिश्चित करने के लिए कानून बनाने की आवश्यकता है कि नियोक्ताओं को कानूनी रूप से ठंडे छायादार क्षेत्रों में टाइम के ब्रेक प्रदान करने के लिए बाध्य किया जा सके है.

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क्या किए जाने की जरूरत है?

सबसे पहले, भारत मौसम विज्ञान विभाग की हीटवेव की परिभाषा को अपडेट करने की आवश्यकता है. आईएमडी अधिकतम तापमान के आधार पर ही लू की घोषणा करता है. जब किसी स्टेशन पर उच्चतम तापमान 45 डिग्री सेल्सियस से अधिक हो जाता है तो हीटवेव की घोषणा की जाती है; यदि यह 47 डिग्री सेल्सियस से अधिक हो जाता है, तो इसे गंभीर लू कहा जाता है. तटीय और पहाड़ी स्थानों में हीटवेव की घोषणा समान मानदंडों का उपयोग करके की जाती है.

हालांकि, मानव शरीर गर्मी और आर्द्रता (ह्यूमिडिटी) के संयोजन पर प्रतिक्रिया करता है, जिसे "वेट-बल्ब तापमान" के रूप में मापा जाता है. तापमान अपेक्षाकृत कम होने पर भी वेट-बल्ब तापमान अधिक हो सकता है. उदाहरण के लिए, यदि तापमान 35 डिग्री सेल्सियस है और सापेक्ष आर्द्रता 80 प्रतिशत है, तो वेट-बल्ब तापमान 32 डिग्री सेल्सियस होगा, जो शारीरिक श्रम के लिए खतरनाक माना जाता है. इसी प्रकार, यदि तापमान 40 डिग्री सेल्सियस है और सापेक्ष आर्द्रता 75 प्रतिशत है, तो वेट-बल्ब तापमान लगभग 36 डिग्री सेल्सियस होगा.

कुछ ही मनुष्य 35 डिग्री सेल्सियस से अधिक वेट-बल्ब तापमान को सहन कर सकते हैं क्योंकि उनका शरीर अब खुद को ठंडा नहीं कर सकता है. भारत के कई क्षेत्रों में अब साल के कुछ हिस्सों में वेट-बल्ब तापमान 32 डिग्री सेल्सियस से अधिक हो जाता है. हालांकि, हम ऐसे दिनों को हीटवेव नहीं घोषित कर रहे हैं, जो शारीरिक श्रम में लगे लोगों के जीवन को खतरे में डालते हैं.

यूनाइटेड स्टेट्स ऑक्यूपेशनल सेफ्टी एंड हेल्थ एडमिनिस्ट्रेशन (ओएसएचए) की सिफारिश है कि नियोक्ताओं को 25 सेल्सियस से अधिक के किसी भी वेट बल्ब ग्लोब तापमान रीडिंग को अभ्यस्त श्रमिकों के लिए कड़ी मेहनत से रुकने और ब्रेक लेने के लिए एक ट्रिगर के रूप में मानना ​​चाहिए.

दूसरा, सरकार को गर्मियों में काम के घंटों को बदलने तक ही सीमित नहीं रहना चाहिए. अधिकांश हीट एक्शन प्लान यह सलाह देते हैं कि नियोक्ता बाहरी कार्य शेड्यूल को व्यस्त दोपहर के घंटों (12-4 बजे) से दूर शिफ्ट करें. गर्मियों में काम करने पर अल्पविकसित प्रतिबंधों के बजाय, भारत को गर्मी के तनाव पर अंतरराष्ट्रीय स्तर के सर्वोत्तम प्रथाओं को अपनाना चाहिए.

यूएस नेशनल इंस्टीट्यूट फॉर ऑक्यूपेशनल सेफ्टी एंड हेल्थ एडमिनिस्ट्रेशन (एनआईओएसएच) ने 192 पेज की रिपोर्ट में कुछ सबसे विस्तृत उपलब्ध दिशानिर्देश जारी किए हैं. एनआईओएसएच के अलावा, अंतर्राष्ट्रीय मानक संगठन (आईएसओ) मानक 7243 डब्ल्यूबीजीटी के उपयोग की सिफारिश करता है और विभिन्न शारीरिक कार्य तीव्रता के आधार पर बताता है कि कितने देर काम करना चाहिए और कितनी देर आराम.

अध्ययनों से पता चला है कि रात का तापमान दिन के तापमान की तुलना में तेजी से गर्म हो रहा है, जिसका अर्थ है कि यदि श्रमिक दिन के समय काम करते वक्त गर्मी में हैं, और रात का भी तापमान पर्याप्त गर्म है, तो उनका शरीर खुद को ठंडा नहीं कर सकता है.

तीसरा- अधिकांश HAP कमजोर समूहों की व्यापक श्रेणियों को पहचानते हैं लेकिन उनके द्वारा प्रस्तावित समाधानों की सूची जरूरी नहीं कि इन समूहों पर केंद्रित हो. HAP को खास व्यवसायों और आजीविका समूहों को पहचानने के लिए और अधिक सूक्ष्म समझ की आवश्यकता है और गर्मी इन समूहों को अलग-अलग कैसे प्रभावित करती है.

उदाहरण के लिए, ईंट भट्टों में काम करने वाले श्रमिक विशेष रूप से असुरक्षित होते हैं क्योंकि वे न केवल उच्च बाहरी तापमान के संपर्क में आते हैं बल्कि भट्टियों से निकलने वाली तेज गर्मी के भी संपर्क में आते हैं. खराब जीवन स्थितियों और कल्याणकारी लाभों तक पहुंच की कमी के कारण ये स्थितियां और भी गंभीर हो गई हैं. एक उपयुक्त समाधान केवल खास आजीविका समूहों और गर्मी की लहरों के कारण उत्पन्न होने वाली अनोखी चुनौतियों को पहचानकर ही पाया जा सकता है.

(मोक्ष तारिणी नई दिल्ली स्थित एक वकील हैं. यह एक ओपिनियन पीस है और ऊपर व्यक्त विचार लेखक के अपने हैं. क्विंट हिंदी का इनसे सहमत होना आवश्यक नहीं है.)

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