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जब मैं एरोप्लेन में होती हूं, तो वो इकलौता ऐसा समय होता है, जब वाकई मैं रिलेक्स रहती हूं. यही वो समय होता है, जब मेरे पास असल में सोचने का वक्त होता है. इस स्थिति का जिम्मेदार स्मार्टफोन है. यों कहें कि इसके लिए हमारा वो तरीका जिम्मेदार है, जिस तरह हम उसे इस्तेमाल करते हैं.
मैं इस चीज से अपनी बात शुरू करूंगी कि क्यों मैं प्लेन में रिलैक्स रहती हूं या क्यों स्मार्टफोन मुझे सोचने का समय नहीं देता है?
इसके बाद भी जब मैं किसी काम के लिए आपना फोन उठाती हूं (अपने समय की प्लानिंग और दिन को व्यवस्थित करने के बाद), जैसे कि ऑफिस के वॉट्सऐप ग्रुप के अपडेट देखने के लिए, तो भी कुछ दूसरे मैसेज पर मेरी निगाहें टिक ही जाती हैं.
जिस काम को मैं कर रही थी, उसकी जगह किसी मैसेज का जवाब देने में जुट जाती हूं. (मैं परिवार या दोस्तों के ग्रुप में जोक्स या गुड मॉर्निंग जैसे मैसेज की बात नहीं कर रही, बल्कि काम से ताल्लुक रखने वाले जरूरी मैसेज की बात कर रही हूं). ये अटेंशन डेफिसिट डिसॉर्डर (एडीडी) हो सकता है.
“कोई भी व्यक्ति कितना भी काम कर सकता है, बस उसे इस बात की छूट हो कि उसे ये काम उसी वक्त नहीं करना है.”- रॉबर्ट बेंचले
बहरहाल, मैंने जो काम शुरू किया था, वो अभी बाकी है.
मैं अपने बैंक के ऐप का इस्तेमाल करना चाहती हूं; तभी मैं देखती हूं कि एक नोटिफिकेशन पॉप-अप मुझे एक मीटिंग की याद दिला रहा है, जिसे मैं भूल गई थी. बैंक के ऐप पर अपने काम को मैं टाल देती हूं (ये करना जरूरी था, लेकिन तत्काल करने की जरूरत नहीं थी).
मीटिंग के लिए जाते हुए रास्ते में मैं जब कुछ ईमेल का जवाब देने की योजना बनाती हूं, तभी एक फोन कॉल आ जाता है (फिर से बता दूं, ये कोई सोशल कॉल नहीं है). इन सब चीजों को जानने-समझने से पहले मैं वॉट्सऐप और दूसरे मैसेज का जवाब दे रही होती हूं. इस तरह, दिन के लिए तय मेरी पूरी योजना खत्म हो गई, क्योंकि मैं अब दूसरे लोगों के एजेंडे पर काम कर रही होती हूं.
ऐसा इसलिए, क्योंकि हर चीज जो मैं करती हूं, वो अपने फोन के साथ करती हूं- शिड्यूलिंग, बैंकिंग, शॉपिंग, रिसर्च, रीडिंग आदि, और इस कॉलम को लिखना भी!
और इन सबके बीच फेसबुक, ट्विटर, इंस्टाग्राम, और पिनट्रेस्ट भी है.
ये सही है कि एक चीज को साबित करने के लिए मैं अतिशयोक्ति कह रही हूं, लेकिन ये असल बात ये है कि मेरी चीजों पर ध्यान देने की क्षमता घटती जा रही है. (अब ये साबित हो चुकी है कि स्मार्टफोन अटेंशन डेफिसिट डिसॉर्डर का कारण बन रहा है).
स्मार्टफोन कैसे हमारे ऑफ-लाइन मेलजोल को तबाह कर रहा है, ये हम सब महसूस करते हैं. लोगों का समूह कहीं बैठा हो और सभी के सभी अपने-अपने स्मार्टफोन पर व्यस्त हों, ये नजारा अब हमारे लिए आम है.
ये भी पूरी तरह सही नहीं होगा कि आप अपने फोन को खुद से दूर अपने बैग में रख दें.
अब सोशल मीडिया को दूर हटाइए. मैं सोशल मीडिया पर अपने टाइम को रेगुलेट करने की कोशिश करती हूं. सिर्फ दिन में दो दफे ट्विटर पर न्यूज चेक करती हूं. इसके अलावा फेसबुक, इंस्टाग्राम, पिनट्रेस्ट को अपने काम से ब्रेक के दौरान ही देखती हूं. ब्रेक टाइम की बात करें, तो ये वक्त राहत की सांस लेने का होता है, लेकिन दिमाग में शांति नहीं है, क्योंकि हमारा दिमाग हमेशा सोशल मीडिया पर आ रहे अनोखे (या डिस्टर्ब करने वाले) कंटेंट की तरफ लगा रहता है.
मेरा खुद का अनुभव है. यहां तक कि अगर मैं सोने के लिए बेड पर चले जाने के अपने निर्धारित समय पर ऐसा कर भी लूं और अगर इसी बीच मैं तय करती हूं कि सोशल मीडिया पर 10 मिनट समय दे देती हूं, तो अचानक मैं देखती हूं कि आधी रात हो चुकी है! मैं थकान और नींद के बीच में से जागती हूं और ऐसा ही एक क्रम फिर से चल पड़ता है, और इस बार ये और ज्यादा थका देने वाला होता है.
मैं ये सबकुछ क्यों लिख रही हूं? मैं ये इसलिए लिख रही हूं, क्योंकि मैं चाहती हूं कि हम सब अपने-अपने फोन से अपने रिश्तों को परखें. क्योंकि जैसा कि एरियाना ने कहा है, “हम अपने फोन के साथ एक रिलेशनशिप में हैं!”
अपने फोन के साथ अपने रिलेशनशिप को जांचने की प्रक्रिया में ये एक अच्छा आइडिया है कि हम अपने काम और जिंदगी के संतुलन पर भी एक नजर डालें, क्योंकि ये उन चीजों में से एक है, जिसे स्मार्टफोन ने बर्बाद किया है. जानते हैं आप कि कंपनियां अपने कर्मचारियों को ब्लैकबेरी फोन क्यों देते हैं?
प्लेन यात्रा की तरह ही मैंने खुद को बदलने की कोशिश की (मैं वहां के हवा के दबाव जैसी चीजों की बात नहीं कर रही हूं, बल्कि फोन की बात कर रही हूं). मैंने देखा कि फोन से 2-3 घंटे का ब्रेक वाकई मुझे बढ़िया अहसास देता है और मुझे और ज्यादा प्रोडक्टिव बनाता है. वास्तव में हमें हर समय फोन पर उपलब्ध रहने और दूसरों से संपर्क बनाए रखने योग्य बने रहने की जरूरत नहीं है.
प्लेन के सफर के दौरान रिलैक्स होने की बात पर वापस आते हैं. मैंने देखा कि इस दौरान मैं कई सारी उन चीजों पर सोच पाई, जिनके बारे में पहले नहीं सोचा था. ऐसा इसलिए हो पाया, क्योंकि मेरा ध्यान भटकाने और भंग करने वाला फोन मेरे पास नहीं था.
एक और समय मैं ऐसा ही अनुभव कर पाती हूं, जबकि मैं एक्सरसाइज कर रही होती हूं, क्योंकि तब भी मेरा फोन मेरे पास नहीं होता है.
जैसे ही आप खुद सोचने लगते हैं, समाधान नजर आने लगता है. मैं अक्सर अपने कई मुद्दों को एक्सरसाइज करने के दौरान सुलझाने में कामयाब रहती हूं. (मुझे लगता है कि मैं खुद को इस तथ्य से अलग करूं कि मैं जूझ रही हूं और हांफ रही हूं, लेकिन ये एक अलग कॉलम की बात है.) मैं खुद को दुनिया के शिखर पर महसूस करती हूं. काफी हद तक जैसा कि एक एयरप्लेन में !अगली बार, ‘डेटा ऑफ एट 8.30 PM’ प्लान की कोशिश करें.
(गुल पनाग एक्टर, पायलट, नेता, एंटरप्रेन्योर के साथ-साथ बहुत कुछ हैं. ये उनके व्यक्तिगत विचार हैं. इसमें क्विंट की सहमति जरूरी नहीं है)
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