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होली आ गई है और इसके आते ही जैसे लोगों से 'बुरा मानने का अधिकार' छीन लिया जाता है. होली के एक हफ्ते पहले से ही लोग 'बुरा न मानो, होली है' बोलकर हुड़दंग मचाना जो शुरू कर देते हैं.
होली ऐसा त्योहार है, जिसके आते ही लड़कियों और महिलाओं का घर से निकलना आफत हो जाता है. किसी गली में बच्चे पानी के गुब्बारे लेकर खड़े रहते हैं, तो कहीं मनचले अपनी मनमानी कर रहे होते हैं. तो इंसानों की तरह होली कैसी खेली जानी चाहिए?
होली मस्ती का त्योहार है, तो इसमें हुड़दंग न लाएं. होली से एक हफ्ते पहले बाल्टी में रंग और पानी के गुब्बारे भरकर बैठने से आप पानी का भी नुकसान करेंगे और आते-जाते लोगों का भी. कोई बेचारा सुबह-सुबह धुले कपड़े पहनकर ऑफिस जा रहा हो और ये पड़ा उस पर छप्प से गुब्बारा! ये तो गलत बात है.
होली आते ही कुछ पुरुषों की मानसिकता जैसे गटर में गिर जाती है. हर साल होली के मौके पर न जाने कितनी लड़कियों पर सीमन से भरे गुब्बारे फेंके जाने की घटनाएं देखने-सुनने को मिलती हैं. क्या ये होली खेलने का तरीका है? मतलब इतनी घटिया हरकत का मतलब क्या है?
ये 'बुरा न मानो, होली है' जुमला किसने शुरू किया था, ये तो नहीं मालूम, लेकिन इसे जल्द बंद करने की जरूरत है. होली शुरू नहीं होती कि हर कोई आकर रंग लगा देता है और कहकर चला जाता है कि 'बुरा न मानो, होली है.'
बुरा मानने वाली हरकत पर इंसान बुरा न माने, तो और क्या करे. गुजारिश है आप सभी से, प्लीज होली पर किसी को जबरदस्ती रंग न लगाएं. बहुत बेसिक चीज है समझने की.
होली रंगों का त्योहार है, मस्ती का त्योहार है. उसे वही रहने दीजिए. सीमन के गुब्बारे फेंककर या किसी को जबरदस्ती रंग लगाकर किसी के लिए इस त्योहार की यादें मत खराब करिए. इंसान बनना वाकई आसान है, इस होली ट्राई कर के देखिए!
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