मेंबर्स के लिए
lock close icon
Home Created by potrace 1.16, written by Peter Selinger 2001-2019Voices Created by potrace 1.16, written by Peter Selinger 2001-2019Opinion Created by potrace 1.16, written by Peter Selinger 2001-2019ह्यूस्टन में मोदी-ट्रंप ‘ब्रोमांस’ के बीच विनर हैं भारतीय अमेरिकी

ह्यूस्टन में मोदी-ट्रंप ‘ब्रोमांस’ के बीच विनर हैं भारतीय अमेरिकी

अमेरिका की सर्वाधिक बड़ी टेक्नोलॉजी कंपनियों का नेतृत्व भारतीय-अमेरिकी करते हैं.

राघव बहल
नजरिया
Published:
अमेरिका की सर्वाधिक बड़ी टेक्नोलॉजी कंपनियों का नेतृत्व भारतीय-अमेरिकी करते हैं.
i
अमेरिका की सर्वाधिक बड़ी टेक्नोलॉजी कंपनियों का नेतृत्व भारतीय-अमेरिकी करते हैं.
(फोटो: द क्विंट) 

advertisement

अमेरिका के ह्यूस्टन में हाउडी मोदी-ट्रंप तमाशे में सबसे बड़ा विजेता कौन रहा? मोदी के कट्टर भक्त कहेंगे कि अमेरिका के राष्ट्रपति को निजी रैली में लाकर भारतीय प्रधानमंत्री राजनीति के सातवें आसमान पर पहुंच गए. दूसरी तरफ, ट्रंप के अंध समर्थकों का जवाब होगा कि रैली से अमेरिका के राष्ट्रपति ने भारतीय-अमेरिकियों के वोट अपने पाले में कर लिए, जो अमूमन डेमोक्रेटिक पार्टी को मिलते हैं.

लेकिन सच बताइए, मोदी और ट्रंप यह तमाशा किसके लिए कर रहे थे? ह्यूस्टन के विशालकाय स्टेडियम में दोनों वहां मौजूद तीसरी सबसे बड़ी ताकत यानी प्रवासी भारतीय-अमेरिकियों की आर्थिक, बौद्धिक और राजनीतिक आधार को लुभाने की कोशिश कर रहे थे. वही इस आयोजन के सबसे बड़े विजेता रहे और इसकी कई वजहें हैं.

एशियाई प्रवासियों में चाइनीज मूल के बाद 40 लाख के साथ सबसे बड़ी संख्या भारतीय-अमेरिकियों की है. उन्होंने अमेरिकी अर्थव्यवस्था पर अमिट छाप छोड़ी है.

  • 72 प्रतिशत भारतीय-अमेरिकियों के पास बैचलर या उससे ऊपर की डिग्री है, जबकि अन्य एशियाई प्रवासियों के लिए यह 51 प्रतिशत है.
  • मेडिकल जगत से लेकर सरकार तक, हर क्षेत्र में वे शीर्ष पदों पर हैं.
  • उनकी औसत पारिवारिक आमदनी अमेरिका में रहने वाले किसी भी एथनिक ग्रुप में सबसे अधिक है और 2015 में यह 1,00,000 डॉलर, जबकि सभी एशियाई-अमेरिकी समूह के लिए यह 73,000 डॉलर थी.

दुनिया में अमेरिका के तकनीकी वर्चस्व को बनाए रखने में उनकी भूमिका खासतौर पर अहम है. वैसे तो सिलिकॉन वैली में काम करने वालों में भारतीय 6 प्रतिशत ही हैं, लेकिन करीब 15 प्रतिशत स्टार्टअप उन्होंने शुरू किए हैं.

अमेरिका की सर्वाधिक बड़ी टेक्नोलॉजी कंपनियों का नेतृत्व भारतीय-अमेरिकी करते हैं. इनमें माइक्रोसॉफ्ट में सत्या नडेला, गूगल के सुंचर पिचाई और अडोबी के शांतनु नारायण शामिल हैं. सिलिकॉन वैली और बेंगलुरु के बीच उनकी वजह से फायदेमंद रिश्ता बना है. दोनों जगहों से चलाई जाने वाली कंपनियां रिसर्च, टेक्नोलॉजिकल डिवेलपमेंट, एंप्लॉयी और कैपिटल साझा कर रही हैं. माइक्रोसॉफ्ट, गूगल और अडोबी सहित कई टेक्नोलॉजी कंपनियों ने अमेरिका से बाहर बेंगलुरु में अपने सबसे बड़े डिवेलपमेंट सेंटर खोले हैं.

आईआईटी, खड़गपुर में सुंदर पिचाई(फोटो: IANS)
ADVERTISEMENT
ADVERTISEMENT

इसमें भी कोई शक नहीं है कि भारत की ग्रोथ और अमेरिका-भारत के बीच आर्थिक रिश्ते मजबूत करने में उन्होंने अहम भूमिका निभाई है. वे हर साल अरबों डॉलर की रकम भेजते हैं, जिससे हम नियमित तौर पर दुनिया में सबसे अधिक रेमिटेंस हासिल करने वाले देश बने हुए हैं. 2017 के बाद से भारत में हर साल 70 अरब डॉलर की रकम इस रास्ते से आ रही है.

सत्या नडेला, CEO माइक्रोसॉफ्ट( फोटो: Microsoft India )

देश लौटने वाले भारतीय-अमेरिकियों की संख्या भी बढ़ रही है और वे अमेरिकी कौशल और तजुर्बा लेकर यहां आ रहे हैं. भारतीय प्रवासियों पर काम करने और अमेरिका में रहने वाले उद्यमी विवेक वाधवा का मानना है कि पहले सीमित संख्या में भारतीय-अमेरिकी देश लौट रहे थे, जो अब बाढ़ में बदल गई है. उन्होंने बताया कि हर साल 1,00,000 से अधिक भारतीय-अमेरिकी देश लौट रहे हैं और उनमें से कई साइंटिस्ट और इंजीनियर हैं.

भारतीय-अमेरिकी इतने सफल क्यों हैं?

भारत की परीक्षा आधारित शिक्षा-व्यवस्था में जो भी खामियां हों, लेकिन इसमें मैथ्‍य और साइंस को बेहद ऊंचा दर्जा हासिल है. भारत में इस क्षेत्र में बहुत प्रतिस्पर्धा भी है. इस वजह से यहां दुनिया की बेस्ट ट्रेंड टेक्निकल वर्कफोर्स तैयार होती है. औपनिवेशिक विरासत की वजह से भारतीय सिर्फ अच्छी शिक्षा लेकर ही अमेरिका नहीं पहुंचते, वे धारा प्रवाह अंग्रेजी भी बोलते हैं, जो बिजनेस की अंतरराष्ट्रीय भाषा है.

प्यू के एशियन-अमेरिकन सर्वे में बताया गया था कि 76 प्रतिशत भारतीय प्रवासी ‘बहुत अच्छी अंग्रेजी’ बोलते हैं, जबकि चाइनीज मूल के लोगों के लिए यह संख्या 50 प्रतिशत से कुछ अधिक है.

‘विदेश में सफल होने के लिए आपको वहां रहने वालों की मानसिकता को समझना पड़ता है. आप अपनी भारतीयता बनाए रखते हैं, लेकिन आपको उस देश की जरूरत के हिसाब से खुद को ढालना भी पड़ता है. अगर आप अलग-थलग पड़े रहेंगे, तो कभी सफल नहीं हो पाएंगे.’

ह्यूस्टन में ‘हाउडी मोदी’ इवेंट में जमा भारतीय-अमेरिकी नागरिक ( फोटो : @narendramodi / Twitter)

कुछ लोगों का कहना है कि भारत में भी जब आप बड़े हो रहे होते हैं, तो ऐसी ही स्थिति का सामना करना पड़ता है. इसी वजह से जब भारतीय विदेश जाते हैं, तो वह सफलता हासिल करते हैं. अलग-अलग बैकग्राउंड और आस्था वाली एक अरब से अधिक की आबादी के बीच रहने से आप गिरकर उठना, सहिष्णुता और किसी भी स्थिति का सामना करने के लिए तैयार होते हैं और किसी के भी सफल होने में इन बातों का बड़ा योगदान होता है. सच तो यह है कि भारत की कछुआ चाल से चलने वाली नौकरशाही बिजनेस शुरू करने के ख्वाहिशमंद शख्स के लिए आदर्श ट्रेनिंग ग्राउंड हो सकती है, जिसे शायद ही उससे अधिक जटिल चुनौतियों का सामना करना पड़े.

यह भी संयोग नहीं है कि दूसरे एशियाई समुदाय की तुलना में भारतीय-अमेरिकी भेदभाव से बेपरवाह होते हैं.

  • 2012 में प्यू के एक सर्वे से पता चला था कि सिर्फ 10 प्रतिशत भारतीय अमेरिकी भेदभाव को ‘बड़ी’ समस्या मानते हैं और 48 प्रतिशत इसे ‘छोटी’ प्रॉब्लम बताते हैं. वहीं, 38 प्रतिशत को तो इससे फर्क ही नहीं पड़ता.
  • चीन के लोगों के लिए यह संख्या क्रमशः 16, 56 और 24 प्रतिशत थी, जो एशियाई अमेरिकी मूल के 13, 48 और 35 प्रतिशत के औसत से अधिक है.
  • खैर, हिस्पैनिक (लैटिन अमेरिकी मूल के लोगों) की तुलना में यह कुछ भी नहीं है. 2010 में उनके बीच ऐसे ही एक सर्वे से पता चला था कि उनमें से 61 प्रतिशत इसे ‘बड़ी’ और 24 प्रतिशत ‘छोटी’ समस्या मानते हैं, जबकि 13 प्रतिशत के लिए यह कोई मुद्दा नहीं था.

भारतीय-अमेरिकी मूल के लोगों को उनका परिवार भीड़ से अलग करता है.

  • अमेरिका में रहने वाले 70 प्रतिशत से अधिक भारतीय बालिग शादीशुदा हैं और उनमें से ज्यादातर ने अपने ही समाज में शादी की है. दूसरे एशियाई अमेरिकी लोगों के लिए यह संख्या 59 प्रतिशत है और सभी अमेरिकियों के लिए 50 प्रतिशत के करीब.
  • और बच्चे बड़ा करने को उन्होंने सबसे ज्यादा प्राथमिकता दी; सभी एशियाई अमेरिकियों के 67 फीसदी और जनरल पब्लिक के 50 फीसदी की तुलना में, इनमें से 78 फीसदी लोगों ने माना कि अच्छा माता/पिता होना जिंदगी की सबसे अहम चीजों में से एक है

यह ‘राष्ट्रीय परिवार’ का आपसी मामला है

भारत से जो भी शख्स अमेरिका जाता है, उसे वहां प्रवासी भारतीयों का सपोर्ट मिलता है. वाधवा ने बताया, ‘यहां आने वाले भारतीयों के पहले वर्ग ने सफलता मिलने के बाद एक दूसरे की मदद और उनकी मेटरिंग शुरू की. इस मामले में दूसरे समूह भारतीयों के सामने कहीं नहीं टिकते.’

1965 में अमेरिका के एमिग्रेशन लॉ में व्यापक बदलाव के बाद यहां एशियाई भारतीयों की संख्या बढ़ती गई. शुरू में जो लोग यहां से अमेरिका गए, वे निचले स्तर के तकनीकी काम करते थे. अमेरिका में तब यह सोच थी कि भले ही भारतीय ग्रेट इंजीनियर होते हैं, लेकिन उनमें नेतृत्व करने की क्षमता नहीं होती. हालांकि जैसे ही विजय वाशी जैसे लोगों ने इस सोच को धता बताकर अपनी जगह बनाई, उन लोगों ने दूसरे देशवासियों की मदद करने को अपनी प्राथमिकता में शामिल कर लिया. विजय को 1982 में माइक्रोसॉफ्ट ने हायर किया था और वह कंपनी के दूसरे भारतीय कर्मचारी थे. 10 साल के अंदर वह कंपनी की पावरपॉइंट डिवीजन के बॉस बन चुके थे.

‘वे यह भूल गए कि वे भारत के किस हिस्से में पैदा हुए थे और उन्होंने अपना ध्यान सिर्फ लक्ष्य पर केंद्रित रखा.’ उन्होंने बताया, ‘उन्हें इसका अहसास था कि उन सबने एक जैसी चुनौतियां पार की हैं. उन्हें अपने बाद आने वालों के लिए बाधाएं और मुश्किलें कम करनी चाहिए. उन्होंने बाद में आने वाले भारतीयों के साथ अपने तजुर्बे साझा किए. उन्हें आगे बढ़ने का मौका दिया.’ उन लोगों ने एक दूसरे की कंपनियों में निवेश किया, एक दूसरे के बोर्ड में शामिल हुए और अपने समाज के लोगों की भर्तियां कीं.
विवेक वाधवा, अमेरिका स्थित उद्यमी

प्रवासी भारतीयों के नेटवर्क की ताकत सिर्फ सिलिकॉन वैली के उद्यमियों तक सीमित नहीं है. पिछले कई वर्षों में अमेरिका के एशियाई भारतीयों के वर्ग में दूसरे उद्योगों के ब्लू-कॉलर और लोअर-लेवल वर्कर्स भी शामिल हुए हैं.

मिसाल के लिए, अमेरिका के 40 प्रतिशत मोटलों पर भारतीय प्रवासियों का मालिकाना हक है और इनमें से ज्यादातर ने यह बिजनेस अपने रिश्तेदारों या दोस्तों से सीखा है. जब भारत से कोई शख्स पहली बार अमेरिका पहुंचता है, तो वह अक्सर विचिटा या डेट्रॉयट या सैक्रामेंटो या चार्ल्सटन के किसी मोटल में रुकता है, जिसे चलाने वाला उसका कोई रिश्तेदार या गांव का पड़ोसी हो सकता है. जल्द ही वह शख्स आगे बढ़ने के गुर सीखकर अपना मुकाम बनाने निकल पड़ता है. उसके बाद वह सफलता का इतिहास लिखता है.

इस वीडियो को अंग्रेजी में देखने के लिए क्लिक करें:

Howdy Modi: Indian Diaspora Biggest Winner of Trump-Modi Bonhomie

(हैलो दोस्तों! हमारे Telegram चैनल से जुड़े रहिए यहां)

अनलॉक करने के लिए मेंबर बनें
  • साइट पर सभी पेड कंटेंट का एक्सेस
  • क्विंट पर बिना ऐड के सबकुछ पढ़ें
  • स्पेशल प्रोजेक्ट का सबसे पहला प्रीव्यू
आगे बढ़ें

Published: undefined

Read More
ADVERTISEMENT
SCROLL FOR NEXT