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भुखमरी के ये आंकड़े लगा सकते हैं ‘मिशन 5 ट्रिलियन इकनॉमी’ पर ब्रेक

ग्लोबल हंगर इंडेक्स में 118 देशों की सूची में भारत पिछले साल 103 वें नंबर पर रहा

हृदयेश जोशी
नजरिया
Updated:
भुखमरी के ये आंकड़े लगा सकते हैं ‘मिशन 5 ट्रिलियन इकनॉमी’ पर ब्रेक
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भुखमरी के ये आंकड़े लगा सकते हैं ‘मिशन 5 ट्रिलियन इकनॉमी’ पर ब्रेक
(प्रतीकात्मक तस्वीर: AP)

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छत्तीसगढ़ में मिड डे मील के तहत दिए जाना वाला अंडा खानपान के साथ छेड़छाड़ का विवाद बन गया है. अब भूपेश बघेल सरकार संवेदनाओं का ख्याल रखते हुए अंडे की होम डिलीवरी की बात कर रही है. इसी राज्य में 14 साल से कम उम्र के एक तिहाई बच्चों का कद और वजन सामान्य से कम है और बड़ी संख्या में आदिवासी बच्चे कुपोषित हैं. महत्वपूर्ण है कि यह विवाद ऐसे वक्त में उठा है जब संयुक्त राष्ट्र की एक अहम रिपोर्ट भारत के लिये अलार्म बेल की तरह सामने आई है.

क्या कहती है रिपोर्ट?

खाद्य सुरक्षा और पोषण को लेकर हाल ही में प्रकाशित हुई यह रिपोर्ट कहती है कि दुनिया में अब भी 82 करोड़ से अधिक लोग भूखे हैं. यहां भूखे का मतलब भोजन नहीं मिलना या पर्याप्त भोजन न मिलने से है. रिपोर्ट के मुताबिक, एक दशक तक भूख और कुपोषण के खिलाफ मुहिम में मिली कामयाबी के बाद अब एक बार फिर से भुखमरी दुनिया भर में सिर उठा रही है. और पिछले 3 साल में हालात फिर से बिगड़ने लगे हैं. एक साल के अंदर भूख से पीड़ित लोगों की संख्या में करीब 1 करोड़ की बढ़ोतरी हुई है.

जहां संयुक्त राष्ट्र के लिए यह आंकड़े साल 2030 तक दुनिया भर से भूख मिटाने (जीरो हंगर) के अपने लक्ष्य को देखते हुए परेशान करने वाले हैं, वहीं भारत के लिये यह दोहरी चिंता का विषय है. पहली वजह तो यह कि भुखमरी के शिकार कुल 82 करोड़ लोगों में करीब 51 करोड़ एशिया में हैं. जाहिर तौर पर भूख और कुपोषण से पीड़ित इस आबादी का सबसे बड़ा हिस्सा भारत में है.

इन आंकड़ों से समस्या का पता चलता है-

  1. आज भारत में करीब 20 करोड़ लोगों को पर्याप्त पोषण नहीं मिल रहा है.
  2. 5 साल से कम उम्र के ढाई करोड़ बच्चों का वजन सामान्य से कम है.
  3. इसी आयु वर्ग के 4.6 करोड़ बच्चे अपनी उम्र के हिसाब से कम हाइट (स्टंटेड ग्रोथ) के हैं.
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कैसे भुखमरी देश की 'ग्रोथ स्टोरी' के लिए खतरा है?

देश की इतनी बड़ी आबादी का कुपोषित होना उस ग्रोथ स्टोरी के लिये खतरा है जिसकी तैयारी हिन्दुस्तान कर रहा है. झारखंड की मिसाल लीजिए 2017 के बाद से अब तक मीडिया में डेढ़ दर्जन से अधिक लोगों की भूख से मौत की खबरें आईं, लेकिन केंद्र और राज्य सरकार इन मौतों पर लीपापोती ही करती रही है.

लेकिन यह समस्या बीमारू या पिछड़े कहे जाने वाले राज्यों तक सीमित नहीं है. पिछले साल जुलाई में दिल्ली के मंडालवी इलाके में तीन लड़कियों की भूख से हुई मौत से पता चला कि चमक-दमक से भरी राजधानी की असलियत पूरे भारत से अलग नहीं है. ऐसे में जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी 2024 तक भारत को 5 ट्रिलियन डॉलर इकॉनोमी बनाने की बात करते हैं, तो वह भूख और कुपोषण की इस सच्चाई को अनदेखा नहीं कर सकते.

ग्लोबल हंगर इंडेक्स में 118 देशों की सूची में भारत पिछले साल 103 वें नंबर पर रहा. बांग्लादेश और नेपाल जैसे देश उससे बेहतर स्थिति में हैं. संयुक्त राष्ट्र की रिपोर्ट कहती है कि, “2008-09 में आई वैश्विक आर्थिक मंदी के बाद कई देशों में आर्थिक तरक्की की ढुलमुल रफ्तार, भूख और कुपोषण के खिलाफ जंग में बाधक बन रही है.” जाहिर तौर पर यह बात भारत पर भी लागू होती है जहां अर्थव्यवस्था पटरी पर नहीं आ पा रही.

अर्थशास्त्री दीपा सिन्हा कहती है कि जहां लचर अर्थव्यवस्था भूख से लड़ने में बाधक है, वहीं भूख और कुपोषण अर्थव्यवस्था के लिये स्पीड ब्रेकर है क्योंकि यह उत्पादन पर असर डालता है.

अगर बच्चे और युवा स्वस्थ नहीं होंगे तो आर्थिक तरक्की कैसे होगी? कुपोषित वर्कफोर्स उत्पादकता कैसे ला सकती है? सरकार को सही पोषण और स्वास्थ्य को अपनी प्राथमिकता बनाना होगा.
अर्थशास्त्री दीपा सिन्हा

कुपोषित वर्कफोर्स से होता है GDP में नुकसान

डाउन टु अर्थ मैग्जीन में साल 2016 में छपी एक रिपोर्ट के मुताबिक, भारत की जीडीपी में कुपोषित वर्कफोर्स के कारण 3 लाख करोड़ तक की हानि होती है, जो कि जीडीपी के 2.5% के बराबर है. चीन ने पिछले कुछ सालों में कुपोषण की वजह से जीडीपी को होने वाले इस नुकसान को केवल 0.4% तक सीमित कर दिया है.

भारत में कुपोषण को मिटाने के लिए बच्चों को अच्छा आहार दिया जाना बहुत जरूरी है. भोजन के अधिकार से जुड़े कार्यकर्ताओं ने लंबे समय से यह मांग उठाई है. अंडा अभियान की अगुवाई करते रहे अर्थशास्त्री ज्यां द्रेज कहते हैं कि बच्चों को स्कूलों में मिलने वाले मिड डे मील में पोषक तत्व दिए जाने चाहिए जिससे उनका शारीरिक विकास बेहतर हो. यह दिलचस्प है कि देश में झारखंड, पश्चिम बंगाल, उड़ीसा, आंध्र प्रदेश, तमिलनाडु समेत कई राज्यों में बच्चों को अंडा दिया जा रहा है.

स्कूलों और आंगनवाड़ियों में हर हफ्ते मिलने वाले अंडों की संख्या और उस राज्य में शासन करने वाली पार्टियां(ग्राफिक आर्टिस्ट: स्वाति नारायण)
लेकिन वहीं गुजरात, महाराष्ट्र, उत्तरप्रदेश, हरियाणा और हिमाचल प्रदेश जैसे बीजेपी शासित राज्यों में बच्चों को अंडा नहीं दिया जाता. हालांकि, बीजेपी के शासन वाले बिहार, उत्तराखंड और असम समेत कुछ राज्यों में अंडा मिड डे मील का हिस्सा है और कांग्रेस की सरकार वाले राजस्थान, मध्य प्रदेश और पंजाब में अंडा मिड डे मील में नहीं दिया जाता. इसके बावजूद छत्तीसगढ़ में अंडा दिए जाने पर बच्चों को जबरन “मांसाहारी” बनाने का विपक्ष के आरोप ने एक नई बहस शुरू कर दी है.

जलवायु परिवर्तन से पैदा विपरीत हालात का सबसे बड़ा असर भी भारत पर होने वाला है. खुद केंद्रीय मंत्री गजेंद्र सिंह शेखावत कह चुके हैं कि सूखे की वजह से भारत के खाद्य उत्पादन पर बुरा असर पड़ेगा. ऐसे में “मिशन 5 ट्रिलियन इकॉनोमी” पर नजर टिकाए भारत को भुखमरी के आंकड़ों से सावधान रहना होगा.

(हृदयेश जोशी स्वतंत्र पत्रकार हैं. उन्होंने बस्तर में नक्सली हिंसा और आदिवासी समस्याओं को लंबे वक्त तक कवर किया है.)

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Published: 17 Jul 2019,09:20 PM IST

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