advertisement
लोकसभा चुनाव के दौरान और नतीजों के बाद भी उत्तर प्रदेश का घोसी संसदीय क्षेत्र सुर्खियों में है. नरेंद्र मोदी की प्रचंड लहर के बावजूद यहां से बीएसपी प्रत्याशी अतुल राय ने जीत हासिल की. उनकी यह जीत कई मायने में अहम थी.
अतुल राय बलात्कार के मामले में पूरे चुनाव के दौरान पुलिसिया कार्रवाई से बचने के लिए फरार चल रहे थे. पुलिस उनके पीछे आंधी-तूफान की तरह लगी थी. अतुल राय की गैर-मौजूदगी में ही मायावती और अखिलेश यादव ने यहां संयुक्त चुनावी सभा की. मतदान हुआ, तो अतुल राय करीब सवा लाख वोट से जीत गए.
बीजेपी प्रत्याशी को मुंह की खानी पड़ी. लेकिन जीतने के बाद अभी तक अतुल राय सांसद की शपथ नहीं ले सके हैं. 21 जून तक उनमें और पुलिस के बीच चूहे-बिल्ली का खेल चलता रहा. जब कहीं से उन्हें राहत नहीं मिली, तो उन्होंने सरेंडर किया और अभी वो सलाखों के पीछे हैं.
घोसी से अतुल राय की जीत कोई तुक्का नहीं है. अतुल राय बाहुबली मुख्तार अंसारी के 'राइट हैंड' माने जाते हैं. राजनीतिक हलके में यह चर्चा आम है कि उन्हें अंसारी परिवार के कहने पर ही मायावती ने टिकट दिया.
मुख्तार के जेल में जाने के बाद गिरोह की कमान अतुल राय के ही हाथ में थी. खास तौर से मुख्तार का 'आर्थिक साम्राज्य' वही संभालते हैं. अंसारी परिवार भी आंख मूंदकर उन पर भरोसा करता आया है. इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि घोसी सीट से मुख्तार अंसारी के बेटे भी चुनाव लड़ना चाहते थे, लेकिन अंसारी परिवार ने अतुल राय को तरजीह दी. वो भी उस सीट पर, जहां तीन दशक से अंसारी परिवार का दबदबा रहा है.
सूबे में सरकार किसी की हो, मऊ में सिक्का अंसारी परिवार का ही चलता है. विधानसभा चुनाव में सदर सीट से मुख्तार अंसारी और लोकसभा चुनाव में अतुल राय की जीत यही तस्दीक करती है.
अंसारी परिवार का साथ, बीएसपी और समाजवादी पार्टी का पारंपरिक वोट बैंक और इलाके की दबंग भूमिहार जाति में अच्छी पैठ की बदौलत अतुल राय को जीत मिली. लेकिन यह जीत आसान नहीं थी. टिकट मिलते ही अतुल राय का सामना उनके अतीत से हुआ.
लेकिन यहां किस्मत ने थोड़ा अतुल राय का साथ दिया. पुलिस उन्हें पकड़ती, इससे पहले उन्होंने नामांकन कर दिया और फिर फरार हो गए. घोसी से लेकर दिल्ली तक पुलिस अतुल राय को तलाश करती रही. गिरफ्तारी से बचने के लिए अतुल राय ने हाईकोर्ट और फिर सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया. दोनों जगह उन्हें मायूसी हाथ लगी.
एक के बाद एक झटके खाने के बाद अतुल राय के समर्थक निराश थे, लेकिन किस्मत उनके साथ थी. लोकसभा चुनाव के नतीजे आए, तो हर कोई चौंक गया. अतुल राय ने बीजेपी प्रत्याशी हरिनारायण राजभर को 1.22 लाख वोट से हरा दिया.
अतुल राय जीत तो गए, लेकिन उन्हें यह अंदाजा था कि केंद्र और राज्य दोनों ही जगह सत्ता में बैठी बीजेपी छोड़ेगी नहीं. वही हुआ भी. कानून का शिकंजा कसता गया. आरोप भी संगीन था और इसलिए उन्हें कहीं से कोई राहत नहीं मिली.
सरकार के तेवर को देखते हुए अतुल राय एक महीने बाद तक सरेंडर करने की हिम्मत नहीं जुटा पाए. आखिर में बनारस कोर्ट में सरेंडर तब किया, जब कुर्की का आदेश दे दिया गया. अभी वो वाराणसी की चौकाघाट जेल में बंद हैं.
आम तौर पर सुस्त पुलिस अतुल राय के मामले में बेहद चुस्त है. सूत्रों के मुताबिक, लंका पुलिस ने चार्जशीट तैयार कर ली है. किसी भी वक्त अदालत में चार्जशीट दाखिल कर दी जाएगी. पीड़िता की मांग है कि इस केस में रोजाना सुनवाई हो.
जिस स्पीड से अतुल राय के खिलाफ ट्रायल चल रहा है, उससे ऐसा लगता है कि कम ही समय में कोर्ट किसी निर्णय पर पहुंच सकता है. ऐसी चर्चा है कि सांसद पक्ष की ओर से पीड़िता को 'मैनेज' करने की भी भरपूर कोशिश हो चुकी है, लेकिन वो पीछे हटने को तैयार नहीं है.
फिलहाल अतुल राय की सबसे बड़ी चिंता सांसद के तौर पर शपथ लेने की है, जिसकी इजाजत अदालत ने नहीं दी है. इस मसले पर अतुल राय ने 27 जून को कोर्ट से गुहार लगाई थी, लेकिन वह गुहार खारिज कर दी गई.
अतुल राय पर आरोप लगाने वाली पीड़िता के वकील सुदीष्ट कुमार बताते हैं कि अतुल राय फिलहाल न्यायिक हिरासत में हैं. कानून उन्हें इस बात की इजाजत नहीं देता है कि वो न्यायिक तौर पर संसद में शपथ लेने जाए.
कहते हैं कि जब मुसीबत आती है, तो चारों तरफ से आती है. रेप के आरोपों को झेल रहे अतुल राय ने चुनाव के दौरान भी एक बड़ी गलती कर दी. नामांकन दाखिल करने के दौरान उन्होंने चुनाव आयोग को जो हलफनामा सौंपा, उसमें उन्होंने अपने ऊपर चल रहे 13 मुकदमों का जिक्र किया.
दूसरी ओर पूर्व सांसद हरिनारायण ने तथ्य छुपाने का आरोप लगाते हुए इलाहाबाद हाईकोर्ट में एक याचिका दाखिल की है और मांग की है कि अतुल राय की सदस्यता रद्द की जाए.
कुल मिलाकर, अतुल राय को घोसी की जनता ने अपना प्रतिनिधि तो घोषित कर दिया, लेकिन वो उनका प्रतिनिधित्व कर सकेंगे, घोसी की जनता की आवाज बन सकेंगे, इसकी गुंजाइश बहुत थोड़ी है. यह भी मुमकिन है कि घोसी की जनता को नया प्रतिनिधि चुनना पड़े.
(क्विंट हिन्दी, हर मुद्दे पर बनता आपकी आवाज, करता है सवाल. आज ही मेंबर बनें और हमारी पत्रकारिता को आकार देने में सक्रिय भूमिका निभाएं.)
Published: undefined