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पाकिस्तान में जनरल असीम मुनीर (General Asim Munir) के नेतृत्व वाली पाकिस्तानी सेना Pakistan army ने 9 मई की सुबह आखिरकार पूर्व प्रधानमंत्री और देश की सबसे बड़ी राजनीतिक पार्टी पाकिस्तान-तहरीक-ए-इंसाफ (पीटीआई) के प्रमुख इमरान खान के खिलाफ मोर्चा खोल ही दिया. एक तेज और निष्ठुर ऑपरेशन में, पाकिस्तान रेंजर्स (पाकिस्तानी सेना के अधिकारियों की अगुवाई में काम करने वाली एक एलीट पैरामिलिट्री फोर्स) के कर्मियों के साथ देश की कानून प्रवर्तन एजेंसियों ने इमरान खान को इस्लामाबाद हाई कोर्ट परिसर से अल-कादिर ट्रस्ट मामले में गिरफ्तार किया है.
इमरान खान अपने खिलाफ दर्ज कई मामलों में जमानत लेने के लिए इस्लामाबाद कोर्ट पहुंचे थे. "अल-कादिर ट्रस्ट केस" में इमरान खान और उनकी पत्नी बुशरा बेगम पर सरकारी खजाने से वित्तीय धोखाधड़ी करने का आरोप है.
इमरान खान की गिरफ्तारी पर PTI नेताओं और पार्टी के सदस्यों ने काफी गुस्से भरी प्रतिक्रिया व्यक्त की है. एक ओर जहां पार्टी नेताओं ने विरोध करने के लिए सोशल मीडिया का सहारा लिया है, वहीं पार्टी के सदस्यों ने देश की सड़कों पर, खास तौर पर खैबर-पख्तूनख्वा (KP) और पंजाब के प्रांतों में विरोध प्रदर्शन किया है. सड़कों पर होने वाले इनमें से कुछ विरोध हिंसक हो गए. सेना बाहर नहीं आई है, पुलिस ने ही सेना की तरह बेहद धैर्य से काम लिया है. सेना द्वारा प्रदर्शनकारियों को रावलपिंडी में GHQ (जनरल हेडक्वार्टर) के प्रवेश द्वार को नुकसान पहुंचाने और लाहौर में कोर कमांडर के घर में घुसने और नुकसान पहुंचाने की अनुमति देने से यह स्पष्ट हो गया है कि सेना धैर्य से काम ले रही है.
इसी तरह, पीटीआई समर्थकों द्वारा जनरल हेडक्वार्टर गेट और लाहौर में कॉर्प कमांडर के आवास पर किए गए नुकसान से सभी सैन्य कर्मियों की भावनाओं को ठेस पहुंचेगी. आम तौर पर, यह उम्मीद की जा सकती है कि इस तरह की घटनाओं को रोकने के लिए जनरलों ने पर्याप्त बल तैनात किया होगा. लेकिन तथ्य यह है कि उन्होंने ऐसा नहीं किया, जोकि उनके इरादों को दर्शाता है.
अगर जनरलों ने अवाम के साथ धैर्य से काम लिया तो यह स्पष्ट है कि उन्होंने मुल्क की संस्थाओं को दृढ़ता या धैर्य का संदेश दिया. इसी तरह, इमरान खान की गिरफ्तारी के तरीके को लेकर थोड़ी बहुत नाराजगी दिखाने के बाद, आखिरकार शाम होते-होते इस्लामाबाद हाई कोर्ट ने सार्वजनिक तौर पर घोषित कर दिया था कि खान की गिरफ्तारी कानूनी थी.
ध्यान देने वाली एक बात यह भी है कि पाकिस्तान के राष्ट्रपति आरिफ अल्वी, जो कभी भी इमरान खान के समर्थन में बयान जारी करने का कोई मौका नहीं छोड़ते थे, वे भी दिन भर खामोश रहे. वहीं पाकिस्तान के प्रधान मंत्री शाहबाज शरीफ, जिन्हें आमतौर पर इस मुद्दे को संभालने के लिए आमतौर पर तुरंत वापस आ चाहिए था, उन्होंने पाकिस्तानी लोगों को यह स्पष्ट करने के लिए लंदन में अपने प्रवास को एक दिन बढ़ाने का फैसला किया कि यह सेना ही थी जो पूरी तरह से इमरान खान के खिलाफ औपचारिक रूप से अभियोग या आरोप लगाने के लिए उनको कोर्ट ला रही थी. प्रधानमंत्री शाहबाज शरीफ ने लंदन से ही कानून प्रवर्तन एजेंसियों और सेना के पक्ष में और इमरान खान के खिलाफ जोरदार बयान जारी किए हैं.
पीटीआई लीडरशिप ने पार्टी सदस्यों और अवाम से शांतिपूर्ण तरीके से विरोध प्रदर्शन जारी रखने का आग्रह किया है. इसके अलावा, यह भी कहा जा रहा है कि जिस तरह से इमरान खान को गिरफ्तार किया गया, उसके खिलाफ पार्टी सुप्रीम कोर्ट का रुख करना चाहती है. कोर्ट खुद भी दो हिस्सों में विभाजित है. पाकिस्तान के चीफ जस्टिस अता बंदियाल और उनके गुट को इमरान खान समर्थक माना जाता है. चूंकि खान को पुलिस रिमांड हासिल करने के लिए पेश किया जाएगा ताकि वह मामले में खान की जांच कर सके ऐसे में भले ही चीफ जस्टिस इमरान के प्रति सहानुभूति रखते हैं, लेकिन उनके लिए समय को वापस मोड़ना मुश्किल हो सकता है. ऐसी संभावना है कि कोर्ट पुलिस को इमरान की जांच करने की अनुमति देगी और इस मामले को देख रहे नेशनल अकाउंटैबिलिटी ब्यूरो (NAB) की कस्टडी में खान को भेज दिया जाए.
भले ही आने वाले दिन महत्वपूर्ण और अनिश्चितताओं से भरे हुए हैं, लेकिन तथ्य यह है कि जब से इमरान खान ने अक्टूबर 2021 में पूर्व सेना प्रमुख जनरल कमर बाजवा द्वारा लेफ्टिनेंट जनरल फैज हमीद को डीजी आईएसआई के पद से बदलने का विरोध किया, तब से जनरल और सेना के बीच में मतभेद रहे हैं. केवल दरार चौड़ी हुई है. इसकी वजह से अप्रैल 2022 में इमरान खान को प्रधान मंत्री के पद से बेदखल कर दिया गया. चूंकि इमरान के पास जनता का पर्याप्त समर्थन था इसलिए कम से कम कुछ समय के लिए चुपचाप पीछे हटने के बजाय उन्होंने जनरलों का सामना करने का विकल्प चुना.
समय से पहले चुनाव कराने और सेना को निशाना बनाने पर इमरान की रणनीति टिकी थी. उन्हें स्पष्ट रूप से विश्वास था कि वह अपने व्यापक जन समर्थन और चीफ जस्टिस अता बंदियाल का यह निर्देश कि पंजाब और खैबर-पख्तूनख्वा (KP) विधानसभाओं के लिए चुनाव कराते समय संवैधानिक प्रक्रियाओं का पालन किया जाना चाहिए, जिससे वे सेना का बेहतर से बेहतर उपयोग कर सकेंगे. इमरान ने यह सुनिश्चित करने की पूरी कोशिश की कि बाजवा के उत्तराधिकारी की नियुक्ति में उनकी बात मानी जाए. लेकिन इस बात को न तो बाजवा और न ही शहबाज शरीफ के नेतृत्व वाली सरकार स्पष्ट रूप से स्वीकार कर सकती थी.
7 मई को ISI के डीजी काउंटर इंटेलिजेंस, मेजर जनरल फैसल नसीर के खिलाफ इमरान खान ने जो टिप्पणी की है, उसकी वजह से खान के खिलाफ जनरलों का धैर्य टूट गया है. खान ने पहले व्यक्तिगत तौर पर उन्हें निशाना बनाया था, लेकिन अब उन्होंने सारी हदें पार कर दी हैं. खान ने कहा,
आईएसपीआर ने अपने बयान में कहा है कि "पीटीआई अध्यक्ष ने बिना किसी सबूत के एक वरिष्ठ सेवारत अफसर के खिलाफ अत्यधिक गैर जिम्मेदाराना और निराधार आरोप लगाए हैं. ये मनगढ़ंत और दुर्भावनापूर्ण आरोप बेहद ही दुर्भाग्यपूर्ण, निंदनीय और अस्वीकार्य हैं. यह पैटर्न पिछले एक साल से लगातार चलता आ रहा है..."
सेना ने यह संकेत दे दिए हैं कि इमरान खान और उनके समर्थकों ने सारी हदें पार कर दी हैं. जाहिर है सुप्रीम कोर्ट का फैसला अब चाहे जो भी हो, उसके बावजूद भी चुनाव में देरी होगी. इसके अलावा, पिछले राजनेताओं की तरह इमरान खान को निकट भविष्य में जनरलों से पंगा लेने की कीमत चुकानी होगी.
(लेखक, विदेश मंत्रालय के पूर्व सचिव [वेस्ट] हैं. उनका ट्विटर हैंडल @VivekKatju है. यह एक ओपिनियन पीस है. इस लेख में व्यक्त विचार लेखक के अपने हैं. क्विंट का इनसे सहमत होना आवश्यक नहीं है.)
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