advertisement
23-24 फरवरी को पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान (Pakistan Prime Minister Imran Khan) के रूस दौरे (Russia Visit) ने सभी को भौंचक्का कर दिया. कई हफ्तों से इस बात की आशंका थी कि रूस यूक्रेन पर हमला करेगा. इसलिए ऐसे वक्त पश्चिमी देशों का कोई सहयोगी नेता रूस जाने, और राष्ट्रपति व्लादिमिर पुतिन से मिलने से परहेज करेगा, यहां तक कि पाकिस्तान के इमरान खान जैसा बेधड़क शख्स भी. लेकिन जिस दिन पुतिन ने यूक्रेन पर हवाई, समुद्री और जमीनी हमला किया, उसी दिन इमरान खान उनके साथ लंच कर रहे थे.
एक तरफ पश्चिमी देशों की सरकारें रूस पर पाबंदियां लगा रही हैं, दूसरी तरफ इमरान खान रूसी राष्ट्रपति से मुलाकात कर रहे हैं. यह एक बुरी मिसाल कायम करता है और एक बड़ी विपत्ति को बुलावा देने जैसा है.
यह दौरा पाकिस्तान और रूस के रिश्तों को मधुर बनाने के लिए नहीं था. इसकी दूसरी वजहें हैं. इस मुलाकात का मकसद देश में इमरान खान की व्यक्तिगत राजनैतिक किस्मत को सुधारना है. चूंकि उनकी सरकार, उनके खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव लाने की योजना बना रही है. सेना भी अपनी कठपुतली से थक चुकी है. उनकी नाकाबिलियत, उनकी जिद से आजिज आ चुकी है.
इस बीच कई बुरी खबरें हैं. अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ) कार्यक्रम एक साल के लिए सस्पेंड कर दिया गया है, और फाइनांशियल एक्शन टास्क फोर्स (एफएटीएफ) ने पाकिस्तान को अपनी ग्रे लिस्ट से हटाकर व्हाइट लिस्ट में शामिल नहीं किया है. भारत और मोदी ने कूटनीतिक रिश्तों में गर्माहट लाने की पाकिस्तान की अर्जी का जवाब नहीं दिया है, हालांकि दोनों देशों की इंटेलिजेंस एजेंसियां गुपचुप बातचीत कर रही हैं जिसके बाद नियंत्रण रेखा (एलओसी) पर युद्ध विराम हुआ है.
इसके अलावा काबुल के पतन के बाद पाकिस्तान की लबलबाती खुशी छिपी नहीं, और इसके साथ ही पारिया देश के उसके दर्जे को मानो आखिरी ठप्पा लग गया (पारिया देश यानी जिसे अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अलग थलग कर दिया गया है).
लेकिन अपने दौर के तानाशाह से सांठ-गांठ का न्यौता कबूलना, बहुत ही बेशर्म फैसला महसूस होता है. पाकिस्तान जैसे वित्तीय और आर्थिक रूप से कमजोर और टूटे हुए देश, जोकि पश्चिम के पैसे पर निर्भर है, के लिए यह मौत के फरमान जैसा है.
सभी को पाकिस्तान के सेना प्रमुख कमर जावेद बाजवा का कई साल पुराना वह बयान याद होगा जिसमें उन्होंने ख्वाहिश जताई थी कि पाकिस्तान अमेरिकी कैंप में फिर से शामिल हो जाए. इसीलिए इमरान खान का रूस दौरा उनकी व्यक्तिगत मर्जी लगता है जिसकी वजह से सेना के मंसूबों पर पानी फिर सकता है. चूंकि सेना पश्चिमी देशों (यानी अमेरिका) की इनायत की ख्वाहिशमंद है.
सच्चाई यह है कि यूक्रेन में पाकिस्तान के एंबेसेडर रिटायर्ड मेजर जनरल नोएल इज़राइल खोखर, रूसी हमले से ठीक एक दिन पहले यूक्रेन की उप विदेश मंत्री एमिन डेज़ेपर से मिले थे. उन्होंने यूक्रेन की संप्रभुता और क्षेत्रीय अखंडता की हिमायत की थी. यह इस बात की तरफ इशारा करता है कि सेना इमरान खान की करतूतों को ढंकने की कोशिश कर रही है और यह साफ करना चाहती है कि पाकिस्तान किसकी तरफ है.
बलूच नेता और कई सालों तक सेना के खुफिया जान अचकजई ने इमरान खान के दौरे से पहले ही लिख दिया था कि यह पाकिस्तान की इज्जत पर बट्टा लगाएगा. उन्होंने लिखा था कि यह विरोधाभास ही है. रूस दौरे का फैसला एक अल्पसंख्यक पार्टी की सरकार ने लिया है जोकि सहयोगियों के समर्थन से चल रही है. इन सहयोगियों के इर्द-गिर्द भी सेना काबिज है. अचकजई ने यह दावा भी किया था कि इमरान खान को रूस से न्यौता नहीं मिला था, उन्होंने खुद ही को न्यौता दे दिया था.
पाकिस्तान शुरुआत से ही पश्चिम के सहारे रहा है. और यह आने वाले वक्त में बदलने वाला नहीं. पश्चिम के साथ पाकिस्तान के रिश्ते खट्टे-मीठे हो सकते हैं लेकिन यहां के हुक्मरान उसकी जी-हुजूरी करने से बाज नहीं आएंगे. जब समय इतना अशांत नहीं था, तब पाकिस्तान पूर्व और पश्चिम, दोनों के साथ संतुलन बनाता रहा है.
सोवियत संघ के बिखरने के बाद दोनों देशों के बीच के 94 मिलियन डॉलर का वित्तीय विवाद करीब चालीस साल बाद अभी हाल ही सुलझा है. पिछली सरकार ने इस मसले को हल किया है. इसके अलावा 2015 में पाकिस्तान स्ट्रीम गैस पाइपलाइन का सौदा पिछले साल लगभग टूटने वाला था, जब पाकिस्तान ने सौदे की शर्तों में तब्दीली करने की कोशिश की. पाकिस्तान की पेट्रोल डिविजन ने नई शर्तों के बारे में चिट्ठी लिखी थी तो रूस काफी खफा हो गया था. लिहाजा यह बात कुछ हज़म नहीं होती कि इमरान खान “दो तरफा रिश्तों को मजबूती देने और एनर्जी सेक्टर में सहयोग बढ़ाने के लिए” रूस गए थे.
इसलिए जहां तक दो तरफा संबंधों का सवाल है, रूस का दौरा बहुत फायदेमंद साबित होगा, ऐसा लगता तो नहीं है. हां, इससे इमरान खान के भविष्य पर नई तलवार जरूर लटक सकती है.
(गुल बुखारी पाकिस्तानी पत्रकार और एक्टिविस्ट हैं. उनका ट्विटर हैंडिल है @GulBukhari. यह एक ओपिनियन पीस है. यहां व्यक्त विचार लेखक के अपने हैं. क्विंट का उनसे सहमत होना जरूरी नहीं है.)
(क्विंट हिन्दी, हर मुद्दे पर बनता आपकी आवाज, करता है सवाल. आज ही मेंबर बनें और हमारी पत्रकारिता को आकार देने में सक्रिय भूमिका निभाएं.)
Published: 27 Feb 2022,12:17 PM IST