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भारतीय वायुसेना की वो खासियतें जो चीन पर पड़ सकती हैं भारी

विंग कमांडर (रिटायर्ड) अमित रंजन गिरि
नजरिया
Published:
बायें PLAAF का Hongdu L-15 एयरक्राफ्ट, दाएं भारतीय वायुसेना का तेजस एयरक्राफ्ट (प्रतीकात्मक)
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बायें PLAAF का Hongdu L-15 एयरक्राफ्ट, दाएं भारतीय वायुसेना का तेजस एयरक्राफ्ट (प्रतीकात्मक)
(Photo: Wikimedia Commons / Altered by Arnica Kala / The Quint)

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80 के मध्य तक इंडियन एयरफोर्स (आईएएफ) को लगातार ताकतवर बनाने की कोशिशें होती रहीं. इसके पीछे सिर्फ एक ही आधार या यूं कहें खतरा था. वो था पश्चिम में बैठा दुश्मन पाकिस्तान. बाकी देश, जिनकी सीमा भारत से मिलती है ना ही वह भारत के लिए शत्रु हैं और न ही उससे ज्यादा ताकतवर. हालांकि, चीन इसमें अपवाद है. कुछ अजीब वजहों से लंबे समय से हमने ना तो चीन के खतरे के बारे में बात की है और ना ही उसके साथ जंग लेकर.

हमारा पूरा फोकस पाकिस्तान पर रहा. जंग और कई हिंसक झड़पों के बावजूद, हाल के दिनों में भारत ने सैन्य रणनीति का एक नया अध्याय शुरू किया. ये रणनीति हमारे उत्तर में बैठे पड़ोसी (चीन) को सबक सिखाने के लिए है.

ऐसा नहीं है कि चीन से पहले खतरा नहीं था. हो सकता है शायद तब इसका जवाब नहीं था, इस वजह से हम खुद को तसल्ली देकर शुतुरमुर्ग के तरीके को अपनाते हैं - "मुसीबत में आंख मूंद लो और मानकर बैठ जाओ कि वह हमारे ऊपर नहीं आएगी'

अब पूर्व की ओर है आईएएफ की चौकन्नी नजर

चीन के लिए आईएएफ की नीति काफी हद तक सरकार की उदासीनता का नतीजा थी. इसने कभी उसे अपने पंख फैलाने की इजाजत नहीं दी. एक तथ्य ये है कि अभी हाल तक 82 डिग्री देशांतर के पूर्व में कोई SAM यूनिट या भरोसेमंद रडार यूनिट तक नहीं थी. आईएएफ की पूर्वी कमांड कमजोर एयर डिफेंस की वजह से काफी साल पीछे थी.

दुश्मन को सबक सिखाने के लिए आईएएफ को पश्चिम मोर्चे से उड़ान भरनी होती थी. लेकिन इस तरह की योजना को कभी परखा नहीं गया था. ये बस कागजों में मजबूत लगती थी.

लेकिन आज कहानी बदल चुकी है. अब इंडियन एयरफोर्स ने पूर्व से आने वाले खतरें को देखना शुरू कर दिया है.

अब रणनीति लाल दुश्मन के खिलाफ बनाई जाती है. इसके बाद शायद वो दो मोर्चों में तब्दील हो जाती है. ये तार्किक और भरोसेमंद दोनों है.

ट्रेनिंग में इस्तेमाल होने वाले मिग-21 एफएल रिटायर हो चुके हैं. उनकी जगह सुखोई एसयू-30एमकेआई को लाया गया है. आईएएफ ने एयरफील्ड के लिए जरूरी इन्फ्रास्ट्रक्चर, कमांड और भरोसेमंद SAM यूनिट को लेकर काम शुरू कर दिया है. अमेरिका से मिले अपाचे हेलिकॉप्टर से आईएएफ की ताकत बढ़ी है. जल्द ही राफेल विमान भी भारत पहुंचने वाले हैं.

आईएएफ की युद्ध नीति

इंडियन एयरफोर्स की युद्ध नीति विकेंद्रीकरण पर आधारित है. हर कमांड की अपनी जिम्मेदारी होती है. हालांकि उसको निर्देश एयरफोर्स हेडक्वार्टर से ही मिलते हैं. कुछ लक्ष्य ऐसे होते हैं, जिन पर फैसला दिल्ली में बैठे रक्षा से संबंधित बड़े ऑफिसर और सरकार करती है. हमला करने के पहले सर्वोच्च अधिकारी और सरकार की मंजूरी ली जाती है. कुल मिलाकर बात ये है कि आईएएफ का स्वरूप बाकी देशों के एयरफोर्स से एकदम अलग दिखता है.

कुछ सामरिक हित की चीजों को आईएएफ हेडक्वार्टर कंट्रोल करता है. साथ ही जरूरत और मांग के आधार पर कमांड्स को बांटता है.

जंग का यह ढांचा बेहद मजबूत है. इसे पूरी तरह से परखा गया है और हमारी प्लानिंग के लिए एकदम सही है.

सीमा की स्थिति को इस प्वाइंट से समझने की जरूरत है. हमारी भौगाेलिक संरचना कुछ ऐसी है कि पहाड़ की ऊंची चोटियां चीन से हमारी सुरक्षा करती हैं. हो सकता है कि ये बयान बचकाना लगे, लेकिन जहां तक हवाई युद्ध का मामला है, हमारे लिए ये आज भी सही है. जमीन की संरचना की वजह से ही शायद चीन से कई झड़पों के साथ हवाई हमले को सीमा पर ही रोकने में मदद मिली है. पीपुल्स लिबरेशन आर्मी एयरफोर्स (पीएलएएएफ) दुनिया के मानकों पर एक शक्तिशाली फोर्स है. अब यह वो एयरफोर्स नहीं रही, जो कभी खुद सैकंड हैड टेक्नोलॉजी पर चलती थी. चीनी एयरफोर्स अब इंडस्ट्री के मानकों तक पहुंचने कोशिश में है.

चीनी एयरफोर्स की ताकत

बीते कुछ सालों में चीनी एयरफोर्स ने खुफिया तौर से खुद को टेक्नोलॉजी में ट्रांसफॉर्म किया है. इसके जरिए उसने वर्ल्ड स्टैंडर्ड पर हथियारों का प्रोडक्शन भी किया.

चेंगदू जे-10 और शेनयांग जे-11 से जल्द ही चीनी एयरफोर्स को मजबूती मिलेगी. इन दोनों प्लेन की क्षमता सुखोई सू-27 और सुखोई सू-30 के बराबर है. इनके अपग्रेड वर्जन चेंगदू जे-20 और शेनयांग एफसी -31 (जे-31) भी जल्द ही आएंगे.

चीन के जे-20 जेट फाइटर का डिजाइन अमेरिका के स्टील्थ फाइटर लॉकहीड मार्टिन एफ-22 रैप्चर जैसा है. माना जाता है कि इसका इस्तेमाल भारत के फाइटर जेट्स को मार गिराने में कम और उसके ठिकानों को तबाह करने में ज्यादा किया जा सकता है.

लेकिन, यह हमेशा सही नहीं हो सकता. स्टील्थ फाइटर का मकसद होता है कि वो दुश्मन पर छुप कर हमला करे लेकिन जे-20 में कनार्ड (एक तरह का टेल प्लेन जिससे प्लेन को बेहतर बैलेंस बनाने में मदद मिलती है) लगे हैं लेकिन ये पीछे के बजाय आगे हैं, इससे शक होता है कि ये लड़ाकू विमानों को मार गिराने में भी इस्तेमाल किए जा सकते हैं, भले ही इसके लिए दुश्मन की नजरों में आना पड़े. इसी क्रम में रूस से खरीदे गए 20 सुखोई एसयू-35 को भी गिना जा सकता है, जिसपर शक है कि उन्हें रिवर्स इंजीनियरिंग टेक्नोलॉजी अपना कर खुद के इंजन तैयार करने के लिए खरीदा गया था.

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क्या इंडियन एयरफोर्स से सुरक्षित हैं चीनी बेस?

लेकिन सफलता के लिए सिर्फ तकनीक काफी नहीं है. टेक्नोलॉजी के साथ टाइमिंग और लोकेशन का ठीक होना बेहद जरूरी है. चीनी एयरफोर्स के पास 6 ऐसे एयरफील्ड्स हैं जिनको भारत के खिलाफ इस्तेमाल किया जा सकता है. इनमें से कोंगा जोंग, होपिंग, गार गुन्सा, लिंझी, काशगर और होतान करीब तीन हजार मीटर की ऊंचाई पर स्थित हैं. इससे चीन के ऑपरेटिंग एयरक्राफ्ट के लोड ले जाने की क्षमता लगभग आधी रह जाती है. जो उनके लिए मुसीबत बन सकती है.

हालांकि बेस के एयर डिफेंस में ये पहलू कोई मायने नहीं रखते. इन पहाड़ी क्षेत्रों में सिर्फ मायने रखती है तो यह बात कि समय रहते दुश्मन की पहचान करने में एयर डिफेंस कितना असरदार है.

अगर समय और रणनीति सही हो तो, ड्रैगन की मांद इंडियन एयरफोर्स से सुरक्षित नहीं रह सकती. चीन के बेस भारत के एयरफील्ड से काफी दूर हैं. इसी का फायदा उन्हें मिलता है.भारत के पुराने विमान वहां तक नहीं पहुंचते क्योंकि इसके लिए हवा से हवा में ईंधन भरने की क्षमता की जरूरत होती है. भारत पर हमला करते वक्त इस तथ्य का ध्यान चीन को भी रखना होगा.

इंडियन एयरफोर्स चीन पर भारी क्यों?

ज्यादा संभावना इस बात की है कि चीनी एयरफोर्स को भारत को ध्यान में रखकर नहीं बनाया गया था. चीनी एयरफोर्स के ज्यादातर नामी बेस बॉर्डर से बहुर अंदरूनी इलाकों में हैं, इसलिए व्यवहारिक तौर पर न तो भारत पर हमला करने के काम आ सकते हैं और न सीमा की सुरक्षा का काम कर सकते हैं. इसके अलावा भारत को नुकसान पहुंचाने वाले कुछ चीनी बेस तो ऐसे हैं, जिनमें आपसी सहयोग नहीं है. यानी जब एक बेस पर हमला हो रहा होगा तो दूसरे बेस की तरफ उसे कोई मदद नहीं मिल पाएगी. चीन के होतान के सबसे नजदीक काशगर बेस है, लेकिन इसकी दूरी तकरीबन 400 से 500 किलोमीटर है. मौजूदा तकनीक के साथ ये एक दूसरी की मदद नहीं कर सकते.

इंडियन एयरफोर्स का SWOT एनालिसिस

SWOT (स्ट्रेन्थ, वीकनेस, अपरच्युनिटी, थ्रैट) एनालिसिस करने के बाद यह कहना सुरक्षित होगा कि जंग के दौरान इंडियन एयरफोर्स की ज्यादातर कार्रवाई एयर स्पेस को सुरक्षित रखने और पैदल सेना - काउंटर सरफेस फोर्स ऑपरेशन (CSFO) की मदद के लिए होगी. बेशक, आईएएफ हवाई इलाकों में कार्रवाई कर सकता है. लेकिन अगर हम पाकिस्तान के साथ तीन जंगों के अनुभव से जानें तो ये कार्रवाई उतने बड़े पैमाने पर नहीं होगी.

हालांकि हमें अपने ठिकानों की रक्षा करने के लिए प्रयास करना होगा. चीन की जमीन से जमीन तक मार करने वाली बैलेस्टिक मिसाइल फोर्स (एसएसबीएम) और उसके पारंपरिक एटमी हथियार आईएएफ के लिए चिंता का प्रमुख कारण बन सकते हैं. हालांकि यह प्रलय जैसी स्थिति नहीं होगी. लेकिन परमाणु हथियार ले जाने वाली मिसाइलों से सारा खेल बदल सकता है. उम्मीद है दोनों देश इस तरह का कदम नहीं उठाएंगे.

आईएएफ लगातार अधिग्रहण कर रहा है. ऐसे में रक्षात्मक और आक्रामक दोनों ही मामलों में हमारी स्थिति बेहद अच्छी दिख रही है.

चीनी वायुसेना के लिए इंडियन एयरफोर्स को रोकना आसान नहीं होगा. इसके लिए काफी मशक्कत करनी होगी. वजह ये है कि दोनों देशों की सीमाएं और आकार बहुत बड़े हैं.

भारतीय वायुसेना को निश्चित रूप से खुद को भविष्य की चुनौतियों के लिए तैयार करना होगा. चीन से तो खतरा बना ही हुआ है. पश्चिमी सीमा पर भी सतर्कता और पैनी नजर रखनी होगी, वहां पाकिस्तान है. चीन से जंग के दौरान वो भी हिमाकत कर सकता है.

चुनौती दोनों से एक साथ निपटने की है.

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