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गलवान घाटी पर चीन के दावे और आक्रामक रवैये से इस इलाके में जमीन हड़पने की उसकी वो चाल बेनकाब हो गई है जो LAC पर लद्दाख से हजारों किलोमीटर दूर अरुणाचल प्रदेश में वो पिछले कई दशकों से आजमाता रहा है.
1962 की जंग के बाद, अरुणाचल प्रदेश में सिर्फ दो ऐसे वाकये सामने आए थे जिसमें भारतीय सेना और चीन की पीपुल्स लिबरेशन आर्मी के बीच संघर्ष और तनातनी की नौबत आई.
1975 में सरहद से सटे तवांग के तुलुंग ला इलाके में PLA की एक पेट्रोलिंग पार्टी की भारतीय सीमा में घुसपैठ के बाद हुई झड़प में असम राइफल्स के चार जवान शहीद हो गए थे.
1986-87 में इससे ज्यादा गंभीर मामला सामने आया. जिसमें दोनों पड़ोसी देश लगभग युद्ध के कगार पर पहुंच गए. 1986 में तवांग के सुमदोरांग चू में भारतीय सेना की नजर चीन द्वारा बनाए गए पक्के ढांचे पर पड़ी, कुछ ही हफ्तों में वहां एक हेलीपैड भी तैयार हो गया. भारतीय सेना के जवानों को हाथुंग ला पर कब्जे के लिए भेजा गया, चीन ने इसके बाद अपनी सेना को सीमा की तरफ बढ़ने को कहा.
दोनों देशों में तनाव तब कम हुआ जब विदेश मंत्री नारायण दत्त तिवारी ने बीजिंग पहुंच कर ये साफ किया कि भारत हालात को बिगाड़ना नहीं चाहता, जिसके बाद 5 अगस्त 1987 को पहली बार दोनों देशों की सेना के बीच औपचारिक फ्लैग मीटिंग हुई.
इन वाकयों के अलावा, पिछले सालों में ऐसी कई घटनाएं हुईं जिनमें पेट्रोलिंग के दौरान दोनों देशों की सेना आमने-सामने आ गई, और अपनी जगह से पीछे हटने से साफ इनकार कर दिया. LAC पर दिबांग वैली में PLA ने एक बार एक तख्ती लगा दी थी जिस पर लिखा था ‘ये चीन का इलाका है. वापस जाओ.’
इसके अलावा पिछले कुछ दशकों में धीरे-धीरे चीन की सेना अरुणाचल प्रदेश के कई इलाकों में घुसपैठ कर चुकी है, कई जगहों पर उसने सड़क और पुल भी बना लिए हैं.
राजनेताओं और खुफिया अधिकारियों के मुताबिक LAC पर अरुणाचल प्रदेश में ऐसे तीन ‘खतरनाक इलाके’ हैं जहां पिछले दो दशक में चीनी सेना बढ़त हासिल करती दिख रही है.
अरुणाचल प्रदेश (पूर्व) से सांसद तापिर गाव ने बताया, ‘ये प्रक्रिया लंबे समय से जारी है. पिछले साल फरवरी में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को चिट्ठी लिखकर मैंने इस मसले की तरफ उनका ध्यान खींचने की कोशिश की, मैंने चीन के कब्जे वाले इलाके की पूरी जानकारी देकर उन्हें इस मामले को जल्द सुलझाने की मांग की.’
म्यांमार की सीमा से सटा अंजाव अरुणाचल प्रदेश के उन जिलों में से है जहां चीन ने भयानक तरीके से अपनी गतिविधियां तेज कर दी है, यहां नई सड़कें बनाई जा रही हैं और सेना की तैनाती की जा रही है. चागलागाम सर्कल में, जहां बड़े भू-भाग में इलायची की खेती की जाती है, चीन ने एक झरने के ऊपर पुल बना लिया है.
2009 में द टेलीग्राफ अखबार में छपी एक रिपोर्ट में दावा किया गया था कि चीन ने काहो के पास हंड्रेड हिल पर कब्जा कर लिया है. पिछले साल स्थानीय लोगों ने मुझसे बातचीत में इसकी पुष्टि की और बताया कि चीन ने सीमा के पार एक नया हाईवे भी तैयार कर लिया है.
ये खबरें भी छप चुकी हैं कि अंजाव से सटे खूबसूरत दिबांग वैली में चीनी सीमा से सटे एंड्रेला वैली, जिसे भारत का हिस्सा माना जाता था, को चीन ने हड़प लिया है. सरहद से लगे इन इलाकों से रोजी-रोटी की तलाश में लोगों के पलायन कर जाने से हालात और बिगड़ गए हैं. राज्य सरकार ने केन्द्र से गुहार लगाते हुए इन इलाकों में पायलट प्रोजेक्ट शुरू करने की मांग की है, ताकि सीमा से लगे इलाकों में रहने वाले लोगों को अपना घर-बार छोड़कर बाहर जाने से रोका जा सके.
एक अधिकारी के मुताबिक ऊपरी सुबनसिरी में यह अतिक्रमण 1980 से ही जारी है. अधिकारी का दावा है कि PLA यहां करीब 50-60 किमी अंदर घुसकर भारतीय जमीन पर कब्जा जमा चुका है, यही वो इलाका है जहां 1962 के हमले में सैन्य कार्रवाई हुई थी.
लेकिन अरुणाचल प्रदेश में PLA की गुप्त कार्रवाई के कुछ पहलुओं पर राजनेता और खुफिया अधिकारी एकमत हैं. पहला, चीन की तरफ से सबसे ज्यादा अतिक्रमण ऊपरी सुबनसिरी जिले में हुआ है. और दूसरा, PLA ने ज्यादातर उन इलाकों को अपना निशाना बनाया है जहां लोग नहीं रहते और जहां भारतीय सेना मौजूद नहीं है.
‘उदाहरण के लिए ऊपरी सुबनसिरी के न्यू माजा इलाके में भारतीय सेना ने एक पोस्ट तैयार किया है लेकिन चीन पहले ही माजा को हड़प चुका है. हमारे राज्य में चीन बहुत बड़े इलाके में कब्जा जमा चुका है,’ अरुणाचल प्रदेश के सांसद तापिर गाव ने बताया.
समय-समय पर केन्द्र सरकार को सीमावर्ती राज्य में चीन की घुसपैठ से बनी चिंता से अवगत कराया जा चुका है. 2003 में अरुणाचल प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री गेगांग अपांग ने उस वक्त प्रधानमंत्री रहे अटल बिहारी वाजपेयी को माजा और उसके आसपास के इलाकों में बने हालात की जानकारी देते हुए विवाद के जल्द समाधान की मांग की थी.
अरुणाचल प्रदेश में चीन के कब्जे वाले ज्यादातर इलाके तवांग, पश्चिमी कामेंग और अंजाव जिले - जहां बीच-बीच में इंसानी आबादी होने की वजह से सड़कें बनी हुई हैं - जैसे नहीं हैं. ऊपरी सुबनसिरी के ताकसिंग जैसे इलाकों में सेना की गश्ती दल को पैदल पहुंचने में एक सप्ताह तक का समय लग जाता है, ऊपरी सियांग के कुछ इलाकों में पेट्रोलिंग की हालत और बुरी है.
ऊपरी सुबनसिरी में सीमा से सटे कातेनाला गांव के कुछ स्थानीय शिकारियों ने – जो कि चीनी एजेंट्स को कभी-कभार वन्यजीवन से जुड़ी चीजें और कैटरपिलर फंगस जैसे जड़ी-बूटी बेचते हैं – बताया कि ऊपरी सियांग और ऊपरी सुबनसिरी के कई इलाकों में चीनी सेना की मौजूदगी बढ़ती जा रही है, जिनसे बचने के लिए वो अलग रास्तों से आवाजाही करते हैं. कई बार चीनी सैनिक उन्हें रोक लेते हैं – लेकिन ज्यादातर उन्हें बिना परेशान किए छोड़ देते हैं.
(राजीव भट्टाचार्य गुवाहटी में वरिष्ठ पत्रकार हैं. उन्हें @rajkbhat पर ट्वीट किया जा सकता है. आर्टिकल में छपे विचार उनके अपने हैं. इसमें क्विंट की सहमति होना जरूरी नहीं है.)
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Published: 24 Jun 2020,01:19 PM IST