''चीनी संकट को मैनेज करने के बजाय ऐसा लगता है कि सरकार हेडलाइन मैनेज करने में जुटी है''. ये कहना है चीन मामलों के एक्सपर्ट और ऑब्जर्वर रिसर्च फाउंडेशन के विशिष्ट फेलो मनोज जोशी का. मनोज जोशी ने ये बातें क्विंट के एडिटोरियल डायरेक्टर संजय पुगलिया से एक खास बातचीत में कही हैं.
आधी अधूरी जानकारियां क्यों दे रही सरकार?
मनोज जोशी ने क्रोनोलॉजी समझाते हुए कहा कि पहले खबर आई कि हमारे सिर्फ तीन जवान शहीद हुए हैं, साथ में बताया गया कि चीन के पांच सैनिक मारे गए हैं, लेकिन शाम होते-होते जब ये जानकारी आई कि हमारे 20 जवान शहीद हुए हैं तो साथ में ये खबर भी उड़ाई गई कि चीन के 43 मारे गए हैं. इसी तरह पहले कहा गया कि हमारे सारे सैनिक वापस आ गए हैं, कोई नहीं पकड़ा गया है, लेकिन जब न्यूयॉर्क टाइम्स ने खबर छापी कि भारत के 10 सैनिक चीन के पास हैं तो फिर ये बात मानी गई. तो ऐसा क्यों किया जा रहा है? क्यों नहीं साफ-साफ सही जानकारी दी जा रही है.
एक उदाहरण चीनियों को हुए नुकसान का भी है. चीनी सैनिक मारे गए, इस बात की कोई आधिकारिक पुष्टि नहीं है. चीन ने भी इसे फेक न्यूज बता दिया है. तो कहीं न कहीं ये दिखाने की कोशिश है कि हमसे ज्यादा उनको नुकसान हुआ.
प्रधानमंत्री जब कह रहे थे कि हमारी किसी जमीन पर कब्जा नहीं हुआ तो उस वक्त चीनी पैंगॉन्ग शो, फिंगर फोर पर बैठे हुए थे. हमारी पैट्रोल पार्टी को जाने नहीं दे रहे थे. तो ये कैसे कह सकते हैं कि कोई कब्जा नहीं हुआ?मनोज जोशी, विशिष्ट फेलो, ऑब्जर्वर रिसर्च फाउंडेशन
बेकार हुए 20-25 साल के प्रयास
मनोज जोशी का मानना है कि-''अब चाहें बातचीत से मसला सुलझ जाए लेकिन हकीकत ये है कि इस हादसे के कारण 20-25 साल में विश्वास बनाने के जो प्रयास हुए थे वो बेकार हो गए हैं. अब रक्षा मंत्री ने आदेश दिया है कि विशेष हालत में हथियार चलाए जा सकते हैं तो फिर पुरानी सहमति खत्म हो गई है. क्योंकि अगर हथियार का इस्तेमाल हो सकता है तो दूसरा पक्ष भी हथियार चलाएगा...तो फिर हम वापस पुरानी स्थिति में पहुंच गए''
अगर हथियार थे और हमला हो रहा था तो क्यों नहीं इस्तेमाल किया? आपका कमांडिंग ऑफिसर मारा जा रहा है तो आप पुराने समझौते को नहीं देखेंगे. तो क्या हथियार थे और गोलियां नहीं थीं?मनोज जोशी, विशिष्ट फेलो, ऑब्जर्वर रिसर्च फाउंडेशन
मनोज जोशी ने कहा कि -''पीएम ने तनाव नहीं बढ़ने दिया,वो अच्छी बात है. लेकिन सूचना मैनेजमेंट और हेडलाइन मैनेजमेंट में फर्क होता है. हर सरकार चाहती है कि दूसरा पक्ष और दुनिया उसकी बात माने. लेकिन जब ऐसा लगने लगता है कि सरकार आधा सच और आधा झूठ बता रही है तो विश्वसनीयता का सवाल आ जाता है.''
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