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क्या चीन भारत से सीमा विवाद सुलझाना नहीं चाहता? 71 साल पहले शुरू होती है कहानी

India-China Border Dispute: चीन और भारत के बीच की पूरी सीमा ही "वास्तविक नियंत्रण रेखा" कैसे बनी?

मनोज जोशी
नजरिया
Published:
<div class="paragraphs"><p>क्या चीन भारत से सीमा विवाद सुलझाना नहीं चाहता? 71 साल पहले शुरू होती है कहानी</p></div>
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क्या चीन भारत से सीमा विवाद सुलझाना नहीं चाहता? 71 साल पहले शुरू होती है कहानी

(फोटो- Altered By Quint)

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India-China Border Dispute: अभी संपूर्ण चीन-भारत सीमा को "वास्तविक नियंत्रण रेखा" (LAC) कहा जाता है. इंटरनेशनल बॉर्डर के लिए इस्तेमाल में लाया जाने वाला यह थोड़ा अजीब सा शब्द है. लेकिन यब सब कैसे हुआ और आखिर इसके मायने क्या हैं ?

बिना लाग लपेट के बताऊं तो दरअसल ये टर्म चीन द्वारा लद्दाख इलाके के अक्साई चीन में अतिक्रमण के बाद इस्तेमाल में लाया आया. चीन ने साल 1951-1957 के बीच अक्साई चीन के नॉर्थ ईस्टर्न कॉर्नर में रोड बना लिया. इसके बाद खुद को डिफेंड करने के लिए वो अक्साई चीन के पश्चिम की तरह बढ़कर उस पर भी दावा कर दिया.

अक्साई चीन बहुत ऊंचाई पर मौजूद है जहां कोई बस्ती नहीं है. मतलब किसी तरह का रिहाईश क्षेत्र नहीं है. ऐसे में सबसे पहले उसे अपना संप्रभु क्षेत्र बनाया और कब किया, यह कहना बहुत मुश्किल है.

कैसे ‘वास्तविक नियंत्रण रखा’ विवादित क्षेत्र बना

दो घटनाक्रमों ने चीजें बदल दीं. पहला 1959 का तिब्बती विद्रोह था. जिसके कारण दलाई लामा को भारत में शरण लेना पड़ा. दूसरा अक्टूबर 1959 में कोंगका ला में एक भारतीय गश्ती दल घात लगाकर हमला था. ये दल भारत की सीमा लनक ला- जहां पर पर हमारा दावा था, वहां पहुंचने की कोशिश कर रहा था. इसमें हमारे दस जवान शहीद हुए और दस को बंदी बना लिया गया.

इस घटना के कुछ समय बाद, झाऊ एनलाई ने 7 नवंबर 1959 को नेहरू को एक पत्र लिखा. उन्होंने कहा कि जो विवाद पैदा हुए थे, उन्हें शांति से निपटाने की जरूरत थी, इसलिए यथास्थिति बनाए रखना महत्वपूर्ण था. इसके लिए सही माहौल बनाने की बात उन्होंने कही. उन्होंने प्रस्ताव दिया कि दोनों पक्ष पूर्व में "तथाकथित मैकमोहन रेखा" से 20 किमी पीछे हटें. पीछे हटना वहां तक था जहां से दोनों पक्ष वेस्ट साइड में वास्तविक नियंत्रण रखता है. इसके बाद इस "वास्तविक नियंत्रण" की धारणा ने दरअसल आसानी से इसको नजरअंदाज कर दिया कि आखिर इलाके का असल कानूनी हकदार कौन था.

इसके बाद कुछ गलत रणनीति के तहत भारत ने घोषणा की कि भारत और चीन के बीच कोई सीमा विवाद नहीं है. समस्या तब और बढ़ गई जब 1954 में उन्होंने एकतरफा तरीके से देश का नक्शा खींचा, जो नक्शा अभी हम अभी देखते हैं.

चीन ने 1951-1958 के बीच कुछ नहीं कहा लेकिन जब चीनियों ने सड़क बना ली तब भारत ने अपनी बात रखी और इसे विवादित सीमा बताया. इसके बाद "वास्तविक नियंत्रण" की धारणा का सवाल उठाया जो हकीकत में और कुछ नहीं बल्कि वो इलाका भर था जिसे चीनियों ने अवैध रूप से हड़प लिया था.

LAC की लंबाई क्या है ?

दोनों देशों में पूरी सीमा को लेकर विवाद हैं, लेकिन इसकी लंबाई को लेकर कोई सहमति नहीं है. भारतीय कहते रहे हैं कि यह 4057 और 3488 किलोमीटर लंबा है जबकि चीनी कहते हैं कि यह केवल 1700- 2000 किलोमीटर लंबा है.

भारत जिस सीमा का दावा करता है वो अफगानिस्तान-झिंजियांग-कश्मीर तिराहे से शुरू होती है, जबकि चीनी केवल काराकोरम दर्रे से गिनती शुरू करते हैं.

भारत-चीन में बॉर्डर के परिभाषित नहीं रहने से टकराव

किसी भी देश के बीच सीमाओं का पहले परिसीमन या डिलीमीटिशन होता है. इसके बाद फिर जमीन पर डिमार्केशन यानी सीमांकन होता है. परिसीमन तब किया जाता है जब किसी संधि या किसी लिखित सोर्स में सीमा का उल्लेख किया जाता है या फिर मानचित्र से बताया जाता है. डिमार्केशन यानि सीमांकन वो प्रक्रिया है जिसके जरिए परिसीमन को पिलर, खंभे या सीमा बाड़ या ताड़ से जमीन पर चिह्नित किया जाता है. कहने की जरूरत नहीं है कि प्रक्रियाएं दोनों पक्षों को मंजूर होनी चाहिए.

लेकिन भारत और चीन के मामले में दोनों ही देश सीमा को लेकर एक दूसरे से सहमत नहीं हैं. भारत का कहना है कि पूर्वी सीमा जिसे "मैकमोहन रेखा" कहा गया है वह भारत के लिए सीमा रेखा है जिसे तिब्बत और भारत दोनों ने मंजूर किया है लेकिन चीन इस लाइन को कभी मानता नहीं है.

जहां तक मध्य और पश्चिमी क्षेत्रों का संबंध है, इसका परिसीमन ही नहीं हुआ है तो डिमार्केशन यानि सीमांकन तो बहुत दूर की बात है. हां सिक्किम-तिब्बत सीमा का परिसीमन हुआ है और 1899 के एंग्लो-चीनी कन्वेंशन के जरिए इसका सीमांकन भी हुआ है.

फैक्ट यह है कि ये पूरा इलाका ही रिमोट और बिना आबादी वाला है. जब तक सैटेलाइट इमेजिंग नहीं आई थी तब तक यह तय करना बहुत ही मुश्किल था कि आखिर इन जगहों पर किसी खास समय में कौन रहता था और किनका दावा था. फिर चीनियों ने इस क्षेत्र पर दावा किया. 1961-62 के दौरान भारतीयों ने जो कुछ चौकियां यहां पर बना रखी थी , युद्ध के बाद भारतीयों को यहां से खदेड़ कर भगा दिया.

1962 के युद्ध के बाद, चीनियों ने दावा किया कि वे 7 नवंबर 1959 की रेखा से 20 किमी पीछे तक चले गए. अब मैकमोहन रेखा के मामले में जिसका परिसीमन किया गया था, उसमें कोई परेशानी नहीं थी . लेकिन लद्दाख में जिस लाइन पर इस "वास्तविक नियंत्रण" का प्रयोग किया गया था, उसके बारे में डिटेल नहीं दिया गया था.

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भारत की अथक कोशिश और ‘LAC’ को मंजूरी

अब यह “ 7 नंवबर 1959 की लाइन” को चीनियों ने अपने लिए रेफरेंस प्वाइंट बना लिया है. तब से लेकर अभी हाल यानि सितंबर 2020 में भी चीनियों ने इस पर ही जोर दिया. उनका कहना है कि वास्तविक नियंत्रण रेखा 7 नवंबर 1959 की झाउ नए लाई घोषणा के मुताबिक ही है. अब परेशानी यह है कि इस बात के पर्याप्त सबूत है कि 1960-61 में चीनियों ने पश्चिम की तरफ मार्च किया और फिर जब युद्ध हुआ 1962 का तो उन्होंने चिप चाप रिवर वैली में 5000 स्कवायर मीटर के इलाके पर कब्जा कर लिया. इसके अलावा देसपांग, पैंगॉन्ग, और डेमचॉक एरिया पर भी कब्जा कर लिया. बाद में जिस तरह से मैकमोहन लाइन के पूर्वी साइड से वो पीछे हटे उसी तरह से वो पश्चिमी इलाके से नहीं हटे.

अभी भी वो दावा करते हैं कि वो 7 नवंबर 1959 की जो घोषणा है उसके मुताबिक ही बने हुए हैं और वही वास्तविक नियंत्रण रेखा है.

जब युद्ध चल रहा था, तब भी दोनों पक्षों के बीच चिट्ठी लिखी जाती रही. झाउ एनलाई ने 7 नवंबर 1959 के मुताबिक LAC के पीछे 20 किलोमीटर तक हटने की पेशकश को दोहराया. युद्ध के बाद, एक अजीबोगरीब स्थिति थी. पूर्व में तो चीनी मैकमोहन रेखा से काफी पीछे तक चले गए लेकिन पश्चिम में ऐसा नहीं हुआ. वो वास्तव में सीजफायर लाइन बनकर रह गई. कोलंबो पॉवर्स के जरिए जो इस सीमा को परिभाषित करने की कोशिशें हुईं वो सफल नहीं हो पाई. इसलिए एक अर्थ में यह वास्तविक नियंत्रण रेखा यानि LAC बन गई.

लेकिन भारतीय पक्ष ने लंबे समय तक "LAC" शब्द को स्वीकार नहीं किया. प्रभावी रूप से यह, युद्धविराम रेखा थी.1970 के दशक के अंत में, भारत ने कई पेट्रोलिंग प्वाइंट बनाए. सेना और भारत-तिब्बत सीमा पुलिस (ITBP) को गश्ती करने के लिए कहा गया.

नई दिल्ली ने आखिर 1993 के सीमा शांति और शांति समझौते (बीपीटीए) पर हस्ताक्षर करते समय सीमा की वास्तविक नियंत्रण रेखा से पहचान की अवधारणा को मंजूर कर लिया. इस समय तक भारत समझ चुका था कि तथाकथित "पारंपरिक’ " तरीका काम नहीं करने वाला है और सीमा समझौते पर बातचीत करना जरूरी है. इसमें पहला कदम यह स्वीकार करना था कि उस समय की सीमा ही ‘वास्तविक नियंत्रण रेखा’ थी.

चीन से LAC पर ईमानदारी चाहती है मोदी सरकार

BPTA के मुताबिक चीनी इस बात पर सहमत हुए थे कि वो LAC में जो 18-20 प्वाइंट हैं जहां पर दोनों देशों में अलग अलग राय है, उस पर वो अपनी सफाई देंगे. लेकिन समय बीतने के साथ उन्होंने ऐसा करने से मना कर दिया. इसके उलट पश्चिम में डेपसांग, पैंगोंग त्सो और डेमचोक और पूर्व में यांग्त्से, असाफी ला और दूसरे प्वाइंट्स का इस्तेमाल उन्होंने LAC के लिए किया. आपको बता दें कि 1990 के दशक में गलवान, गोगरा और हॉट स्प्रिंग्स को लेकर कोई समस्या दोनों देशों में नहीं थी.

संयोग से, मोदी सरकार की बड़ी पहलों में से एक यह थी कि वो चाहती थी कि चीन यह साफ करे कि आखिर LAC कहां है. 2015 में अपनी चीन यात्रा के दौरान, मोदी ने बार-बार चीनियों को BPTA के साथ काम करने और LAC को साफ करने की अपील की ताकि कोई टकराव न हो.

लेकिन शातिर चीनियों ने अनदेखी की. कुछ दिनों बाद, एक अधिकारी ने भारतीय पत्रकारों से कहा कि स्पष्टीकरण "और अधिक समस्याएं पैदा करेगा". जब पत्रकारों ने जानना चाहा कि आखिर समस्याएं कैसे बढ़ेंगी तो फिर यह कहते हुए जवाब देने से इनकार कर दिया कि यह उनके दायरे से बाहर की बात है.

हैरानी की बात यह है कि 2020 के बाद से, चीनियों ने एक बार फिर ‘7 नवंबर 1959 की रेखा ‘ से परिभाषित सीमा की धारणा को आगे बढ़ाना शुरू कर दिया है. संक्षेप में, जिन्हें चीनी LAC मानते हैं , उनके मुताबिक वही असली ‘LAC’ है. इस बीच, वो अपनी मनमर्जी कर रहे हैं. अपने हिसाब से सबकुछ परिभाषित करना चाहते हैं.

(लेखक ऑब्जर्वर रिसर्च फाउंडेशन, नई दिल्ली के ख्यात फेलो हैं. यह एक ओपिनियन पीस है. यहां लिखे गए विचार लेखक के अपने हैं. इनसे क्विंट का सहमत होना जरूरी नहीं है.)

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