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नेहरू ने मिस्र से दोस्ती का हाथ बढ़ाया था, मोदी इसे मजबूत कर रहे हैं

रक्षा क्षेत्र में Egypt का सहयोग जरूरी है क्योंकि वह पश्चिम एशिया-उत्तरी अफ्रीकी क्षेत्र में एक अहम सैन्य शक्ति है

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<div class="paragraphs"><p>नेहरू ने मिस्र से दोस्ती का हाथ बढ़ाया था, मोदी इसे मजबूत कर रहे हैं</p></div>
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नेहरू ने मिस्र से दोस्ती का हाथ बढ़ाया था, मोदी इसे मजबूत कर रहे हैं

(फोटो - क्विंट)  

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24 जून जब भारतीय वायुसेना (Indian Airforce) के तीन सुखोई-30 MKI (Sukhoi-30 MKI) विमानों ने संयुक्त अरब अमीरात (UAE) के हवाई क्षेत्र में उड़ान भरी, तो UAE वायुसेना के MRTT विमानों ने उन्हें उड़ान भरने में मदद की. इससे वे करीब छह घंटे की नॉन-स्टॉप यात्रा करके टैक्टिकल लीडरशिप प्रोग्राम (EAF) में भाग लेने के लिए मिस्र (Egypt) पहुंच पाए.

यह कार्यक्रम मिस्र में इजिप्शियन एयर फोर्स (EAF) वेपेन स्कूल में महीने भर तक चलेगा और इसमें MI-29 और राफेल विमानों के साथ-साथ मिस्र की वायुसेना के F-16 भी शामिल हैं. इसमें भारत और मिस्र (Egypt) के वायुसैनिकों के बीच क्रॉस-ट्रेनिंग शामिल है. इसके अलावा दोनों देश क्लासरूम सेशंस के जरिए ट्रेनिंग और ऑपरेशनल नॉलेज को साझा करेंगे और फ्लाइंग मिशन पर जाएंगे.

  • मीडिया की चकाचौंध से दूर भारत और मिस्र धीमे-धीमे द्विपक्षीय संबंध मजबूत कर रहे हैं, खासकर रक्षा क्षेत्र में.

  • 2015 के भारत-अफ्रीका शिखर सम्मेलन को द्विपक्षीय संबंधों के लिहाज से एक महत्वपूर्ण क्षण माना जा सकता है जब मिस्र के राष्ट्रपति अब्देल फतह अल सीसी इस कार्यक्रम में भाग लेने के लिए भारत आए.

  • अक्टूबर 2021 में भारत और मिस्र की वायुसेनाओं ने संयुक्त रूप से वायु अभ्यास 'डेजर्ट वारियर' किया था जो दोनों देशों के बीच पहला वायु सैनिक अभ्यास था.

  • अभी पिछले हफ्ते मिस्र के वायुसेना कमांडर लेफ्टिनेंट-जनरल मोहम्मद अब्बास हेलमी हाशेम ने भारत का दौरा किया था.

मीडिया की चकाचौंध से दूर भारत और मिस्र धीमे-धीमे द्विपक्षीय संबंध मजबूत कर रहे हैं, खासकर रक्षा क्षेत्र में. बेशक इस साझेदारी में कुछ भी असामान्य नहीं है. हां, यह जरूर असामान्य है कि इन दो प्राचीन देशों, लेकिन आधुनिक गणराज्यों के बीच साझेदारी में इतना समय लगा. दोनों प्राचीन सभ्यताएं हैं, आधुनिक राष्ट्र-राज्य हैं, जिनके पास ब्रिटिश उपनिवेश का अनुभव है. एक फलते-फूलते मध्य वर्ग के साथ दोनों क्षेत्रीय शक्तियां हैं जो अपने भूभाग से परे अपना विस्तार करना चाहती हैं.

मिस्र सैन्य रूप से सबसे मजबूत अरब देश है और अरब जगत की सांस्कृतिक राजधानी भी है. लेकिन इसकी अनूठी स्थिति- यह भौगोलिक रूप से उत्तरी अफ्रीका में है- इसे एक महत्वपूर्ण अफ्रीकी देश भी बनाती है. और स्वेज नहर की वजह से भी इसके साथ संबंध बनाना महत्वपूर्ण है क्योंकि इस नहर के जरिए भारतीय माल हिंद महासागर से भूमध्य सागर पहुंचता है.

2015 समिट- बदलाव का बिंदु

गुटनिरपेक्ष आंदोलन (NAM) के दिनों में भारत और मिस्र के बीच संबंध बने थे. लेकिन बाद में जवाहरलाल नेहरू और जमाल अब्देल नासिर, जो इस आंदोलन के कर्ताधर्ताओं में शुमार थे, के रास्ते अलग-अलग हो गए जिनके तमाम कारण थे.

2015 के भारत-अफ्रीका शिखर सम्मेलन को द्विपक्षीय संबंधों के लिहाज से एक महत्वपूर्ण क्षण माना जा सकता है जब मिस्र के राष्ट्रपति अब्देल फतह अल सीसी इस कार्यक्रम में भाग लेने के लिए भारत आए और दोनों देशों के रिश्तों को गरमाइश दी. 2016 में अल सीसी फिर से भारत आए. तब दोनों देशों ने समुद्री वाणिज्य और नौसैनिक जहाजों के पारगमन के मद्देनजर समुद्री परिवहन पर समझौता किया.

इसके अगले साल प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी मिस्र गए, और फिर व्यापार, आतंकवाद से मुकाबला, रक्षा, साइबर सुरक्षा, कृषि और आईटी सहयोग जैसे क्षेत्रों में दोनों देशों के बीच सहयोग बढ़ा है.

वर्तमान में दोनों देशों के बीच द्विपक्षीय व्यापार का मूल्य 3.8 बिलियन डॉलर है जिसमें भारत को मिस्र के निर्यात में 63% की वृद्धि हुई है. भारत मिस्र के उत्पादों का सबसे बड़ा निर्यात गंतव्य बन गया है. मिस्र में भारतीय राजदूत अजीत गुप्ते के अनुसार, 2021 में मिस्र और भारत के बीच द्विपक्षीय व्यापार में 80% की वृद्धि हुई है और इस वर्ष रिकॉर्ड उच्च स्तर तक पहुंचने की संभावना है.

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WANA क्षेत्र

मिस्र के एक एनालिस्ट सोलिमन कहते हैं. -“मिस्र और भारत धीरे-धीरे आदर्श कूटनीतिक और आर्थिक साझेदार के रूप में उभर रहे हैं. उनके बीच रक्षा, सुरक्षा, आतंकवाद से मुकाबला, औद्योगीकरण, फार्मास्यूटिकल्स और खाद्य सुरक्षा में सहयोग की संभावना है. भारत ने मिस्र को अपने हालिया गेहूं प्रतिबंध से छूट दी थी और दोनों देशों ने फार्मास्यूटिकल्स में अपने सहयोग का विस्तार किया है.” वह इस समय वॉशिंगटन की ग्लोबल स्ट्रैटेजी फर्म मैकलार्टी एसोसिएट्स में मैनेजर हैं और मिडिल ईस्ट इंस्टीट्यूट में नॉन रेसिडेंट स्कॉलर भी.

लेकिन जिस एक क्षेत्र में भारत-मिस्र के रिश्ते खासे आकर्षक हैं, वह क्षेत्र है रक्षा. 2018 में तत्कालीन रक्षा मंत्री निर्मला सीतारमण की काहिरा यात्रा के साथ दोनों देशों के संबंधों को काफी मजबूती मिली थी, जब उन्होंने मिस्र के रक्षा मंत्री जनरल मोहम्मद अहमद जकी मोहम्मद से मुलाकात की थी. सीतारमण ने दोनों देशों के बीच नौसेना सहयोग के विस्तार पर विचार-विमर्श किया था और रक्षा उपकरणों के संयुक्त उत्पादन की संभावनाएं तलाशी थीं. इसके बाद से भारत और मिस्र के अधिकारी दूसरे देश की डिफेंस अकादमियों का दौरा करते रहते हैं.

अक्टूबर 2021 में भारत और मिस्र की वायुसेनाओं ने संयुक्त रूप से वायु अभ्यास 'डेजर्ट वारियर' किया था जो दोनों देशों के बीच पहला वायु सैनिक अभ्यास था. फिर भारत के एयर चीफ मार्शल वीआर चौधरी ने 28 नवंबर से 2 दिसंबर 2021 तक मिस्र का दौरा किया और 'मिस्र एयर पावर सिंपोजियम' में भाग लिया.

इससे एक महीने पहले भारत के आईएनएस ताबार फ्रिगेट और मिस्र के अलेक्जेंड्रिया फ्रिगेट ने भूमध्य सागर में नॉर्थन फ्लीट के ऑपरेशन जोन में अपना दूसरा संयुक्त नौसैनिक अभ्यास किया था.

अभी पिछले हफ्ते मिस्र के वायुसेना कमांडर लेफ्टिनेंट-जनरल मोहम्मद अब्बास हेलमी हाशेम ने भारत का दौरा किया था. इस दौरान उन्होंने टॉप भारतीय अधिकारियों के साथ मुलाकात की जिसमें वीआर चौधरी, नौसेना प्रमुख एडमिरल आर हरि कुमार और आर्मी स्टाफ जनरल मनोज पांडे प्रमुख रूप से शामिल थे. इस मुलाकात में इन अधिकारियों ने रक्षा सहयोग बढ़ाने के तौर-तरीकों पर चर्चा की.

सोलिमन कहते हैं:

“काहिरा और नई दिल्ली की दिलचस्पी इसमें है कि सामूहिक रक्षा सहयोग को मजबूत किया जाए- इसके लिए सैन्य संबंधों को बढ़ाने, संयुक्त अभ्यास करने और रक्षा उद्योग में सहयोग पर जोर दिया जा रहा है. उदाहरण के लिए भारत ने हल्के लड़ाकू विमान (एलसीए) के साथ-साथ हेलीकॉप्टरों के निर्माण के लिए निर्माण सुविधाएं स्थापित करने की पेशकश की है क्योंकि काहिरा स्थानीय उत्पादन और प्रौद्योगिकी हस्तांतरण पर जोर दे रहा है."
सोलिमन

विश्लेषकों का कहना है कि इसके लिए भारत को पश्चिम एशिया-उत्तरी अफ्रीकी (वाना) क्षेत्र के केंद्र में मैन्यूफैक्चरिंग बेस बनाना होगा. तभी भारत वहां डिफेंस एक्सपोर्ट हब तैयार कर पाएगा.

दोनों देशों के बीच मजबूत रक्षा संबंध स्वाभाविक क्यों है?

भारत और मिस्र के बीच रक्षा और आतंकवाद विरोधी सहयोग निश्चित रूप से एक बड़ा विषय है. इस क्षेत्र में प्रमुख भू-राजनीतिक बदलावों ने विदेश नीति के विविधीकरण और नई साझेदारियों को जरूरी बनाया है. अमेरिका जो कभी इस क्षेत्र की हिफाजत किया करता था, अब हिंद-प्रशांत की तरफ बढ़ रहा है. यूक्रेन संघर्ष ने रूस को विचलित कर दिया है जो सीरिया में सैन्य हस्तक्षेप के बाद इस क्षेत्र में एक प्रमुख खिलाड़ी के रूप में फिर से उभर रहा था. और रूस जैसा कि जाहिर ही है, आने वाले समय में फिलहाल यूक्रेन पर केंद्रित रहेगा.

पाकिस्तान कभी खाड़ी देशों को सुरक्षा और रक्षा सेवाएं देता था, पर अब वह ऐसा करने के काबिल नहीं है. इसके नतीजे के तौर पर इस क्षेत्र में कूटनीतिक साझेदारी पर फिर से सोचा जा रहा है. 2020 के अब्राहम समझौते के साथ इजरायल और अरब जगत के बीच संबंध सामान्य होने लगे हैं जोकि मिस्र में 1979 में शुरू हो गया था.

पश्चिम एशिया भारत का थोड़ी दूर बैठा पड़ोसी ही है और उसका इस क्षेत्र से सदियों पुराना रिश्ता है. ऐसे में यह स्वाभाविक है कि वह वहां एक बड़ी भूमिका निभाने की पहल करे. प्रधानमंत्री मोदी ने आर्थिक संबंधों को मजबूत करने के लिए 12यू2- भारत, इज़राइल, संयुक्त अरब अमीरात और अमेरिकी मंच- के पहले वर्चुअल समिट में अभी-अभी भाग लिया है. ऐसे में यह मुमकिन नहीं कि रक्षा क्षेत्र का जिक्र न हो, जोकि इस इलाके का सबसे ज्वलंत मुद्दा है.

खाड़ी क्षेत्र में सी लेन्स ऑफ़ कम्युनिकेशन्स की सुरक्षा को बरकरार रखने में भारत एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है. वह अदन की खाड़ी में एंटी पायरेसी पेट्रोलिंग करता है.

सोलिमन के मुताबिक,

"इंडो अब्राहमिक गठबंधन- भारत को WANA क्षेत्र के डिफेंस आर्किटेक्चर में शामिल करना- काहिरा और नई दिल्ली को एक साथ मिलकर काम करने के लिए प्रोत्साहित करता है. वैश्विक और क्षेत्रीय मुद्दों पर समन्वय से लेकर अफ्रीका और हिंद महासागर जैसे अन्य कूटनीतिक मंचों पर दोनों देश एक साथ काम कर सकते हैं, और दोनों यह बखूबी समझते हैं.”

भारत-प्रशांत क्षेत्र- एक मौका

यह खास बात है कि भारत की भारत-प्रशांत परिभाषा अफ्रीकी महाद्वीप के पूर्वी तटों तक फैल रही है. जैसा कि मोदी ने अपने शांगरी-ला डायलॉग में कहा था, "भारत-प्रशांत एक प्राकृतिक क्षेत्र है जहां विश्व स्तरीय अवसर और चुनौतियां मौजूद हैं... किसी भी तरह से ... हम हर देश की तरफ अपने कदम बढ़ाना चाहते हैं."

भले ही मोदी दक्षिण पूर्व एशियाई देशों का जिक्र कर रहे थे लेकिन मिस्र के साथ साझेदारी भारत के लिए भारत-प्रशांत क्षेत्र में ऐसे ही मौके मुहैया कराती है. आप आंकड़े उठाकर देख लें. मिस्र अरब जगत में पहले नंबर पर है, मिलिट्री मैनपावर के मामले में 13 वें नंबर पर है और इस क्षेत्र का सबसे बड़ा सैन्य अड्डा भी है.

(अदिति भादुड़ी एक पत्रकार और पॉलिटिकल एनालिस्ट हैं. उनका ट्विटर हैंडिल @aditijan है. इस लेख में व्यक्त विचार लेखक के अपने हैं. क्विंट न तो इसका समर्थन करत है और न ही इसके लिए जिम्मेदार है.)

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