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भारत-नेपाल के बीच कभी नहीं थी दीवार, फिर क्यों सरहद पर तकरार?

मयंक मिश्रा
नजरिया
Published:
भारत और नेपाल के बीच बढ़ती तनातनी
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भारत और नेपाल के बीच बढ़ती तनातनी
(फोटो: क्विंट हिंदी)

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“सुनते हैं कि दुकानों में जरूरी दवाइयों की कमी हो गई है. लोग बोल रहे हैं कि गैस सिलेंडर भी एक्स्ट्रा रख लो. एक कोरोना कम था कि उसी बीच भारत-नेपाल का तनाव बढ़ गया,” नेपाल के बिराटनगर में रहने वाली प्रभा देवी (नाम बदला हुआ) ने मुझे फोन पर बताया. इन वजहों से आजकल वो काफी तनाव में हैं.

बिहार के सुपौल जिले में जन्मी प्रभा देवी की शादी 1979 में हो गई थी. कुछ महीनों बाद वो अपने ससुराल नेपाल के शहर राजबिराज चली गई. कुछ सालों बाद ही उन्हें नेपाल की नागरिकता भी मिल गई.

उसके बाद से नेपाल में कई बदलाव हुए- राज शाही गई, प्रजातंत्र का आगमन हुआ, माओवादियों के डर के साए में कई साल गुजर गए और अब राजनीतिक स्थिरता लौटती दिख रही है.

लेकिन इतने उतार-चढ़ाव के बीच एक फैक्टर नहीं बदला- भारत और नेपाल के बीच का काफी मधुर संबंध. कुछ नेताओं की बयानबाजी को अगर नजरअंदाज कर देंगे तो पाएंगे कि दुनिया के किसी भी कोने में दो स्वतंत्र देशों के बीच ऐसी करीबी की मिसाल और कहीं नहीं मिलेगी. यही वजह है कि बॉर्डर पर रहने वाले इलाकों में अंतरराष्ट्रीय वैवाहिक रिश्तों से कभी परहेज नहीं रहा.

लेकिन क्या ताजा तनाव उसको बदल देगा? जानने के लिए बॉर्डर पर दोनों तरफ के कई लोगों से मैंने बात कर इस विवाद को समझने की कोशिश की. मैंने उन लोगों ने बात की जिनका या तो सीमा पार रिश्ता है या फिर कमाई का जरिया बॉर्डर के उस पार ही है. और उन सबका मानना है कि अब दिलों की दूरी सिर्फ नेताओं की बनाई नहीं है. और ऐसे माहौल को जल्दी से ठीक नहीं किया गया तो दोनों देशों के बीच का मधुर संबंध इतिहास वाली बात हो सकती है.

कोरोना के बाद लॉकडाउन में नेपालियों को आई 2015 के ब्लॉकेड की याद

“नेपाल के लोगों में बड़े भाई भारत के लिए गुस्सा बढ़ता जा रहा है. कोरोना की वजह से हुए लॉकडाउन ने लोगों में 2015 के ब्लोकेड की यादें ताजा कर दी हैं. मैं उस समय काठमांडू में रहती थी. हमने देखा है कि उन दिनों लोगों को किस तरह की दिक्कतें हो रही थी,” अंजली (नाम बदला हुआ) ने हमें बताया. अंजली भारत की नागरिक हैं. पढ़ाई-लिखाई यहीं हुई. 20 साल तक वो नेपाल में रहने के बाद फिर से भारत वापस आ गईं हैं.

सितंबर 2015 में नेपाल के नए संविधान के खिलाफ वहां के एक बड़े एथ्निक समूह मदहेशियों ने बॉर्डर के इलाकों में रास्ते बंद कर दिए. इसकी वजह से भारत से सप्लाई होने वाले जरूरी सामानों की नेपाल में भारी कमी हुई. ब्लॉकेड महीनों तक चला और उससे हुए नुकसान की भरपाई करने में नेपाल को कई साल लग गए.

नेपाल आरोप लगाता रहा कि मदहेशियों के आंदोलन को भारत की शह मिली थी. भारत सरकार इसका खंडन करती रही.

नोपाल की अर्थव्यवस्था को नजदीक से देखने वालों का कहना है कि आर्थिक ब्लॉकेड एक टर्निंग प्वाइंट था जिसके बाद से लोगों की दूरियां बढ़ी. इसके साथ-साथ भारत में हुए कुछ छोटे-छोटे बदलावों की वजह से भी सीमा पर रहने वालों लोगों को काफी नुकसान हुआ.

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आधार की बाध्यता से नेपालियों को दिक्कत

“ध्यान रहे कि बॉर्डर के आस पास रहने वाले नेपाली इंश्योरेंस पॉलिसी भारत के एलआईसी से ही लेते थे. बॉर्डर के इलाकों में एसबीआई जैसे बैंकों ने हजारों नेपालियों के खाते हुआ करते थे. स्कूल-कॉलेज के लिए भारत का ही रुख करते थे. लेकिन आधार की बाध्यता के बाद से नेपालियों को इन सुविधाओं का लाभ उठाने में मुश्किलें आने लगीं. नेपालियों को लगने लगा कि भारत में उनके स्पेशल स्टेटस में कमी आ गई है. दिलों की दूरियां बढ़ाने के लिए ये काफी है,” बिराटनगर स्थित एक अर्थशास्त्र के प्रोफेसर ने मुझे बताया था.

बिहार के सुपौल जिले के एक बड़े एलआईसी एजेंट ने हमें बताया कि जहां पहले उनके बिजनेस का बड़ा हिस्सा नेपाल से आता था, अब वो लगभग खत्म हो गया है.

बॉर्डर के इलाकों में हाल के दिनों में कारोबार को भी बड़ा झटका लगा है.

“पिछले कुछ सालों से हमारी कंपनी का भारत को होने वाला सालाना एक्सपोर्ट करीब 200 करोड़ रुपए का हुआ करता था. इस साल वो 10-15 करोड़ रुपए से ज्यादा नहीं होगा. हालत ऐसी है कि मुझे सैलरी लेने में शर्म आ रही है. लोगों की छंटनी तो हुई ही है. बॉर्डर का इलाका है और यहां की इंडस्ट्री का फायदा दोनों देशों के लोगों को होता है,” बिराटनगर की एक बड़ी कंपनी के मार्केटिंग हेड ने मुझे बताया.

नेपाल में सबसे बड़ा ट्रेडिंग पार्टनर भारत

बिराटनगर में करीब 200 छोटे-बड़े इंडस्ट्रीयल यूनिट्स हैं और पूर्वी नेपाल का ये सबसे बड़ा शहर है. जानकारों का मानना है कि वो कंपनियां जिनका भारत के साथ अच्छा कारोबार रहा है वो दिक्कत में हैं.

एक रिसर्च पेपर के हिसाब से 2002 से भारत के साथ व्यापार में नेपाल का व्यापार घाटा लगातार बढ़ा है.

जहां भारत का नेपाल को एक्सपोर्ट 2010-11 के 2.1 अरब डॉलर से बढ़कर 2017-18 में 5.5 अरब डॉलर हो गया, नेपाल से होने वाला इंपोर्ट 500 मिलियन डॉलर या उससे नीचे ही रहा है.

पेपर में यह भी कहा गया है कि ऐसा नहीं है कि हाल के सालों में नेपाल में कारोबार में चीन ने बड़ा हिस्सा हथिया लिया है. पेपर के मुताबिक, 2010 में नेपाल में होने वाले कुल इंपोर्ट में भारत की हिस्सेदारी 64 परसेंट की थी जो 2016 में बढ़कर 66 परसेंट हो गई. इसी दौरान चीन की हिस्सेदारी 11 परसेंट से बढ़कर 14 परसेंट हो गई.

बिराटनगर की बड़ी कंपनी के मार्केटिंग हेड नें हमें बताया है चीन से कारोबार थोड़ा बढ़ा है, वहां का निवेश भी. लेकिन नेपाल की अर्थव्यवस्था में अभी भी भारत का ही एकछत्र राज है. वो नेपाल में काम करते हैं लेकिन भारत के नागरिक हैं.

इन छोटे-छोटे बदलाव से बॉर्डर के पास रहने वालों को लगने लगा है कि दोनों देशों के रिश्तों में अब वो बात नहीं है जो पहले हुआ करती था. नेपाल का बदला राजनीतिक माहौल शायद उसी की झलक दिखा रहा है.

लेकिन लोगों ने भरोसा नहीं छोड़ा है. “दोनों देश के बड़े नेता मीडिया की बातों को अनदेखा करें और खुले मन से फिर से पुरानी साझा विरासत को स्थापित करने की कोशिश करें. देरी हुई है, लेकिन मामला पूरी तरह से बिगड़ा नहीं है,” अंजली ने कहा.

(मयंक मिश्रा वरिष्ठ पत्रकार हैं, जो इकनॉमी और पॉलिटिक्स पर लिखते हैं. उनसे @Mayankprem पर ट्वीट किया जा सकता है. इस आर्टिकल में व्यक्त विचार उनके निजी हैं और क्विंट का इससे सहमत होना जरूरी नहीं है.)

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