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कौन सा देश बन सकता है भारत-पाकिस्तान को जोड़ने वाली कड़ी?

दोनों पड़ोसी देशों के बीच लाग डाट के रिश्ते में किसी तीसरे पक्ष की जरूरत है, जो या तो यूएई बन सकता है, या सऊदी अरब

स्मिता शर्मा
नजरिया
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जबरदस्त तनाव और बालाकोट एयर स्ट्राइक के दो साल बाद भारत और पाकिस्तान एक दूसरे के लिए नरम हो चले हैं. नफरत की आग की लपटें मद्धम हुई हैं और राजनैतिक लफ्फाजियों की धार कम हुई है. दोनों एक दूसरे के लिए अच्छी-अच्छी बातें कर रहे हैं.

जैसे पाकिस्तान के नेशनल डे पर प्रधानमंत्री मोदी ने इमरान खान को चिट्ठी भेजी जिसे सरकारी सूत्र रस्मी शिष्टाचार बताते हैं. चिट्ठी में लिखा है- पड़ोसी देश होने के नाते भारत पाकिस्तान के लोगों से मधुर संबंध बनाने की इच्छा रखता है. इसके लिए विश्वास का माहौल जरूरी है जोकि आतंक और दुश्मनी से रहित हो.

भारत के राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने भी पाक राष्ट्रपति आरिफ अलवी को ऐसा ही संदेश भेजा. पिछले हफ्ते पाकिस्तान के आठ सदस्यों का एक प्रतिनिधिमंडल सिंधु घाटी जल संधि वार्ता के लिए दिल्ली आया. इस मुद्दे पर आखिरी बातचीत दो साल से भी पहले हुई थी.

इसके अलावा इमरान खान के कोविड-19 पॉजिटिव होने पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ट्विटर पर उन्हें जल्द अच्छे होने की शुभकामनाएं भी दीं.

भारत-पाकिस्तान के रिश्ते सुधरें, इसके लिए तीसरे पक्ष की जरूरत क्यों है?

शांति और नरमी की इस पहल से 2003 की वह युद्धविराम संधि याद आती है जिसके तहत भारत और पाकिस्तान ने नियंत्रण रेखा (एलओसी) के आस-पास अमन कायम करने पर सहमति जताई थी. यह अप्रत्याशित और एकाएक था. जैसा कि एक स्रोत का कहना है, “डीजीएमओ (सैन्य अभियान महानिदेशालय) ने यह कदम इसलिए उठाया था ताकि एलओसी पर लोगों की जान बचाई जा सके.”

युद्धविराम ने दोनों देशों को नाजुक शांति स्थापित करने का अस्थायी मौका दिया है. हालांकि यह कहना अभी बहुत जल्दी होगा. चूंकि कूटनीति की समझ रखने वाले इसे ‘चतुराई भरा कदम’ कहते हैं ताकि एक दूसरे को थमने के लिए थोड़ी गुंजाइश दी जा सके. जरूरी नहीं कि यह लंबे समय तक कायम रहे.

फिर भी, यह साफ है कि दोनों देश दोस्तों और ताकतवर देशों के न्यौते पर एक दूसरे से संबंध सुधारने में आना-कानी नहीं करेंगे. खासकर, अगर यूनाइडेट अरब अमीरात और यूनाइटेड स्टेट्स जैसे देश पहल करें. दोनों देशों के उच्चाधिकारियों ने इस पत्रकार के सामने कबूल किया है कि मेल-मिलाप के इस दौर में किसी तीसरे पक्ष की भूमिका बहुत महत्वपूर्ण है.

लेकिन बाकी की बातों की ही तरह, भारत और पाकिस्तान, दोनों की राय इस मामले में अलग-अलग है कि वह तीसरा पक्ष कौन होगा. पाकिस्तानी सूत्र कहते हैं कि ‘परस्पर मित्रवत देशों को वरीयता दी जानी चाहिए.’ जबकि भारतीय सूत्र कुछ और ही कहते हैं, ‘जरूरी नहीं कि यूएई एक वार्ताकार हो, लेकिन वह एक मध्यस्थ की भूमिका निभा सकता है जोकि दोनों देशों के प्रतिनिधियों को मिलने की एक जगह मुहैया कराए.’

पिछले कुछ महीनों के दौरान भारतीय राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोवाल से लेकर दोनों विदेश मंत्री डॉ. एस जयशंकर और एस. एम. कुरैशी अमीरात के उच्च स्तरीय दौरे कर रहे हैं- महामारी के बावजूद. यूएई के विदेश मंत्री शेख अब्दुल्ला बिन जायेद अल नाहयान भी इस साल फरवरी के आखिर में दिल्ली आए थे.

भारत पाकिस्तान संबंधों में यूएई और सऊदी की संभावित भूमिका

लेकिन स्रोतों से यह भी पता चलता है कि यूएई में बड़े अधिकारियों या नेताओं के बीच ऐसी कोई बातचीत नहीं हुई. यह वार्ता तो इंटेलिजेंस और सुरक्षा अधिकारियों के स्तर पर हुई है. पाकिस्तान स्रोत का कहना है कि “इस बिंदु पर दोनों पक्षों के बीच कोई सेंट्रलाइज्ड बैक चैनल बातचीत नहीं हुई.” वह इस बात का खंडन करते हैं कि 2018 में कथित तौर पर जो कोशिश हुई थी, ये शांति वार्ता वैसी है.

पाकिस्तान के विदेशी मामलों के मंत्रालय के पूर्व सलाहकार और स्तंभकार मुशर्रफ जैदी ने न्यूयॉर्क से बताया, “मैं इस बात की पुष्टि तो नहीं करता लेकिन इतना जरूर जानता हूं कि कोई तीसरा देश है. वह देश कोई भी हो लेकिन दिल्ली और इस्लामाबाद दोनों उस पर भरोसा करते हैं. और फिलहाल दुनिया में यूएई और सऊदी अरब जैसा कोई तीसरा देश नहीं जिस पर ये दोनों एक जैसा विश्वास करें. सिर्फ उन्हीं देशों के इतिहास में भारतीयों और पाकिस्तानियों की इतनी अहम भूमिका है.”

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पाकिस्तान क्यों चाहता है रणनीतिक राहत?

प्रधानमंत्री मोदी के कार्यकाल में भारत और यूएई के रिश्ते और गहरे हुए हैं. तेल के स्टोरेज से लेकर सोवरिन फंड्स और सुरक्षा के मसले पर सहयोग बढ़ा है.

भारत ने यूएई के शेख की बेटी की जिस तरह जबरन धर पकड़ की और उसे वापस लौटाया (उसने भारत में शरण ली हुई थी), उसके चलते अंतरराष्ट्रीय मानवाधिकार समूहों ने भारत की खूब आलोचना की. यह कहा गया कि भारत ने ऐसा इसलिए किया था ताकि अगस्ता वेस्टलैंड हेलिकॉप्टर घोटाले के कथित बिचौलिए क्रिस्चियन मिशेल का प्रत्यर्पण संभव हो सके.

डायलॉग फोरम तबदलैब (Tabadlab) ने हाल ही में एक वेबिनार किया था. इसमें स्टैंडफोर्ड यूनिवर्सिटी स्थित सीआईएसएसी के पोस्ट डॉक्टोरल फेलो असफंदेयार मीर ने कहा था कि पाकिस्तान पिछले छह सात सालों से कूटनीतिक तौर पर बहुत लाचार है और चाहता है कि पूर्वी सीमा पर या अमेरिका से कुछ राहत-फुरसत मिल जाए.

मीर ने कहा था, “मैं यह जानना चाहता हूं कि यह तीसरा पक्ष कौन होगा. मुझे नहीं लगता कि वह यूएस होगा. चीन होगा, यह भी नहीं लगता. मेरा अंदाजा है कि वह कोई मिडल ईस्ट कंट्री होगा. इसकी एक वजह यह है कि खाड़ी देश इस बात से खुश नहीं हैं कि उन्हें ओआईसी (ऑर्गेनाइजेशन ऑफ इस्लामिक कंट्रीज) जैसे मंचों पर भारत और पाकिस्तान में से किसी एक को चुनना पड़ता है. मेरे ख्याल से वहीं से इस बात का दबाव पड़ रहा है.”

चीन और पाकिस्तान के संभावित ‘टकराव’ पर नजर रखना जरूरी

इस बीच युनाइटेड स्टेट्स में बाइडेन प्रशासन अफगान तालिबान से शांति वार्ता करना चाहता है और चाहता है कि युद्ध प्रभावित अफगानिस्तान से अमेरिकी सेनाओं की वापसी हो. वह भी भारत और पाकिस्तान से निकट संपर्क में है ताकि दोनों देशों के आपसी बैर को कम किया जा सके.

यह इत्तेफाक है कि पूर्वी लद्दाख की गलवान घाटी में खूनी संघर्ष और वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) पर तनावपूर्ण स्थिति के बाद भारत और चीन के बीच गतिरोध कम हुआ, और फिर पाकिस्तान के साथ युद्धविराम संधि हुई. अभी हाल में भारतीय सेना प्रमुख नरवणे ने ‘टू फ्रंट सिचुएशन’ के बारे में कहा था जिसमें चीन और पाकिस्तान के साथ दो-तरफा संघर्ष गहरा होना शामिल है.

पद संभालने के बाद नरवणे सियाचिन गए थे. उसके अगले ही दिन सेना दिवस के मौके पर उन्होंने मीडियाकर्मियों से कहा, “हमें भूलना नहीं चाहिए कि चीन और पाकिस्तान के बीच में कहां टकराव हो सकता है. हमें इस पर नजर रखनी चाहिए.”

दूसरी तरफ पाकिस्तान एफएटीएफ (फाइनांशियल ऐक्शन टास्क फोर्स) की ग्रे सूची में शामिल है और इससे उस पर वित्तीय दबाव लगातार बढ़ रहा है. पहले ही वह कर्ज के बोझ में है. इसके अलावा इमरान खान सरकार को संयुक्त विपक्ष से भी मुकाबला करना पड़ रहा है.

पाक सेना प्रमुख जनरल बाजवा ने इस्लामाबाद सिक्योरिटी डायलॉग (आईएसडी) के उद्घाटन के समय यह संकेत दिया था कि उनका देश भू-राजनीति या भू-कूटनीति से अब ‘भू-अर्थव्यवस्था’ करना चाहता है. उन्होंने कई आलंकारिक शब्दों का इस्तेमाल किया था, जैसे ‘कनेक्टिविटी’, ‘क्षेत्रीय एकीकरण’, ‘मानव सुरक्षा’, ‘व्यापार और ट्रांज़िट गलियारा’. फिलहाल वह एक्सटेंशन पर चल रहे हैं, और इस मौके पर उन्होंने विश्व में पाकिस्तान की चिरपरिचित छवि बदलने की पूरी कोशिश की थी. उन्हें ऐसे भू-कूटनीतिक महत्व की बात की थी जोकि “पूर्व और पश्चिम एशिया को जोड़ते हुए दक्षिण और मध्य एशिया की संभावनाओं का सदुपयोग कर सके.”

जम्मू कश्मीर में अनुच्छेद 370 के हटने से भारत-पाक रिश्तों को झटका लगा था

परदे के पीछे भारत-पाक वार्ता और तीसरे पक्ष की संभावित भूमिका पर अफगानिस्तान के विदेश मंत्री हनीफ अतमर खुशी जाहिर करते हैं. हाल ही में भारत आने पर उन्होंने कहा था, “हम ऐसी हर राजनीतिक पहल का पूरी तरह से स्वागत करते हैं जिससे तनाव कम हो और विवाद हल हो.”

भारत और पाकिस्तान के पहले से तनावपूर्ण रिश्ते तब और कड़वे हुए थे, जब 2016 में उरी आतंकी हमले हुए. इसके बाद भारत ने इस्लामाबाद में सार्क सम्मेलन का बायकॉट किया था. फिर अगस्त 2019 में अनुच्छेद 370 के हटने के साथ जम्मू और कश्मीर का विशेष दर्जा खत्म हुआ. वह राज्य की जगह यूटी बन गया. इससे पाकिस्तान भारत संबंधों को एक बार भी झटका लगा.

दोनों के उच्चायुक्त हटा दिए गए. कूटनीति रिश्ते और दरके. हाल के घटनाक्रमों से दोनों पक्षों को बहुत ज्यादा उम्मीद नहीं है और न ही द्विपक्षीय संबंधों में किसी बड़ी पहल की अपेक्षा की जा रही है.

भले ही उच्चायुक्तों की बहाली हो गई है या कोई दोस्ताना क्रिकेट मैच हो जाए- फिर भी दोनों देशों की घरेलू स्थितियों को देखते हुए किसी बड़े नतीजे की उम्मीद करना सिर्फ अटकलबाजी ही कही जा सकती है.

भारतीय सूत्रों का कहना है कि विश्व मंच पर पाकिस्तान कश्मीर के मुद्दे को उछालता रहा है, लेकिन उसे तवज्जों नहीं मिली है. अब वह अपना रवैया बदल रहा है. दूसरी तरफ पाकिस्तानी स्रोतों का कहना है कि भारत के साथ भविष्य की वार्ता को कामयाब बनाने के लिए कश्मीर के मुद्दे को भुलाया नहीं जा सकता. ‘कश्मीर और कश्मीरी आवाज’ भू आर्थिक मंच पर हमेशा केंद्र में रहेंगी.

भारत पाकिस्तान का आतंकवाद विरोधी संयुक्त सैन्य अभ्यास

कोविड समन्वय पर वर्चुअल समिट को छोड़कर सार्क लगभग बेअसर ही रहा. अब उम्मीद की जा रही है कि आठ सदस्यीय शंघाई कोऑपरेशन ऑर्गेनाइजेशन-रीजनल एंटी टेरर स्ट्रक्चर (एसीओ-आरएटीएस) सेक्रेटेरियट के तहत इस साल पाकिस्तान में जो आतंकवाद के खिलाफ संयुक्त सैन्य अभ्यास होने वाला है, उसमें भारतीय सैन्य दस्ते भी शामिल होंगे.

विदेश मंत्री जयशंकर और कुरैशी 30 मार्च को दुशांबे, ताजिकिस्तान में हार्ट ऑफ एशिया सम्मेलन में शिकरत करेंगे. लेकिन दोनों पक्षों ने अब तक किसी औपचारिक बातचीत की पेशकश नहीं की है.

स्रोतों का कहना है कि इस बिंदु पर किसी निजी बातचीत की भी गुंजाइश नहीं दिखती. एक अधिकारी का कहना है, ‘अभी हम वहां तक नहीं पहुंचे.’

(स्मिता शर्मा एक स्वतंत्र पत्रकार हैं. उनका ट्विटर हैंडिल @Smita_Sharma है. यह एक ओपनियन लेख है. यहां व्यक्त विचार लेखक के अपने हैं. क्विंट का उनसे सहमत होना जरूरी नहीं है.

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Published: 27 Mar 2021,07:58 PM IST

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