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बिना रुके, बिना थके: COVID-19 से लड़ रही इन महिलाओं से मिलिए  

कोरोना वायरस से लड़ाई में इन महिलाओं ने निभाई अहम भूमिका

मैत्रेयी रमेश
नजरिया
Updated:
कोरोना वायरस से लड़ाई में इन महिलाओं ने निभाई अहम भूमिका
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कोरोना वायरस से लड़ाई में इन महिलाओं ने निभाई अहम भूमिका
(फोटो: श्रुति माथुर/क्विंट हिंदी)

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डॉक्टर से लेकर आशा कर्मचारी और गांव की सरपंच तक सब कोरोना वायरस के खिलाफ इस लड़ाई में अनगिनत महिलाएं आगे बढ़कर काम कर रही हैं. हम आपको बता रहे हैं ऐसी ही कुछ महिलाओं के बारे में, जिन्होंने COVID-19 के खिलाफ इस लड़ाई में अहम रोल निभाया है.

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1. मीनल भोसले

वायरोलॉजिस्ट मीनल दखावे भोसले ने भारत की पहली कोरोना वायरस टेस्टिंग किट बनाई. भोसले ने अपनी बेटी को डिलीवर करने से एक दिन पहले ही प्रशासन को अप्रुवल के लिए टेस्टिंग किट भेजी थी.

भोसले की टीम ने 6 हफ्तों के अंदर ही टेस्टिंग किट को डिलीवर किया. न्यूज एजेंसी PTI से भोसले ने कहा, “ये दो बच्चों को डिलीवर करने जैसा है.”

(फोटो: श्रुति माथुर/क्विंट हिंदी)

2. स्वाति रावल

कैप्टन स्वाति रावल ने 22 मार्च को इटली में फंसे भारतीय छात्रों की मदद के लिए पहुंचकर इतिहास रच दिया. कैप्टन राजा चौहान के साथ मिलकर, वो बोइंग 777 से छात्रों को वापस भारत लेकर आईं. कोरोनो वायरस महामारी के दौरान रेस्क्यू एयरक्राफ्ट उड़ाने वाली वो पहली महिला पायलट हैं.

(फोटो: श्रुति माथुर/क्विंट हिंदी)

3. एस विनोथिनी

तमिलनाडु के त्रिची के एक प्राइवेट अस्पताल में काम करने वालीं 25 साल की एस विनोथिनी ने रामनाथपुरम में प्राइमरी हेल्थ सेंटर में काम करने के लिए 250 किमी का सफर तय किया. उनकी प्रेगनेंसी का आठवां महीना चल रहा था, जब उन्होंने कोरोना वायरस के मरीजों का इलाज करने का फैसला लिया.

4. डॉ जाकिया सईद

डॉ जाकिया सईद पर इंदौर में भीड़ ने हमला कर दिया था. इसके बाद COVID-19 ड्यूटी पर लौटकर उन्होंने कहा, “हम डरने का जोखिम नहीं उठा सकते”. इंदौर के टाटपट्टी बाखल इलाके में कुछ डॉक्टर्स कोरोना वायरस के लिए लोगों की स्क्रीनिंग करने गए थे, जब स्थानीय लोगों ने उनपर पत्थरबाजी की.

(फोटो: श्रुति माथुर/क्विंट हिंदी)

5. डॉ बीला राजेश

तमिलनाडु की स्वास्थ्य सचिव डॉ बीला राजेश राज्य में इस महामारी से लड़ाई का चेहरा हैं. राज्य के हालात पर लगातार अपडेट करने की उनकी बात की लोगों ने तारीफ की है. जब कोरोना वायरस मरीजों को लेकर बातें की जाने लगीं, तो डॉ. राजेश उनके समर्थन में खड़ी हुईं.

उन्होंने कहा, "कोई भी नहीं चाहेगा कि वो इस वायरस से संक्रमित हो. इसलिए उन लोगों को लेकर बातें न करें जिनका टेस्ट पॉजिटिव आया है. थोड़ा दयालु बनें. उपचार और इलाज पर ध्यान देना चाहिए."

6. अखिला यादव

तेलंगाना की सबसे कम उम्र की सरपंच- नालगोंडा जिले के मदनापुरम गांव की 25 साल की अखिला यादव इस बात का पूरा ध्यान रख रही हैं कि लोग सोशल डिस्टेंसिंग और लॉकडाउन के नियमों का पालन कर रहे हैं या नहीं.

उन्होंने PTI से कहा, “पहले, लोग लॉकडाउन को गंभीरता से नहीं ले रहे थे. दूसरे गांव-शहरों से लोग आराम से यहां आ रहे थे. इसलिए मैंने गांव के एंट्रेंस पर बैठने का फैसला लिया और ये ध्यान रखा कि कोई बिना किसी वाजिब कारण के यात्रा तो नहीं कर रहा है.”

(फोटो: श्रुति माथुर/क्विंट हिंदी)

7. डॉ प्रिया अब्राहम

नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ वायरोलॉजी (NIV) शुरुआत में भारत में कोरोना वायरस का पहला और एकमात्र टेस्टिंग सेंटर था. इंस्टीट्यूशन, जिसे भारत की कोरोना वायरस लड़ाई की रीढ़ माना जाता है, डॉ प्रिया अब्राहम इसका नेतृत्व करती हैं.

हर दिन होने वाले मामलों की संख्या के बीच, अब्राहम के नेतृत्व में NIV सैंपल को टेस्ट करने के समय को 12-14 घंटे से 4 घंटे तक कम करने में सफल रहा.

(फोटो: श्रुति माथुर/क्विंट हिंदी)

8. कृष्णवेनी

आशा कार्यकर्ता कृष्णवेनी बेंगलुरु के सादिक लेआउट में घर-घर जाकर सर्वे कर रही थीं, जब स्थानीय लोगों ने उन पर हमला किया और उनका बैग और मोबाइल फोन छीन लिया. जहां पुलिस को तुरंत सतर्क कर दिया गया और इस घटना के लिए पांच को गिरफ्तार किया गया, कृष्णवेनी ने अपना काम जारी रखा. वो लोगों में कोरोना वायरस के लक्ष्ण जांच और उनकी यात्रा की जानकारी कलेक्ट कर रही थीं.

9. रजिया बेगम

तेलंगाना की 48 साल की रजिया बेगम ने दूसरे राज्य में फंसे अपने बेटे को लाने के लिए स्कूटी पर 1,400 किमी का सफर तय किया. COVID-19 लॉकडाउन के दौरान, वो तीन दिन तक स्कूटी चलाकर आंध्र प्रदेश के नेल्लोर से अपने बेटे को वापस लेकर आईं.

बेगम ने कहा, “एक छोटे टू-व्हीलर पर ये सफर मुश्किल था. लेकिन बेटे को वापस लाने के मकसद ने मेरे सारे डर खत्म कर दिए.”

(फोटो: श्रुति माथुर/क्विंट हिंदी)

10. रेश्मा मोहनदास

केरल के कोट्टायम की रहने वाली 32 वर्षीय रेशमा मोहनदास ने देश के सबसे उम्रदराज COVID-19 मरीज को वापस ठीक कर दिया. हालांकि, वो खुद इस वायरस से संक्रमित हो गईं. लेकिन इससे उनका हौसला नहीं टूटा और वो अभी भी मरीजों की मदद करना चाहती हैं. मोहनदास अब ठीक हो चुकी हैं और वापस काम पर लौटने के लिए तैयार हैं.

उन्होंने द क्विंट को बताया, “वो वास्तव में डर गए थे. मैं पहली हेल्थ केयर वर्कर हूं, जिसके संपर्क में वो थे. तो वे घबरा गए और डर गए कि ये वायरस इतनी तेजी से फैल गया था. मैंने उन्हें समझाया कि उन्हें डरने की जरूरत नहीं है और वायरस होने का मतलब ये नहीं है कि उनकी मौत हो जाएगी. ये किसी दूसरी बीमारी की तरह था.”

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Published: 16 Apr 2020,12:51 PM IST

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