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पुलवामा हमले पर देशभर में फैली नाराजगी को देखते हुए प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने वादा किया था. मोदी ने कहा था कि उन्होंने भारतीय सशस्त्र बलों को फैसले लेने की खुली छूट दे दी है. वादे का नतीजा बेहतरीन निकला. बताया जा रहा है कि भारतीय वायुसेना के 12 मिराज 2000 विमानों ने मंगलवार को सुबह पहली किरण उगने से पहले अपनी छूट का इस्तेमाल कर लिया.
अपुष्ट खबरों के मुताबिक, पाक अधिकृत कश्मीर के मुजफ्फराबाद और चकोठी स्थित आतंकी ठिकानों को भी नष्ट किया गया है. बताया जा रहा है कि इसके लिए 1000 पाउंड बम का इस्तेमाल किया गया, जिससे निशाना तबाह हो गया.
वादे को पूरा करने के लिए भारतीय वायुसेना का इस्तेमाल करना दो लिहाज से अहम है:
पहला, सितम्बर 2016 को हुए सर्जिकल स्ट्राइक के विपरीत वायुसेना के विमान ज्यादा अंदर जाकर ज्यादा तबाही मचाने में सफल रहे, जिससे इनकार करना पाकिस्तान के लिए बेहद कठिन है. पाकिस्तान के ISPR ने हवाई हमले की बात स्वीकार तो की, लेकिन हमले का असर कम करके बताने की कोशिश की है. उन्होंने कहा कि पाकिस्तानी एयरफोर्स ने जवाबी कार्रवाई की, जिसके कारण भारतीय विमानों ने गलत जगहों पर बम गिराया और उनका मकसद पूरा नहीं हुआ.
दूसरी बात, भारत ने पाकिस्तान के सैन्य ठिकाने, ढांचागत सुविधाओं और आम लोगों को निशाना नहीं बनाया. ये तथ्य दुनियाभर के लिए बेहद महत्त्वपूर्ण संदेश है, जिससे भारत के दोस्तों की संख्या में इजाफा हो सकता है.
भारतीय प्रतिक्रिया का रणनीतिक आकलन करते वक्त इसके आनुपातिक पहलू और चयनित लक्ष्य को भी ध्यान में रखना जरूरी है. भारतीय मीडिया का ध्यान बहावलपुर स्थित जैश-ए-मोहम्मद के कैम्प पर था, जिसने जनमानस को धोखे में रखा और वायुसेना ने हमले का लक्ष्य बालाकोट तय किया. एक आतंकी कैम्प पर भारतीय हमले से ये निश्चित है कि अंतरराष्ट्रीय समुदाय में पाकिस्तान को अलग-थलग करने के लिए भारत के कूटनीतिक प्रयासों को मजबूती मिलेगी.
भारत के लिए इस दिशा में काफी कुछ सकारात्मक रहा है. अगर भारत ने सही लक्ष्य निर्धारित नहीं किया होता, तो वो बैकफुट पर होता. इस कदम ने भारत के कूटनीतिक अभियान को मजबूती प्रदान की है.
भारतीय हमले को बेअसर बताने का पाकिस्तान के ISPR के दावे का कोई महत्त्व नहीं, क्योंकि इस कारवाई का रणनीतिक संदेश ज्यादा महत्त्वपूर्ण है, वास्तविक परिणाम नहीं. आज नहीं, तो कल अंतरराष्ट्रीय निगरानी एजेंसियां नुकसान का आकलन कर ही लेंगी.
पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान ने भी वादा किया था कि किसी भी भारतीय सैनिक कार्रवाई का मुंहतोड़ जवाब दिया जाएगा, जिसका उनकी कैबिनेट के सदस्यों ने समर्थन किया था. इसे देखते हुए अब पाकिस्तान के राजनीतिक और सैन्य नेतृत्व पर दबाव बढ़ गया है. अगर वो अपने वादे के मुताबिक कुछ नहीं कर पाते, तो भारत की नैतिक जीत होती है. लेकिन अगर वो सैन्य प्रतिक्रिया का फैसला करते हैं, तो उनके सामने सबसे बड़ी समस्या होगी कि लक्ष्य किसे बनाया जाए और किस प्रकार की सैनिक कार्रवाई की जाए.
लेकिन ये मानना कि पुलवामा हमले के साथ आरम्भ हुआ खूनी खेल अब खत्म हो गया है, गलती होगी. सिर्फ एक हवाई हमले से वो छद्मयुद्ध खत्म नहीं होता, जिसे पाकिस्तान प्रायोजित कर रहा है. अभी भारत को सिर्फ एक मामले में बढ़त हासिल हुई है.
अपनी प्रतिष्ठा को बचाए रखते हुए प्रतिक्रिया देने के लिए पाकिस्तान के पास अब भी कई विकल्प बचे हैं. फिर भी ये सैन्य बलों के लिए उपयुक्त समय है कि वो अपनी तैयारी जारी रखें और पाकिस्तान के साथ विराम की स्थिति में पड़े रिश्तों को नए आयाम तक पहुंचाने को तेयार रहें. भारतीय सैन्य कार्रवाई से कोई राजनीतिक फायदा न हो, फिर भी राजनीतिक सर्वसम्मति हासिल किया जाए, ये एक साथ संभव नहीं.
इसके अलावा कश्मीरी अवाम तक भी भारत की प्रतिबद्धता का संदेश पहुंचाने का सही समय है, जो कश्मीर में आतंक फैलाने की पाकिस्तान की मंशा को बेनकाब करेगा.
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