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बुरे फैसलों से बीमार हो गई है इंडियन एयर फोर्स 

वायु सेना को अपने  विमानों को बेहतर हालात में रखने पर ध्यान देना होगा 

मनोज जोशी
नजरिया
Updated:
क्यों कबाड़खानों और गोदामों पर निर्भर है  वायु सेना?
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क्यों कबाड़खानों और गोदामों पर निर्भर है वायु सेना?
(फोटो: iStock / Altered by Kamran Akhter)

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रूसी सुविधाओं से लैस और बिल्कुल तैयार हालत में मिग-29 का बेड़ा (21 विमान) हासिल करने की भारतीय वायु सेना की योजना वाकई समझदारी वाला कदम है. इससे पहले भारतीय वायु सेना ने 35 एंग्लो-फ्रेंच जगुआर लड़ाकू विमान के पुर्जे और एयरफ्रेम हासिल किए थे.

इनमें 31 फ्रांस से, जबकि इंग्लैंड और ओमान से 2-2 विमान शामिल थे. 11 या लगभग इतने ही जगुआर विमानों के मौजूदा बेड़ों को बचाए रखना इसका मकसद था.

एक बात साफ है कि भीख मांगने वाले कभी पसंद की चीज नहीं ले पाते. भारतीय वायु सेना के पास पहले भी ऐसे कई मौके रहे, जब उसने सबसे अच्छे और सबसे महंगे विमान खरीदे. मगर परिस्थितियों ने इसे अलग-अलग विकल्पों की तरफ देखने को मजबूर कर दिया ताकि वह संख्या के साथ-साथ अपनी मारक क्षमता को भी बरकरार रख सके.

मिग-29 लड़ाकू विमानों की खरीद

भारतीय वायु सेना को आधुनिक मानकों के हिसाब से अपग्रेड किए गए मिग-29 लड़ाकू विमान रूस से मिलेंगे और वो भी औने-पौने दामों पर. माना जा रहा है कि हर विमान की कीमत 200 करोड़ रुपये होगी. इससे 62 मिग-29 लड़ाकू विमानों वाला भारतीय बेड़ा समृद्ध होगा, जिसे हर मौसम के हिसाब से कई भूमिकाओं के योग्य बनाने के लिए अपग्रेड किया जा रहा है. वास्तव में ऐसे 15 से ज्यादा विमान हैं. भारतीय वायु सेना को चाहिए कि वह उन सबको हासिल करे.

पहले से ही ये विमान ताकतवर इंजन से लैस हैं. इसमें फ्लाई-बाय-वायर उड़ान कंट्रोल व्यवस्था है. इसके साथ ही इसमें वो राडार हैं, जो यूपीजी मानक वाले मिग-29 में हैं. इसमें केवल भारतीय जरूरतों के हिसाब से जंगी जहाज को जोड़ने की जरूरत होगी. ये भारतीय बेड़े में सेवा के लिए एक साल के भीतर शामिल हो सकते हैं.

फ्रांस, ओमान और इंग्लैंड से हासिल जगुआर एयर फ्रेम्स की जरूरत उन विमानों के लिए उपकरणों की जरूरतें पूरी करने के लिए है, जिनका उत्पादन बंद हो चुका है या जो खुद इसके उत्पादक देशों- इंग्लैंड और फ्रांस में भी सेवा में नहीं रह गए हैं.
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भारत के पास ऐसे 118 विमान हैं और भारतीय वायुसेना प्रतिबद्ध है कि वह इनकी उड़ान क्षमता को 2030 तक बनाए रखेगी. इसलिए इन विमानों के इंजन, नए कॉकपिट और मिशन इलेक्ट्रॉनिक स्वीट के साथ-साथ भारत के लिए खास तौर पर तैयार जंगी जहाज को भी अपग्रेड किया जा रहा है.

अपग्रेडेड जगुआर हर मौसम में मार करने वाला जहाज होगा, जो सटीक तरीके से युद्धक सामानों को ले जाएगा और भारतीय थल सेना को मदद करने में खासा मददगार होगा. अपग्रेडेड जगुआर एक ऑल-वेदर स्ट्राइक एयरक्राफ्ट होगा जो सटीक-निर्देशित मूनशिप (पीजीएम) ले जा सकता है और भारतीय सेना को निकट सहायता प्रदान करने में प्रभावी होगा.

एयरफोर्स के विमान हो रहे हैं धड़ाधड़ क्रैश

इंडियन एयर फोर्स ने मार्क 1ए वर्ज़न के लिए 83 अतिरिक्त जेट फाइटर की खरीद के साथ-साथ 43 तेजस जेट फाइटर की खरीद का भी आदेश दिया है. घरेलू रिसर्च एंड डेवलपमेंट को प्रोत्साहित करने के लिए इनकी खरीद की भी एक अहमियत है लेकिन ये विमान सामान्य तौर पर लड़ाकू उड़ानों के लिए सक्षम नहीं हैं.

तेजस का वर्तमान वर्जन शानदार विमान है. यह लड़ाकू प्रशिक्षण में आगे है लेकिन भारतीय वायुसेना अति आधुनिक होकर भी इस सोच के साथ इन विमानों का संग्रह नहीं करती. यह देखना बाकी है कि विकसित हो जाने के बाद मार्क 1ए कितना सक्षम हो पाएगा.

संख्या के हिसाब से भारतीय एयर फोर्स की समस्या रहस्य नहीं रह गई है. बुरे फैसले, खराब अधिग्रहण रणनीति, गुणवत्ता नियंत्रण में कमी और दोषपूर्ण अनुबंध वितरण की वजह से वायु सेना की सेहत बिगड़ती चली गई.

उदाहरण के लिए अब भी 25 एसयू-30 एमकेआई नहीं मिला है जिसे एचएएल को 2017 तक देना था. अपग्रेड्स मिलने में भी देरी हुई, जैसे कि 47 मिराज 2000. इसी तरह 61 जगुआरों में से एक भी अब तक सेवा में नहीं लिया जा सका है जिन्हें अपग्रेड होना था. हल्के युद्धक विमान (एलसीए) की कहानी भी अलग है जिसमें देरी से लेकर उसके प्रदर्शन की समस्या रही है. इसके अलावा पिछले 10 सालों में वायु सेना के 90 लड़ाकू विमान क्रैश हुए हैं.

नए लड़ाकू विमानों के अधिग्रहण के लिए मंजूरी का इंतजार

नए युद्धक विमानों के अधिग्रहण से जुड़े मुद्दों में ये सबसे ऊपर आते हैं. सबको पता है कि भारतीय वायु सेना मीडियम मल्टी रोल एयरक्राफ्ट (एमएमआरसीए) के लिए जानी जाती है. यह भी सबको पता है कि 126 राफेल विमानों की खरीद के बजाए सरकार ने अचानक 36 खरीदने का ही फैसला किया. एक साल बाद अब भी यह केवल 114 लड़ाकू विमानों की खरीद का आग्रह (आरएफआई) कर सका है.

खरीद के लिए सरकार की ओर से औपचारिक अनुमति का अब भी इंतजार है. इसके बाद ही पांच विमानों- मिग 29/35, राफेल, यूरो फाइटर, ग्रिपेन, एफए-18 और एफ-16- के बीच स्पर्धा का अंत होगा. अगर एमएमआरसीए जैसे विमानों की जरूरत पड़ी, तो एक बार फिर राफेल विजेता बन कर सामने आ सकता है क्योंकि राफेल ही वायु सेना की 7 अलग-अलग तरह के लड़ाकू विमानों की जरूरत पूरी कर सकता है. 

शायद सरकार का इरादा इस समय जल्दबाजी करने का नहीं है. यही वजह है कि स्वीकार्यता की आवश्यकता (एओएन) को औपचारिक मंजूरी नहीं दी गई है और अब हम चुनाव के साल में हैं.

अंतरिम रक्षा बजट से बहुत कम उम्मीद

अंतरिम रक्षा बजट से बहुत कम उम्मीद है कि नई खरीद के लिए आने वाले समय में कोई धन मिलेगा. इस साल वायु सेना को खरीद के लिए 75 हजार करोड़ रुपये की जरूरत है लेकिन उसे केवल 39,347 करोड़ रुपये आवंटित किए गये हैं, जिससे प्रतिबद्ध जिम्मेदारी भी पूरी नहीं हो सकती. पिछली खरीद का बकाया ही 47, 413 करोड़ रुपये है.

भारतीय वायु सेना को अपने बेड़े को बनाए रखने के लिए पुर्जों की उम्मीद में कबाड़खानों और गोदामों के साथ रहना होगा. इस स्थिति के लिए एयरफोर्स ही जिम्मेदार है. इसका सिद्धांत सबसे सस्ते के बजाए सबसे अच्छे के साथ आगे बढ़ना है. इस तरह हम ऐसी स्थिति में फंस गए हैं कि सरकारी फैसले की कीमत हमें चुकानी पड़ रही है.

भारतीय रक्षा व्यवस्था को 42 स्क्वैड्रन की अनुमानित आवश्यकता की गहराई में जाने की जरूरत है जो चीन और पाकिस्तान को एक साथ देखने के सरकारी राजनीतिक निर्देश से पैदा हुई है.

हालांकि पाकिस्तान और चीन के साथ कुटिल संधि की वजह से साझा युद्ध की आशंका है मगर यह दूर की कौड़ी है. भविष्य में सीमित युद्ध की आशंका ज्यादा है और इसकी तैयारी के बजाए वायु सेना द्वितीय विश्वयुद्ध के आधुनिक वर्जन की तैयारी में जुटी है.

(लेखक ऑब्जर्वर रिसर्च फाउंडेशन, नई दिल्ली के विशिष्ठ फेलो हैं. ये विचार उनके निजी विचार हैं, इनसे क्विंट का सहमत होना जरूरी नहीं है.)

इस लेख को अंग्रेजी में पढ़ें: IAF Is Relying On Junkyards & Warehouses To Keep Its Fleet Afloat

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Published: 21 Feb 2019,05:45 PM IST

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