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इतने कम रक्षा बजट में जंग का सामना कैसे कर सकेगा भारत?

इस साल का रक्षा बजट इतना कम है कि सेना के कामकाज पर अभी से इसका असर दिखने लगा है.

अशोक के मेहता
नजरिया
Updated:
2018-19 का रक्षा बजट 1962 के बाद सबसे कम है.
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2018-19 का रक्षा बजट 1962 के बाद सबसे कम है.
(फोटो: क्विंट/अंकिता दास)

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पहले देखा जाता था कि वित्त मंत्री बजट पेश करते वक्त बलिदान के लिए सेना के प्रति सम्मान जताते थे और उसके बाद सांसद डेस्क थपथपाकर उनकी बात का समर्थन करते थे. सांसदों के रुकने के बाद वित्त मंत्री रक्षा बजट की घोषणा करते थे और कहते थे कि ‘जरूरत पड़ने पर और पैसा दिया जाएगा.’

इस सरकार में यह फॉर्मेट भी बदल गया है. इस साल का रक्षा बजट इतना कम है कि सेना के कामकाज पर अभी से इसका असर दिखने लगा है.

(फोटो: क्विंट हिंदी)

बीजेपी सांसद मेजर जनरल बीसी खंडूरी की अध्यक्षता वाली रक्षा पर बनी संसद की स्थायी समिति ने इस महीने संसद में अपनी 41वीं रिपोर्ट पेश की. इसमें समिति ने अफसोस जताते हुए कहा कि सेना के आधुनिकीकरण के लिए 21,338 करोड़ रुपये दिए गए हैं (29,033 करोड़ की तो उसकी तय देनदारी है). रिपोर्ट में 17,757 करोड़ रुपये की कमी का जिक्र किया गया है. समिति ने कहा कि इससे सेना के कामकाज पर बुरा असर पड़ेगा.

‘भारतीय सेना युद्ध के लिए तैयार नहीं’

संसदीय समिति के सामने पेश हुए वाइस चीफ ऑफ आर्मी स्टाफ लेफ्टिनेंट जनरल एस चंद ने कहा कि बजट से हमारी उम्मीद पूरी नहीं हुई है. 125 मेक इन इंडिया प्रोजेक्ट्स में से कम से कम 25 को बंद करना या टालना पड़ेगा. इतना ही नहीं सेना से 5,000 करोड़ रुपये का जीएसटी मांगा गया है, जो उसके जख्म पर नमक डालने जैसा है.

नौसेना और वायुसेना की भी यही हालत है. नेवी का एलोकेशन 2012-13 के 13 पर्सेंट से घटकर आज 8 पर्सेंट रह गया है. उसने 33,458 करोड़ रुपये मांगे थे, लेकिन नौसेना को सिर्फ 20,000 करोड़ रुपये मिले हैं.

वायुसेना की हालत सबसे खराब है. उसे आधुनिकीकरण के लिए जितना फंड चाहिए, उससे 42,000 करोड़ रुपये कम दिए गए हैं. सेना के तीनों अंगों को पुराने प्रोजेक्ट्स की किस्त के लिए भी और फंड की जरूरत पड़ेगी. इसलिए खंडूरी को कहना पड़ा कि भारतीय सेना युद्ध करने की हालत में नहीं है. 2018-19 का बजट 1962 के बाद सबसे कम है. यह जीडीपी का सिर्फ 1.49 पर्सेंट है.
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गड़बड़ी दूर करने की कोशिश क्यों नहीं हुई?

हर साल सेना हथियारों और उपकरणों की कमी का जिक्र करती है. यहां तक कि उसके पास 10 दिनों के युद्ध के लिए पर्याप्त गोला-बारूद तक नहीं है. सेना और रक्षा पर बनी संसदीय समिति के ध्यान दिलाने के बावजूद इस गड़बड़ी को दूर क्यों नहीं किया जा रहा है?

ऐसा कहा गया है कि रक्षा मंत्रालय ने कम बजट के मामले को पीएमओ के सामने उठाया है, लेकिन ऐसा शायद नहीं हुआ है. जब रक्षा बजट का ऐलान हुआ था, तब नई रक्षा मंत्री निर्मला सीतारमण ने वफादारी वाले अंदाज में कहा था, ‘बजट में बढ़ोतरी (जबकि इसमें कमी की गई है) से सेना के आधुनिकीकरण में मदद मिलेगी.’

निर्मला पहली बार सांसद बनी हैं, पहली बार ही उन्हें रक्षा मंत्रालय की जिम्मेदारी मिली है और वह प्रतिष्ठित कैबिनेट कमेटी ऑन सिक्योरिटी (सीसीएस) में भी शामिल हैं. सबसे बड़ी बात यह है कि वह वित्त मंत्री अरुण जेटली की शिष्य हैं. उनसे पहले पहली बार सांसद बने किसी शख्स को सीसीएस में जगह नहीं मिली थी.  

‘पीएम के पास विरुष्का से मिलने का वक्त है, भारतीय सेनाओं के चीफ से नहीं’

सेना के एक बहुत सीनियर अफसर ने मुझसे पिछले हफ्ते कहा कि राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजित डोभाल ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को यकीन दिलाया है कि कोई युद्ध नहीं होने जा रहा. उन्होंने कहा कि संसदीय समिति के पास कोई पावर नहीं है, वह बस रस्मअदायगी कर रही है.

इस अफसर ने बताया कि रक्षा मंत्रालय को युद्ध की तैयारी या इससे जुड़ी जो रिपोर्ट्स हम भेजते हैं, उसमें अपनी सुविधा के हिसाब से बदलाव किए जाते हैं. कई बार तो प्रेजेंटेशन से कुछ स्लाइड्स ही गायब कर दी जाती हैं. पिछले साल का जो बकाया पैसा चुकाना है, उससे कम फंड इस साल सेना के आधुनिकीकरण के लिए दिया गया है.

इस अफसर से जब मैंने पूछा कि क्या आर्मी चीफ्स इस बारे में प्रधानमंत्री से मिलकर बात नहीं करते? इस पर उन्होंने बताया कि प्रधानमंत्री को इसके बारे में पता है. अफसर ने कहा कि चीफ ऑफ स्टाफ कमेटी के चेयरमैन एडमिरल सुनील लांबा सातवें वेतन आयोग से जुड़ी गड़बड़ियों के सिलसिले में प्रधानमंत्री से महीनों से मिलने की कोशिश कर रहे हैं, लेकिन उन्हें समय नहीं दिया गया है. वहीं, प्रधानमंत्री को विराट कोहली और अनुष्का शर्मा से मिलने का समय मिल जाता है.

इस अफसर ने यह भी कहा कि पूर्व रक्षा मंत्री मनोहर पर्रिक्कर अपने काम से दुखी थे. भले ही उनका मन गोवा में बसा था, लेकिन सेना के लिए अतिरिक्त फंड हासिल नहीं कर पाने या रिफॉर्म नहीं करने की वजह से उनके अंदर एक खींझ थी. उन्होंने कहा कि इसमें पीएमओ रोड़ा बना हुआ है.

‘वित्त मंत्री के पास एक सवाल के कई जवाब हैं’

सेना को जरूरी फंड क्यों नहीं मिलता, इसका जवाब वित्त वर्ष 2017-18 और 2018-19 के बजट के बाद वित्त मंत्री अरुण जेटली के दिए गए इंटरव्यू से मिलता है. दोनों बार जेटली ने इंटरव्यू दूरदर्शन को दिए थे और उनसे इस बारे में सवाल बिजनेस स्टैंडर्ड के अशोक भट्टाचार्य ने पूछा था.

पहले इंटरव्यू में जेटली ने कहा था, ‘अगर रक्षा मंत्रालय तेजी से हथियार खरीदना शुरू करता है तो हम फंड बढ़ा सकते हैं. उसे पैसों की कमी नहीं होने दी जाएगी. बजट एलोकेशन तो सांकेतिक होते हैं. हमारे लिए डिफेंस टॉप प्रायरिटी है.’

दूसरे इंटरव्यू में उनका जवाब था, ‘डिफेंस की अतिरिक्त फंड की जरूरत मैं जरूर पूरा करता, अगर मेरे पास और पैसा होता.’  द हिंदुस्तान टाइम्स को 4 फरवरी को दिए इंटरव्यू में जेटली ने कहा था, ‘मैं डिफेंस को और फंड देता, लेकिन मेरे पास और पैसा नहीं है. अधिक फंड देने के लिए मुझे फिस्कल डेफिसिट बढ़ाना पड़ता.’

आपको खंडूरी की बात भी नहीं भूलनी चाहिए, जिनकी समिति ने 35वीं और 36वीं रिपोर्ट्स में कहा था, ‘भारत युद्ध के लिए तैयार नहीं है. सेना के पास जरूरी हथियार और उपकरण नहीं हैं.’ इसके बाद सेना प्रमुखों को युद्ध की तैयारियों के बारे में बयान देना बंद कर देना चाहिए. उन्हें इस गड़बड़ी को दूर करने के लिए कुछ करना चाहिए.

पिछले साल फ्रांस के चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ जनरल पियरे डी विलियर ने अपने पद से इस्तीफा दे दिया था, क्योंकि राष्ट्रपति मैक्रां ने उनसे पूछे बिना रक्षा बजट में एक अरब डॉलर की कटौती की थी. साल 2008 में ब्रिटिश जनरल लॉर्ड डैनेट भी इस्तीफा देने को तैयार थे, जब सरकार ने आर्मी और नेवी के लिए 70 मल्टी-रोल लिंक्स हेलिकॉप्टर खरीदने की योजना टालने की बात कही थी. भारत में भी कुछ करने का समय आ गया है, सिर्फ बयानबाजी से काम नहीं चलेगा.

(जनरल अशोक के मेहता डिफेंस प्लानिंग स्टाफ के संस्थापक सदस्य हैं और मौजूदा समय में इंटीग्रेटेड डिफेंस स्टाफ हैं. इस आर्टिकल में छपे विचार उनके अपने हैं. इसमें क्‍व‍िंट की सहमति होना जरूरी नहीं है.)

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Published: 23 Mar 2018,07:17 PM IST

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