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उस वक्त जब भारत के राजनेताओं को एक साथ खड़े होकर कोविड-19 महामारी का सामना करना चाहिए था ,वह आपस में लड़ रहे हैं और अपने राजनीतिक हितों को साध रहे हैं. यह दिखा, एक बार फिर, हाल ही में विदेश मंत्री एस जयशंकर और कांग्रेस के वरिष्ठ नेता और पूर्व मंत्री जयराम रमेश के बीच ट्विटर पर टिप्पणी में. जाहिर तौर पर जयराम रमेश ने बिना तथ्यों का पता लगाए विदेश मंत्रालय पर कटाक्ष किया तो दूसरी तरफ विदेश मंत्री ने भी अपने पद की मर्यादा के अनुरूप प्रतिक्रिया नहीं दी.
दिल्ली के अन्य नागरिकों की तरह यहां के डिप्लोमेटिक दल और उनके भारतीय स्टाफ पर भी कोविड-19 बुरा प्रभाव पड़ा है, जिसे प्रधानमंत्री मोदी ने दूसरी लहर का 'तूफान' बताया था
न्यूज़ रिपोर्ट के अनुसार तंजानिया के रक्षा सलाहकार कर्नल Dr. Moses Beats Mlulu का निधन कोविड के कारण 28 अप्रैल 2021 को हो गया .उनकी मौत आर्मी बेस हॉस्पिटल में हुई. खुद न्यूजीलैंड की प्रधानमंत्री Jacinda Ardern ने पुष्टि की कि दूतावास के अंदर एक लोकल स्टाफ की हालत बहुत खराब थी .लोकल स्टॉप डिप्लोमेटिक नहीं होते हैं. अधिकतर लोग स्थानीय नागरिक ही होते हैं. लगभग सभी दूतावास लोकल स्टाफ को भी अपना हिस्सा मानते हैं.
दूतावास का अपने स्टाफ के प्रति सचेत रहना जरूरी था लेकिन उस ने ट्वीट कर दिया. लोकल स्टाफ के इस मुद्दे को कैसे संभालना है, इसके लिए न्यूजीलैंड हाई कमिशन का विदेश मंत्रालय तक नहीं पहुंचना गलत था. इस गलती को न्यूजीलैंड की प्रधानमंत्री ने भी अप्रत्यक्ष रूप से स्वीकार किया है
यूथ कांग्रेस ने ऑक्सीजन के सिलेंडर फिलीपींस दूतावास में भी भेजा , लेकिन किस उद्देश्य के लिए यह स्पष्ट नहीं है. एक प्रेस रिपोर्ट के अनुसार उन्होंने ऐसा इसलिए किया क्योंकि किसी ने फिलीपींस दूतावास की ओर से ऐसी मांग की थी.
इसी समय जयराम रमेश सामने आते हैं .उन्होंने यूथ कांग्रेस को इस 'शानदार कार्य' के लिए शुक्रिया बोलते हुए ट्वीट कर दिया. उन्होंने आगे लिखा "एक भारतीय के रूप में मुझे गर्व है कि विपक्षी दल का यूथ विंग विदेशी दूतावास के SOS कॉल्स पर कार्यवाही कर रहा है. क्या विदेश मंत्रालय सो रहा है@DrSJaishankar?"
लेकिन हम ऐसे युग में जी रहे हैं जब किसी को, चाहे वह एक सम्मानित लेखक-नेता ही क्यों ना हो, विस्तार में जाने का सब्र नहीं है. चर्चा में आने की तलब बहुत तेज है.
जयशंकर ने जयराम रमेश के ट्वीट पर 'राजनैतिक' प्रतिक्रिया दी. उन्होंने इस बात को नजरअंदाज कर दिया कि यूथ कांग्रेस ने न्यूजीलैंड हाई कमिशन को ऑक्सीजन सिलेंडर दिया था.पर यह दावा किया कि विदेश मंत्रालय ने फिलीपींस दूतावास से संपर्क किया है. दिलचस्प बात यह रही कि विदेश मंत्री ने सीधे यह तो नहीं बोला कि फिलीपींस दूतावास ने विदेश मंत्रालय को बताया कि उसे ऑक्सीजन सप्लाई बिन मांगे मिली, लेकिन उन्होंने इस ओर इशारा जरूर किया .
जयशंकर ने आगे लिखा कि "यह भयानक है कि ऐसे ऑक्सीजन सिलेंडर बांटे जा रहे हैं, जब लोगों को इसकी सख्त जरूरत है".यह तथ्यात्मक रूप से सही है. अंततः उन्होंने इस बात पर भी जोर दिया कि विदेश मंत्रालय कभी 'सोता' या 'झूठ' नहीं बोलता .
विदेश मंत्रालय ने इस कंट्रोवर्सी पर डिप्लोमेटिक प्रतिक्रिया दी. उसने स्पष्ट किया कि उसके अफसर विदेशी डिप्लोमैटों से संपर्क में थे और उनकी मेडिकल आवश्यकता (कोविड सहित) में उनकी मदद कर रहे थे. इसमें हॉस्पिटल की आवश्यकता भी शामिल थी. यह तथ्य की तंजानिया के रक्षा सलाहकार की कोविड से दुखद मौत एक मिलिट्री हॉस्पिटल में हुई, दर्शाता है कि सरकार अपनी क्षमता भर प्रयास कर रही है.
कुछ अन्य देशों के डिप्लोमेट भी ऐसा निर्णय ले सकते हैं .ऐसा इसलिए भी है क्योंकि मेडिकल सहायता के लिए इन दलों को जिस प्रोटोकॉल का पालन करना पड़ता है ,वह अभी पूरी नहीं किया जा सकती. इसके अलावा विदेश मंत्रालय ने सबको जरूरी सप्लाई (ऑक्सीजन सहित) को इकठ्ठा ना करने की सलाह दी है .हालांकि ऐसी सलाह से किसी को आपत्ति नहीं हो सकती ,लेकिन जिस तरह सार्वजनिक रूप से दी गई है वह असाधारण है. समान्यतः सलाह किसी डिप्लोमेटिक चैनल के माध्यम से सावधानी से दी जा सकती थी.
यह पूरा मामला भारतीय राजनेताओं का परिपक्वता दिखाने और इस कठिन समय में हर भारतीय के लिए उदाहरण पेश करने को और भी आवश्यक बना देता है.
( लेखक पूर्व विदेश मंत्रालय सचिव (वेस्ट)हैं. उनका ट्विटर हैंडल है@VivekKatju. यह एक ओपिनियन पीस है.यहां लिखे विचार लेखक के अपने हैं.द क्विंट का इससे सहमत होना आवश्यक नहीं है.)
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