advertisement
Household Consumption Expenditure Survey 2022-23: हाल ही में 1999-00 से 2022-23 के मासिक प्रति व्यक्ति उपभोक्ता खर्च (MPCE) के आंकड़े जारी किए गए हैं. ये आंकड़े ग्रामीण और शहरी, दोनों क्षेत्रों में परिवारों के उपभोक्ता खर्च (Consumer Expenditure) में बढ़ोतरी का संकेत देते हैं लेकिन इनमें 2012-13 और 2022-23 के बीच बढ़ती महंगाई और स्थिर (वास्तविक) मजदूरी के दोहरे प्रभाव को भी देखा जा सकता है. इससे यह पता चलता है कि पिछले 10 सालों में प्रति व्यक्ति मानक और औसत भारतीयों के जीवन का स्तर, दोनों बदतर हुआ है (अगर परिवारों को उपलब्ध कराए गए आर्थिक और उपभोग विकल्पों के लिहाज से देखा जाए).
2009-10 से 2011-12 की अवधि में एमपीसीई (MPCE) में अच्छी बढ़त देखी गई है जो संभवतः मजबूत आर्थिक विकास के कारण परिवारों की क्रय शक्ति में तेज वृद्धि का संकेत देती है. 2011-12 से 2022-23 तक एमपीसीई (MPCE) में लगातार बढ़त जारी रही लेकिन इस दौरान अधिकांश परिवारों की आय उस रफ्तार से नहीं बढ़ी. पिछले कुछ सालों में ग्रामीण और शहरी एमपीसीई स्तरों के बीच का जबरदस्त अंतर, लगातार गहराते शहरी-ग्रामीण आर्थिक अंतर को भी साफ करता है. इसे के (K) आकार के आर्थिक विकास के जरिए समझा जा सकता है, खासकर कोविड के बाद के समय में.
ऊपर दिए गए आंकड़े जनवरी 2023 से जनवरी 2024 की अवधि में मूल्य स्तर (मुद्रास्फीति) में परिवर्तन की दर से संबंधित धारणाओं में एक उल्लेखनीय बदलाव को दर्शाते हैं. कीमतों में वृद्धि का अनुभव करने वाले व्यक्तियों के अनुपात में लगातार गिरावट आ रही है. यह जनवरी 2023 में 86.5% थी जो जनवरी 2024 में 79.5% हो गई है.
महंगाई की बढ़त उपभोक्ता के विश्वास, खर्च के पैटर्न और समग्र आर्थिक गतिविधि को प्रभावित कर सकती है. अगर मुद्रास्फीति से संबंधित धारणाओं में गिरावट आ रही हो तो उपभोक्ता विश्वास और समग्र खर्च में वृद्धि हो सकती है. यह आर्थिक विकास में वह योगदान देता है जिसे आय समूहों की धारणा को मापने के जरिए नहीं हासिल किया जा सकता.
नियोजित और स्व-नियोजित श्रेणियों में क्रमशः 22% और 17% लोग यह उम्मीद करते हैं कि कीमतें बढ़ेंगी और यह चिंता का संकेत है. अगर लोग ऐसा सोचते हैं कि उन्हें भविष्य में चुनौतियों की आशंका होती है क्योंकि बढ़ती कीमतें क्रय शक्ति को कम कर सकती हैं और इससे उपभोक्ता खर्च कम हो सकता है. ऐसे हालात आर्थिक विकास को धीमा कर सकते हैं और मुद्रास्फीति के दबाव को बढ़ा सकते हैं जिससे समग्र आर्थिक स्थिरता प्रभावित होगी. अगर उपभोक्ता विश्वास को बनाए रखना है, आर्थिक विकास को बरकरार रखना है और आवश्यक वस्तुओं एवं सेवाओं को किफायती बनाना है तो इन समस्याओं को दूर करना होगा.
नीचे हम आरबीआई उपभोक्ता सर्वे आंकड़ों के निष्कर्षों पर चर्चा कर रहे हैं जो हाल ही में जारी घरेलू खपत के आंकड़ों के अनुरूप ही हैं.
के-आकार वाले भारत का सबूत
आरबीआई के उपभोक्ता सर्वेक्षण के आंकड़ों पर बारीकी से नजर डालने से पता चलता है कि भारत के सुस्त आर्थिक विकास में एक पहलू असमानता का भी है. फिर जब उपभोक्ता विश्वास और अवधारणा के आंकड़ों को दूसरे आर्थिक आंकड़ों के साथ जोड़कर देखा जाता है तो के-आकार वाले विकास का पैटर्न और साफ हो जाता है. जैसे वास्तविक मजदूरी, खपत का पैटर्न, रोजगार वृद्धि, घरेलू ऋण और व्यापक ऋण-जीडीपी अंतर (जिससे आरबीआई के लिए लिक्विडिटी संबंधी चिंता पैदा होती है).
जनवरी 2023 से नवंबर 2023 के बीच सामान्य आर्थिक स्थिति को लेकर भारतीयों की धारणाओं में गिरावट की प्रवृत्ति साफ है (अधिक विस्तृत विश्लेषण के लिए यहां देखें). इस अवधि के दौरान सामान्य आर्थिक स्थिति में गिरावट महसूस करने वाले व्यक्तियों का प्रतिशत उन लोगों के मुकाबले लगातार बढ़ रहा है जो आर्थिक स्थिति में वृद्धि महसूस करते हैं या जिनकी पुरानी धारणा बरकरार है.
जब यह पैटर्न लंबे समय तक कायम रहता है तो यह एक तरह का आर्थिक अनिश्चितता का संकेत होता है. यह दिखाता है कि जन संवेदनाएं प्रतिकूल हैं और विभिन्न आर्थिक समूहों में आर्थिक संभावनाओं में विश्वास नहीं हैं. जैसा कि क्राइसिस इकोनॉमिस्ट कहते हैं, समय के साथ उनका अपना मल्टीप्लायर इफेक्ट होता है (दूसरी मदों पर इसका असर और बढ़ता है).
नीचे दिया गया चार्ट साफ दिखाता है कि कोविड के बाद पिछले कुछ वर्षों के दौरान किसे के-आकार की आर्थिक बहाली माना जाता है.
जैसा कि आंकड़ों से पता चलता है, सामान्य आर्थिक स्थिति की धारणा अलग-अलग आय वर्ग में काफी भिन्न होती है.
5000 रुपये से कम कमाने वाले लोगों में चिंता नजर आती है जिसमें अधिकांश (62%) हर महीने बिगड़ती आर्थिक स्थिति महसूस करते हैं. इसके विपरीत केवल 21% ने सुधार की बात कही है. यह निरंतर नकारात्मक धारणा इस आय समूह के भीतर चल रहे वित्तीय तनाव या चुनौतियों का संकेत है.
इसी तरह 5000 रुपये से 10,000 रुपये के बीच कमाने वालों में सुधार की बात कहने वालों का प्रतिशत पिछले आय वर्ग वालों की तुलना में कुछ अधिक है, यानी 28% जबकि वहां भी एक बड़ा समूह (52%) कहता है कि आर्थिक स्थिति हर महीने खराब हो सकती है. कहा जा सकता है कि ज्यादातर नकारात्मक नजरिया कायम है और सुधार देखने वाले कम ही हैं.
अब आय स्तर पर थोड़ा ऊपर जाते हैं. 10,000 से 25,000 रुपए तक के वर्ग के लिए आंकड़े काफी विभाजित रवैया दिखाते हैं. इस वर्ग में 32% लोग आर्थिक सुधार की बात करते हैं जबकि 44% का मानना है कि हर महीने आर्थिक स्थिति बदतर हो सकती है.
50,000 रुपये से लेकर 1 लाख रुपये तक की आय वाले समूह में ज्यादातर (47%) लोगों को हर महीने सुधार की उम्मीद है जो कि आम तौर पर सकारात्मक नजरिए का संकेत है लेकिन चिंताजनक बात भी है क्योंकि 30% अब भी बदतर आर्थिक हालात की बात करते हैं. इससे लगता है कि व्यापक तौर पर सुधार के बावजूद समस्याएं जारी हैं.
आखिर में, सबसे उच्च आय वर्ग, यानी 1 लाख रुपये और उससे अधिक कमाने वालों का नजरिया सबसे सकारात्मक है. इस वर्ग में 55% को हर महीने आर्थिक हालात में सुधार नजर आता है. इस समूह के सिर्फ 25% लोगों को बदतर आर्थिक स्थिति की आशंका है. इससे पता चलता है कि सबसे उच्च आय वर्ग में बड़े पैमाने पर सकारात्मक रवैया है. यहां देखें कि किस प्रकार विभिन्न आय वर्गों में वास्तविक आय स्थिर है.
सर्वेक्षण में भाग लेने वाले जिन लोगों को रोजगार में वृद्धि की उम्मीद है, उनका प्रतिशत 50 के करीब कम ज्यादा होता है जबकि गिरावट की उम्मीद करने वालों का लगभग 30% है. यह इस अवधि में भविष्य में रोजगार की संभावनाओं को लेकर निरंतर आशावाद का संकेत देता है जिसमें मामूली बदलाव हो सकते हैं.
हालांकि सितंबर 2023 तक, रोजगार में वृद्धि की भविष्यवाणी करने वाले लोगों के प्रतिशत में उल्लेखनीय बढ़ोतरी हुई है जो 55.8% तक पहुंच गई है. यह सर्वेक्षण में शामिल व्यक्तियों के बीच भविष्य में नौकरी के अवसरों के प्रति बढ़ते विश्वास का संकेत देता है. इसके विपरीत, रोजगार में कमी की आशंका रखने वालों का प्रतिशत गिरकर 26.2% हो गया है जो भविष्य में नौकरी की संभावनाओं के बारे में कम निराशावाद या चिंता को दर्शाता है.
यह प्रवृत्ति जनवरी 2024 तक जारी रही जब भविष्य में रोजगार की संभावनाओं के बारे में आशावाद बढ़ा. रोजगार में वृद्धि की उम्मीद करने वाले लोगों का प्रतिशत बढ़कर 58.7% हो गया है जो उपलब्ध आंकड़ों में अपने उच्चतम बिंदु पर है. इस बीच रोजगार में कमी की भविष्यवाणी करने वालों का प्रतिशत घटकर 24% हो गया है जो निराशावाद में पर्याप्त कमी और भविष्य में नौकरी के अवसरों में आत्मविश्वास के ऊंचे स्तर का संकेत देता है.
5,000 रुपये से कम कमाने वाले लोगों की उम्मीदों में काफी अंतर है जबकि 41% लोगों को रोजगार में सुधार की उम्मीद है, एक बड़े हिस्से (39%) को बदतर स्थितियों की आशंका है. यानी इस आय वर्ग में मिश्रित भावनाएं हैं.
इससे एकदम अलग, 1 लाख रुपये और उससे अधिक आय वाले उच्च वर्ग में सबसे ज्यादा आशावाद है. यहां 65% को रोजगार में सुधार की उम्मीद है. इस आय वर्ग में केवल 14% लोगों को बदतर की आशंका है. इससे पता चलता है कि उच्च आय वर्ग में भविष्य की नौकरियों को लेकर बहुत जबरदस्त विश्वास है.
10,000 से 25,000 रुपये तक और 25,000 से लेकर 50,000 रुपये तक कमाने वाले ज्यादातर लोगों को भी सुधार की ज्यादा उम्मीद है. इनमें क्रमश 53% और 57% लोगों को बेहतर रोजगार की संभावनाएं नजर आती हैं.
5,000 से लेकर 10,000 रुपये और 50,000 से लेकर 1 लाख रुपये तक के आय वर्ग में उम्मीदें सकारात्मक हैं. इनमें क्रमशः 53% और 61% को रोजगार में सुधार की उम्मीद है. हालांकि इनमें एक छोटा समूह (क्रमशः 30% और 21%) बदतर स्थितियों की आशंका जताता है. इससे लगता है कि आशावाद के बावजूद कुछ सतर्कता और सनसनी कायम है.
बड़े पैमाने पर विभिन्न आय वर्गों में एक साल बाद रोजगार को लेकर उम्मीदें कायम हैं. साथ ही, आत्मविश्वास और चिंता के स्तरों में भिन्नताएं मौजूद हैं. निम्न आय वर्ग के मुकाबले उच्च आय वर्ग वाले लोगों को मजबूत विश्वास है कि परिणाम सकारात्मक होंगे.
जनवरी 2023 से लेकर नवंबर 2023 तक लोगों में एक साल बाद मूल्य वृद्धि को लेकर आशंकाएं बढ़ीं जिनकी दर 78.4% से बढ़कर 84.3% हो गई है. यह बताता है कि इस अवधि के दौरान सर्वेक्षण में शामिल लोगों को जबरदस्त महंगाई की उम्मीद थी.
जुलाई 2023 में सर्वेक्षण में शामिल लोगों में मूल्य वृद्धि की उम्मीद में कुछ गिरावट हुई और यह 80.9% हो गया. इसके साथ ही कीमतों के समान रहने या घटने की उम्मीद करने वालों के प्रतिशत में वृद्धि हुई जो भविष्य के मूल्य स्तरों से जुड़ी भावना में अस्थायी बदलाव का संकेत देता है.
कुल मिलाकर एक वर्ष बाद मूल्य स्तर से जुड़ी उम्मीदें लोगों में महंगाई या उच्च मूल्य स्तर की लगातार आशंका का संकेत देता है. इस पूरी अवधि में लोगों की भावनाओं में मामूली उतार-चढ़ाव देखा गया है. यह भविष्य की आर्थिक स्थितियों और कीमतों पर उनके संभावित प्रभाव से जुड़ी चिंता या उम्मीदों को दर्शाता है.
सभी आय वर्गों में ज्यादार लोगों ने एक साल बाद कीमतों में वृद्धि की आशंका जताई, जिनका प्रतिशत 79% से 82% के बीच है. इससे पता चलता है कि सर्वेक्षण में शामिल ज्यादातर लोगों को आशंका है कि आने वाले वर्ष में महंगाई या ऊंची कीमतों से दो-चार होना पड़ सकता है.
इसके अलावा, सभी आय वर्ग में कीमतों के समान रहने या घटने की उम्मीद करने वाले लोगों का प्रतिशत अपेक्षाकृत कम है, जो 7% से 14% तक है. यह लोगों की इस आम राय का संकेत हैं कि मूल्य स्थिरता या घटने की संभावना वृद्धि की तुलना में कम है.
विभिन्न आय समूहों के बीच भविष्य के मूल्य स्तरों के संबंध में अपेक्षाओं में काफी कम फर्क है. आय स्तर कोई भी हो, ज्यादातर लोगों ने मूल्य वृद्धि की संभावना के संबंध में एक जैसी चिंताएं जाहिर कीं. मूल्य स्थिरता या कमी की उम्मीद के प्रतिशत में केवल मामूली बदलाव हैं.
कुल मिलाकर यह पता चलता है कि सभी आय वर्गों में एक साल बाद कीमतों के स्तर को लेकर लगभग एक जैसी भावनाएं हैं. यह आर्थिक स्थितियों की व्यापक धारणा और भविष्य की कीमतों पर उनके संभावित प्रभाव का संकेत देता है.
(दीपांशु मोहन अर्थशास्त्र के प्रोफेसर और ऑफिस ऑफ इंटरडिसलिप्नरी स्टडीज़ के डीन और सेंटर फॉर न्यू इकोनॉमिक्स स्टडीज (सीएनईएस) के निदेशक हैं. आर्यन गोविंदकृष्णन जिंदल स्कूल ऑफ गवर्नमेंट एंड पब्लिक पॉलिसी में मास्टर के विद्यार्थी हैं और सीएनईएस की इन्फोस्फीयर टीम के को-लीडर हैं.)
(हैलो दोस्तों! हमारे Telegram चैनल से जुड़े रहिए यहां)