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भारत में शिक्षा व्यवस्था की हालत पर हर चुनाव से पहले चर्चा होती है. लेकिन इस चर्चा में न तो नेता दिलचस्पी लेते हैं और न ही टीवी चैनल, देखते ही देखते अगले पांच साल के लिए ये मुद्दा कहीं गायब हो जाता है. लेकिन इस मुद्दे पर इस बार बहस तब शुरू हुई जब भारतीय मूल के अमेरिकी अर्थशास्त्री और नोबेल विजेता अभिजीत बनर्जी ने सवाल खड़े किए. उन्होंने जयपुर लिटरेचर फेस्टिवल में कहा कि अगर वो भारत में होते तो शायद ही नोबेल जीत पाते.
नोबेल विजेता के इस बयान ने पूरे देश के युवाओं को सोचने पर मजबूर कर दिया कि क्या वाकई में वो एक ऐसे देश में रहते हैं जहां शिक्षा के मुद्दे को हाशिए पर रखा जाता है. भारत में उच्च शिक्षा व्यवस्था को समझने से पहले जानिए कि नोबेल विजेता अभिजीत बनर्जी ने क्या कहा था.
जयपुर लिटरेचर फेस्टिवल में अभिजीत ने जो बातें कही क्या वो आज के भारतीय व्यवस्था पर फिट बैठती हैं.
अभिजीत बनर्जी ने अपने बयान में साफ कहा कि भारत में टैलेंट की कोई भी कमी नहीं है, लेकिन यहां एक सिस्टम की जरूरत है. भारत में टैलेंट को किस कदर नजरअंदाज किया जाता है, इसका एक बड़ा उदाहरण हाल ही में देखने को मिला. पिछले साल जाने-माने बिहार के गणितज्ञ वशिष्ठ नारायण सिंह का निधन हुआ था. जिनके टैलेंट की दुनिया कायल थी. यहां तक कि नासा भी उनके दिमाग के आगे नतमस्तक था. लेकिन भारत में उन्हें जीते जी तो सम्मान मिला नहीं, मरने के बाद भी लावारिस की तरह उनकी लाश हॉस्पिटल के बाहर पड़ी रही.
एक बात और ध्यान देने वाली है. अब तक जितने भी नोबेलिस्ट हुए हैं उनमें से किसी ने भी अपनी रिसर्च भारत में नहीं की थी. जब उन्हें नोबेल पुरस्कार मिला तब वो भारतीय मूल के विदेशी हो गए थे. फिर चाहे वो हरगोविंद खुराना, सुब्रह्मण्यम चंद्रशेखर, अमर्त्य सेन, वेंकट रामकृष्णन हों या अभिजीत बनर्जी सबने नोबेल मिलने तक विदेशी नागरिकता ले ली थी.
किसी भी देश को तरक्की करने के लिए उस देश के युवा का शिक्षित होना जरूरी है. भारत सरकार ने 2019-20 के लिए कुल जीडीपी का सिर्फ 3.4% ही शिक्षा पर खर्च किया. भारत का 2019-20 के लिए कुल बजट 3401639 करोड़ है, और सरकार कुल बजट में से शिक्षा पर सिर्फ 93847.64 करोड़ खर्च कर रही है. जिसमें से हायर स्टडी के लिए 37461 करोड़ खर्च किया जाना है. भारत की सरकार का शिक्षा के प्रति यही रवैया होने के कारण आज भी भारत की कोई यूनिवर्सिटी टॉप 400 में भी जगह नहीं बना पाई है.
विश्व की 5वीं सबसे बड़ी इकनॉमी वाला देश यूनाइटेड किंगडम है और भारत विश्व का 7वां सबसे बड़ा इकनॉमी वाला देश है. यूके अपनी जीडीपी का 6.23 % शिक्षा पर खर्च करता है. यूके विश्व में दूसरा सबसे ज्यादा नोबेल जीतने वाला देश है. जहां की जनसंख्या भारत के तुलना में आधे से भी कम है. लेकिन शिक्षा पर खर्च भारत से कई ज्यादा है. भारत के पास दुनिया की दूसरी बड़ी आबादी है. और शिक्षा पर बाकी देशों की तुलना में भारत की जीडीपी का सिर्फ 3.4% खर्च होता है.
भारत में एक स्टूडेंट को रिसर्च करने के लिए सबसे पहले नेशनल एलिजिबिलिटी टेस्ट (NET) पास करना होता है. इसे यूजीसी नेट भी कहते हैं. इस टेस्ट को पास करने के बाद सरकार के तरफ से स्टूडेंट को रिसर्च करने के लिए फेलोशिप दिया जाता है. सरकार जेआरएफ क्लियर करने वाले स्टूडेंट को फेलोशिप के तौर पर करीब 35000 प्रति महीने देती है.
इकनॉमिक टाइम्स में छपी एक रिपोर्ट के मुताबिक 2017-18 के इकनॉमी सर्वे में भारत के तत्कालीन वितमंत्री अरुण जेटली ने संसद में कहा था कि साइंस और रिसर्च&डेवलपमेंट में और अधिक खर्च करने की जरूरत है. साइंस और रिसर्च पर भारत जीडीपी का सिर्फ 0.6 से 0.7 प्रतिशत खर्च करता है.
यूजीसी के मुताबिक 2017 में भारत में 912 ऐसे इंस्टीट्यूशन है जो पीएचडी की मानक उपाधि दे सकते हैं. द हिंदू में छपे एक आर्टिकल के मुताबिक भारत में टॉप की यूनिवर्सिटीज हर साल लगभग 2,500 साइंस के स्टूडेंट्स को पीएचडी की डिग्री देते हैं. अकेले केमिस्ट्री में, भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (IIT)- मद्रास हर साल 25 से अधिक पीएचडी देता है. हर साल भारत में आईआईटी से 150 केमिस्ट्री पीएचडी होती हैं. भारत में केमिस्ट्री से करीब 800 स्टूडेंट हर साल पीएचडी की डिग्री हासिल करते हैं और रोजगार लगभग 100 स्टूडेंट्स को ही मिल पाता है.
भारत में बेरोजगारी का ये आलम है कि एक पीएचडी होल्डर को चपरासी की नौकरी के लिए फॉर्म भरने की खबरें सामने आती रही हैं. सोचिए अगर जिस देश के रिसर्चर्स को उसकी काबिलियत के मुताबिक नौकरी नहीं मिल रही हो और उसे अपना गुजारा करने के लिए चपरासी की नौकरी भी मंजूर हो तो कैसे उसे नोबेल या इसी तरह का कोई बड़ा पुरस्कार मिलेगा.
विदेशों में जाकर वहां रिसर्च करने का सबसे बड़ा कारण ये है कि भारत में एक भी ऐसी यूनिवर्सिटी नहीं हैं जो दुनिया की टॉप 100 लिस्ट में अपनी जगह बनाने में कामयाब हुई हो. जबकी UK, USA, GERMANY, FRANCE, JAPAN, ISRAEL और CHINA में ऐसी कई यूनिवर्सिटीज हैं जो टॉप 100 की लिस्ट में शामिल हैं. जहां की सरकार रिसर्च को लेकर पूरी तरह से सजग है. अपने रिसर्चर्स पर खूब पैसे खर्च करती है. यूनाइटेड किंगडम में रिसर्च करने वाले स्टूडेंट्स को वहां की सरकार रिसर्च के दौरान पार्ट टाइम जॉब की भी सुविधा देती है.
बकायदा जर्मनी में स्टूडेंट्स को सिर्फ ग्रेजुएशन करने के बाद सरकार उन्हें विदेशों में घूमने के लिए फंड मुहैया कराती है. हालांकि अब विदेशों में पढ़ने वाले भारतीय की संख्या मे गिरावट देखी गई है.
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