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INS रणवीर विस्फोट: उम्रदराज जहाजों के साथ नौसेना की चुनौतियों का खुलासा

शहीद नौसैनिकों का परिवार जवाब का हकदार है: क्या वो व्यर्थ ही मर गए? क्या यह एक रोके जाने लायक दुर्घटना थी?

केपी संजीव कुमार
नजरिया
Updated:
<div class="paragraphs"><p>INS रणवीर विस्फोट: उम्र दराज जहाजों के साथ नौसेना की चुनौतियों का खुलासा</p></div>
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INS रणवीर विस्फोट: उम्र दराज जहाजों के साथ नौसेना की चुनौतियों का खुलासा

(फोटो: विकिमीडिया कॉमन्स/कमांडर, यूएस 7वां बेड़ा)

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भारतीय नौसेना बेड़े के INS रणवीर (INS Ranvir) में 18 जनवरी 2021 को एक दिल दहला देने वाला हादसा हो गया. इस जहाज में हुए एक धमाके में तीन नौसैनिक जवान शहीद हो गए. साथ ही 11 अन्य घायल जवानों को कोलाबा के नौसेना अस्पताल INHS अश्विनी में इलाज के लिए भर्ती कराना पड़ा . यह जहाज नौसेना के पूर्वी नौसेना कमान, विखापट्टनम की ओर से पश्चिमी तट पर मुंबई बंदरगाह पर था, जो तीन महीने के क्रॉस-कोस्ट तैनाती के कथित अंतिम पड़ाव पर था.

घटना के एक दिन बाद, 19 जनवरी की सुबह इसकी जानकारी नौसेना के प्रवक्ता की ओर से एक आधिकारिक पोस्ट के जरिए दी गई. जिसमें मृतकों (सभी मास्टर चीफ पेटी ऑफिसर, नाविकों में सर्वोच्च रैंक) की पहचान कृष्ण कुमार MCPO I, सुरिंदर कुमार MCPO II और एके सिंह MCPO II के रूप में की गई है. समाचार रिपोर्टों के मुताबिक, इन नौसैनिकों के केबिन से सटे एसी डिब्बे में विस्फोट हुआ था. कथित तौर पर, इस धमाके के कारण केबिन टूट गया, जिससे इन तीन नौसैनिकों की मौत हो गई. इस हादसे की जांच के लिए बोर्ड ऑफ इंक्वायरी (BOI) के आदेश दे दिए गए हैं.

हमेशा मौजूद खतरे

वैसे हर युद्धपोत के लिए आग और बाढ़, सर्वव्यापी खतरे के तौर पर आंके जाते हैं. आग लगने के लिए जरूरी तीनों घटक - ऑक्सीजन, गर्मी और ईंधन - हमेशा जहाजों पर बड़ी तादाद में मौजूद रहता है.INS

इन सारे खतरों को सीमित जगह और कतारबद्ध कैबिनों के बीच, हाई-ग्रेड औजारों और जहाज में सवार सभी प्रशिक्षित लोगों की मदद से मैनेज किया जाता है, जिसमें हथियारों से फायरिंग, मिसाइल लॉन्च, ईंधन और गोला बारूद लादने के खतरनाक रोजमर्रा के काम शामिल होते हैं.

इससे पहले हमारे जहाज कभी इस तरह नहीं चले थे, जहां एक कमिशन में ही जहाज हजारों मील, यानी लाखों नॉटिकल माइल्स का फासला तय करता है. इस हादसे को लेकर, टुकड़ों में मौजूद जानकारियों के आधार पर, सुरक्षा के तरीकों (या उसकी कमियों) का अंदाजा लगाना जल्दबाजी होगी. भले ही मामले की जांच चल रही हो लेकिन कुछ सामान्य बिंदुओं पर गौर किया जा सकता है.

INS रणवीर एक पुराना जहाज था

INS रणवीर (D54), दो रणवीर श्रेणी के डिस्ट्रॉयर्स में से पहला, जो 1985 में ओजोन परत की खोज से बमुश्किल एक साल बाद अप्रैल 1986 में तैनात किया गया था. यह पांच में से चौथा रूसी कशिन श्रेणी के डिस्ट्रॉयर (Russian Kashin class destroyer), जिसे SNF या सुरेंद्रनाथ फ्रिगेट्स के तौर पर भी जाना जाता है) था.

लिहाजा लगभग 36 सालों में, D54, आज तैनात अधिकांश बड़े जहाजों से भी ज्यादा पुराना है. हालांकि, जहाज का आधुनिकीकरण और सुधार समय समय पर किया गया है, जिनमें मिड-लाइफ अपरग्रेड (MLU), गहन निरीक्षण और रखरखाव शामिल हैं. इस तरह के MLU और रीफिटिंग के दौरान निश्चित तौर से जो सुरक्षा कवच जोड़े जा चुके हैं, मसलन आग लगने से निबटने के लिए इस्तेमाल में लाए जानेवाले औजार फिक्स्ड एंड पोर्टेबल फायर फाइटिंग सिस्टम, के भी जांच की जरूरत है.

रूसी जहाज, रूसी विमानों की तरह, एर्गोनॉमिक्स और क्रू के आराम के मामले में फीके हैं. कई बार तो ऐसा लगता है कि इसमें क्रू के बारे में बाद इंतजाम बाद में जोड़ा गया हो. SNF जहाजों पर गुजारा किसी बुरे सपने से कम नहीं, जहां क्रू, किसी मोटे कोने और 'हॉट बंकिंग' में ठूंसे रखने का चलन होता है. कम शब्दों में कहूं तो, 'Studio 29' की लग्जरी चखने के बाद, मैं नाविकों और उनके मेस डेक के साथ केवल हमदर्दी रख सकता हूं.

HVAC, रेफ्रिजरेंट और अग्नि सुरक्षा

युद्धपोत पर हीटिंग, वेंटिलेशन और एयर कंडीशनिंग (HVAC) सिस्टम 24/7/365 चलता है. 1900 के दशक की शुरुआत में एयर कंडीशनिंग सिस्टम में इस्तेमाल होने वाले रेफ्रिजरेंट या तो ज्वलनशील या जहरीले थे. समय के साथ, इनकी जगह क्लोरोफ्लोरोकार्बन और हाइड्रोक्लोरोफ्लोरोकार्बन (CFCs और HCFCs) ने ले ली. वे गैर-जहरीली और गैर-ज्वलनशील हैं, लेकिन बाद में पाया गया कि वे ओजोन की परत के लिए नुकसानदेह हैं. मॉन्ट्रियल प्रोटोकॉल के आधार पर, 1987 में, CFCs और HCFCs की खपत और पैदावार को धीरे-धीरे खत्म करने के लिए एक विश्वव्यापी समझौता किया गया था.

उस समय, INS रणवीर भारतीय नौसेना के बेड़े में सबसे शक्तिशाली हथियारों में से एक था. इसके HVAC में इस्तेमाल में लाए जानेवाले रेफ्रिजरेंट को लेकर पूरी संभावना है कि वह हाइड्रोफ्लोरोकार्बन (HFC) होगा - जो फिर से, एक ग्रीनहाउस गैस है. HFC, CFC और HCFC की लगातार गिरावट के चलते, HVAC उद्योग जगत एक बार फिर से कुछ शुरुआती रेफ्रिजरेंट (ब्यूटेन, प्रोपेन और प्रोपलीन के साथ कार्बन डाइऑक्साइड) की ओर झुक गया.

ये या तो ज्वलनशील होते हैं या बहुत उच्च दाब में काम करते हैं. एक बंद जगह में, अगर ऐसी गैस लीक हो जाती है और तीव्रता 'निचले ज्वलनशीलता स्तर (LFL)' से ज्यादा हो जाती है, तो ऐसे में विस्फोट होना तय है.

अगर वास्तव में विस्फोट रणवीर के AC डिब्बे के अंदर हुआ था, जैसा कि मीडिया में बताया जा रहा है, तो जहाज पर इस्तेमाल होने वाले रेफ्रिजरेंट की जांच भी एक अहम पड़ाव होगी. ऐसे में पर्यावरण के लिहाज से भी सवाल उठता है, क्या हमने जहाज पर आग लगने के जोखिम को बढ़ाया है?

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NBCD की तैयारी और दुर्घटना का इतिहास

नौसेना बनाम पुराने औजारों और युद्धपोतों परिचालन चक्र में आग और बाढ़ की दुर्घटनाओं को लेकर पब्लिक डोमेन में बहुत कम डेटा उपलब्ध है. हालांकि, मेरा खुद का तजुर्बा बताता है कि भारतीय नौसेना ने जहाजों के बड़े बेड़े, उनकी उत्पत्ति (पश्चिमी/पूर्वी), रखरखाव की चुनौतियों और हमारे वैश्विक पदचिह्न के मद्देनजर समुद्र में बिताए बढ़ते दिनों को देखते हुए, इन खतरों को कड़े नियंत्रण में रखने में कामयाबी हासिल की है.

परमाणु, जैविक और रसायनिक रक्षा, जिसमें अग्निशमन (NBCD) का भी पहलु शामिल है, में बीते तीन दशकों में मानव और संसाधनों की तत्परता में बेहिसाब बदलाव आया है.

NBCD स्कूल, लोनावाला में अत्याधुनिक संसाधन, फ्लैग ऑफिसर सी ट्रेनिंग (FOST), भारतीय नौसेना सुरक्षा दल (INST), कोच्चि के कार्यालय की स्थापना, शिपराइट स्कूल में पनडुब्बी में आग और बाढ़ सिम्युलेटर, और हल इंस्पेक्शन एंड टेस्टिंग यूनिट (HITU), विशाखापट्टनम, जैसे अन्य, इस सफर में सभी मील के पत्थर हैं.

फिर भी, आग और बाढ़ जैसे जोखिम को केवल कम या मैनेज किया जा सकता है, रोका नहीं जा सकता. अंडमान का डूबना (1990) और विंध्यगिरि (आग, फिर अत्यधिक पानी दिए जाने के कारण बाढ़, 2011), पानी के भीतर हुए विस्फोट (2004) के कारण अग्रे का टूटना, प्रहार (2006) की टक्कर और फिर डूब जाना, 2013 में पनडुब्बी सिंधुरक्षक में धमाके के बाद उसका डूबना, टॉरपीडो रिकवरी वेसल ए -72 (2014) का डूबना, इन सबके बीच, हमें बताता है कि हमें "ऑल इज वेल" कहने से पहले मीलों चलना है. यहां सुरक्षा की कीमत शाश्वत सतर्कता है.

मशीनों के पीछे पुरुष और महिलाएं

किसी भी दुर्घटना का मानवीय पहलू, सेवा में परंपरागत रूप से मिलनेवाली चीजों से परे ज्यादा गहरी जांच की जरूरत को महसूस करता है.

आयातित और ध्यान खींचने के लिए संघर्ष करनेवाले देशी जहाजों के मिश्रण के साथ नौसेना, तेजी के साथ मॉर्डन हो रही है. किसी और नौसेना को इस तरह के मिक्स प्लेटफॉर्म के रखरखाव और संचालन जैसी चुनौतियों का सामना नहीं करना पड़ता है.

जब एक दस्ता समुद्र में उतरता है तो ये मिक्स प्लेटफॉर्म मौसम की मार उसी तरह झेलता है जैसे किसी को सजा के तौर पर कोई अभियान दिया जाता है. हालांकि, इसमें भार मुश्किल से ही होता है, मान लीजिए, Kora क्लास का 100 का बेड़ा और तीन गुना बड़ा शिवालिक वर्ग का बेड़ा. यहां थकान के प्रबंधन की प्रणाली या तो होती ही नहीं है या सिर्फ कागजों तक सीमित है.

मानव संसाधन विभाग के पास इन सभी में उत्साह बनाए रखनी का कठिन जिम्मा है.

जब मैं एक युवा मातहत हुआ करता था, तब SNF किसी बैंड मास्टर की तरह था, जो सबका ध्यान अपनी ओर खींचता था. इसके विशेषज्ञों को काफी गहराई में जाकर चुना जाता था, यहां तक की वे अपने कोर्स के टॉपर हुआ करते थे. लेकिन इन शूरवीर योद्धाओं के लिए समय बदल गया है. जरूरी नहीं कि इन सबसे पुराने जहाजों में सबसे अच्छे लोग ही हों.

कार्मिक शाखा का एक पुराना लबादा "प्रतिभा का समान वितरण" तेजी से अलग हो सकता है. जबकि नौसेना के सबसे बेहतर और नवीनतम जहाजों को, मझौले और रात के पहरेदारों जो संदिग्ध वॉटर और गैसटाइट वाले पुराने जहाजों को एक साथ पकड़े हुए है, पर नहीं छोड़ा जाना चाहिए.

INS रणवीर तीन महीने की क्रॉस-कोस्ट तैनाती पर था. इस तरह की तैनाती अक्सर जहाज और उसके चालक दल के बर्दाश्त की हदों का इम्तिहान लेती है. अब, वे अपने तीन साथियों के बिना ही घर लौटेंगे. ऐसी किसी भी दुर्घटना का असर जहाज के मनोबल पर लंबे समय तक रहता है. 36 वर्षीय D54 का दल, हमारे सबसे बड़े सम्मान के पात्र हैं. पीड़ित और उनके परिवार जवाब के पात्र हैं: क्या उनके परिजन बेवजह मारे गए? क्या यह एक रोकी जा सकने लायक दुर्घटना थी? क्या बूढ़े जहाजों को समुद्र में धकेलना त्रासदी को बढ़ावा देना है? सुधार की दिशा में कदम सुनिश्चित और तेजी से से बढ़ाए जाने चाहिए.

मैं पीड़ित परिवारों के लिए दुखों से जल्द उबरने की प्रार्थना करता हूं, साथ ही घायलों के जल्द स्वस्थ होने और "वीर वीर रणवीर" के लिए 'समुद्र और कार्रवाई' में जल्द वापसी की प्रार्थना करता हूं. शं नो वरुण, समारे विजयी.

(जबकि "वीर वीर रणवीर" D54 का जयघोष है, "समारे विजयी" उनका सिद्धांत है.)

(लेखक एक पूर्व-नौसेना प्रायोगिक परीक्षण पायलट हैं. वे Bell 412 और AW139 हेलीकॉप्टरों पर दोहरी ATP-रेटेड हैं और ALH ध्रुव पर एक सिंथेटिक उड़ान प्रशिक्षक हैं. उनका ट्विटर हैंडल @realkaypius है. यह एक ओपिनियन पीस है. ऊपर व्यक्त विचार लेखक के अपने हैं. क्विंट का इनसे सहमत होना आवश्यक नहीं.)

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Published: 21 Jan 2022,10:59 PM IST

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