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Indian Navy को मिला नया निशान,लेकिन जरूरी हैं कुछ और एयरक्राफ्ट कैरियर

INS Vikrant के बाद एक और स्वदेशी एयरक्रॉफ्ट कैरियर की भारत को बेहद जरूरत है

केपी संजीव कुमार
नजरिया
Published:
<div class="paragraphs"><p>(फोटो: ट्विटर)</p></div>
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(फोटो: ट्विटर)

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INS विक्रांत (INS Vikrant) भारत का पहला स्वदेशी विमान वाहक (IAC-1) पोत या एयरक्रॉफ्ट कैरियर है. शुक्रवार, 2 सितंबर 2022 को यह सेवा में शामिल हो गया, अब भारत उन देशों में शामिल हो गया है, जो अपने लिए कैरियर खुद बनाते और संचालित करते हैं.

"आजादी के अमृत महोत्सव या स्वतंत्रता के 75 साल पूरे होने" के कुछ हफ्ते बाद और भारतीय नौसेना के स्वतंत्रता के बाद "एक नई युग की शुरुआत" वाले पल के साथ प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू द्वारा आजादी के बाद दिए गए ऐतिहासिक "ट्रिस्ट विद डेस्टिनी" भाषण में समानता को नजरंदाज नहीं किया जा सकता.

अब 75 साल आगे चलें. भारत के सबसे तेज-तर्रार और निर्णायक नेताओं में से एक प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी तब इतिहास रच रहे थे, जब वे इस शुक्रवार को कोच्चि में आईएनएस विक्रांत को कमीशन किए जाने के कार्यक्रम की अध्यक्षता कर रहे थे. वे एक प्रखर वक्ता हैं, जो देश और विदेश में रहने वाले भारतीयों के दिलों और दिमाग को ज्वलंत बना सकते हैं. इस कार्यक्रम में प्रधानमंत्री मोदी ने नौसेना के लिए एक "निशान" का उद्घाटन भी किया. आधिकारिक रिलीज के मुताबिक इसके जरिए प्रधानमंत्री मोदी औपनिवेशिक दौर की छांव को दूर करेंगे और उन्नत भारतीय समुद्री विरासत को फिर से वांछित स्थान देंगे.

75 साल बाद आजाद भारत के सबसे डायनेमिक नेताओं में से एक प्रधानमंत्री मोदी ने INS विक्रांत को शुक्रवार को सेवा में लाकर नया इतिहास रचा है. इस हाई प्रोफाइल इंवेट में नेवी को अपना नया निशान मिल गया है जो कि औपनिवेशिक पहचान से आजादी दिलाती है.

हम दूसरे स्वदेशी एयरक्राफ्ट कैरियर के निर्माण की जरूरत को याद रखें

एक पूर्व नौसेना एविएटर और रक्षा मामलों में दिलचस्पी रखने वाले पर्यवेक्षक के तौर पर मेरा मानना है कि ‘निशान’ में बदलाव एक ऐसी चीज है जिसकी घोषणा नौसेना प्रमुख, या रक्षा सचिव करते हैं. प्रधानमंत्री से हम ज्यादा बड़ी चीजों की उम्मीदें रखते हैं. निसंदेह कई रीति-रस्में और परंपराएं हैं जिनमें समीक्षा और सुधार की आवश्यकता है, लेकिन इतिहास के इस महत्वपूर्ण मोड़ पर पीएम के दिमाग में जो मुद्दा हावी होना चाहिए था, वो है भारत में ही निर्मित दूसरे एयरक्राफ्ट कैरियर का.. जिसका वजन कम से कम 60-80000 टन हो.

यह एक ऐसा सवाल है जहां भारतीय नौसेना के प्रबुद्ध अधिकारी भी, नौसेना के बाहरी और भीतरी स्तर पर निहित स्वार्थी तत्वों की वजह से अब तक सफल नहीं हो पाए हैं. तीसरे विमान वाहक के लिए नौसेना की योजनाओं को बार-बार आलोचना और तिरस्कार का सामना करना पड़ा है. बदकिस्मती से हमारे अपने भी इसमें लगे हैं.

तीसरा कैरियर हमेशा से भारतीय नौसेना की दीर्घकालिक योजना का हिस्सा रहा है. ये प्लान किसी हिमालय में नहीं बने, बल्कि यह रक्षा मंत्रालय और सत्ता के गलियारे में तैयार हुए हैं. भारत के पहले चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ स्वर्गीय जनरल बिपिन रावत ने जब तक इसे सार्वजनिक कर कूढ़े में नहीं बदल दिया, तब तक उससे पहले के सभी रक्षा मंत्रियों ने इसकी मंजूरी दी. आज ऐसे लोग ज्यादा हैं जो IAC-2 की योजना की खामियों को दूर करने के बजाए, उसके विघटन की कोशिशों में लगे हुए हैं.

क्या प्रधानमंत्री मोदी यथास्थिति को बदल सकते हैं ?

केवल पीएम मोदी ही मौजूदा हालात में बदलाव ला सकते हैं. लेकिन इसके लिए नौसेना प्रमुख को पीएम के साथ निजी तौर पर बातचीत करनी चाहिए. यदि ऐसा नहीं होता है, तो भारत एक 'सिंगल ऑपरेशनल कैरियर' नेवी बना रहेगा. आज एडमिरल हरि कुमार के पास पीएम मोदी के साथ वैसा ही कुछ करने का मौका है जैसा कभी जनरल सैम मानेकशॉ के लिए इंदिरा गांधी के साथ वाला क्षण था. अगर कुछ ऐसा हो पाता है तो भारत के पास भी भी दो कैरियर तैनात करने का मौका बनेगा.

नरेंद्र मोदी को बड़ी अंतर्दृष्टि और व्यावसायिक कौशल वाले व्यक्ति के रूप में जाना जाता है, जो फटाफट मजबूत फैसले करते हैं जबकि दूसरे लोग इधर उधर देखते रहते हैं और फैसले लेने में हिचकिचाते हैं. वो बहुत अच्छी तरह से जानते हैं कि उनकी कही गई बातों का असर और पहुंच कितनी ज्यादा होती है. अगर वो चाहें और ऐसी कोई घोषणा कर दें तो फिर वो तुरंत हो जाता है. आज जो पूरी मशीनरी IAC-2 के खिलाफ काम कर रही है, एक झटके में ही लाइन पर आ जाएगी और IAC-2 के पक्ष में काम करने लगेगी. कभी-कभी कड़क आदेश ज्यादा असर दिखाता है. जबकि सलाह से काम करने वाले खुद को ज्यादा काम करता दिखाते हैं, लेकिन नतीजा कुछ होता नहीं है.

क्यों भारत को और स्वदेशी एयरक्राफ्ट की जरूरत है?

सुरक्षा संरचनाओं को एक राष्ट्रीय नीति या वृहद नीति के तहत गठित किया जाता है. भारतीय सुरक्षा के लिए जरूरी योजना का स्पष्ट जिक्र करने वाली राष्ट्रीय सुरक्षा डॉक्ट्रीन पर आज श्वेत पत्र की जरूरत है. हमने 75 साल बिना ऐसे किसी श्वेत पत्र के बिता दिए. चूंकि सर्विसेज को उनके हाल पर छोड़ दिया गया, तो वे अपने हिसाब से ही ब्लूप्रिंट तैयार कर काम करती रहीं, जिनमें राजनीतिक नेतृत्व की तरफ से हल्के-फुल्के दिशा-निर्देश ही दिए जाते थे.

रक्षा के लिए होने वाले अधिग्रहण में पूंजीगत आंकड़ों को निकालने के लिए कई चीजों को ध्यान में रखना पड़ता है, जिसमें फ्रंटलाइन पर जरूरी यूनिट्स और उनके रखरखाव (MR) का आरक्षित खर्च भी शामिल है. फिर शांतिकाल में नफा-नुकसान जैसे फैक्टर्स को भी जोड़ा जाना चाहिए. युद्ध के साथ कई चीजें पहले से मालूम नहीं होती हैं. यदि आपको युद्ध लड़ने या शांति बनाए रखने के लिए दो एयरक्राफ्ट कैरियर की आवश्यकता है, तो कम से कम एक कैरियर रिजर्व में होना जरूरी है.

एयरक्राफ्ट कैरियर के प्रबंध के लिए जरूरी खर्च, अधिग्रहण संबंधी फैसले लेने में निर्देशित करने वाला होता है. जबकि इसकी अहमियत को कम करके आंका जाता रहा है और इसकी चर्चा भी कम होती रही है. भारत जैसा देश, जो पूरी तरह से रक्षा आयातों पर निर्भर है, उसके लिए यह रकम कुल लागत की 15-20 फीसदी और कुछ विशेष मामलों में 100 फीसदी तक भी हो सकती है. दरअसल इस आंकड़े का निश्चित आंकलन लगाने से कोई भी अधिकारी बचना चाहेगा, लेकिन यह सस्ते लगने वाले अधिग्रहण दरअसल भारतीय नौसेना के लिए अभिशाप हैं.
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एक एयरक्राफ्ट कैरियर एक माइक्रो सिटी जैसा है जहां हजारों लोग एक साथ होते हैं. इन सभी का एक ही उद्देश्य होता है जरूरी उड़ानों की संख्या को बरकरार रखा जा सके. यदि हम पहले और मौजूदा एयर ग्रुप मेंटनेंस रिजर्व को देखें, तो हमें एक उड़ान को चलाए रखने के लिए दो एयरक्राफ्ट की जरूरत महसूस होनी चाहिए. होस्ट शिप का बेशक अपना एक मेंटनेंस डिमांड होगा लेकिन यह इंडिविजुअल एयर ग्रुप रिजर्व से कम होगा. लेकिन जब बात प्राइम एसेट यानि एयरक्राफ्ट कैरियर की होगी तो इसे पूरा ही रखना होगा, क्योंकि हाफ कैरियर यानि आधा विमान वाहक जैसी कोई चीज होती नहीं है .

भारत सिर्फ दो IACs के साथ काम नहीं चला सकता

एयर ग्रुप का अपना एयर कैलेंडर है और मेंटनेंस शेड्यूल के साथ फ्लाइंग के घंटे फिक्स हैं. एयरक्राफ्ट की बेहतर कंडीशन को बनाए रखने के लिए इसे रीफिट करने की प्रक्रिया से गुजरना पड़ता है. यह प्रक्रिया कई बार कुछ महीनों से आगे बढ़ते-बढ़ते कुछ साल तक चली जाती है. इसमें पूरा जहाज भी बिजी हो जाती है. इंजन, पेंटिंग, वीपन सिस्टम को ठीक करना- ये सब बहुत लंबी प्रक्रिया होती है जिसमें काफी टाइम लग जाता है.

ऐसे में तेजतर्रार विरोधी आसानी से जहाज की गैरमौजूदगी का फायदा उठा सकता है. तीसरा कैरियर रखना कोई लग्जरी नहीं, बल्कि समय की जरूरत है. सिर्फ दो रखने पर यह होगा कि लड़ाई के समय हमारे पास सिर्फ एक ही उपलब्ध होगा. अगर हमें यह मंजूर है तो हम सिर्फ 'निशान' बदलकर उसका जश्न मना सकते हैं और विक्रांत को सेवा में लाकर घर खुशी-खुशी जा सकते हैं.

जब ब्लू प्रिंट खुद कहता है कि हमें हमेशा दो ऑपरेशन कैरियर की हमें जरूरत होगी, तब सिर्फ कुलजमा दो कैरियर की उपलब्धता होने से हम वापस उसी दौर में पहुंच रहे हैं, जहां यह वीवीआईपी की आवभगत करते थे या राजनीतिक चालबाजी का अड्डा बनकर रह जाते थे, जहां कभी कभार फ्लाइट लॉन्च का कार्यक्रम आयोजित कर दिया जाता था..

डिफेंस में आत्मनिर्भरता किसी भी कीमत पर जरूरी

चलिए हम इस बहस में नहीं पड़ते कि IAC-1 के लिए जो इंफ्रा, निवेश और दूसरी जरूरी सुविधाएं बनाई गई उनका अब आगे या किसी बड़े प्रोजेक्ट जैसे IAC-2 के लिए हम कैसे इस्तेमाल करते हैं. लेकिन यह तय है कि आगे कोई बड़ा IAC-2 जैसा प्रोजेक्ट नहीं आता है तो पूरा इकोसिस्टम, टैलेंटेड इंजीनियर, मैन्युफैक्चरिंग, 500 + कंपनियां, MSME और लॉजिस्टिक चेन और विश्वस्तरीय वॉरशिप डिजाइन धीरे-धीरे अपनी मौत खुद मर जाएंगे.

कोचीन शिपयार्ड लिमिटेड के सीएमडी मधु नायर को जल्द ही शेयरधारकों को यह बताना होगा कि वह एक बड़े वाहक के लिए बनाए गए नए 1800 करोड़ रुपये के डॉक का उपयोग किस तरह करने जा रहे है. वह एक बड़े व्यापारी जहाज के लिए एक या दो कॉन्ट्रैक्ट हासिल करके इससे छुटकारा तो पा लेंगे लेकिन नेवी और भारत उन सभी मौकों को खो देगा, जिन्होंने स्वदेशी विमान वाहक के डिजाइन और निर्माण में अपने कौशल का इस्तेमाल किया. भविष्य में फिर हम रूसियों या अमेरिकियों की तरफ टुकटुकी लगाकर देखने के लिए मजबूर रहेंगे. तब शायद ही किसी को किसी नए निशान की याद आए.

योजनाओं को विरोधी स्वरों के अभियान से नहीं रोका जाना चाहिए

एडमिरल गोर्शकोव जिसे साल 1996 में सेवा से हटाया गया और इसका नया अवतार INS विक्रमादित्य (VKD, 2013), भी अब लगभग एक दशक पुराना हो गया है. यूक्रेन के साथ रूस के सुस्त युद्ध का वीकेडी या उसके एयर ग्रुप पर असर जरूर पड़ेगा स्वदेशी ट्विन-इंजन डेक-आधारित फाइटर (TEDBF) अभी भी कागजों पर ही है, जबकि जब भी आईएनएस विक्रमादित्य सुधार के लिए जाता है, तब मिग-29K आईएनएस हंसा पर ईंधन जला रहे होते हैं.

इंडियन नेवी को लंबे समय अपना काम करने के लिए सिंगल ऑपरेशनल कैरियर से काम चलाना पड़ा है. यदि हम IAC-2 को जल्दी ग्रीन सिग्नल नहीं देते हैं तो हम जल्द ही एक बड़े समुद्री लड़ाकू समूह को कारवार या विजाग के बीच पर धूप सेंकते हुए भी देख सकेंगे.

देखें कि कैसे भारतीय प्रायद्वीप और हमारे द्वीप ग्लोबल ट्रेड की महत्वपूर्ण धमनियों में फैले हुए हैं. विक्रांत की कमीशनिंग में उन्नत पनडुब्बियां भी मेहमान के तौर पर शामिल होंगी. कुछ रक्षा सिद्धांतकार फिर से पनडुब्बी बनाम् कैरियर और "स्टेंड ऑफ स्ट्राइक ट्रोप्स" की गैरजरूरी चर्चा छेड़ेंगे.

अब इस तरह की गपशप वाली चर्चाएं नीति निर्माण करने लगी हैं. अगर उनकी बातें सही हैं, तो क्यों भारत अगले कैरियर के लिए आगे बढ़ेगा?

दो कैरियर को चालू रखने की भारत की वास्तविक आवश्यकता पर जोर देने की तुलना में जो लोग हाइपरसोनिक कैरियर-किलर मिसाइलों की बात करते हैं, उन्हें पहले अपनी मिसाइलों को मिसफायर से बचाना चाहिए, जहाजों को समुद्र में डूबने, पनडुब्बियों को तटों पर आग में जलकर राख बनने की घटनाओं को रोकना चाहिए. उन्हें हेलिकॉप्टर दुर्घटनाओं को रोकने और पुराने विमानों द्वारा युवा जिंदगियों को छीने जाने से रोकने की कोशिश करनी होगी.

क्या यह PM का 8 AM का मोमेंट हो सकता है

डियर प्रधानमंत्री मोदी जी अगर स्वदेशी जहाज निर्माण को सिर्फ साउथ ब्लॉक या नॉर्थ ब्लॉक के भरोसे छोड़ दिया जाता तो आज ये जहां पहुंचा है वहां कभी नहीं पहुंचता.

सिर्फ निशान बदलने से काम पूरा नहीं होगा. कुछ हटकर कहना चाहिए. IAC-2 का ऐलान करना चाहिए. इसके बिना भारत एक विमान वाहक पोत वाली नौसेना ही रहेगी. निश्चित तौर पर इस स्थिति को "ड्रैगन", जिसका नाम नहीं लिया जा सकता, वह पसंद करेगा.

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