advertisement
पश्चिम एशिया उत्तरी अफ्रीका (WANA) इलाके में इस साल 3 जनवरी को धमाका हुआ. यह घटना उस वक्त हुई, जब ईरान (Iran) के बड़े मरहूम सैन्य नेता जनरल कासिम सुलेमानी के मौत की सालगिरह के मौके पर करमान प्रांत में समारोह आयोजित किया जा रहा था. चार साल पहले अमेरिका के द्वारा कासिम सुलेमानी की हत्या कर दी गई थी. मौत की सालगिरह के समारोह को निशाना बनाकर दो विस्फोट किए गए.
यह धमाका उस हमले की याद दिलाता है, जिसे 1979 की क्रांति के बाद से ईरानी इलाके पर सबसे घातक माना जाता है, जिसमें 103 लोग मारे गए और 141 घायल हुए थे.
ईरान अपनी जमीन पर आतंकी हमलों के लिए कोई अजनबी नहीं है, लेकिन ये आम तौर पर ऐसी सामूहिक हत्याओं के बजाय टार्गेट की गई हत्याएं होती हैं. जैसे कि 2020 में परमाणु वैज्ञानिक मोहसिन फखरीजादेह की कात्या. ईरान ने आमतौर पर इनका दोष इजरायल पर मढ़ा है.
दिलचस्प बात यह है कि इस बार विस्फोट इजरायल और ईरान समर्थित लड़ाकू ग्रुप- हमास के बीच गाजा युद्ध छिड़ने के बाद हुआ है. लेकिन ईरान ने विस्फोटों के बाद किसी को दोषी ठहराने में जल्दबाजी नहीं की. इसके अलावा, करमान में यह विस्फोट इजरायल द्वारा लेबनान में हमास नेता सालेह अल अरौरी की हत्या के एक दिन बाद हुए.
इसलिए, उसके लिए यह कुछ हद तक राहत की बात रही होगी कि इस्लामिक स्टेट ऑफ इराक एंड सीरिया (ISIS) ने करमान के धमाकों की जिम्मेदारी ली है और इसके पीछे इजरायल का हाथ नहीं है. हालांकि ईरानी नेताओं ने हमलों का बदला लेने की कसम खाई है और यहां तक ऐलान किया कि ISIS को इजरायल और अमेरिका ने बनाया है.
आखिरकार, हमास के हमले के बाद गाजा में इजरायली सैन्य अभियानों की शुरुआत के बाद से तेल अवीव के खिलाफ तेहरान की ओर से कठोर बयानबाजी, फिलिस्तीनियों के लिए किसी भी सीधी कार्रवाई में तब्दील नहीं हुई है. गाजा पट्टी में अनुमानित 22 हजार फिलिस्तीनियों के मारे जाने के साथ लड़ाई जारी है, जिनमें से कम से कम एक तिहाई महिलाएं और बच्चे हैं.
अल अरौरी की हत्या के बाद मिस्र ने पहले ही इजरायल और हमास के बीच होने वाली वार्ता रोक दी है. अमेरिकी विदेश मंत्री एंटनी ब्लिंकन इस इलाके के एक और दौरे पर निकल पड़े हैं, जहां अक्टूबर 2023 से उनकी शटल कूटनीति अभी तक युद्धविराम नहीं करा पाई है या इजरायल को गाजा पर अपने हमले कम करने के लिए राजी नहीं कर पाई है, या हमास से सभी इजरायली बंधकों की वापसी नहीं हो पाई है.
फिर भी, अगर बीते दिनों से कोई संकेत मिलता है तो यह मिलता है कि ईरान शायद ही कोई सीधी जवाबी कार्रवाई करेगा.
न तो अमेरिका द्वारा सुलेमानी की हत्या और न ही ईरान के अंदर फखरीजादेह की हत्या (ईरानियों द्वारा इसे मोसाद ऑपरेशन बताया गया) पर ईरान की ओर से कोई सीधी कार्रवाई हुई. 1980 के दशक का ईरान-इराक युद्ध आखिरी उदाहरण है, जहां ईरान ने सक्रिय रूप से संघर्ष में भाग लिया था. तब से, इसने राजनीतिक रूप से अपने प्रभाव को बढ़ाने और अपने विरोधियों के साथ सीधे संघर्ष में शामिल हुए बिना अपने युद्धों को आउटसोर्स करने के लिए पूरे इलाके में अपने शिया प्रॉक्सी मिलिशिया को विकसित करने की पॉलिसी शुरू की है.
गाजा युद्ध शुरू होने के बाद से हाउती लड़ाके अब लाल सागर में इजरायल जाने वाले जहाजों को निशाना बना रहे हैं. ईराक में, इसने ISIS और अमेरिकी सेना से लड़ने के लिए हशद अल-शाबी मिलिशिया का इस्तेमाल किया, साथ ही घरेलू इराकी राजनीति में अपना प्रभाव दिखाया. जब सीरिया में गृह युद्ध छिड़ गया, तो हिजबुल्लाह और सीमित ईरानी सैन्य समर्थन भी राष्ट्रपति बशर अल असद के ईरान समर्थित शासन की सहायता के लिए आए.
ईरान के विदेश मंत्री होसैन अमीर-अब्दुल्लाहियन ने युद्ध के शुरुआती दिनों में चेतावनी दी थी कि अगर इजरायल ने गाजा पट्टी पर अपने हमले बंद नहीं किए, तो "नए मोर्चे खोले जाएंगे." इसके बाद, लेबनान के हिजबुल्लाह ने IDF से जवाबी कार्रवाई को आमंत्रित करते हुए इजरायल की उत्तरी सीमा पर रॉकेट लॉन्च किए. अब, अल अरौरी की हत्या के बाद, हिजबुल्लाह प्रमुख हसन नसरल्लाह ने बदला लेने की कसम खाई है. बयानबाजी के अलावा, लेबनान, कम से कम आर्थिक रूप से एक और युद्ध के लिए तैयार नहीं है.
चूंकि ईरान अभी भी पश्चिमी प्रतिबंधों के अधीन है और अपने सिमित संसाधनों को देखते हुए, हिजबुल्लाह संघर्ष को नहीं बढ़ा सकता है. चीन, लाल सागर में हमलों को रोकने का आह्वान कर रहा है क्योंकि इसकी आपूर्ति श्रृंखला प्रभावित हो रही है और वह इसे वहां पश्चिमी देशों के नौसैनिक उपस्थिति के एक और बहाने के रूप में देखता है. ईरान के प्रमुख सहयोगी और ईरानी कच्चे तेल के सबसे बड़े खरीदार के रूप में, चीन हाउती विद्रोहियों पर लगाम लगाने के लिए उस पर हावी हो सकता है. ईराक और उत्तरी सीरिया में ईरान समर्थित आतंकवादी समूहों द्वारा अमेरिकी सेना पर अधिक तेज हमले तेहरान के लिए एक वैकल्पिक विकल्प हो सकते हैं.
दूसरी तरफ, अरब राज्यों ने संघर्ष को खत्म करने के लिए कोई अहम संकल्प नहीं दिखाया है. सच है, उन्होंने कुछ कूटनीतिक कदम उठाए हैं.
उदाहरण के लिए, सऊदी अरब ने अरब और मुस्लिम देशों का एक शिखर सम्मेलन बुलाया, संयुक्त अरब अमीरात ने संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद द्वारा गाजा को मानवीय सहायता के लिए एक प्रस्ताव का समर्थन करवाया, कतर ने हमास से कई इजरायली बंधकों और इजरायली हिरासत से फिलिस्तीनी कैदियों की रिहाई में मदद की, मिस्र और जॉर्डन ने राजनयिक शिखर सम्मेलन की सुविधा प्रदान की है. मिस्र ने गाजा में मानवीय सहायता के ट्रांसफर और वहां से मरीजों और घायलों को अरब दुनिया के अस्पतालों में ट्रांसफर करने की भी सुविधा प्रदान की है.
इस संबंध में, यह बेहतर हो सकता था कि अल अरौरी की हत्या के मद्देनजर मिस्र को इजरायल-हमास बैठक को आगे बढ़ाना चाहिए था न कि उसे रद्द करना चाहिए था. ब्लिंकन की यात्रा इस बात को फिर से उजागर कर सकती है कि अमेरिकी प्रशासन चुनावी दौर में प्रवेश कर रहा है, इसलिए संघर्ष के और बढ़ने की कोई संभावना नहीं है.
इस सब में जो तय है, वह है वहां अमेरिकी प्रभाव कम होना, क्योंकि अरब देश घबराहट के साथ ईरानी प्रभाव के नए सिरे से बढ़ने की आशंका को देख रहे हैं. भले ही अरब देश हमास जैसे लड़ाकू समूहों के प्रति कोई सहिष्णुता नहीं रखते हैं, लेकिन हजारों मृत फिलिस्तीनी नागरिकों की तस्वीर भी समाने है. तीन महीने तक युद्धविराम करने में असमर्थता उनकी अपनी शक्ति की कमी को दर्शाती है. यह, बदले में रूस और चीन के साथ अरब दुनिया के घनिष्ठ सहयोग का रास्ता बना रहा है- इसका उदहारण सऊदी अरब और संयुक्त अरब अमीरात जैसे देशों का ब्रिक्स में शामिल होना है.
आखिरी में, करमान हमला भारत के लिए एक चेतावनी होने चाहिए, क्योंकि पड़ोस में एक पुनर्जीवित ISIS न केवल ईरान में बल्कि हाल ही में पाकिस्तान में भी एक्टिव है.
(अदिति भादुड़ी एक पत्रकार और राजनीतिक विश्लेषक हैं. उनका ट्विटर हैंडल @aditijan है. यह एक ओपिनियन पीस है, ऊपर व्यक्त विचार लेखक के अपने हैं. द क्विंट न तो उनका समर्थन करता है और न ही उनके लिए जिम्मेदार है.)
(क्विंट हिन्दी, हर मुद्दे पर बनता आपकी आवाज, करता है सवाल. आज ही मेंबर बनें और हमारी पत्रकारिता को आकार देने में सक्रिय भूमिका निभाएं.)
Published: undefined