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कासिम सुलेमानी को उनके गृह नगर केरमन में सुपुर्द-ए-खाक करने के कुछेक घंटे के भीतर ईरान ने ईराक के आईन अल असद और इरबिल मिलिट्री बेस पर 8 जनवरी के तड़के बैलेस्टिक मिसाइलों से हमला किया. दोनों जगहों पर चूकि अमेरिकी सैनिक तैनात हैं, इसलिए ईरान की कार्रवाई स्पष्ट रूप से राष्ट्रपति ट्रंप के उस आदेश की प्रतिक्रिया है, जिसमें उन्होंने बगदाद एयरपोर्ट परिसर में सुलेमान को ड्रोन हमले में 3 जनवरी को मार गिराने का आदेश दिया था.
हमले के बाद ट्रंप ने ट्वीट किया कि ‘सबकुछ ठीक है’. यह ईरान के सरकारी टेलीविजन के दावों से बिल्कुल अलग है, जिसमें कहा गया है कि हमले में 80 अमेरिकी सैनिक या जिसे ईरान अब ‘आतंकवादी’ बता रहा है, मारे गये हैं. ट्रंप ने मीडिया को संबोधित करते हुए कहा कि ईरान के हमले में कोई इराकी या अमेरिकी हताहत नहीं हुआ.
इससे आगे बुधवार 8 जनवरी को ईरान की राजधानी तेहरान में हवाई अड्डे के पास यूक्रेन के यात्री विमान के क्रैश होने के कुछ घंटे बाद तेहरान के नागरिक उड्डयन संस्था ने आधिकारिक रूप से कहा है कि वह विमान का ब्लैक बॉक्स वापस नहीं करेगा. इस दुर्घटना को लेकर भी अटकलें लगाई जा रही हैं.
ईरान में अमेरिका के खिलाफ गुस्सा स्पष्ट है और यह चौंकाने वाली बात नहीं है. सुलेमानी को इतना सम्मान इसलिए मिला है, क्योंकि विगत दो दशकों में उन्होंने एक ऐसे देश में सुरक्षा का एहसास जगाया जो कमजोर था और अपनी ही दुनिया में मशगूल था. इस तरह दुख की उमड़ती भावनाओं के बीच बदला लेने की भी मांग.
इस तरह उन्हें ऐसी कार्रवाई तय करनी है, जिसे ईरान का सुरक्षा बल सीधे तौर पर अंजाम तो दे, मगर जिससे ट्रंप को युद्ध से बचने का अवसर भी मिले, जिनकी पहली प्राथमिकता दोबारा चुनाव जीतना है.
अमेरिकी टेलीविजन चैनलों पर ऐसी खबरें हैं कि ईरानी मिसाइलों ने उन स्थानों पर हमला नहीं किया, जहां अमेरिकी सैन्य दस्ते मौजूद थे. चूकि ईरान ने इराक की व्यवस्था को अंदर तक भेद दिया है इसलिए ऐसा लगता है कि उसे बेस के बारे में विस्तृत खुफिया जानकारी जरूर रही होगी. इस तरह यह उनकी सोची समझी कोशिश रही कि अमेरिकी सैनिकों को नुकसान नहीं पहुंचाया जाए. इससे ईरान की क्षमता के बारे में स्पष्ट संकेत भी जाता है, देश के लोगों की भावनाएं भी संतुष्ट होती हैं और ईरान के सरकारी टेलीविजन को पर्याप्त सामग्री भी पहुंचाती है कि ‘बड़े शैतान’ को ‘नुकसान’ पहुंचाया गया. और, इस तरह अमेरिका को जवाब देने के लिए यह उकसाता भी नहीं है जिसका नतीजा निश्चित युद्ध होता.
यह बात महत्वपूर्ण है कि रिवोल्यूशनरी गार्ड ने अमेरिकी की मुख्य भूमि पर कार्रवाई की धमकी दी है. इसने चेताया है कि अगर अमेरिका ने ईरान पर हमला किया तो वह दुबई और इजराइल के हाइफा को भी निशाना बनाएगा. और, रिवॉल्यूशनरी गार्ड की धमकी को कभी भी नजरअंदाज नहीं किया जा सकता.
इसमें संदेह नहीं कि ईरान की कार्रवाई मान लें कि दुबई में, सीधे तौर पर अमेरिका को चोट पहुंचाएगी, मगर अस्थायी तौर पर इसका सबसे ज्यादा असर उन पर होगा, जो वहां रहते और काम करते हैं. अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी इसका पीड़ादायक असर पड़ेगा.
ईरान की विनम्रता का दूसरा पहलू है कि रिवोल्यूशनरी गार्ड की धमकी को कभी भी नजरअंदाज नहीं किया जा सकता. लेकिन, ईरान के अनुभवी विदेश मंत्री जावेद जाफरी के नपे तुले ट्वीट पर अधिक भरोसा करना होगा, जिन्होंने मिसाइल हमले के बाद जोर देकर कहा है कि यह आत्मरक्षा के अधिकार के तहत ‘समानुपातिक’ प्रतिक्रिया थी. और उन बेस पर निशाने साधे गये जहां से ‘हमारे नागरिकों और वरिष्ठ अधिकारियों पर हमले किए गये’. जरीफ ने जोर देकर कहा कि ‘बात बढ़ाना या युद्ध नहीं चाहता’. स्पष्ट है कि ईरान संकेत दे रहा है कि वर्तमान में सुलेमानी की मौत का अध्याय बंद किया जा सकता है.
गेंद अब ट्रंप के पाले में है. किसी अमेरिकी की मौत न हुई हो तो अमेरिका के पास अवसर है कि वह अपनी ‘जीत’ की घोषणा करे. सुलेमानी की मौत के जवाब में ईरान के प्रभावशाली जवाब की असफलता की ओर वह ध्यान दिला सकते हैं और बता सकते हैं कि ईरान को महसूस हो गया है कि उसका मुकाबला मजबूत अमेरिकी राष्ट्रपति से है न कि उनके पूर्ववर्ती कमजोर डेमोक्रैट पार्टी से. भविष्य में ईरान के साथ और कठोर अमेरिकी कार्रवाई का अधिकार भी वे अपने पास रख सकते हैं. ट्रम्प को इसी तरीके से काम करना चाहिए जिससे तत्काल आया संकट गुजर जाए.
ट्रंप ने ईरान को प्रतिशोध की अपनी सामान्य भाषा में चेतावनी दी थी कि अगर उसने सुलेमानी की मौत का जवाब दिया तो महाविध्वसात्मक जवाब दिया जाएगा.
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उन्होंने कई देशों को धमकाया है, लेकिन फिर अपनी धमकियां वापस ले ली. पाकिस्तान और उत्तर कोरिया दोनों देशों के साथ संबंधों में ऐसा देखा गया है. इसलिए अगर वे मामले को शांत करना चाहते हैं तो ईरान को दी गयी चेतावनी और धमकी से बंधे रहना ट्रंप के लिए जरूरी नहीं होगा.
अंतरराष्ट्रीय समुदाय संकट को फैलने से रोकना चाहता है. हालांकि सभी देश सावधानी बरत रहे हैं. जैसे वे अपने देशों के नागरिकों को इराक की यात्रा से बचने को कह रहे हैं और अपने एयरलाइन को उस क्षेत्र से गुजरने से भी रोक रहे हैं. ट्रंप ने शायद ही कभी अंतरराष्ट्रीय राय पर ध्यान दिया है लेकिन इस मामले में वे ऐसा कर सकते हैं. अगर पश्चिम एशिया पूरी तरह से अस्थिर होता है, तो इसका असर अमेरिका पर भी पड़ेगा. इससे चुनाव वर्ष में उन्हें नुकसान हो सकता है. वर्तमान में मिसाइल हमले के बावजूद वे इस प्रकरण में आगे हैं. बेशक उन्हें कुछ हासिल हुआ है.
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(लेखक विदेश मंत्रालय के पूर्व सचिव [पश्चिम] सचिव हैं. @VivekKatju से संपर्क किया जा सकता है. ऊपर लिखे विचार लेखक के अपने हैं. क्विंट न उनका समर्थन करता है और न ही उनके लिए जिम्मेदार है)
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