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हमास (Hamas) नियंत्रित गाजा (Gaza) से 7 अक्टूबर को इजरायल (Israel) पर बड़े पैमाने पर रॉकेट दागे गए. इस दौरान हजार से ज्यादा हमास लड़ाकों की एक साथ घुसपैठ और नागरिकों पर आतंकवादी हमले ने इजरायल और दुनिया को आश्चर्य में डाल दिया. गाजा सीमा से सटे इजरायली शहरों और बस्तियों पर 5000 से ज्यादा रॉकेट दागे गए और जमीनी हमले किए गए, जिससे दुश्मनी का एक नया दौर शुरू हो गया और पश्चिम एशियाई इलाके में नाजुक शांति खतरे में पड़ गई है.
किसी भी बाहरी दखलअंदाजी को रोकने के लिए पूर्वी भूमध्य सागर में दो विमानवाहक युद्धपोतों की तैनाती के साथ ही अमेरिका द्वारा शटल डिप्लोमेसी (Shuttle Diplomacy: दोनों पक्षों के बीच संतुलन कायम रखते हुए विवाद सुलझाने की कोशिश) के बीच संघर्ष 14वें दिन में दाखिल हो चुका है.
हमास लड़ाकों ने गाजा बॉर्डर के पास शहरों और बस्तियों में आम नागरिकों की हत्या की और 200 से ज्यादा आम नागरिक और सुरक्षा अधिकारियों को बंधक बना लिया और उन्हें गाजा ले गए. शनिवार को साप्ताहिक शब्बाथ (Shabbath) होने के साथ ही धार्मिक आयोजन सिमचट तोराह (Simchat Torah) की छुट्टी भी थी.
50 साल पहले 6 अक्टूबर को मिस्र, जॉर्डन और सीरिया की सेनाओं ने यहूदी धर्म के सबसे पवित्र दिनों में से एक– योम किप्पुर (Yom Kippur) के दिन हमला कर इजरायल को झटका दिया था. इजरायल ने गाजा में हमास के ठिकानों पर जबरदस्त हवाई बमबारी और मिसाइल हमलों से जवाब दिया और फौरन अपने 3.5 लाख रिजर्व सैनिकों (reservists) को ड्यूटी पर बुलाते हुए इजरायल डिफेंस फोर्सेज (IDF) को मैदान में उतार दिया है.
नेतन्याहू कैबिनेट ने आधिकारिक रूप से युद्ध की घोषणा की और दो बड़े विपक्षी नेता (जो IDF के चीफ रह चुके हैं) नेशनल यूनिटी गवर्नमेंट में शामिल हो गए हैं. IDF को गाजा सीमा पर पूरी ताकत के साथ तैनात कर दिया गया है, जो युद्ध के अगले दौर के लिए तैयार हैं.
इजरायली स्पेशल फोर्सेज ने गाजा में हमले शुरू कर दिए हैं और कुछ बंधकों को छुड़ा लिया गया है.
इजरायल की जवाबी सैन्य कार्रवाई में 3,700 से ज्यादा फिलिस्तीनी मारे गए और 12,000 से ज्यादा फिलिस्तीनी जख्मी हुए हैं. इजरायल ने बिजली, भोजन और एनर्जी की आपूर्ति काट दी है. फिलिस्तीनी नागरिक सबसे ज्यादा प्रभावित हैं. अस्पताल मरीजों से पटे हैं और मेडिकल सप्लाई खत्म हो रही है. एक मानवीय त्रासदी खड़ी हो गई है.
इस बीच, हिजबुल्लाह (Hezbollah) ने भी दक्षिणी लेबनान से उत्तरी इजरायल में छिटपुट रॉकेट छोड़े हैं. इजरायल ने लेबनान से लगती अपनी सीमा के पास के शहरों को खाली कर दिया है. हमास ने दावा किया है कि 22 बंधकों की मौत हो गई है. इजरायल ने उत्तरी गाजा से फिलिस्तीनियों को दक्षिण की ओर जाने के लिए कहा है.
इससे करीब 10 लाख नागरिक प्रभावित हुए हैं. मृतकों और घायलों की गिनती अभी भी बढ़ रही है. इजरायल में अब तक 1,400 से ज्यादा मृत (जिसमें 300 से ज्यादा IDF जवान और विदेशी शामिल हैं) और 4,600 से ज्यादा घायलों की गिनती 1973 के युद्ध के बाद से सबसे बड़ी है.
नेतन्याहू की न्यायिक सुधारों पर विभाजनकारी नीतियों ने इजरायल के नागरिकों को इस कदर तक बांट दिया है कि रिजर्व सैन्य बल ने किसी भी राष्ट्रीय आपातकाल का जवाब नहीं देने की धमकी दी थी. इस धारणा ने जोर पकड़ा कि इजरायल बंटा और कमजोर दिख रहा है, और इजरायल के दुश्मनों ने इस विभाजन का फायदा उठाया होगा.
नेतन्याहू की मौजूदा सरकार को इजरायल के इतिहास में सबसे कट्टर दक्षिणपंथी सरकार के रूप में देखा जाता है. ऐसे भी मंत्री हैं, जो पूरे वेस्ट बैंक पर कब्जा करना चाहते हैं और सभी फिलिस्तीनियों को दूसरे अरब देशों में भगा देना चाहते हैं. वे दो-देश समाधान को हमेशा के लिए खत्म कर देना चाहते हैं. वेस्ट बैंक में बसने वाले यहूदी और फिलिस्तीनियों के बीच जमीन पर कब्जा करने को लेकर अक्सर झड़पें होती रहती हैं और 2023 में सबसे ज्यादा मौतें हुई हैं.
साफ है कि हमास ने करीब 2 सालों तक इस हमले की सावधानीपूर्वक योजना बनाई थी. मीडिया में लीक हुई जानकारियों से पता चला है कि मिस्र ने इजरायल को थोड़ी जानकारी दी थी कि हमास कुछ कार्रवाई की तैयारी कर रहा है लेकिन इजरायल ने या तो इसे नजरअंदाज कर दिया या वक्त रहते इस पर कोई कार्रवाई नहीं की.
इजरायल की आत्ममुग्धता और अहंकार ने इस धारणा को जन्म दिया होगा कि हमास इजरायल से राजस्व में मिल रहे अपने हिस्से, इजरायल में काम कर रहे 20 हजार गाजा के नागरिकों और कतर जैसे कई देशों व अंतरराष्ट्रीय एजेंसियों से आ रहा बाहरी धन पाकर यथास्थिति से संतुष्ट है. हमास के नेता और उसके सदस्य अपने फायदे के लिए इन फंड्स का बड़ा हिस्सा अपने पास रख रहे थे.
हमास ने बाद में जुलाई 2009 में अपने मकसद को नरम कर दिया, जब उसके राजनीतिक ब्यूरो प्रमुख खालिद मशाल ने ऐलान किया कि वह इस शर्त पर कि 1967 के युद्ध से पहले की सीमाओं में एक आजाद फिलिस्तीनी देश की स्थापना की जाती है, निर्वासित फिलिस्तीनी शरणार्थियों को वापसी का निर्बाध अधिकार दिया जाता है और पूर्वी यरुशलम को राजधानी के रूप में मान्यता दी जाती है तो वह अरब-इजरायल संघर्ष के हल के लिए सहयोग करने और काम करने को तैयार होगा.
इजरायल को नक्शे से मिटा देने का हमास का बुनियादी मकसद शिया-बहुल ईरान से मेल खाता है, जो सुन्नी हमास की स्थापना के बाद से उसकी गतिविधियों का सबसे बड़ा लाभार्थी रहा है.
ओस्लो समझौते के बाद PLO के उत्तराधिकारी और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर फिलिस्तीनी लोगों के कानूनी प्रतिनिधि के रूप में मान्यता प्राप्त फिलिस्तीनी प्राधिकरण (PA) को गाजा सौंपने के बाद इजरायल द्वारा 2005 में अपना कब्जा हटाने के बाद 2006 के चुनाव में हमास ने गाजा पर नियंत्रण हासिल कर लिया.
PA, इजरायल के साथ सुलह का हिमायती है, जिससे आगे चलकर एक व्यापक शांति समझौता किया जा सके. PA और हमास के बीच सुलह की सभी कोशिशें नाकाम रही हैं. इजरायल, फिलिस्तीनी आंदोलन के किसी भी एकीकरण को रोकना और हमास व PA के बीच दुश्मनी को बनाए रखना चाहता था, उसने यह पक्का करते हुए कि आजाद फिलिस्तीन देश कभी भी हकीकत न बन सके, मतभेद को बनाए रखने के लिए कतर के जरिए हस्तांतरित फंड से हमास की मदद की. हमास आस्तीन का सांप साबित हुआ और इसने इजरायल को डसने की ताकत जुटा ली है.
अमेरिका यह सुनिश्चित करना चाहता है कि संघर्ष स्थानीय दायरे में बना रहे और बाहरी ताकतों की किसी भी दखलअंदाजी को रोका जाए. अमेरिका के विदेश मंत्री एंटनी ब्लिंकन ने समर्थन जताने के लिए इजरायल का दौरा किया है और मध्यस्थता के लिए मौका तलाशने के लिए जॉर्डन और कतर का भी दौरा किया है.
कतर, हमास और इस्लामिक ब्रदरहुड को फंडिंग करता है. उसने बंधकों की रिहाई में मध्यस्थता की पेशकश की है. हमास के चीफ इस्माइल हानियेह (Ismail Haniyeh) और पूर्व प्रमुख खालिद मशाल (Khaled Mashal) कतर से ऑपरेट करते हैं. कट्टरवादी इस्लामी संगठन के साथ दोहा के करीबी रिश्ते जगजाहिर हैं, लेकिन इन संगठनों पर नजर रखने और बातचीत के लिए एक जरिया बनाए रखने को इसकी कार्रवाइयों में अमेरिका और इजरायल के साथ तालमेल रखा जाता है.
कतर अमेरिका-तालिबान वार्ता में भी तालिबान का मेजबान था, जिसके चलते अफगानिस्तान से अमेरिकी सेना की वापसी हुई. कतर में अमेरिका का अल-ओदैद एयर बेस है और इसे अमेरिकी संरक्षण हासिल है.
संयुक्त अरब अमीरात के अलावा बाकी मुस्लिम देश हमास की निंदा किए बिना फिलिस्तीन के समर्थन में सामने आए हैं. चीन और रूस ने भी हमास की निंदा किए बिना युद्ध विराम और समझौता वार्ता की मांग की है. लंबे समय से हमास के एक और समर्थक, तुर्किए ने भी मध्यस्थता की पेशकश की है.
कई देशों में फिलिस्तीन और हमास के समर्थन में प्रदर्शन जारी हैं. भारत की पहली प्रतिक्रिया इजरायल के लिए पूर्ण समर्थन वाली थी और बाद के बयान में निर्धारित सीमाओं के भीतर अंतरराष्ट्रीय स्तर पर स्वीकृत दो-राष्ट्र समाधान के लिए भारत के समर्थन को दोहराया गया.
क्या हमास ने अपना हमला “अब्राहम समझौते” (Abraham Accords) को नाकाम बनाने के लिए किया था? इस समझौते पर सितंबर 2020 में दस्तखत किए गए थे और इससे इजरायल, संयुक्त अरब अमीरात और बहरीन के बीच राजनयिक संबंध बने. बाद में सूडान और मोरक्को ने भी दस्तखत किए.
ईरान की तरफ से अब्राहम समझौते को लेकर कड़ा विरोध जताया गया है और सभी मुस्लिम देशों से इजरायल के साथ किसी भी तरह के संबंध से बचने का आह्वान दोहराया गया है. ईरान ने हमास और हिजबुल्लाह- दोनों को फंड, हथियार और प्रशिक्षण से साथ दिया है.
ईरान ने इजरायल-सऊदी संबंधों के सामान्य होने के खिलाफ चेतावनी दी है. दूसरी तरफ ईरान के परमाणु कार्यक्रम से खाड़ी अरब देशों में असुरक्षा पैदा हो गई है. आजाद फिलिस्तीन के लिए कोई भी संकेत दिए बिना इजरायल और सऊदी अरब के बीच राजनयिक संबंधों को इजरायल की जीत के रूप में देखा गया.
भू-राजनीतिक रुझान, वेस्ट बैंक में झड़पें, इजरायल का लगातार जमीन हड़पते जाना, अल अक्सा की घटनाओं पर धार्मिक उबाल और ईरान का बढ़ावा हमास को इजरायल पर हमला करने के लिए मजबूर करने की वजह हो सकता है. यह फैसला लेने में इजरायल की कठोर प्रतिक्रिया के बारे में भी निश्चित रूप से सोचा गया होगा.
कड़वाहट, नफरत, हताशा और फिलिस्तीन देश पाने की उम्मीद धीरे-धीरे खत्म होती जा रही है, ये सभी वजहें हमास के करो या मरो का कदम उठाने में शामिल होंगी, जिसके तेल की कीमत बढ़ने जैसे नतीजे सामने आएंगे, जो कोविड महामारी और यूक्रेन युद्ध से बड़ी मुश्किल से उबर रही वैश्विक अर्थव्यवस्था को फिर से कमजोर कर देगा.
इजरायल की अर्थव्यवस्था को भी तेज झटका लगेगा क्योंकि उसके कामगारों को उद्योग और हाई-टेक सेक्टर का काम छोड़कर सेना की ड्यूटी के लिए बुलाया गया है. यह लड़ाई भी खत्म हो जाएगी लेकिन अगर दो-राष्ट्र पर आधारित कोई स्थायी समाधान नहीं निकाला गया तो यह फिर उभर आएगी.
(लेखक पूर्व राजदूत और विदेश मंत्रालय के पूर्व सचिव हैं. इन्होंने इजरायल में भारतीय दूतावास में मिशन के उप प्रमुख के तौर पर काम किया है. वह दिल्ली के थिंक टैंक DeepStrat के संस्थापक निदेशक हैं. यह लेखक के निजी विचार हैं. द क्विंट न तो इसका समर्थन करता है न ही इसके लिए जिम्मेदार है.)
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