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पिछले साल जब रूस के आक्रमण से यूक्रेन (Ukraine Russia War) जूझ रहा था और इसकी पूर्वी और दक्षिणी सीमाओं पर युद्ध की स्थिति पैदा हो गई, तब भी संयुक्त राज्य अमेरिका (US) ने चुप्पी साधे रखा. इसका प्रमुख प्रतिद्वंद्वी, रूस एक ऐसे दुस्साहस में फंस गया है, जो इसकी आर्थिक और सैन्य शक्ति दोनों खत्म कर देगा.
इधर, चीन ने मॉस्को से नजदीकियां बढ़ा ली और गलत समय पर साझेदारी कर ली. इसी बीच, यूरोप और नाटो जिनका ट्रंप के कार्यकाल के दौरान यूएस की लीडरशीप से मोहभंग हो गया था, एक बार फिर उन्होंने यूक्रेन को पूर्ण समर्थन देने की पेशकश की.
वैसे भी, यूक्रेन में हमले की निंदा करने, लेकिन गाजा में हमले का समर्थन करने की अमेरिका की इस स्टैंड ने पहले ही अरब देशों के लोगों को नाराज कर दिया है.
इजरायल से लौटने के बाद 19 अक्टूबर को अमेरिकी लोगों से बात करते हुए, राष्ट्रपति बाइडेन ने सीधे तौर पर दोनों युद्धों को एक साथ जोड़ा और कांग्रेस से दोनों खतरों को हराने में मदद करने का आह्वान किया.
उन्होंने 106 अरब डॉलर की आपातकालीन फंडिंग की भी बात कही, जिसमें से 61 अरब डॉलर यूक्रेन के लिए, 14.3 अरब डॉलर इजराइल के लिए और 14 अरब डॉलर अमेरिका-मैक्सिकन सीमा से निपटने के लिए होंगे. बाकी राशियां दूसरे कामों के लिए खर्च की जाएंगी.
अमेरिकी हलकों, विशेषकर रिपब्लिकन पार्टी में उठ रहे संदेह को देखते हुए, बाइडेन ने कहा...
बाइडेन को उम्मीद है कि इन अलग-अलग मुद्दों को जोड़कर वह यूक्रेन को सहायता देने के लगातार रिपब्लिकन के विरोध पर काबू पाने में सफल होंगे.
दोनों संघर्षों में अमेरिका के उद्देश्य अलग-अलग हैं.
यूक्रेन के मामले में, वह चाहेगा कि कीव रूस के कब्जे वाले क्षेत्रों को मुक्त कराने में सफल हो. गाजा में, यह स्पष्ट नहीं है कि वह क्या चाहता है और इसके अलावा कि वो हमास को खत्म करना चाहते हैं, इजरायलियों के साथ उसके खड़े होने के प्लान को लेकर और कुछ भी स्पष्ट नहीं है.
दरअसल, इस चल रहे युद्ध में सिर्फ संकट ही छाया हुआ है. हमास के भयानक आतंकवादी हमले के बाद, इजरायल ने गाजा में पानी, बिजली और खाद्य आपूर्ति बंद कर दी है और वहां पर चौबीसों घंटे बमबारी कर रहा है. इसने अपनी सेना जुटा ली है और जमीनी हमले के लिए तैयार है, शुरुआत में ये उत्तरी गाजा पर अटैक कर रहा है.
हमास को नष्ट करने के लिए इजरायल का जमीनी आक्रमण वास्तव में गाजा को नष्ट कर सकता है और जबकि यह इजरायल को सुरक्षित कर सकता है. वहीं, इससे एक बार फिर फिलिस्तीन के समर्थन में अरब देशों के साथ आने की संभावना बढ़ जाएगी. इससे भी बुरी बात यह है कि हिजबुल्लाह युद्ध में उतर सकते हैं और वे अपने क्षेत्रीय दायरे का विस्तार कर सकते हैं.
यह मध्य पूर्व को स्थिर करने के अमेरिकी प्रयासों को खत्म नहीं तो बाधित कर सकता है. अमेरिका ने सऊदी अरब, बहरीन और संयुक्त अरब अमीरात के साथ अपने संबंधों को खराब करते हुए उसने इजरायल का समर्थन किया है.
इस बीच, जैसा कि अक्सर युद्ध में होता है, एक घटना के बाद दूसरी घटनाओं की लड़ी लग जाती है और इसपर किसी का नियंत्रण नहीं होता है. जैसा कि अल अहली अस्पताल पर बमबारी मामले में हुआ, जिसमें कई लोगों की जान चली गई. इस घटना से इजरायल को कंट्रोल और डायरेक्ट करने के अमेरिका के प्रयासों को झटका लगा है.
लेकिन, उन्होंने एक बार फिर, गाजा में फिलिस्तीनियों के खिलाफ कार्रवाई करने के इजरायल का समर्थन किया और इसे उसका अधिकार बताया. अमेरिका ने संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के उस प्रस्ताव पर असहमति जता दी, जिसमें गाजा पट्टी के लोगों तक सहायता पहुंचाने के लिए संघर्ष में रोक लगाने की मांग की थी.
इसके बाद अब गाजा में इजरायली कुछ भी करें और बाइडेन इसको मानने के लिए बंधे हैं और आगे क्या चाहते हैं, ये भी स्पष्ट नहीं है.
जहां तक यूक्रेन में युद्ध का सवाल है, यह जारी है.
पूर्व में यूक्रेनी आक्रमण उतना आगे नहीं बढ़ पाया है, जितनी कीव को उम्मीद थी. दूसरी ओर, ऐसा लगता है कि रूस ने अपनी युद्धकालीन अर्थव्यवस्था को दुरुस्त कर लिया है और अपनी आपूर्ति फिर से बढ़ा दी है. रूस ने अपना सबक अच्छी तरह से सीख लिया है और उनकी सुरक्षा की तैयारी और बदली हुई रणनीति ने यूक्रेन की गति को लगभग धीमा कर दिया है.
इस बीच, रूस ने पूर्वी यूक्रेन में अपना जवाबी हमला शुरू कर दिया है, लेकिन उसकी वहां अच्छी स्थिति नहीं है. वहां उसका आगे बढ़ना आसान नहीं है.
वैसे भी, अमेरिकी प्रतिनिधि सभा के पास बाइडेन के अनुरोध पर कार्यवाही करने के लिए कोई अध्यक्ष नहीं है. इसके अलावा, ऐसे कई रिपब्लिकन हैं, जो यूक्रेन को और अधिक सहायता भेजने से अलर्ट हो गए हैं. उनका तर्क है कि अमेरिका को अब अपने स्वयं के भंडार को फिर से भरने की जरूरत है. यूक्रेन को सहायता को लेकर रिपब्लिकन बंट गए हैं, लेकिन फिर भी, अमेरिका ने अब तक कीव को 75 अरब डॉलर की सैन्य, मानवीय और वित्तीय सहायता प्रदान की है.
कोई माने या नहीं माने, एक ही समय में दो युद्धों का समर्थन करना आसान नहीं होगा, यहां तक कि अमेरिकियों के लिए भी.
इस महीने की शुरुआत में, नाटो की सैन्य समिति के अध्यक्ष एडमिरल रॉब बाउर ने वारसॉ सुरक्षा फोरम को बताया कि पश्चिमी शक्तियों के पास यूक्रेन को देने के लिए गोला-बारूद खत्म हो रहा है. उनके शब्दों को ब्रिटेन के रक्षा मंत्री जेम्स हेप्पी ने दोहराया, जिन्होंने कहा कि गठबंधन सामूहिक रूप से पर्याप्त काम नहीं कर रहा है.
यूक्रेन को यूरोप और अमेरिका से पर्याप्त सहायता मिली है, लेकिन यह गुणवत्ता और मात्रा में काफी नहीं है, जो उसके युद्ध को अंजाम तक पहुंचाने के लिए काफी हो. वहीं, ऐसे कई व्यावहारिक मुद्दे भी हैं, जो लॉजिस्टिक प्रयास को चुनौती देंगे.
अमेरिकी रक्षा सचिव लॉयड ऑस्टिन ने पिछले हफ्ते ब्रुसेल्स में संवाददाताओं से कहा था कि अमेरिका इजरायल और यूक्रेन दोनों का एक साथ समर्थन कर सकता है लेकिन वास्तविकता यह है कि मध्य पूर्व की स्थिति, जो अभी पीक पर है, पश्चिमी देशों का ध्यान भटका सकती है और इसके साथ ही रूस से लड़ने के लिए आवश्यक सैन्य और आर्थिक सहायता की जरुरत पड़ सकती है.
यूक्रेन के लिए पश्चिमी समर्थन मजबूत रहा है लेकिन अब दरारें दिखाई देने लगी हैं, अल्पकालिक अमेरिकी बजट समझौते से यूक्रेन को दी जाने वाली 6 अरब डॉलर की सहायता में कटौती कर दी गई है. इस बीच, स्लोवाकिया में हुए चुनावों में मास्को समर्थक रॉबर्ट फिको की स्मर पार्टी ने अधिकांश सीटें जीतीं. पड़ोसी देश पोलैंड में भी यूक्रेन को फंडिंग को लेकर संदेह सामने आया है.
अब, यूक्रेन को डोनाल्ड ट्रम्प के राष्ट्रपति के रूप में लौटने और अमेरिकी समर्थन पर अंकुश लगाने की संभावना से जूझने का अनुमान होगा. चुनावों में ट्रंप के प्रदर्शन को देखते हुए, यह उतनी दूर की संभावना नहीं है, जितना लोग मानते हैं. अराजकता पैदा करने की अपनी प्रवृत्ति के कारण चाहे यूक्रेन में हो या मध्य पूर्व में, ट्रंप सभी गणनाओं को बिगाड़ सकते हैं.
(लेखक ऑब्जर्वर रिसर्च फाउंडेशन, नई दिल्ली के प्रतिष्ठित फेलो हैं. यह एक राय है और ऊपर व्यक्त विचार लेखक के अपने हैं. क्विंट न तो इसका समर्थन करता है और न ही इसके लिए जिम्मेदार है.)
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