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इजराइल (Israel) की राजनीति में एक बार फिर से हो रही उथल पुथल ने निकट भविष्य में देश में एक और चुनाव की संभावनाओं को व्यापक रूप से बढ़ा दिया है. 14 जून 2021 को एक ऐतिहासिक संसदीय वोटिंग के द्वारा अस्तित्व में आयी वैचारिक रूप से एकदम अलग आठ दलों की कमजोर मिली-जुली सरकार दस महीने में ही एक कठिन दौर से गुजर रही है.
इस राजनीतिक उठा-पटक की पठकथा लिखने का श्रेय सांसद इडिट सिलमन को जाता है जिन्होंने 5 अप्रैल 2022 को प्रधानमंत्री नेफ्ताली बेनेट की अध्यक्षता वाली सरकार से इस्तीफा देकर देश को फिर से राजनीतिक अनिश्चितता के एक नए दौर में झोक दिया.
यह राजनीतिक संकट, संसद सदस्य मीर ओर्बाख की मांगों को न मानने पर सरकार छोड़ने की धमकी के बाद और गरमा गया था. मीर ओर्बाख ने सरकार के सामने तीन मांगों को रखा था जिसमें पहली थी सरकार के द्वारा येशिवा (Yeshiva) छात्रों को डे-केयर सब्सिडी को फिर से स्थापित करना जिसे सरकार हटाना चाहती है.
दूसरा योजना आयोग के द्वारा वेस्ट बैंक में 4000 नए घरों के निर्माण की अनुमति तथा अवैध बस्तियों को इलेक्ट्रिक ग्रिड से जोड़ना. ओर्बाख की पहली दो मांगों ने घटक दलों में विवाद को जन्म दिया था. हालांकि अविगड़ोर लिबरमैन येशिवा डे-केयर सब्सिडी के मुद्दे पर थोड़े नरम जरूर पड़े और इसे 2024 तक के लिए स्थगित कर दिया.
बाद में राम पार्टी प्रमुख मंसूर अब्बास ने 17 अप्रैल को गठबंधन से अपना समर्थन अस्थायी रूप से वापस ले लिया था. एक ऐसे समय में जब संसद अवकाश पर है और इस कदम को अल-अक्सा मजिस्द में रमजान के महीने में हो रही हिंसा के कारण बढ़ रहे राजनीतिक दबाव से प्रेरित देखा गया.
राम पार्टी के समर्थन के बदले गठबंधन सरकार गैरकानूनी बेडोइन गांवों को मान्यता देगी. साथ ही सरकार बजट में अरब कम्युनिटी के लिए आधारभूत संरचना के विकास के लिए खास ध्यान देगी.
अभी की राजनीतिक स्थिति देख कर कहा जा सकता है कि इजराइल की गठबंधन सरकार के सामने सरकार को बचा पाना किसी चुनौती से कम नहीं होगा, यदि एक और सांसद गठबंधन छोड़ा तो सरकार का गिरना लगभग तय है.
एक छोटा सा मुद्दा भी घटक दलों को सरकार छोड़ने पर मजबूर कर सकता है. अभी की स्थिति से यह तो साफ है कि वर्तमान सरकार के लिए, जोकि संसद में बहुमत में भी नहीं है, अब आगे का सफर थोड़ा और मुश्किलों भरा हो गया है.
सिलमन का बेनेट की सरकार से समर्थन वापस लेना इस बात का सीधा संकेत है कि गठबंधन सरकार में आंतरिक मनमुटाव है. इस मनमुटाव की व्यापकता का अनुमान इस बात से लगाया जा सकता है कि गठबंधन सरकार के गठन से लेकर अब तक दो सांसद, अमाई चिक्ली तथा इडिट सिलमन, यामिना पार्टी को छोड़ कर जा चुके है.
इस आंतरिक प्रतिरोध को ध्यान में रखकर, ये साफ दिखता है कि बेनेट सरकार लम्बे समय तक दक्षिणपंथी सांसदों की मांगो को अनदेखा नहीं कर सकती. साथ ही वो उदारवादी तथा वामपंथी दलों को भी नाराज नहीं कर सकती. संसद में बहुमत खोने के बाद सरकार का एक छोटा सा कदम भी गठबंधन के टूटने का कारण बन सकता है.
इस समय सबकी नजर 9 मई पर है, जब इजराइल की संसद अवकाश के बाद अपने कामकाज को पुनः आरंभ करेगी. यह अनुमान लगाया जा रहा है कि उस दिन संसद में विरोधी दल अविश्वास प्रस्ताव भी ला सकते है. यदि 9 मई को कोई और सदस्य गठबंधन को छोड़ देता है तो सरकार का गिरना लगभग तय है.
दूसरी तरफ कुछ राजनीतिक विचारकों का यह भी मानना है कि बेनेट सरकार के बाकी घटक दल यह कोशिश करेंगे कि किसी भी तरह सरकार को गिरने से बचाया जाये, क्योंकि यदि सरकार गिर जाती है और दुबारा चुनाव होते हैं तो उनके वापस सत्ता में आने की गुंजाईश भी काफी कम है.
ज्वाइंट लिस्ट एकमात्र ऐसी संभावित पार्टी है जिससे सरकार समर्थन की उम्मीद रख सकती है. लेकिन सिलमन के जाने के बाद, ज्वाइंट लिस्ट के लीडर अयमान ओदे ने ये साफ कर दिया था कि उनकी पार्टी बेनेट की सरकार के लिए “लाइफ लाइन” नहीं होगी.
ऐसी स्थिति में बेनेट के लिए ज्वाइंट लिस्ट से सहयोग की उम्मीद रखना बेमानी ही होगी, बावजूद इसके यह भी एक तथ्य है कि इजराइल की राजनीति अपने त्वरित बदलावों के लिए जानी जाती है. इसलिए कब कहां क्या बदल जाये यह कह पाना थोड़ा सा मुश्किल है.
अगर बेनेट सरकार बहुमत वापस हासिल करने में असफल होती है तो फिर इजराइल में दो परिदृश्य हो सकते है -पहला चुनाव तथा दूसरा वर्तमान संसद ही एक नई सरकार का गठन करे.
इस समय नेतन्याहू की लिकुड पार्टी के पास संसद में 54 कनेसेट (संसद) सदस्यों का समर्थन है. भ्रष्टाचार के आरोपों का सामना कर रहे नेतन्याहू को सांसदों का एक बड़ा समूह देश के प्रधानमंत्री के रूप में नहीं देखना चाहता, इसी वजह से पिछले चुनावो में लिकुड को सरकार बनाने में खास समस्या का सामना करना पड़ा था.
यदि पोल्स की माने तो यदि चुनाव होते भी हैं तो लिकुड पार्टी के लिए बहुमत हासिल करना बहुत मुश्किल होगा. पोल्स के अनुसार चुनाव होने की सूरत में इजराइल एक बार फिर राजनीतिक गतिरोध के दौर में वापस जा सकता है जहां एक बार फिर से नई सरकार बनाना बहुत मुश्किल होगा.
कुल मिलाकर यह कहा जा सकता है कि इजराइल की राजनीति इस समय एक ऐसे अनिश्चितता के दौर में वापस चली गयी है, जिसने देश में जल्द ही एक और चुनाव होने की संभावनाओं को बहुत बढ़ा दिया है.
(लेखक डॉ. जतिन कुमार मनोहर पर्रिकर रक्षा अध्ययन और विश्लेषण संस्थान में डिफेंस एनालिस्ट हैं. लेखक मिडिल ईस्ट देशों से जुड़े राजनीतिक मुद्दों के विशेषज्ञ हैं. यह एक ओपिनियन पीस है और यहां लिखे विचार लेखक के अपने हैं ,उनके संस्थान के नहीं. क्विंट का इनसे सहमत होना आवश्यक नहीं है.)
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Published: 08 May 2022,07:35 PM IST