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‘जैसा पिता, वैसा बेटा’ में चाहे जितनी सच्चाई हो, लेकिन आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री जगन मोहन रेड्डी के मामले में यह पूरी तरह सच नहीं है.
जगनमोहन और उनके स्वर्गीय पिता वाईएसआर रेड्डी (2004-2009 के बीच मुख्यमंत्री रहे) के नेतृत्व में कई समानताएं हैं.
वास्तव में कांग्रेस पार्टी में वाईएसआर रेड्डी जैसे बहुत कम क्षेत्रीय नेता हुए हैं, जिन्होंने सभी समूहों पर नियंत्रण रखा और कांग्रेस आलाकमान के साथ सत्ता और अधिकार की स्थिति बनाए रखने के लिए मोलभाव किया. उन्होंने हर चुनौतियों का सामना सख्ती से किया और पार्टी पर मजबूत पकड़ बनाए रखा. इस तरह बाकी लोगों के मुकाबले अपने व्यक्तित्व को ऊंचाई दी. जगन ने अपने इसी गुण का उपयोग अपनी पार्टी के आधार को मजबूत करने में और कांग्रेस से अलग होने के वक्त भी किया.
मुख्यमंत्री के तौर पर जगन के ऊपर कोई आलाकमान नहीं है, जैसा कि उनके पिता के समय हुआ करता था और वे अपनी पार्टी में सर्वेसर्वा हैं. 2014 में नजदीकी हार के बावजूद उन्होंने अपनी पार्टी को एकजुट रखा और बाकी नेताओं से निर्विवाद वफादारी की मांग बनाए रखी.
किसी भी व्यक्ति आधारित क्षेत्रीय पार्टी की तरह यहां भी असंतोष के लिए बहुत जगह नहीं है और यही एक विशेषता जगन ने अपने पिता से ली है. अपने पिता की ही तरह वे भी अपने प्रतिद्वंद्वियों के साथ निर्ममता से पेश आए और यह सामंती गुण दोनों में मौजूद है.
वाईएसआर रेड्डी की तरह जगन गरीबों के हितों वाली राजनीति को गढ़ना चाहते हैं और इसी तरह जनता में हीरो जैसी छवि भी. यहां तक कि 2019 के चुनाव अभियान में ‘जगन की पदयात्रा’ भी उनके पिता की पदयात्रा से प्रेरित थी, जिसे उन्होंने 2004 में सत्ता पाने के लिए शुरू किया था.
इससे एक मुख्यमंत्री के तौर पर लोक लुभावन योजनाओं पर ध्यान केन्द्रित करने का पता चलता है और उन फैसलों का भी जिससे कल्याणकारी राज्य की छवि बने.
वाईएसआर रेड्डी के हाथों शुरू हुई योजनाओं में प्रमुख थीं ‘आरोयग्यश्री’ या स्वास्थ्य बीमा योजना. और वे हमेशा यह सुनिश्चित करना चाहते थे कि आर्थिक विकास के लिए किसी भी स्तर पर आर्थिक रूप से कमजोर तबके के हितों के साथ ‘समझौता’ न हो.
इसी तरह जगन रेड्डी की ज्यादातर घोषणाओं - शराबबंदी से लेकर ‘प्रजा दरबार’ तक- में एक जैसी रणनीति का पता चलता है.
बहरहाल जगन का व्यक्तित्व अपने पिता की तुलना में कम खुला है. लोगों के साथ जितनी आसानी से उनके पिता बात-व्यवहार करते थे. सम्भवत: उसका प्रदर्शन बेटे नहीं कर पाते. उदाहरण के लिए, जब से जगन मुख्यमंत्री बने हैं उन्होंने एक भी प्रेस कॉन्फ्रेंस नहीं किया है. और, वे अपने विश्वस्त सिपहसालारों के माध्यम से ही काम करना चाहते हैं. आरोप है कि उन्होंने अपने कई विधायकों से भी सीधे मुलाकात नहीं की है. यह संभव है क्योंकि वाईएसआर रेड्डी के समक्ष ऐसी राजनीतिक परिस्थितियों- एक राष्ट्रीय दल में क्षेत्रीय नेता के तौर पर- कीआवश्यकता थी, जिसमें वे दूसरे नेताओं के साथ व्यस्त रहने की छवि बनाएं.
दूसरा मुख्य अंतर- एक बार फिर राजनीतिक परिस्थिति के अनुरूप- कई फैसलों में बहस या सुधार में कमी नजर आता है.अपने 8 महीनों में जगन रेड्डी ने कई विस्फोटक फैसलों की घोषणा की और वास्तव मेंअपने पूर्ववर्ती की ओर से लिए गये फैसलों को पलट डाला.
उदाहरण के लिए, शराब बंदी के बारे में उनके पिता के समय से कहा जाता रहा था, लेकिन जगन को किसी विरोध का सामना नहीं करना पड़ा और वे इतने विवादास्पद मुद्देपर बहुत आसानी से आगे बढ़ गये. यह दोनों कारणों से था. एक कि पार्टी के भीतर सवाल पूछने की किसी की हिम्मत नहीं थी और दूसरा यह कि वाईएसआरसीपी के पास तकरीबन पूर्ण बहुमत था. यह सहूलियत उनके पिता के पास नहीं थी.
लेकिन इसका दूसरा पक्ष यह है कि जमीनी स्तर पर इसे लागू कैसे किया जाए, इसे लेकर हमेशा बहस रही. यह एक ऐसी पहल है, जिसमें आर्थिक रूप से गरीब तबके के लिए सामाजिक फायदा है लेकिन लागू नहीं होने की स्थिति में यह विनाशकारी भी है. और, इसे लागू करना बहुत ही मुश्किल काम है.
जगन रेड्डी के ज्यादातर फैसलों के बारे में यह संदेह रहा है कि यह लागू कैसे हो पाएगा. अमरावती को ग्रैंड कैपिटल बनाने की योजना उन्हें वापस लेनी पड़ी और वे उत्तरी तटवर्ती आंध्र में विशाखापत्तनम, रायलसीमा के करनूल और दक्षिण तटीय आन्ध्र के अमरावती के बीच संतुलन बनाने में जुटे हैं. हालांकि यह राज्य के तीन क्षेत्रों की आकांक्षाओं में संतुलन के लिए हो सकता है लेकिन यह साफ नहीं है कि यह व्यवहारिक स्तर पर संभव हो पाएगा.
पिता ने अपनी राजनीतिक परिस्थितियों से समझौता किया, जबकि बेटे ने अब तक असंतोष या संतुलन बनाने वाली विपरीत शक्तियों का फायदा नहीं देखा है और उन्हें पनपने का अवसर नहीं दिया है.
54 साल की उम्र में वाईएसआर रेड्डीअपने समय के युवा मुख्यमंत्री थे और जगन मोहन रेड्डी 47 साल की उम्र में उनसे भी छोटे हैं. वे पिता जैसे हैं, फिर भी उनसे अलग हैं. फिर भी एक दशक में ही वे अपने पिता की तरह ही ताकतवर बनकर उभरे हैं.
(लेखक स्वतंत्र पत्रकार हैं. उनका ट्विटर हैंडल है @TMVRaghav . यह लेखक के अपने विचार हैं. द क्विन्ट न तो इसका समर्थन करता है, न ही इसके लिए जिम्मेदार है.)
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