advertisement
जम्मू-कश्मीर (Jammu & Kashmir) के श्रीनगर लोकसभा सीट (Srinagar Lok Sabha Seat) पर साल 1996 के बाद इस बार सबसे ज्यादा मतदान हुआ है. कश्मीर में रिकॉर्ड मतदान से भारतीय जनता पार्टी (BJP) की चुनावी रणनीति प्रभावित हो सकती है. घाटी की सियासी जमीन बंटने और नए खिलाड़ियों (जिनमें से अधिकांश पर बीजेपी के प्रॉक्सी होने का आरोप है) के आने से बीजेपी को कम मतदान की उम्मीद थी.
यहां 38% वोटिंग (2019 में 14.43% वोट पड़े थे) बड़ी बात है, जहां मतदाताओं ने ऐतिहासिक रूप से अलगाववादियों के आह्वान पर चुनाव बहिष्कार का समर्थन किया है. ऐसे में अब संभावना है कि जिन क्षेत्रीय दलों को बीजेपी दूर रखना चाहती थी वे ही विजेता बनकर उभरेंगे.
सोमवार, 13 मई को श्रीनगर शहर पूरी तरह से सुनसान नजर आया. इक्के-दूक्के मतदाता वोटिंग सेंटर्स की ओर जाते दिखे. क्विंट ने जनता का मूड जानने के लिए श्रीनगर के अलग-अलग हिस्सों के कम से कम सात मतदान केंद्रों का दौरा किया.
श्रीनगर के प्रतिष्ठित बर्न हॉल स्कूल में कम से कम तीन मतदान केंद्र बनाए गए थे. युवा मतदाताओं ने कहा कि घाटी में स्थायी बेरोजगारी का मुद्दा उन्हें यहां लेकर आया है.
फर्स्ट टाइम वोटर उजैर अहमद ने कहा, "मैं इंजीनियरिंग ग्रेजुएट हूं और अभी भी बेरोजगार हूं क्योंकि यहां कोई नौकरी नहीं है."
पहली बार वोट देने आए उनके दोस्त तालिब शफी ने कहा कि वह चाहते हैं कि निर्वाचित उम्मीदवार अपने क्षेत्र में बुनियादी ढांचे को ठीक करें.
"पिछले महीने यहां एक नाव पलट गई थी, जिससे कई लोगों की मौत हो गई थी. हमारे पास उस क्षेत्र के लिए एक पुल भी नहीं है."
"हमारे पीछे देखिए," 50 वर्षीय मतदाता मुहम्मद रफीक ने एक पावर स्टेशन की ओर इशारा करते हुए कहा. "हमने यहां एक वरिष्ठ इंजीनियर से कई बार संपर्क किया और उनसे हमारे टैरिफ को कम करने का अनुरोध किया. बिजली महंगी होती जा रही है. यह हमारे बजट से बाहर है. लेकिन हमसे सही से बात तक नहीं की और कनेक्शन काटने की धमकी भी दी."
गोजवारा इलाके में हुर्रियत नेता मीरवाइज उमर फारूक का राजनीतिक प्रभाव है, यहां इस्लामिया हायर सेकेंडरी स्कूल में बने मतदान केंद्रों पर कम लोग पहुंचे.
जब रिपोर्टर ने इलाके की एक दुकान के सामने बैठे स्थानीय लोगों से वोटिंग नहीं करने को लेकर पूछा तो उन्हें आलोचना का सामना करना पड़ा. एक नाराज शख्स ने कहा, "यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि कुछ लोगों ने संघर्ष में मारे गए लोगों के खून का अपमान करने का फैसला किया है."
वहां मौजूद अन्य लोगों ने इसका समर्थन करते हुए कहा कि धारा 370 के निरस्त होने के बावजूद यह क्षेत्र अभी भी एक बड़े राजनीतिक समाधान का इंतजार कर रहा है. एक अन्य शख्स ने कहा, "अगर कोई इसके लिए काम करने का वादा करता है, तो हम वोट देंगे."
मतदान से एक दिन पहले बड़े पैमाने पर चुनावी तैयारियों के बीच शहर में उत्साह का माहौल था. श्रीनगर के व्यस्त इलाके की महिलाओं ने बहिष्कार की परंपरा तोड़ने की बात कही और कहा कि वे बुर्का पहनकर मतदान करने निकलेंगी.
हालांकि, असामान्य रूप से उत्साहित राजनीतिक माहौल गंभीर हो गया, जब नेशनल कॉन्फ्रेंस (NC) और पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी (PDP) जैसे प्रमुख क्षेत्रीय दलों के उम्मीदवारों ने आरोप लगाए कि उनके पोलिंग एजेंटों को पुलिस द्वारा मनमाने ढंग से हिरासत में लिया जा रहा है.
एनसी और पीडीपी दोनों ने चुनाव आयोग को पत्र लिखकर कहा कि उन्होंने जो आरोप लगाए हैं वह "चुनावों में धांधली" की कोशिश है.
राजनीतिक दलों ने मौजूदा हालात की तुलना 1987 के विधानसभा चुनावों से की है, जब कई स्वतंत्र विचारधारा वाले राजनीतिक दलों का गठबंधन मुस्लिम यूनाइटेड फ्रंट एनसी-कांग्रेस गठबंधन से हार गया था, जिस पर चुनावों में धांधली का आरोप लगा था. इन चुनावों का गुस्सा ही था जिसके कारण 1989 में जम्मू-कश्मीर में विद्रोह भड़क उठा.
दो प्रमुख घटनाक्रम जिससे कश्मीर में चुनाव परिणाम बड़े पैमाने पर प्रभावित हो सकते हैं:
पहला, नेशनल कॉन्फ्रेंस का गठबंधन के तहत नहीं, बल्कि अकेले चुनाव लड़ने का फैसला. इससे कश्मीर की राजनीतिक एकता की भावना खत्म हो गई. अगर ऐसा नहीं होता तो चुनावों को लेकर लोगों में और उत्साह देखने को मिलता और लोगों के सामने एक राजनीतिक रास्ते होता जिससे उनकी पसंद आसान और अधिक ठोस होती.
जामिया मिलिया इस्लामिया विश्वविद्यालय में कुलगाम के स्कॉलर ने द क्विंट को बताया, "अब लोग दिशाहीन हैं. एक ही तीर कई दिशाओं की ओर इशारा कर रही है."
बीजेपी द्वारा क्षेत्रीय दलों के लिए जगह छोड़ने से लोग आश्चर्यचकित हैं. बीजेपी ने कश्मीर की तीन लोकसभा सीटों में से कम से कम एक पर जीत सुनिश्चित करने की हर संभव कोशिश की थी.
बीजेपी ने अपनी जीत पक्की करने के लिए अनंतनाग सीट (जिसमें राजौरी-पुंछ के क्षेत्र जुड़े हुए हैं) के परिसीमन पर भरोसा जताया था और पहाड़ी भाषी समुदाय को अनुसूचित जनजाति (ST) सूची में शामिल किया था.
लेकिन केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने अपनी नाकामयबी को स्वीकार करते हुए कहा कि बीजेपी को अभी भी कश्मीर में लोगों का "दिल जीतना" बाकी है. उन्होंने उम्मीद जताई कि ऐसा जल्द ही होगा.
इसलिए, कश्मीर के राजनीतिक क्षितिज से दूर रहना बीजेपी की एक सोची-समझी रणनीति है. इसके साथ ही पार्टी उम्मीद कर रही है कि क्षेत्रीय गठबंधन सहयोगियों के बीच अंदरूनी कलह से व्यापक तस्वीर धुंधली हो जाएगी और मतदाता प्रभावित होंगे.
रविवार तक यह स्पष्ट नहीं था कि बीजेपी मतदाताओं को एक समान राजनीतिक विकल्प के इर्द-गिर्द एकजुट होने से रोकने में कितनी सफल रही है.
मतदान से एक दिन पहले, द क्विंट से बात करने वाले श्रीनगर के कई लोगों ने अपने मताधिकार के इस्तेमाल को बड़ी या छोटी बुराई के बीच चुनाव बताया. बिजनेस ग्रेजुएट मुहम्मद उजैर (23) ने कहा, "मेरे पिता और चाचा 1987 के बाद पहली बार मतदान करेंगे." इसके साथ ही उन्होंने कहा, "कोई आवाज न होने से बेहतर है कि कुछ आवाज हो."
हालांकि, श्रीनगर में चुनावी लड़ाई की धुंधली तस्वीर सोमवार शाम तक साफ हो गई.
हालांकि मैदान में 25 उम्मीदवार हैं, लेकिन असली राजनीतिक लड़ाई दो प्रमुख चेहरों के आसपास केंद्रित है: पीडीपी के वहीद उर रहमान पारा और एनसी के आगा सैयद रूहुल्लाह मेहदी.
कई राजनीतिक पर्यवेक्षकों ने पहले ही श्रीनगर में एनसी की जीत की भविष्यवाणी की थी, लेकिन पीडीए के वहीद उर पारा ने अपने ताबड़तोड़ चुनाव प्रचार से सियासी सरगर्मी बढ़ा दी.
एक पुलिस अधिकारी ने कहा, "वह हर जगह मौजूद हैं."
36 वर्षीय वहीद उर रहमान पारा एक प्रभावशाली युवा नेता हैं और बीजेपी-पीडीपी गठबंधन का हिस्सा रह चुके हैं. बात दें कि 2018 में धारा 370 के मुद्दे पर ये गठबंधन टूट गया था. पारा दक्षिण कश्मीर के पुलवामा जिले से आते हैं, जिसके कुछ हिस्से 2022 के परिसीमन के बाद अब श्रीनगर लोकसभा सीट के अंदर आते हैं.
उन्हें कश्मीर के ग्रामीण इलाके के युवाओं के लिए कार्यक्रम चलाने और 2016 में जब आंतकवाद चरम पर था तब युवाओं को उससे दूर रखने का श्रेय दिया जाता है.
दूसरी ओर आगा सैयद रूहुल्लाह मेंहदी हैं, जो मध्य कश्मीर के बडगाम शहर के एक शक्तिशाली शिया मुस्लिम नेता और तीन बार के विधायक हैं. बीजेपी और आरएसएस के खिलाफ उनकी रैली का 41 मिनट लंबा वीडियो मार्च 2021 में वायरल हो गया था, जिसके बाद वो सुर्खियों में आ गए थे.
मेंहदी की ही पार्टी के सहयोगी हिलाल अकबर लोन को उस साल फरवरी में उनके राजनीतिक भाषण के लिए जम्मू-कश्मीर पुलिस ने गैरकानूनी गतिविधि (रोकथाम) अधिनियम (UAPA) के तहत गिरफ्तार किया था.
हालांकि यह दावा करना गलत होगा कि जमीन पर एनसी की लहर है. वहीं पार्टी को इस बात से फायदा होगा की बीजेपी और उसके कथित प्रतिनिधियों को सत्ता में आने से रोकना है. इस हिसाब से, संगठित कैडर-आधारित पार्टी एनसी का पलड़ा भारी रहने की संभावना है.
श्रीनगर के एक राजनीतिक विश्लेषक ने कहा, ''लोकसभा चुनाव ज्यादा मायने नहीं रखता है.'' वो आगे कहते हैं, "वोटिंग पैटर्न से जो बात निकलकर आती है वो ज्यादा महत्वपूर्ण है. बीजेपी की अगली चुनावी रणनीति उसी पर आधारित होगी."
(शाकिर मीर एक स्वतंत्र पत्रकार हैं. उन्होंने द वायर, आर्टिकल 14 लाइव, कारवां मैगजीन, फर्स्टपोस्ट, द टाइम्स ऑफ इंडिया सहित कई अन्य प्लेटफॉर्म्स के लिए लिखा है. उनका X हैंडल- @shakirmir है. यह एक ओपिनियन पीस है और ऊपर व्यक्त किए गए विचार लेखक के अपने हैं. क्विंट हिंदी न तो इसका समर्थन करता है और न ही इसके लिए जिम्मेदार है.)
(क्विंट हिन्दी, हर मुद्दे पर बनता आपकी आवाज, करता है सवाल. आज ही मेंबर बनें और हमारी पत्रकारिता को आकार देने में सक्रिय भूमिका निभाएं.)
Published: undefined