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संसद का शीतकालीन सत्र (The winter session of Parliament) एक अशुभ टिप्पणी के साथ समाप्त हुआ, इसी सत्र में समाजवादी पार्टी की राज्यसभा सदस्य (Samajwadi Party’s MP) और बॉलीवुड अभिनेत्री जया बच्चन (Jaya Bachchan) ने भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) को गुस्से में भड़कते हुए श्राप देते हुए कहा कि "मैं आपको श्राप देती हूं, आपके बुरे दिन आने वाले हैं." इस दौरान बीजेपी सदस्यों और सदन के अध्यक्ष से हुई तीखी बहस के बाद जया ने उन पर सत्तारूढ़ दल के पक्ष में पक्षपात करने का आरोप लगाया.
ट्रेजरी बेंच के साथा हुई टोका-टाकी और बहस में शामिल शीर्ष व वरिष्ठ सदस्य जया बच्चन, जोकि अपनी बेबाकी से विवादों को भड़काने के लिए जानी जाती हैं, उनके लिए यह घटना निश्चित रूप से अशोभनीय थी.
जया बच्चन का गुस्सा उसी दिन फूटा जब उनकी बहू ऐश्वर्या राय से प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) एक मामले में पूछताछ कर रहा था. यह मामला कम से कम आठ साल पहले का है, लेकिन अब तक ठंडे बस्ते में पड़ा था. चूंकि अब उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव नजदीक हैं, वहीं समाजवादी पार्टी (सपा) से मिल रही कड़ी चुनौती से भाजपा घबराई हुई नजर आ रही है.
इसके साथ ही यह पूरा घटनाक्रम तब भी हुआ जब हाल ही में आयकर अधिकारियों ने सपा प्रमुख अखिलेश यादव के करीबी नेताओं के यहां पर छापा मारा, यह चुनाव से संबंधित धमकी का एक और उदाहरण है, जिसके पीछे सरकार के मजबूत हाथ होते हैं.
निस्संदेह जया बच्चन ने जिस तरह से अपने गुस्से या भड़ास को व्यक्त किया वह एक व्यक्तिगत एंगल था. लेकिन यदि वहां मौजूद नेताओं (सत्ताधारी नेताओं) ने यह सोचा कि वे उन पर हमला (छींटाकशी) करके उन्हें चुप करा सकते हैं जैसे कि फिल्मों में अक्सर होता है कि किसी पर हमला करके उसकी आवाज को कुचल दिया जाता है या दबा दिया जाता है. तो ऐसे में उन्होंने स्पष्ट रूप से इस जुझारू अभिनेत्री व सांसद को कम करके आंका.
संसद के दोनों सदनों की शोभा बढ़ाने वाले अधिकांश अभिनेताओं / अभिनेत्रियों के उलट जया बच्चन सिर्फ दिखने में ही नहीं बल्कि सुनने में भी विश्वास करती हैं.
अधिकांश बॉलीवुड हस्तियों के विपरीत जया बच्चन सेंट्रल हॉल में अपनी उपस्थिति दर्ज कराने वाली सक्रिय सदस्य हैं. संसद में वे विभिन्न दलों के सांसदों के साथ-साथ पत्रकारों के साथ स्वतंत्र रूप से घुली-मिली हुई दिखती हैं.
कुछ मायनों में देखें तो जया बच्चन को सह-कलाकार शबाना आज़मी से यह भूमिका विरासत में मिली, शबाना ने राज्यसभा में सपा सांसद के तौर पर में अपने कार्यकाल के दौरान काफी आवाजें उठाई थीं. 2003 में आज़मी का कार्यकाल समाप्त हो गया. इससे उन रूढ़िवादी तत्वों को काफी राहत मिली थी, जिन्होंने बॉलीवुड हस्तियों (जो ग्लैमर की वजह से संसद तक पहुंची थी) को संसद के पवित्र परिसर में अपना रास्ता दिखाने से मना कर दिया.
लेकिन विरोधियों के लिए यह किसी दुर्भाग्य से कम नहीं था कि जया बच्चन एक साल बाद 2004 में सपा नेता के रूप में राज्यसभा के लिए चुनी गईं और उन्होंने अपने इस दावे को खारिज करना जारी रखा कि ग्लैमर और राजनीति का मेल नहीं है. कुपोषण और ट्रांसजेंडर अधिकारों जैसे विषयों पर जोरदार भाषणों के साथ उन्होंने अपनी पहचान बनाई इसके साथ ही उन्होंने दो मौकों पर जिस तरह से बीजेपी पर निशाना साधा, उसके लिए उन्हें सबसे ज्यादा पहचान मिली.
इनमें से एक उदाहरण तब का है जब तृणमूल कांग्रेस की प्रमुख ममता बनर्जी को बीजेपी यूथ विंग के नेता योगेश वार्ष्णेय ने धमकी दी थी. इसके बाद जया बच्चन आक्रामक रूप से उनके बचाव में कूद पड़ी थीं. संसद में उन्होंने बीजेपी पर निशाना साधते हुए कहा था कि "आप सिर्फ गायों के संरक्षण में रुचि रखते हैं जबकि महिलाओं पर अत्याचार हो रहे हैं."
सबसे हालिया बहस को देखें तो उन्होंने दिवंगत अभिनेता सुशांत सिंह राजपूत की रहस्यमय मौत पर चर्चा के दौरान बॉलीवुड की 'ड्रग एडिक्शन' की समस्या के बारे में बोलने के बाद सदन में बीजेपी सांसद और अभिनेता रवि किशन की खिंचाई की थी.
इस स्पीच के दौरान भले ही ऐसा लगा कि वे रवि किशन के साथ मौखिक युद्ध कर रही हों लेकिन फिल्म इंडस्ट्री से उनको साथ देने के लिए प्रशंसा मिली. शबाना आज़मी ने भी बच्चन की स्पष्टवादिता और जोरदार पंच के लिए जया की सराहना की थी.
पुराने मामलों को देखते हुए, ऐसे समय में जब उनकी बहू को ईडी द्वारा परेशान किया जा रहा था तब उनसे चुप्पी की उम्मीद करना, किसी के भी भोलेपन को दर्शाता है. हालांकि, बीजेपी अपने ही शांत या चुप रहने वाले सांसदों की आदी हो गई है, जो मुश्किल से एक शब्द भी बोलते हैं या संसद में भी नहीं आते हैं.
1991 में जब से पार्टी ने फिल्म उद्योग को राष्ट्रीय महत्व दिया तब से धर्मेंद्र, सनी देओल, हेमा मालिनी, किरण खेर और कई अन्य लोगों ने सभी गलत कारणों से सुर्खियां बटोरीं. मसलन, धर्मेंद्र और देओल लंबे समय से बैठकों से नदारद हैं. अन्य की बात करें तो हेमा मालिनी और किरण खेर जैसे कुछ सांसद संसद में आते तो हैं, लेकिन शायद ही कभी बोलते हैं.
एक राजनेता के तौर पर जया बच्चन के कद को तब आंका गया जब उन्होंने नरेश अग्रवाल जैसे पुराने खिलाड़ी को मात दी और 2018 में सपा द्वारा राज्यसभा के लिए फिर से मनोनीत की गईं. बच्चन की तरह ही अग्रवाल का भी कार्यकाल समाप्त होने वाला था और उन्होंने सपा संरक्षक मुलायम सिंह के साथ एक और कार्यकाल के लिए कड़ी और जोरदार पैरवी की थी.
जया ने शांति से काम करते हुए यह अनुमान लगाया कि सत्ता का आधार मुलायम से उनके बेटे अखिलेश के पास जा रहा है. लोकसभा सांसद के रूप में अपने पहले कार्यकाल के दौरान अखिलेश की पत्नी डिंपल के संरक्षक के रूप में इसके बाद उन दिनों अखिलेश के मुख्य राजनीतिक सलाहकार और चाचा राम गोपाल यादव के एक वफादार समर्थक के तौर पर पार्टी के साथ जुटे रहने वाले अग्रवाल को जया ने बाहर का रास्ता दिखाकर सभी को आश्चर्यचकित कर दिया था. एक महिला वह भी फिल्म अभिनेत्री के हाथों अपनी हार से नाराज और अपमानित हुए नरेश अग्रवाल सपा छोड़कर बीजेपी में शामिल हो गए. यहां भी भाग्य उनके साथ नहीं रहा क्यों कि उनकी नई पार्टी ने उन्हें संसद के उच्च सदन में सीट की पेशकश नहीं की.
लेकिन इसने जया बच्चन को बीजेपी विरोधी राजनीति में शामिल होने से नहीं रोका. उन्होंने ममता बनर्जी के लिए पश्चिम बंगाल में बीजेपी के खिलाफ प्रचार करने के अलावा बार-बार संसद में बीजेपी से भिड़ंत भी की है.
शीतकालीन सत्र के अंत में जिस तरह से जया ने बीजेपी पर अपनी भड़ास निकालते हुए पार्टी को कोसते हुए टिप्पणी की है उसके लिए शायद उन्हें ओवररिएक्ट करने के लिए दोषी ठहराया जा सकता है. लेकिन कई अन्य बॉलीवुड सितारों के विपरीत, वह एक सक्रिय सांसद (राज्यसभा सांसद) के रूप में अपनी भूमिका का सम्मान करती हैं.
(आरती आर जेराथ दिल्ली की एक वरिष्ठ पत्रकार हैं. वह ट्विटर पर @AratiJ के नाम से ट्वीट करती हैं. इस लेख में व्यक्त किए गए विचार लेखक के अपने हैं. क्विंट न तो समर्थन करता है और न ही इसके लिए जिम्मेदार है.)
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