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आईआईटी कांउसिलिंग पर लगी रोक सुप्रीम कोर्ट ने हटा दी है. इसके साथ ही आईआईटी में दाखिले का रास्ता भी साफ हो गया है. लेकिन कोर्ट ने आईआईटी JEE को भविष्य में ऐसी गलती से बचने को कहा है और इस पर संबंधित पक्षों से जवाब भी मांगा है. लेकिन पूरे मामले में आईआईटी ने क्या गलती की थी? क्यों 1,60,000 छात्र कई दिनों तक परेशान रहे? जानने के लिए ये पढ़ना है जरूरी.
JEE एंडवास टेस्ट इस साल 21 मई को हुए थे. इस परीक्षा को पास करने वालों को देश के सबसे प्रतिष्ठत इंडियन इंस्टिट्यूट ऑफ टेक्नलॉजी (IIT), इंडियन इंस्टिट्यूट ऑफ साइंस एजुकेशन एंड रिसर्च (IISER) और इंडियन इंस्टिट्यूट ऑफ स्पेस टेक्नलॉजी (IIST) में दाखिला मिलता है.
फिलहाल देश में 23 IIT, 7 IISER और एक IIST है. इस साल JEE एडवांस की परीक्षा में तकरीबन 1,60,000 छात्र शामिल हुए थे. इस परीक्षा के लिए प्रश्न पत्र हर साल आईआईटी ही बनाती है और इस साल प्रश्न पत्र बनाने की जिम्मेदारी आईआईटी मद्रास को दी गई थी.
परीक्षा खत्म होने के कुछ दिनों के बाद आईआईटी, जेईई एडवांस परीक्षा के पेपर की उत्तर पुस्तिका भी छापती है ताकि छात्र अपने उत्तर का मिलान कर सकें और उत्तर में किसी तरह की कोई गड़बड़ी हो, तो आईआईटी को इसकी जानकारी वक्त रहते दे सकें.
इस साल जेईई एडवांस परीक्षा की उत्तर पुस्तिका 4 जून को छापी गई और 11 जून तक उस पर आपत्ति दर्ज कराने का समय दिया गया. लेकिन 11 जून को ही आईआईटी जेईई एडवांस के नतीजे भी घोषित कर दिए गए, ये मानते हुए कि उनकी उत्तर पुस्तिका पूरी तरह सही है.
असल में पहली गड़बड़ी कोड 1 वाले पहले प्रश्न पत्र के दो सवालों को लेकर हुई. हालांकि, आईआईटी ने 4 जून को जारी हुई अपनी उत्तर पुस्तिका इन सवालों के सही जवाब छापे थे. लेकिन इस कोड के प्रश्न पत्र में दो सवाल ऐसे थे जिनके दो सही जवाब हो सकते थे. ये दोनों सवाल मिला कर 7 नंबर के थे.
परीक्षार्थियों के मुताबिक किस छात्र को किस कोड नंबर का प्रश्न पत्र मिला है ये जानकारी आईआईटी को है, ऐसे में जिस कोड नंबर वाले प्रश्न पत्र में गलती थी तो सिर्फ उसी को हल करने वाले छात्रों को 7 नंबर दिए जाने चाहिए थे. बाकी कोड पेपर पाने वाले छात्रों को, जिनके प्रश्न पत्र में कोई गलती नहीं थी, और जिन्होंने उस प्रश्न को हल नहीं किया, उनको नम्बर क्यों दिए गए?
चूंकि आईआईटी ने प्रश्न ही गलत छापे थे, इसलिए आईआईटी ने सभी 1,60,000 छात्रों को 11 नंबर देने का फैसला किया. यानी आईआईटी की गड़बड़ी की वजह से पहले और दूसरे प्रश्नपत्र को मिलाकर कुल 18 नंबर सभी छात्रों को दिए गए, भले ही छात्र ने उन सवालों के जवाब दिया हो या नहीं. इसमें दोनों तरह के छात्र शामिल हैं – एक तो वो जिन्होंने सवालों को हल करने में वक्त गंवाया और वो भी जिन्होंने इन सवालों को हल करने की कोशिश तक नहीं की.
इसी को मुद्दा बनाते हुए JEE एडवांस के रिजल्ट को कोर्ट में चुनौती दी. क्योंकि देश के बेहतरीन संस्थानों में दाखिला पाने के लिए छात्र पूरे साल मेहनत करते हैं और ये परीक्षा इतनी कठिन होती है कि एक या दो नंबर के अंतर से मेरिट लिस्ट में सैकड़ों छात्रों का फर्क आ जाता है और यहां तो मामला 1 या 2 नहीं बल्कि पूरे 18 नंबर का है.
अब कोर्ट के कड़े रुख के बाद उम्मीद है कि आईआईटी और मानव संसाधन मंत्रालय मिल कर पेपर सेट करने वालों को भी जवाबदेह बनाएंगे और इस तरह की गलतियों पर अगले साल से ज्याद सचेत रहेंगे.
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