19 साल पुराने झारखंड राज्य को मुख्यमंत्री बदलने की आदत है और बीजेपी के रघुवर दास ने फिर इस मिथक को दोहराया है. रुझानों और नतीजों से साफ है कि बीजेपी 41 सीट का जादुई आंकड़ा नहीं छू पाएगी और राज्य में महागठबंधन की सरकार बनेगी. झारखंड मुक्ति मोर्चा के कार्यकारी अध्यक्ष हेमंत सोरेन नई सरकार के मुख्यमंत्री हो सकते हैं.
हार का ‘पंजा’
झारखंड की शक्ल में बीजेपी को कोई पहला झटका नहीं मिला है.
दिसंबर 2018 में पार्टी ने हिंदी पट्टी के तीन राज्य मध्य प्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ़ गंवाए. इसके बाद अक्टूबर 2019 में महाराष्ट्र जैसे बड़े राज्य में बीजेपी को मुंह की खानी पड़ी. उसी दौरान हरियाणा में सरकार तो बचाई लेकिन जेजेपी जैसी विरोधी पार्टी से हाथ मिलाकर.
यानी पिछले करीब दो साल में बीजेपी पांच अहम राज्य हार चुकी है और एक यानी हरियाणा में बड़े झटके का सामना करना पड़ा है. राज्यों की बात करें तो, झारखंड की हार के बाद बीजेपी और उसके सहयोगियों देश के करीब 35 फीसदी हिस्से पर ही सरकार चला रहे हैं.
‘हिंदुत्व’ की पुकार, नहीं स्वीकार!
झारखंड के नतीजों से साफ है कि लोग राष्ट्रवाद और हिंदुत्व के मुद्दों से ऊब चुके हैं. महाराष्ट्र के ‘शरद पवार फॉर्मूले’ से प्रचार के सबक लेकर कांग्रेस पार्टी और उसके सहयोगी जेएमएम ने बेरोजगारी, मंदी, आदिवासियों की समस्याओं जैसे मुद्दों को उठाया, लेकिन बीजेपी ने राष्ट्रीय मुद्दों को ही हथियार बनाया.
यहां तक कि पीएम नरेंद्र मोदी और बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह की झारखंड में हुई रैलियों में भी आर्टिकल 370, अयोध्या में राम मंदिर, नागरिकता कानून और एनआरसी जैसे मुद्दे गूंजते रहे. नतीजों की शक्ल में लोगों ने एलान कर दिया है कि ‘भूखे पेट भजन ना होय’.
छूट रहे साथी
गठबंधन की राजनीति के नजरिये से बीजेपी के लिए एक और चिंता का विषय है- साथ छोड़ते साथी.
- हाल के महाराष्ट्र चुनाव के बाद शिवसेना ने छोड़ा बीजेपी का साथ. शिवसेना बीजेपी के सबसे पुराने साथियों में थी.
- एनआरसी के मुद्दे पर बिहार में नीतीश कुमार ने उठाया विरोध का झंडा.
- इसी मुद्दे पर एक और पुराने साथी अकाली दल ने भी तरेरी आंखे.
- नवीन पटनायक की बीजू जनता दल भले ही एनडीए का हिस्सा ना हो लेकिन संसद में ज्यादातर मुद्दों पर वो सरकार का साथ देती दिखती है. लेकिन पटनायक ने साफ कह दिया है कि वो ओडिशा में एनआरसी लागू नहीं होने देंगे.
आगे की राह नहीं आसान
अगले साल दिल्ली और बिहार के चुनाव हैं और 2021 में पश्चिम बंगाल का विधानसभा चुनाव है. दिल्ली में बीजेपी पिछले करीब 20साल से सत्ता से बाहर है. बिहार में नीतीश कुमार लगातार तेवर दिखा रहे हैं. पश्चिम बंगाल में भी अगर स्थानीय मुद्दों ने असर दिखाया तो साफ है कि बीजेपी के लिए वो तीनों चुनाव कड़े इम्तेहान से कम नहीं होंगे.
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