मेंबर्स के लिए
lock close icon
Home Created by potrace 1.16, written by Peter Selinger 2001-2019Voices Created by potrace 1.16, written by Peter Selinger 2001-2019Opinion Created by potrace 1.16, written by Peter Selinger 2001-2019आदिवासियों के नाम पर बना झारखंड, यहां कोई सीएम कार्यकाल पूरा क्यों नहीं कर सका?

आदिवासियों के नाम पर बना झारखंड, यहां कोई सीएम कार्यकाल पूरा क्यों नहीं कर सका?

Hemant Soren के लिए कहा गया: "हेमंत सोरेन सुविधायुक्त जीवन जीते रहे, अब उन्हें जंगल में आदिवासी की तरह रहना होगा, जैसे वे बीस, तीस, चालीस साल पहले रहते थे."

प्रबल महतो
नजरिया
Published:
<div class="paragraphs"><p>झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन</p></div>
i

झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन

(फाइल फोटो: PTI)

advertisement

याद कीजिए, महामहिम द्रौपदी मुर्मू (Draupadi Murmu) को जब भारत का राष्ट्रपति बनाया गया तब ढिंढोरा पीटा गया कि देश की सत्तारूढ़ दल ने एक आदिवासी महिला को देश के सर्वोच्च पद पर बैठाकर आदिवासी समुदाय को सम्मानित किया है. खूब वाह वाही लूटी गयी.

दूसरी ओर झारखंड (Jharkhand) के आदिवासी मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन (Hemant Soren) को जब ईडी (ED) ने गिरफ्तार किया, तब टिप्पणी की जाती है कि "हेमंत सोरेन सुविधायुक्त जीवन जीते रहे, अब उन्हें जंगल में आदिवासी की तरह रहना होगा, जैसे वे बीस, तीस, चालीस साल पहले रहते थे."

इस तरह की टिप्पणी देश के एक बड़े चैनल के एंकर सुधीर चौधरी ने अपने एक विशेष कार्यक्रम में की. इसे पूरे देश ने देखा. सुधीर चौधरी की इस टिप्पणी के खिलाफ देश भर से आदिवासी समुदाय और प्रगतिशील लोगों की प्रतिक्रिया आई. रांची के एससी एसटी थाने में सुधीर चौधरी की गिरफ्तारी की मांग को लेकर एक एफआईआर भी दर्ज कराई गई.

आदिवासियों को लेकर इस तरह की टिप्पणी को लेकर भारतीय जनता पार्टी या उसके किसी शीर्ष नेता का कोई बयान नहीं आया. कारण समझना उतना मुश्किल नहीं है. देश की आदिवासी राष्ट्रपति को सरकार की नीतियों से कोई गुरेज नहीं है, जबकि हेमंत सोरेन उसके खिलाफ हमेशा मुखर रहे. इसीलिये सुधीर चौधरी की हेमंत सोरेन को लेकर आदिवासी विरोधी टिप्पणी से सत्ता तंत्र को कोई फर्क नहीं पड़ता.

बात सिर्फ सुधीर चौधरी की हेमंत सोरेन को लेकर की गई टिप्पणी भर नहीं है. बात कथित सभ्य समाज की मानसिकता की है. उनकी सोच और आदिवासियों को लेकर उनकी समझ और भावनाओं की है. कार-बंगला और हवाई जहाज जैसी सुविधायुक्त जीवन का अधिकार सिर्फ उन्हें है. आदिवासी अगर ऐसी जिंदगी की सोचें भी तो उनके अनुसार गलत है और इस सोच-समझ और व्यवस्था को बनाये रखने के लिये वे कुछ भी कर सकते हैं. कुछ भी बोल सकते हैं.

लेकिन, सुधीर चौधरी और उनकी मानसिकता के लोग यह भूल जाते हैं कि उनकी यह सुविधाजनक हाई-फाई जिंदगी आती कहां से है.

झारखंड और देश के अन्य आदिवासी अंचलों को उजाड़ कर, उन्हें विस्थापित कर, इन इलाकों की प्राकृतिक संपदा का दोहन कर कथित सभ्य समाज के लिये सुविधायुक्त जीवन जुटाया जाता है. कथित सभ्य समाज की यह वही सोच है, जिसके खिलाफ झारखंड अलग राज्य का आन्दोलन हुआ. हेमंत सोरेन के पिता शिबू सोरेन ने उसका नेतृत्व किया और झारखंड अलग राज्य बना.
ADVERTISEMENT
ADVERTISEMENT

लेकिन, अलग राज्य बनने के बाद भी मानसिकता नहीं बदली. शुरू से ही यह धारणा बनाई गयी कि आदिवासी अपना शासन नहीं चला सकते. जैसे आजादी के पूर्व अंग्रेज कहते थे कि भारतीय अपना राज नहीं चला सकते.

  • जब झारखंड राज्य का निर्माण हुआ, केन्द्र में भारतीय जनता पार्टी की सरकार थी. बीजेपी ने प्रशासनिक आधार पर अलग राज्य के निर्माण को मान्यता दी, जबकि झारखंड के लोग अपनी सांस्कृतिक पहचान के आधार पर राज्य की मांग कर रहे थे. पहली सरकार बीजेपी की बनी. बाबूलाल मरांडी (आदिवासी) मुख्यमंत्री बने. लेकिन कार्यकाल पूरा होने के पहले बदल दिया गया.

  • अर्जुन मुण्डा को मुख्यमंत्री बनाया गया. उसके बाद भी अर्जुन मुण्डा मुख्यमंत्री बने, लेकिन भारतीय जनता पार्टी की रणनीति ऐसी रही कि कोई भी आदिवासी मुख्यमंत्री पांच साल का कार्यकाल पूरा नहीं कर पाया और एक नेगेटिव छवि बनाई गई कि आदिवासी राज नहीं चला सकते.

  • उसके बाद बीजेपी ने रघुवर दास - जो छत्तीसगढ़ के मूल निवासी हैं - उन्हें मुख्यमंत्री बनाया और उनकी सरकार बिना बाधा पांच साल चली. इससे यह संदेश दिया गया कि देखो गैर-आदिवासी मुख्यमंत्री पांच साल राज चला सकता है.

  • बाद के विधानसभा चुनाव में रघुवर दास खुद हार गये. उसके बाद कांग्रेस और आरजेडी के समर्थन से झारखंड मुक्ति मोर्चा की सरकार बनी. मुख्यमंत्री बनें हेमंत सोरेन - खांटी आदिवासी - झारखंड को लेकर चले आंदोलन के नेता शिबू सोरेन के बेटे.

  • हेमंत सोरेन की सरकार को गिराने, पार्टियों को तोड़ने की कोशिशें भी खूब हुईं. जब से हेमंत के नेतृत्व में सरकार बनी हमेशा यह खबर फैलाई गई कि सरकार अब गिरी-तब गिरी. अन्ततः चार साल पूरा करने के पहले ईडी के माध्यम से ऐसी परिस्थितियां उत्पन्न हुईं कि हेमंत सोरेन को इस्तीफा देना पड़ा. यानी झारखंड में कोई भी आदिवासी पांच साल का कार्यकाल पूरा नहीं कर सकता ऐसा नेरेटिव सही ठहरा दिया गया.

लेकिन हेमंत सोरेन की गिरफ्तारी और उस पर सुधीर चौधरी की टिप्पणी पर जैसी प्रतिक्रिया आई उससे लगता है कि इस बार मामला उल्टा पड़ गया. आदिवासियों के साथ-साथ अन्य झारखंडी समुदायों ने भी इसका विरोध किया. यहां तक कि भारतीय जनता पार्टी के समर्थन में रहने वाले समुदाय को भी यह सही नहीं लगा.

बाकी बंगाल, ओड़ीशा और समीपवर्ती छत्तीसगढ़ के आदिवासियों ने भी इस आदिवासी विरोधी सोच का विरोध किया है और सुधीर चौधरी को एससीएसटी कानून के तहत गिरफ्तारी की मांग कर रहे हैं.

(क्विंट हिन्दी, हर मुद्दे पर बनता आपकी आवाज, करता है सवाल. आज ही मेंबर बनें और हमारी पत्रकारिता को आकार देने में सक्रिय भूमिका निभाएं.)

अनलॉक करने के लिए मेंबर बनें
  • साइट पर सभी पेड कंटेंट का एक्सेस
  • क्विंट पर बिना ऐड के सबकुछ पढ़ें
  • स्पेशल प्रोजेक्ट का सबसे पहला प्रीव्यू
आगे बढ़ें

Published: undefined

ADVERTISEMENT
SCROLL FOR NEXT