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आदिवासी चेहरा और टूट का नैरेटिव, सीता सोरेन के जाने से JMM और BJP का नफा-नुकसान?

Sita Soren Politics: हेमंत सोरेन की भाभी सीता बीजेपी में शामिल, कहा- झारखंड को झुकाना नहीं, बचाना है.

नीरज सिन्हा
नजरिया
Published:
<div class="paragraphs"><p>सीता सोरेन बीजेपी में हुईं शामिल.</p></div>
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सीता सोरेन बीजेपी में हुईं शामिल.

फोटो- क्विंट हिंदी

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क्या झारखंड मुक्ति मोर्चा (JMM) विधायक सीता सोरेन (Sita Soren) मंत्रिमंडल में जगह नहीं मिलने से नाराज थीं? सीता सोरेन के बीजेपी में जाने से जेएमएम या सोरेन परिवार को बड़ा राजनीतिक नुकसान हो सकता है या नहीं?

इससे झारखंड में बीजेपी को माइलेज मिलेगा? क्या सीता सोरेन का यह फैसला संथाल परगना की राजनीति पर भी असर डालेगा? क्या सीता सोरेन या उनकी बेटी को बीजेपी दुमका में अपना उम्मीदवार बदलते हुए लोकसभा का चुनाव लड़ाएगी?

जेएमएम प्रमुख शिबू सोरेन की बहू और हेमंत सोरेन की भाभी सीता सोरेन के बीजेपी मे शामिल होने के बाद एक साथ कई सवाल झारखंड की सियासत में तैर रहे हैं. साथ ही आदिवासी समाज और संगठनों की भी इस तरफ नजरें टिकी हैं.

दरअसल सीता सोरेन उस वक्त बीजेपी में शामिल हुई हैं, जब हेमंत सोरेन जेल में बंद होने के बाद भी झारखंड में बीजेपी के लिए बडी चुनौती हैं. साथ ही उनकी पत्नी कल्पना सोरेन चुनावी कमान थामने के साथ जेएमएम को लामबंद करने में जुटी हैं.

जाहिर तौर पर दल में पारिवारिक हैसियत और बनते- बिगड़ते समीकरणों के बीच सीता सोरेन का बीजेपी में जाना सुर्खियों में है. शिबू सोरेन के बड़े बेटे और दल के कद्दावर नेता दुर्गा सोरेन का साल 2009 में निधन के बाद सीता सोरेन सार्वजनिक जीवन में शामिल हुई थीं. इसके बाद 2009, 2014, 2019 में उन्होंने जामा विधानसभा सीट से चुनाव जीता. वैसे जेएमएम और सरकार से सीता सोरेन की नाराजगी पहले भी कई मौके पर सामने आती रही है.

सीता सोरेन बीजेपी में शामिल हुई

फोटो- PTI Altered by Quint Hindi

माना जा रहा है कि बीजेपी ने मौका देखकर सीता सोरेन को अपने पाले में कर जेएमएम को सकते में डाला है. हालांकि बीजेपी ने हलचल जरूर पैदा कर दी है कि सोरेन परिवार की बहू को उसने अपने पाले में कर लिया है, लेकिन सीता सोरेन के जाने से संथाल परगना के इलाके में कोई खास बदलाव होगा या बीजेपी बड़ा माइलेज ले जायेगी, ऐसा दिखता नहीं है. अब सीता सोरेन को भी खुद को स्थापित करने की असली परीक्षा बाकी है.

झारखंड झुकेगा नहीं बनाम झारखंड को बचाना है

राजनीति में वक्त और बातों के भी मतलब निकाले जाते हैं. सीता सोरेन की गतिविधियों पर गौर करें, तो यह एक हद तक स्पष्ट होता दिखता है कि चंपाई सोरेन की सरकार गठन के बाद से ही बीजेपी के चूल्हे पर उनकी हांडी चढ़ चुकी थी. अचानक में यह सब कुछ नहीं हुआ है.

बीजेपी में शामिल होने के बाद सीता सोरेन ने कहा है, “मोदी जी का बहुत बड़ा परिवार हैं, और इसमें शामिल हो गई हूं. झारखंड को झुकाना नहीं बचाना है, यही सोचकर बीजेपी में शामिल हुई हूं.”

सीता सोरेन के इस वक्तव्य के भी मायने निकाले जा रहे हैं. दरअसल गिरफ्तारी के बाद हेमंत सोरेन की तस्वीर के साथ एक होर्डिंग- ‘झारखंड झुकेगा नहीं’, को जेएमएम ने बीजेपी के खिलाफ लड़ाई और चुनौती में अपना टैग/स्लोगन बना लिया है.

कल्पना सोरेन और जेएमएम के तमाम बड़े नेता भी अपने भाषणों में इसी बात- ‘झारखंड और झारखंडी झुकेगा नहीं पर’ जोर देते रहे हैं.

उधर शिबू सोरेन के नाम लिखे पत्र में सीता सोरेन ने लिखा है, “मेरे पति दुर्गा सोरेन के निधन के बाद से ही मैं और मेरा परिवार लगातार उपेक्षा का शिकार रहा है. दल और परिवार के सदस्यों के द्वारा हमें अलग- थलग किया गया है, जो मेरे लिए अत्यंत पीड़ादायक है. मुझे यह देखकर गहरा दुख होता है कि पार्टी उन लोगों के हाथों में चली गयी है जिनके दृष्टिकोण और उद्देश्य हमारे मूल्यों और आदर्शों से मेल नहीं खाते.”

इस आधार पर विवेचना की जा रही है कि सीता सोरेन सरकार में कद के हिसाब से जगह नहीं मिलने पर नाराज थीं. चंपाई सोरेन की सरकार में हेमंत सोरेन के छोटे भाई बसंत सोरेन को मंत्रिमंडल में शामिल किये जाने और कल्पना सोरेन के बढते कद के बाद इसे और हवा मिली.

सीता सोरेन की दो बेटियां हैं. दोनों ने झारखंडी हितों के सवाल पर दुर्गा सेना नामक एक संगठन बनाया है. दिल्ली में सीता सोरेन के साथ दोनो मौजूद थीं. दोनों बेटियां राजनीतिक परिस्थितियों और हिस्सेदारी के सवाल पर अक्सर मां के साथ रायशुमारी भी करती रही हैं.

जामा, दुमका और जेएमएम

जामा विधानसभा क्षेत्र दुमका संसदीय क्षेत्र का हिस्सा है और इसे जेएमएम का गढ़ माना जाता है. 2005 में बीजेपी के सुनील सोरेन ने यहां दुर्गा सोरेन को हराकर मिथक तोड़ने के प्रयास किये थे, लेकिन बाद में बीजेपी के हाथ से यह सीट खिसकती रही. दुमका से शिबू सोरेन आठ बार लोकसभा का चुनाव जीते हैं. 2014 में मोदी लहर में भी शिबू सोरेन ने इस सीट पर जीत हासिल की थी. लेकिन 2019 में सुनील सोरेन ने ही शिबू सोरेन को 47,590 वोटों से हराकर इस सीट पर कब्जा किया. इस बार बीजेपी ने दुमका में सुनील सोरेन को फिर से अपना उम्मीदवार घोषित किया है.

शिबू सोरेन अभी राज्यसभा के सांसद हैं. संकेत मिल रहे हैं कि स्वास्थ्य और उम्र के लिहाज से वे लोकसभा का चुनाव नहीं लड़ेगे. तब झामुमो से उम्मीदवार कौन होगा , इसका इंतजार है. वैसे हेमंत सोरेन इस सीट को लेकर गंभीर बताये जा रहे हैं.

दुमका लोकसभा क्षेत्र में जामा समेत तीन विधानसभा क्षेत्रों पर जेएमएम का कब्जा है. संथाल परगना में लोकसभा की एक और सीट राजमहल ( आदिवासियों के लिए सुरक्षित) पर जेएमएम का कब्जा है. मोदी लहर में भी जेएमएम के विजय हांसदा ने 2014 और 2019 में जीत दर्ज की है. संथाल परगना में विधानसभा की 18 सीटों में से 14 पर जेएमएम और उसके घटक कांग्रेस का कब्जा है. 2019 में आदिवासी बहुल इलाके संथाल परगना और कोल्हान में जेएमएम गठबंधन की जोरदार जीत की वजह से ही बीजेपी को सत्ता गंवाना पड़ा था.

2019 के विधानसभा चुनाव में हेमंत सोरेन बरहेट और दुमका से चुनाव लड़े थे और दोनों जगह जीते थे. बाद में दुमका की सीट उन्होंने छोड़ दी और अपने छोटे भाई बसंत सोरेन को उपचुनाव लड़ाकर जिता दिया. 2019 से ही बीजेपी को ये हार खटकती रही है. हाल ही में पश्चिम सिंहभूम से कांग्रेस की सांसद गीता कोड़ा ने बीजेपी का दामन थाम लिया है. बीजेपी ने गीता कोड़ा को अपना उम्मीदवार भी बनाया है.

अब सीता सोरेन के बीजेपी में शामिल होने से बीजेपी को लगने लगा है कि उसे कोल्हान और संताल परगना में दो बड़ा आदिवासी चेहरा मिल गया है.

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सीता सोरेन के लिए राह आसान नहीं

सीता सोरेने के पाला बदल पर वरिष्ठ पत्रकार रजत कुमार गुप्ता कहते हैं, "संथाल परगना के आदिवासी इलाकों में लोग गुरुजी को ही जानते हैं. करीब पचास साल पहले जब आंदोलन चल रहा था, तभी उनकी यह पहचान बनी थी और आज तक कायम है."

"दुर्गा सोरेन ने अपने परिश्रम से राजनीतिक जमीन तैयार की थी. सीता सोरेन कभी मास लीडर नहीं रहीं. दूसरी तरफ झामुमो और गुरुजी से अलग होकर सीता सोरेन भी अपने जनाधार के बूते कुछ कर पायेंगी ऐसा लगता नहीं है. दूसरा महत्वपूर्ण है कि हेमंत सोरेन की गिरफ्ताी को आदिवासी समाज बीजेपी की चाल मानता है. इस समीकरण से आदिवासियों में अब और गुस्सा बढ़ेगा."
रजत कुमार गुप्ता, वरिष्ठ पत्रकार

हर कोई हेमंत सोरेन नहीं हो सकता

सीता सोरेन के बीजेपी में जाने से प्रतिक्रियाओं का दौर भी जारी है. झारखंड मुक्ति मोर्चा के महासचिव सुप्रियो भट्टाचार्य ने मीडिया से बातचीत में कहा है, "हर कोई हेमंत सोरेन नहीं हो सकता. एक मामले में हालिया कोर्ट आदेश के बाद यह लगने लगा था कि कुछ चीजें बदल भी सकती हैं. अगर किसी पर कोई केस-मुकदमा है, तो बीजेपी का काम ही है उसे प्रभावित करना. वैसे सीता सोरेन के लिए पार्टी कामना करती है कि उन्हें बीजेपी में आशातीत सफलता मिले.

सीता सोरेन के बीजेपी में जाने से जेएमएम पर असर के सवाल पर उन्होंने कहा कि जेएमएम के खाते में सिर्फ एक वोट कम होगा. दुर्गा भैया (सोरेन) की मौजूदगी को अपने बीच बनाये रखने के लिए दल के कार्यकर्ताओं ने सीता जी को तीन बार लगातार जामा से विधायक बनाकर भेजा है. आगे दुमका लोकसभा चुनाव से जेएमएम का जो भी उम्मीदवार होगा, वह पहले की तरह ही गुरुजी के आदेश का पालन करेगा. सुप्रियो ने जोर देकर कहा कि संथाल परगना में गुरुजी (शिबू सोरेन) को छोड़कर जो भी नेता जाते हैं, उन्हें फिर दल में आना ही पड़ता है.

इधर बीजेपी के प्रदेश अध्यक्ष बाबूलाल मरांडी ने सीता सोरेन के बीजेपी में आने पर प्रतिक्रिया जाहिर करते हुए कहा है, इससे स्पष्ट हो गया है कि जेएमएम और कांग्रेस के विधायक अपनी ही सरकार से खुश नहीं हैं. सीता सोरेन अपने ही दल, परिवार और सरकार में आहत थीं. तब उन्होंने बीजेपी पर विश्वास किया है.

कथित तौर पर रिश्वत का मामला

हाल ही में सुप्रीम कोर्ट की सात जजों की बेंच ने सांसदों और विधायकों के विशेषाधिकार से जुड़े केस में फैसला सुनाते हुए कहा है कि संसद, विधानमंडल में भाषण या वोट के लिए रिश्वत लेना सदन के विशेषाधिकार के दायरे में नहीं आएगा. यानी अब अगर सांसद या विधायक रिश्वत लेकर सदन में भाषण देते हैं या वोट देते हैं तो उन पर कोर्ट में आपराधिक मामला चलाया जा सकता है.

ये मामला तब सामने आया, जब शीर्ष अदालत जेएमएम विधायक सीता सोरेन के कथित तौर पर रिश्लत मामले की सुनवाई कर रही थी. सीता सोरेन पर आरोप था कि उन्होंने 2012 में राज्यसभा के चुनाव में एक निर्दलीय उम्मीदवार को वोट देने के लिए रिश्वत ली. इस मामले में साल 1998 के सुप्रीम कोर्ट के पीवी नरसिम्हा राव बनाम भारत गणराज्य केस के फैसले का हवाला दिया गया.

गौरतलब है कि साल 2014 में सीबीआई ने इसी मामले में अदालती आदेश का अनुपालन नहीं करने पर सीता सोरेन की संपत्ति कुर्क कर ली थी. इसी मामले में सीता सोरेन को जेल भी जाना पडा था.

परिस्थितियां कब और कैसे बदलीं?

हेमंत सोरेन जब प्रवर्तन के समन का सामना कर रहे थे और उनकी गिरफ्तारी की संभावनाएं बनी थीं, उसी दौरान गांडेय से झामुमो विधायक सरफराज अहमद ने इस्तीफा दे दिया था. तब यह चर्चा थी कि कल्पना सोरेन का नाम मुख्यमंत्री के लिए आगे लाया जा सकता है. लेकिन पार्टी और परिवार के अंदर की परिस्थितियां भांपते हुए हेमंत सोरेन ने दल के सीनियर लीडर चंपई सोरेन का नाम आगे किया.

यहां इस बात की चर्चा भी प्रासंगिक है कि प्रवर्तन निदेशालय के लगातार समन का सामना कर रहे हेमंत सोरेन पिछले तीस जनवरी को दिल्ली से लौटने के बाद अपने आवास पर जेएमएम के विधायकों के साथ बैठक की थी. इसमें सीता सोरेन मौजूद नहीं थी.

उनकी नाराजगी को तब भांप लिया गया था. बाद में चंपाई सोरेन के फ्लोर टेस्ट में सीता सोरेन सदन में मौजूद रहीं और दल का सपोर्ट करते हुए यह भी कहा कि जेएमएम इन मुश्किलों से पार लगा लेगा. बहुमत सिद्ध करने के बाद चंपाई सोरेन की सरकार में बसंत सोरेन को शामिल किया गया, तो जेएमएम के रणनीतिकारों को इस बात का अंदाजा नहीं रहा होगा कि बात इतनी बिगड़ जायेगी.

इधर हेमंत सोरेन के जेल मे रहने के बाद उनकी पत्नी कल्पना सोरेन ने चुनावी कमान थाम लिया है. कल्पना सोरन ने जिस तरह से जेएमएम की सभाओं में खुद को पेश किया है और बीजेपी पर निशाने साध रही हैं, उससे सत्तारूढ़ दलों की उम्मीदें बढ़ी है कि उसे एक चुनावी खेवनहार मिल गया है. 18 मार्च को राहुल गांधी के न्याय यात्रा के समापन पर मुंबई में आयोजित सम्मेलन में इंडी एलायंस के नेताओं के साथ मंच साझा किया था.

जो लोग जेएमएम छोड़कर गए

झारखंड की सियासत और आदिवासी वोटरों के बीच उथलपुथल के इस एपिसोड के साथ ही संतालपरगना में जेएमएम के उन बड़े चेहरे की चर्चा जरूरी है, जिन्होंने बीजेपी का दामन तो थामा, या अलग हुए, लेकिन फिर जेएमएम में ही वापस आना पड़ा.

इनमें हेमलाल मुर्मू का नाम सबसे ज्यादा शुमार है. 2014 में वे बीजेपी में शामिल हो गए थे. बीजेपी ने उन्हें दो बार लोकसभा और दो बार विधानसभा का चुनाव लड़ाया. चारों बार हेमलाल जेएमएम के हाथों हार गये. अब जाकर वे जेएमएम में शामिल हो गए हैं.

साइमन मरांडी, लोबिन हेब्रम, स्टीफन मरांडी सरीखे दिग्गज नेता भी जेएमएम से अलग हुए और फिर वापस आये. अब सीता सोरेन बीजेपी की नाव पर सवार संताल परगना में अपनी जमीन तैयार कर पायेंगी या राजनीतिक महत्वाकांक्षाओं के अनुरूप कोई बड़ा ओहदा हासिल करेंगी, यह देखने लायक होगा.

(नीरज सिन्हा झारखंड के वरिष्ठ पत्रकार हैं. यह एक ओपिनियन आर्टिकल है, यहां व्यक्त किए गए विचार लेखक के अपने हैं. क्विंट हिंदी न तो इसका समर्थन करता है और न ही इसके लिए जिम्मेदार है.)

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