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कठुआ मामले के लिए बनी स्पेशल इनवेस्टिगेशन टीम (एसआईटी) की इकलौती महिला सदस्य श्वेतांबरी शर्मा ने द क्विंट को जो जानकारी दी, वह आपको अंदर तक हिला देगी, सोचने पर मजबूर भी करेगी. उन्होंने बताया कि उनकी जाति (ब्राह्मण) और धार्मिक पहचान की दुहाई देकर आरोपियों की तरफ से उन पर दबाव बनाने की कोशिश की गई.
श्वेतांबरी ने यह भी बताया कि स्थानीय पुलिस ताकतवर लोगों के इशारों पर आरोपियों के हक में काम कर रही थी. कठुआ मामले में इंसाफ अदालत को करना है, लेकिन जिस तरह से हिंदू एकता मंच के कार्यकर्ताओं के साथ मिलकर कई वकीलों ने चार्जशीट फाइल होने से रोकने की कोशिश की और मंत्रियों, नेताओं, पत्रकारों और खास विचारधारा से जुड़े बुद्धिजीवियों ने उनका बचाव किया, उससे लगता है कि कुछ तो गड़बड़ है.
श्वेतांबरी ने बताया-
पुलिस अधिकारी होने के नाते श्वेतांबरी का शायद ‘कोई धर्म ना हो’ और जिन लोगों ने उन्हें जाति और धर्म की दुहाई देकर जांच को प्रभावित करने की कोशिश की, उन्हें श्वेतांबरी ने सही जवाब दिया. श्वेतांबरी ने इसके साथ यह भी कहा-
यह तथ्य सबसे नाटकीय रूप में सामने आया था जब कट्टर हिंदू’ नाथूराम गोडसे ने सनातनी हिंदू गांधी (स्वयं को सनातनी हिंदू बताने वाले) की हत्या की. दूसरी धार्मिक परंपराओं में भी खान अब्दुल गफ्फार खान उसी कुरान शरीफ से प्रेरित थे, जिसे मानने का दावा ओसामा बिन लादेन जैसे लोग भी करते हैं. दोनों कुरान से जो सीखते हैं, उसमें जमीन-आसमान का फर्क है. ठीक यही बात , बाइबिल के प्रसंग में एक तरफ मार्टिन लूथर किंग, दूसरी तरफ श्वेत नस्लवादियों के होने से सामने आती है.
धर्मग्रंथों का वास्तविक अर्थ उस नैतिकता ( सार्वभौम मानवीय मूल्यों की व्यवस्था) में ही खुलता है, जो मनुष्य ने इतिहास के विकास में गढ़ी है. किसी व्यक्ति का मोल इसी सवाल पर निर्भर करता है कि उसने नैतिक उलझन की, यानि “धर्म-संकट” की स्थिति में क्या फैसला किया, कैसा व्यवहार किया.
लेकिन ,यह भी स्पष्ट है कि सामान्य लोग और स्वयं ‘महाजन’ जब ‘धर्म-संकट’ का सामना करते हैं. जब उन्हें धर्म के किसी प्रचलित अर्थ और अंतरात्मा की आवाज के बीच चुनाव करना होता है, तब बात और हो जाती है. हिंदू, बुद्ध और जैन धर्मों में ऐसी परिस्थितियों पर विचार किया गया है. ऐसे मामलों में ‘धर्म’ शब्द का मतलब फैसला करने वाले शख्स की नैतिक बनावट से तय होता है.
इन धार्मिक परंपराओं में कहीं-कहीं धर्म का वही मतलब माना गया है, जो आज माना जाता है. आज हम इसे आस्था, उससे जुड़ी प्रथाओं और पूर्वजों के तौर-तरीकों से जोड़कर देखते हैं. इससे कहीं ज्यादा धर्म का मतलब प्राकृतिक, सामाजिक व्यवस्था का बने रहना है, जैसे- पानी का धर्म बहते रहना है और अग्नि का धर्म जलना है. इसी तरह शासक का धर्म (राजधर्म) प्रजा की देखभाल करना है. भारतीय राजनीति में राजधर्म शब्द उस समय बहुत चर्चित हुआ था, जब एक पूर्व प्रधानमंत्री ने एक पूर्व मुख्यमंत्री को इसकी याद दिलाई थी.
धर्म के विरोधाभासी विश्लेषण के जाल से युधिष्ठिर ने बाहर निकलने के लिए महापुरुषों के बताए रास्ते पर चलने की बात कही थी. आपको यह भी समझना चाहिए कि इसमें जवाबदेही उन लोगों पर डाली गई है, जो अपने कर्मों या विचारों से लोगों को प्रभावित करने की क्षमता रखते हैं. गीता में भी इसे स्पष्ट किया गया है. भगवान कृष्ण श्रेष्ठ जनों को उनके आचरण की याद दिलाते हैं क्योंकि आम लोग कमोबेश ‘महापुरुषों’ के बताए रास्ते पर चलते हैं. ( यद् यद् आचरति श्रेष्ठ जन: तद् तद् एव इतर:)
मुक्तिकारी और प्रबुद्ध व्यवस्था को बनाए रखना प्राथमिक रूप से राजसत्ता की जिम्मेवारी है, साथ ही यह हर नागरिक की भी जिम्मेदारी है कि वह तथाकथित धार्मिक भावनाओं में बहने से बचकर नैतिक मूल्यों पर टिका रहे और अपने पेशे के आदर्शों का पालन करे.
जो लोग एक अबोध बच्ची के बलात्कार और कत्ल पर धार्मिक पहचान के नाम पर लीपापोती कर रहे हैं, यहां तक कि उसके हुआ होने तक को नकार रहे हैं, ( जैसा कि एक ‘राष्ट्रीय और राष्ट्रवादी’ अखबार ने किया), वो इस युवा महिला अधिकारी से बहुत कुछ सीख सकते हैं, जिसने सच्चे धर्म का पालन करने का साहस दिखाया.
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(लेखक पुरुषोत्तम अग्रवाल क्विंट हिंदी के कंट्रीब्यूटिंग एडिटर हैं. इस आर्टिकल में छपे विचार उनके अपने हैं. इसमें क्विंट की सहमति होना जरूरी नहीं है)
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Published: 24 Apr 2018,12:15 PM IST