कठुआ गैंगरेप में अधिकारी लगातार भारी दबाव के बीच काम कर रहे हैं. ऐसे में क्विंट ने कठुआ मामले की पड़ताल कर रही SIT की अकेली महिला सदस्य श्वेताम्बरी शर्मा से खास बातचीत की और जाना कि धमकियों की परवाह किए बिना 8 साल की बच्ची के साथ हुए गैंगरेपऔर हत्या की जांच करना उनके लिए कितना मुश्किल रहा.
“जिन लोगों पर हमें 8 साल की मासूम बच्ची के साथ बेरहमी से रेप और हत्या करने का शक था, वो लोग, उनके रिश्तेदार और समर्थक समेत तमाम वकीलों ने मिल कर हमारी तफ्तीश में खलल डालने में कोई कसर नहीं छोड़ी थी. उन्होंने हमें प्रताड़ित और अपमानित किया. लेकिन हम आखिर तक टिके रहे”. श्वेतामबरी ने क्विंट से कहा.
रेप की सच्चाई सामने आने से पहले इसे अपहरण और हत्या की घटना माना जा रहा था. कठुआ के रसाना गांव में 8 जनवरी को बच्ची गायब हुई थी, जिसका पुलिस का पता लगाने में नाकामयाब रही और 17 जनवरी को बच्ची की लाश बरामद हुई.
23 जनवरी को मामला क्राइम ब्रांच को सौंपा गया और SIT गठित हुई जो IGP आलोक पुरी और सय्यद अहफदुल मुजतबा की अगुवाई में काम कर रही थी.
जांच के बारे में बात करते हुआ श्वेताम्बरी ने कहा “केस की जांच के दौरान हमें कई बार निराशा हुई, खास तौर पर उस समय, जब हमें पता चला पुलिस ने इस मामले को दबाने के लिए घूस ली और सबूत मिटाने के लिए बच्ची के कपड़े धो दिए“
9 अप्रैल को SIT ने CJM के सामने 8 लोगों के खिलाफ चार्ज शीट दायर की जिन पर बलात्कार, हत्या, अपहरण और सबूतों को मिटाने जैसे आरोप लगाए गए. जिसके बाद आरोपियों और उनके समर्थकों की तरफ से इस केस को CBI को सौंपने की मांग उठनी शुरु हो गई.
श्वेताम्बरी जांच के दौरान धर्म के नाम पर डाले जा रहे दबाव पर कहती हैं कि “क्योंकि ज्यादातर आरोपी ब्राह्मण थे, इसलिए मुझे बार-बार ये याद दिलाने कि कोशिश की गई की हम एक धर्म और जाति के हैं, मुझे उन्हें एक मुसलमान लड़की के रेप और हत्या के लिए आरोपी नहीं बनाना चाहिए, मैंने उनसे कहा कि एक पुलिस ऑफिसर होने के नाते मेरा सिर्फ एक ही धर्म है, वो है मेरी वर्दी”
श्वेताम्बरी आगे कहती हैं कि “जब ये सारी कोशिशें काम नहीं कीं तो आरोपियों के परिवार वाले और समर्थक किसी भी तरह डराने और धमकाने में लग गए. वो लाठियां लेकर घूमते, नारे लगाते और सड़कें जाम कर के जगह-जगह तिरंगा लेकर रैलियां निकालते. लेकिन हम संयम के साथ लगातार काम करते रहे.”
श्वेताम्बरी 2012 में पुलिस में भर्ती हुईं. इससे पहले वो यूनिवर्सिटी में मैनेजमेंट पढ़ाती थी. पुलिस में आने के बाद भी उन्होने अपनी पढ़ाई जारी रखी और डॉक्टरेट हासिल किया.
श्वेताम्बरी बताती हैं कि इस केस की तह तक जाने और बच्ची के साथ हुई भयावह घटना ने उनकी रातों की नींद उड़ा दी.
“मैं इस केस के दोरान अपने पति और बच्चों के साथ बिलकुल वक्त नहीं बिता पाई, लेकिन मुझे इस बात की खुशी है कि हम आरोपियों के खिलाफ सबूत इकठ्ठा कर पाए.”
बच्ची का अपहरण कर के उसे नशे की दवाई दी गई थी जिससे वो बेहोश रहे. आरोपियों में से एक सांझी राम ने उसे अपने देविस्थान मंदिर में रखा था. श्वेताम्बरी ने ही उस मंदिर के अंदर जाकर सबूत इकठ्ठा किए थे जिससे बाद में ये साबित हो पाया की बच्ची मंदिर में ही थी.
श्वेतामबरी आगे कहती हैं “केस की सुनवाई के दौरान जब हम कोर्ट में गए तो 10-20 वकीलों ने हमारे खिलाफ नारेबाजी शुरु कर दी. हमसे कहा गया हम आरोपियों के नाम बताएं, जबकि हम ऐसा नहीं कर सकते थे. हमें बार-बार भीड़ ने रोका, हमने जब SHO से FIR दर्ज करने को कहा तो उन्होंने मना कर दिया, जिसके बाद हम अपनी शिकायत लेकर DM के पास गए. हर जगह अराजकता और डराने-धमकाने का माहौल था”
लेकिन उनका कहना है कि इस केस का सबसे मुश्किल वक्त उनके लिए तब था जब उन्हें आरोपियों से बच्ची के साथ किए दुष्कर्म की सिलसिलेवार जानकारियां पूछनी थीं, वो बच्ची जो उनके बेटे की ही उम्र की थी.
श्वेताम्बरी का कहना है कि केस पर काम करना मुश्किल जरूर था लेकिन मां दुर्गा हमारे साथ थी. उन्होंने मुझे शक्ति दी और मैंने SIT के पुरुष सदस्यों के सामने घटना से जु़ड़े सारे सवाल आरोपियों से पूछे.
श्वेताम्बरी आगे कहती हैं कि हमें देश की न्याय व्यवस्था पर पूरा भरोसा है. हमें पूरा यकीन है कि न्याय होगा, हमारी जांच में सारे सबूत और तथ्य मौजूद हैं.
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