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यह एक दुखद घटना थी. दुबई से कोझिकोड आने वाली एयर इंडिया एक्सप्रेस उड़ान IX-1344 7 अगस्त को शाम करीब पौने आठ बजे रनवे पर फिसलकर दुर्घटनाग्रस्त हो गई. सरकारी रिपोर्ट्स के अनुसार, विमान पर सवार 190 में से 18 लोग मौत का शिकार हो गए जिनमें दो पायलट्स भी शामिल हैं और 120 लोगों को चोटें आई हैं.
सरकार के वंदे भारत अभियान के तहत एयर इंडिया विभिन्न देशों में फंसे भारतीयों को वापस लाने का काम कर रहा है. इन उड़ानों के साथ भारतीय गौरव जुड़ा हुआ है. ये उस अभियान का हिस्सा हैं जिसके जरिए भारतीयों की वतन वापसी संभव हो रही है. हर एयरलाइन इस अभियान से जुड़ना चाहती है. लेकिन अज्ञात कारणों से इसके लिए सिर्फ नेशनल कैरियर यानी एयर इंडिया और उसके ‘सौतेले बच्चे’ यानी एयर इंडिया एक्सप्रेस को चुना गया है.
कोविड-19 के हाहाकार के बीच यह साल विश्व भर में एविएशन उद्योग के लिए बहुत बुरा रहा है. लॉकडाउन के बाद दक्षिण एशिया में दो बड़े विमान हादसे हुए. एयर इंडिया एक्सप्रेस के विमान के दुर्घटनाग्रस्त होने से ढाई महीने पहले पाकिस्तान में एक विमान हादसा हुआ था. पाकिस्तान इंटरनेशनल एयरलाइन की लाहौर से कराची आने वाली फ्लाइट PK 8303 कराची एयरपोर्ट के पास 22 मई को दुर्घटनाग्रस्त हुई. सच्चाई यह है कि इस विमान हादसे का कारण मौसम नहीं था.
बेशक, भारत को एविएशन के मामले में अपने पड़ोसियों की नकल नहीं करनी है. फिर भी हम ऐसा करते हैं. PK 8303 के हादसे के मद्देनजर कई कयास लगाए गए- दुर्घटना क्यों और कैसे हुई. कई गैरजिम्मेदाराना बयान भी दिए गए. हमें उनसे कुछ सीखना चाहिए.
लेकिन केरल की दुर्घटना बताती है कि हमारे लिए रास्ता बहुत लंबा है. खास तौर से सिविल एविएशन के क्षेत्र में जैसा संगठन और व्यवस्था हमारे देश में मौजूद है.
दुनियाभर में वैज्ञानिक जांच के बिना दुर्घटनाओं पर बयानबाजी गलत मानी जाती है. जैसे अमेरिका में विमान दुर्घटना होने पर सिर्फ नेशनल ट्रांसपोर्टेशन सेफ्टी बोर्ड एनटीएसबी की तरफ से सार्वजनिक टिप्पणी दी जाती है, वह भी बहुत सीमित शब्दों में. बाकी के देशों में भी इसी नियम का पालन होता है.
लेकिन भारत में स्रोत, एविएशन एक्सपर्ट, ब्यूरोक्रेट्स और नासमझ नेता हर हादसे के बाद बेसिर पैर की टिप्पणियां करने लगते हैं. बेशक किसी हवाई दुर्घटना के बाद हर व्यक्ति सच्चाई जानना चाहता है. असंवेदनशील और टीआरपी का भूखा मीडिया इसी का फायदा उठाता है. विशेषज्ञ सामने आने लगते हैं. अटकलबाजियां की जाती हैं. हमें यह सब इतना सामान्य क्यों लगता है? क्या वहां डीसीजीए को मौजूद होना नहीं चाहिए? जैसा कि हालिया घटनाक्रमों से जाहिर होता है, ऐसा नहीं हुआ है.
भारत के पास एनटीएसबी का विकल्प नहीं है. हां, सिविल एविएशन मंत्रालय के तहत एक वायुयान दुर्घटना अन्वेषण ब्यूरो (एएआईबी) है. उसने अब तक कोई टिप्पणी नहीं की है. गूगल सर्च करने पर एएआईबी की वेबसाइट से ‘अनसेफ’ का कॉलआउट मिलता है. उनकी वेबसाइट ‘https’ या‘safe’ तक नहीं है. क्या यही वह संगठन है जो भारत में विमान दुर्घटनाओं की जांच और उन्हें रोकने की सिफारिश करेगा. क्या भारतीयों को एएआईबी के एक भी ऐसे सदस्य का नाम याद है जिसने राष्ट्रीय या अंतरराष्ट्रीय स्तर पर हवाई सुरक्षा के क्षेत्र में कोई योगदान दिया हो? हमारी दुर्घटना जांच प्रणाली का दायरा कैसा होगा, यह इसी से समझा जा सकता है कि एएआईबी ने अब तक हवाई सुरक्षा के लिए कोई अर्थपूर्ण योगदान नहीं दिया है? यह प्रणाली विशेषज्ञों को आखिर कैसे चुनती है?
भारत में सभी विमान हादसों की रिपोर्ट की भूमिका में यह पंक्तियां लिखी होती हैं (हाल के हादसे की रिपोर्ट के उद्धरण)
तब भारतीय एविएशन रेगुलेटर डीजीसीए के प्रमुख ने केरल हादसे के बाद टेलीविजन पर आकर पायलट्स पर आरोप क्यों लगाए, जोकि अपनी सफाई देने के लिए जीवित भी नहीं हैं?
कंबाइन्ड वॉयस और फ्लाइट डेटा रिकॉर्डर (सीवीएफडीआर) को डीकोड कहने से पहले और परिवार वालों को मृतकों के शरीर सौंपने से पहले डीजीसीए के मुखिया डीजी अरुण कुमार ने दो पायलट्स के खिलाफ बेतुका बयान दिया. यह एक शर्मनाक बात है और किसी स्वाभिमानी देश में ऐसा नहीं होता. हमारे रेगुलेटर उप सहारा अफ्रीका के एविएशन एक्सपर्ट से दुर्घटनाओं की जांच जैसे विषय पर मास्टक्लास ले सकते हैं. हमारी हालत ऐसी ही हो गई है क्योंकि हमारी सबकी नजर कम से कम किराए और UDAN (उड़े देश का आम नागरिक) पर है.
IX-1344 हादसे के बाद कोझिकोड गए केंद्रीय एविएशन मंत्री हरदेव सिंह पुरी ने लोगों से अनुरोध किया था कि वे कोई कयास न लगाएं. लेकिन उनके मुख्य अधिकारी ने खुद सनसनी की तलाश करने वाले मीडिया के सामने ऐसे सवाल उछाले. हालांकि यह उन्हीं की जिम्मेदारी है कि वे ऐसे सवालों से अपने लोगों को बचाएं. डीजीसीए के डीजी ने कहा था, ‘ऐसा लगता है कि पायलट्स ने गलत फैसला लिया था.’
चूंकि डीजी के तौर पर अरुण कुमार के पास अधिक डेटा हो सकता है, बजाय उस ‘व्हॉट्सएप यूनिवर्सिटी’ के जो सामान्य नागरिकों को रोजाना नया डेटा फीड करती है. फिर भी, जिसे मीडिया को दिए गए इंटरव्यू में ‘शुरुआती आकलन’ कहा गया था, वह सिर्फ ‘अधपकी जानकारी थी’, उसे प्रोसेस नहीं किया गया था, न ही इसका विश्लेषण किया गया था या किसी प्रोटोकॉल के अनुसार अधिकृत जांच एजेंसियों ने इसकी जांच नहीं की थी. सोशल मीडिया की डीपी के आधार पर किसी व्यक्ति के चरित्र पर फैसला देना कितना उचित है.
क्या इससे आगे की प्रक्रिया पर असर नहीं होगा, वह भी मानव जीवन और भारत में हवाई सुरक्षा के भविष्य की कीमत पर. इंस्ट्रुमेंटल फ्लाइट रूल्स (आईएफआर) के फ्लाइट प्लान्स, जोकि IX-1344 जैसी उड़ानों के लिए स्टैंडर्ड होते हैं, में जरूरी डायवर्जन से पहले दो तरीके अपनाए जाते हैं. शुरुआती डायवर्जन पर मिस्ड एप्रोच और अगर जरूरी हुआ तो सेकेंडरी डायवर्जन के लिए उड़ान. इसके अलावा विजिबिलिटी, रनवे विजुअल रेंज (आरवीआर, उपकरण जोकि कोझिकोड हवाईअड्डे पर उपलब्ध नहीं था), तकनीकी दूरियां और एयरफील्ड्स और विशेष प्रकार के विमानों के लिए टेलविंड लिमिट्स पर भी ध्यान दिया जाता है. डीजी के गैरजिम्मेदाराना बयान में इस मसलों का कोई जिक्र नहीं था. वह क्रू के खराब फैसले की दुहाई देकर इन सबसे बच निकले. यह आईसीएओ एनेक्स 13 और दुर्घटनाओं की जांच के खिलाफ जाता है. अगर वह अपने पद से इस्तीफा नहीं देते तो कम से कम उन्हें सार्वजनिक तौर से माफी जरूर मांगनी चाहिए.
फ्लाइट क्रू बॉक्स (सिमुलेटर) और हवा में घंटों बिताते हैं. उन्हें उन प्रतिकूल परिस्थितियों का प्रशिक्षण दिया जाता है जो उस दिन कोझिकोड में मौजूद थी. यह कोई अनोखा वक्त नहीं था. आईएफआर प्रोसीजर्स के तहत टेलविंड लिमिटेशंस के भीतर डायरेक्ट एप्रोच का फैसला, एप्रोच की कोशिश, दूसरे एप्रोच के लिए डीएच यानी डिसीजन हाइट जैसा ऑल्टीट्यूड पर जाना, सभी कैप्टन के फैसलों के दायरे में आते हैं. उनके कंधों पर चार स्ट्राइप्स बिना कारण नहीं होते.
जब IX-1344 भारत से दुबई रवाना हुआ (कब, यह पता नहीं), और फिर कोझिकोड पहुंचा, तब दक्षिण पश्चिमी मानसून का भयानक रूप नजर आ रहा था. क्रू के किसी दूसरे सदस्य की न तो मौत हुई, न वे घायल हुए जो इस बात का संकेत है कि विमान में कोई ‘डेडहेडिंग’ क्रू नहीं था. कोझिकोड में मौसमी बारिश हो रही थी, हां, वह मुश्किल वक्त था लेकिन B737-800 जैसे आधुनिक हवाई जहाज के लिए यह कोई असामान्य बात नहीं थी (लैंडिंग के समय मौसम की रिपोर्ट प्रासंगिक है). वास्तविक मौसम बदल भी सकता है. क्रू अपने डेस्टिनेशन से सैकड़ों मील पहले इन सब बातों को ध्यान में रखता है और उसी हिसाब से योजना बनाता है या डायवर्जन करता है यानी दिशा बदल देते हैं.
IX-1344 को कैप्टन दीपक वसंत साठे जैसे अनुभववान व्यक्ति उड़ा रहे थे, उन्हें सिविल और सैन्य उड़ानों का हजारों घंटों का अनुभव था चूंकि वह भारतीय वायु सेना के पूर्व टेस्ट पायलट थे.
पहली कोशिश में ‘मिस्ड एप्रोच’ का मतलब यह हो सकता है कि क्रू को लैंड करने के लिए डिसिजन हाइट/ऑल्टीट्यूड (डीएच/डीए) पर जरूरी विजुअल रिफ्ररेंस न मिला हो. अगर उन्होंने सेकेंड एप्रोच का फैसला किया, यानी दूसरी बार लैंड करने की कोशिश की तो यह भी स्टैंडर्ड ऑपरेटिंग प्रोसीजर के तहत आता है. आईएफआर के अंतर्गत डायवर्जन से पहले दो मिस्ड एप्रोच होती हैं. इसलिए पायलट ने डायवर्ट क्यों नहीं किया, इस पर हल्ला मचाना बेतुकी टिप्पणी से ज्यादा कुछ नहीं.
सोचकर देखिए- महामारी और उससे संबंधित नियम वतन वापसी करने वाले यात्रियों के लिए कितनी मुश्किलें पैदा कर रहे हैं. क्या इन बातों का असर कैप्टन साठे पर नहीं पड़ा होगा, जब वे कोझिकोड लौटने की योजना बना रहे होंगे? मेरे ख्याल से बिल्कुल पड़ा होगा.
यूं विमान के दोनों पायलट्स अब जीवित नहीं कि अपनी सफाई दे सकें जोकि बाकी के लोगों के लिए बहुत ‘सुविधाजनक’ है. लेकिन मीडिया के सामने डीजी का बयान पूरी जांच प्रणाली को पूर्वाग्रहों से भर सकता है. उन्होंने एक विषम जांच के लिए मंच तैयार किया है और शायद इसके बाद लाग लपेट की भी कोशिश की जाए. भारतीय एविएशन में यह न तो अप्रत्याशित है और न ही हैरान करने वाली बात.
IX-1344 हादसे और उसके बाद के बयानों से एक बात साफ होती है- डीजी या तो हवाई दुर्घटनाओं की जांच को समझते नहीं, या उनकी परवाह नहीं करते. उन्होंने कई गैर पेशेवर शब्दों, जैसे ‘रनवे की एक तरफ’ या ‘रनवे की दूसरी तरफ’ का इस्तेमाल किया और इंस्ट्रूमेंट रनवे, उपलब्ध आईएलसी की श्रेणी (कोझिकोड के लिए सिर्फ श्रेणी 1), मौजूदा स्थितियों की तुलना में विभिन्न प्रकार के एप्रोच प्रोसीजर्स वगैरह के बारे में कुछ नहीं कहा, इसी से यह पता चलता है कि उन्हें एविएशन की कितनी जानकारी है.
डीजीसीए हवाई सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए जिम्मेदार होता है. इसकी बजाय वह खुद उसे दांव पर लगा रहा है. जो देश आम आदमी के लिए हवाई यात्राओं को सहज बनाने में सचमुच रुचि रखते हैं, वे ऐसी चर्चाओं को कभी नहीं छेड़ते.
इस खतरनाक खेल में किसका नुकसान होता है, यात्रियों और उनके परिवारों को. हर बार हादसों का शिकार वही होते हैं. पर असल बात तो यह है कि जो चिंता करते हैं, वे मायने नहीं रखते, और जो मायने रखते हैं, वे चिंता नहीं करते.
निश्चित तौर पर डीजी को अपने बयान के लिए माफी मांगनी चाहिए या इस्तीफा देना चाहिए. एविएशन के क्षेत्र को बहुत करीब से देखने के बाद मैं बहुत दुख के साथ कहना चाहता हूं कि इनमें से कुछ भी नहीं होगा. जिंदगी ऐसे ही चलती रहेगी. क्योंकि किसी को कोई फर्क नहीं पड़ता. हम ऐसे ही सिस्टम का हिस्सा हैं, यह बात और है कि गलत साबित होने पर मुझे बहुत खुशी होगी.
(कैप्टन के पी संजीव कुमार नौसेना के एक पूर्व टेस्ट पायलट हैं और www.kaypius.com पर ब्लॉग और @realkaypius पर ट्विट करते हैं. वह 24 से अधिक प्रकार के फिक्स्ड और रोटेटरी विंग एयरक्राफ्ट उड़ा चुके हैं और उन्हें Bell 412 और AW139 हेलीकॉप्टरों पर दोहरी एटीपी रेटिंग मिली है. ये लेखक के निजी विचार हैं. द क्विंट का उनसे सहमत होना जरूरी नहीं है)
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