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19वीं शताब्दी की कर्नाटक की रानी की तलवार ने लिंगायत समुदाय को एक कर दिया है. यह समुदाय अल्पसंख्यक दर्जे के लिए आंदोलन कर रहा है.
कई लिंगायत नेताओं ने राज्य और केंद्र सरकार से कित्तूर की रानी चेन्नमा की तलवार वापस लाने की मांग की है, जो कथित तौर पर लंदन के एक म्यूजियम में है.
ब्रिटिश साम्राज्य के खिलाफ कर्नाटक के संघर्ष में रानी चेन्नमा की बड़ी भूमिका थी. ब्रिटेन की हड़प नीति यानी डॉक्ट्रिन ऑफ लैप्स के खिलाफ उन्होंने झांसी की रानी लक्ष्मीबाई से पांच दशक पहले बगावत की थी. इस नीति के मुताबिक, अगर किसी राजा की अपनी संतान नहीं होती थी, तो उसकी संपत्ति पर अंग्रेज कब्जा कर लेते थे.
चेन्नमा और उनके पति राजा मालसराज का एक बेटा था. लेकिन उसकी 1824 में मौत हो गई थी. इसके बाद रानी चेन्नमा ने शिवलिंगप्पा को गोद लेकर उसे उत्तराधिकारी बनाया, पर अंग्रेजों ने हड़प नीति की दलील देकर शिवलिंगप्पा को उत्तराधिकारी मानने से इनकार कर दिया.
रानी चेन्नमा के कई बार अपील करने के बावजूद ब्रिटिश कित्तूर और वहां के जेवरात पर कब्जा करने पहुंचे, जिसकी कीमत तब 15 लाख रुपये से अधिक थी. इसी से कित्तूर की लड़ाई शुरू हुई.
1824 को पहले युद्ध में चेन्नमा ने 20,000 सैनिकों और 400 बंदूकों के साथ आए अंग्रेजों को हरा दिया. इसमें दो अंग्रेज अफसरों को बंदी भी बनाया गया था, जिनके नाम सर वॉल्टर एलियट और स्टीवेन्सन थे. बाद में इस शर्त के साथ दोनों को रिहा कर दिया गया कि अंग्रेज कित्तूर की घेरेबंदी हटा लेंगे. हालांकि, अंग्रेज वादे से मुकर गए और उन्होंने कित्तूर पर हमला जारी रखा. दूसरी लड़ाई में अदम्य साहस दिखाने के बावजूद रानी चेन्नमा बंदी बनाई गईं और अंग्रेजों की कैद में 2 फरवरी 1829 की उनकी मौत हो गई.
11 सितंबर 2007 को संसद भवन में तत्कालीन राष्ट्रपति प्रतिभा पाटिल ने रानी चिन्नमा की प्रतिमा का अनावरण किया था.
कर्नाटक में चेन्नमा लिंगायत समुदाय की अलग धार्मिक पहचान की लड़ाई का प्रतीक बन गई हैं. लिंगायत महासभा के को-ऑर्डिनेटर और पूर्व नौकरशाह शिवानंद जामदार ने बताया, ‘लिंगायत समुदाय के लिए चेन्नमा काफी महत्व रखती हैं. लिंगायतों की पहचान उनसे जुड़ी है.’
इस कैंपेन का नेतृत्व करने वालों में जाने-माने लिंगायत नेता और कूडलसंगम के पंचमसली महापीठ के प्रमुख जय मृत्युंजय स्वामी भी शामिल हैं. उन्होंने हाल ही में कहा था कि तलवार को वापस लाने की खातिर एक सर्वदलीय समिति बनाई जाएगी, जो ब्रिटेन और भारत सरकार के साथ बातचीत में भूमिका निभाएगी. उन्होंने बताया था कि इस समिति के अध्यक्ष पूर्व मंत्री और बीजेपी नेता एम निरानी होंगे.
क्विंट से बातचीत में मृत्युंजय स्वामी ने कहा कि राज्य और केंद्र सरकार पर दबाव बनाने के लिए कित्तूर की रानी चेन्नमा के जन्मदिवस 23 अक्टूबर से एक कैंपेन चलाया जाएगा. उन्होंने कहा, '‘तलवार को वापस लाने के लिए सरकार से कई बार अपील की जा चुकी है. हम इसके लिए दबाव बढ़ाएंगे.’' उन्होंने बताया कि इस मामले में अगले हफ्ते एक प्रतिनिधिमंडल विदेश मंत्री सुषमा स्वराज से मुलाकात करेगा.
10 दिसंबर 2014 को संसद सदस्य राजीव चंद्रशेखर ने भी राज्यसभा में तलवार का मामला उठाया था. उन्होंने संस्कृति मंत्रालय से पूछा था कि क्या रानी चेन्नमा की तलवार लंदन के म्यूजियम में है और उसे वापस लाने के लिए सरकार क्या कदम उठा रही है? इस पर मंत्रालय ने जवाब दिया था, ‘भारतीय हाई कमीशन की रिपोर्ट के मुताबिक लंदन के म्यूजियम में ऐसी कोई तलवार नहीं है.’
कर्नाटक यूनिवर्सिटी में इतिहास के प्रोफेसर अपन्ना वग्गर (Vaggar) ने बताया कि तलवार के लंदन में होने के कोई सबूत नहीं मिले हैं. उन्होंने कित्तूर पर एमफिल और पीएचडी की है. वह कित्तूर से जुड़े डॉक्युमेंट को कलेक्ट और ट्रांसलेट करने के प्रोजेक्ट से भी जुड़े रहे हैं. जिस टीम के साथ उन्होंने यह काम किया था, उसके हेड प्रोफेसर एम एम कलबुर्गी थे.
अपन्ना के मुताबिक, तलवार के लंदन में होने का दावा एक किताब के आधार पर किया जा रहा है, जिसका नाम प्राइजेज ऑफ कित्तूर है. उन्होंने कहा, ‘'हालांकि, यह एक किताब नहीं है. लंदन के म्यूजियम और लंदन लाइब्रेरी के कैटलॉग ऑनलाइन भी देखे जा सकते हैं. उनमें तलवार का जिक्र नहीं है.’' जामदार ने भी कहा कि लंदन यात्रा के दौरान उन्होंने कभी यह तलवार नहीं देखी.
हालांकि, जब उनसे तलवार वापस लाने के लिंगायत नेताओं के अभियान के बारे में पूछा गया, तो जामदार ने कहा कि उन्हें इसके बारे में पता नहीं है, इसलिए वह इस पर कमेंट नहीं कर सकते.
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