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‘द लीडर’ के लिए अब तक यह सामान्य दिन था, लेकिन दोपहर के कुछ समय बाद उनके ऑफिस पर एक न्यूक्लियर (पॉलिटिकल) मिसाइल आ गिरी. सामान्य दिन की उनकी उम्मीद अब टूट चुकी थी और उन्होंने दीवार पर टंगे टीवी को ऑन किया. स्क्रीन पर उन्हें जो नजारा दिखा, वह देश की आजादी के 70 साल में पहले किसी ने भी नहीं देखा था.
सुप्रीम कोर्ट के चार सीनियर जजों ने मुख्य न्यायाधीश के खिलाफ खुला विद्रोह कर दिया था. उन्होंने मुख्य न्यायाधीश पर गंभीर आरोप लगाए थे. इनमें भाई-भतीजावाद, भ्रष्टाचार से लेकर आम सहमति बनाने की कोशिश नहीं करने जैसी बातें शामिल थीं. चारों जजों ने कहा कि लोकतंत्र को बचाने के लिए भारी मन से उन्होंने यह कदम उठाया है.
शायद यह जून 1975 के बाद सबसे खतरनाक लम्हा है. सुप्रीम कोर्ट संविधान है. अगर इसमें दरार पड़ती है, तो लोकतंत्र खतरे में पड़ जाएगा. संकट कितना बड़ा है, इसे समझने के लिए कुछ और सुनने की जरूरत नहीं थी.
कानूनी सलाहकारः सर, मैं तो इस विवाद से दूर रहने की सलाह दूंगा. उन्हें खुद इस कीचड़ से निकलने दीजिए. अगर हम इसमें दखल देते हैं, तो हमारे आलोचक कहेंगे कि हम न्यायपालिका की स्वायत्तता में दखल देकर संविधान की बुनियाद को चोट पहुंचा रहे हैं.
मीडिया सलाहकारः सर, मैं अपने प्रोपगेंडा चैनलों को एक्टिवेट कर चुका हूं. चारों अहसान फरामोशों के खिलाफ नफरत और गालियों की बाढ़ आ जाएगी. हमें उन पर विपक्ष के साथ मिलीभगत का आरोप लगाना चाहिए. हमें उनका रिकॉर्ड खराब कर देना चाहिए. उनके धार्मिक और उदारवादी जुड़ाव को लेकर खूब शोर मचाना चाहिए. हमें लोगों की नजरों में उन्हें मजाक का पात्र बना देना चाहिए.
राजनीतिक सलाहकारः सर, हमें विपक्ष को हमला करने का मौका ही नहीं देना चाहिए. जब तक कि उसकी प्रतिक्रिया आए, हमें यह कहना चाहिए कि विपक्ष ने जल्दबाजी की और मुख्य न्यायाधीश के खिलाफ महाभियोग चलाने की बात कहकर उसने अपना राष्ट्रविरोधी चेहरा उजागर कर दिया है.
‘द लीडर’ सुबह उठे. अक्सर जैसा सबके साथ होता है कि सुबह उठने पर उनका दिमाग भी हल्का था. उन्होंने पिछले दिन की घटनाओं पर ठंडे दिमाग से सोचा था, जिससे उन्हें सिचुएशन को बेहतर ढंग से समझने में मदद मिली.
‘द लीडर’ की गाड़ी राष्ट्रपति भवन पहुंची, जहां उन्हें तुरंत अंदर ले जाया गया.
द लीडरः माननीय राष्ट्रपति जी, इस विवाद को खत्म करने का संवैधानिक और नैतिक अधिकार सिर्फ आपके पास है. आप ही इस जख्म को भर सकते हैं. अगर आप विवाद को सुलझाने की पहल करते हैं तो उसे राजनीतिक दखल नहीं माना जाएगा. इसलिए मैं आपकी इजाजत लेकर सभी 27 लोगों को चाय पर बुलाता हूं.
ओह, इससे तो लगेगा कि आप कार्यपालिका के अधिकार क्षेत्र में दखल दे रहे हैं. इससे मेरी अथॉरिटी कम होगी. इसलिए इन लोगों को निमंत्रण आपके नाम से जाना चाहिए.
राष्ट्रपति (लंबी चुप्पी के बाद): मैं आपकी बात समझता हूं. आप ऐसा ही करिए.
निमंत्रण पत्र में लिखा है... ‘मेरी गुजारिश पर, माननीय राष्ट्रपति आपकी चाय पर मौजूदगी चाहते हैं. आप कृपया दोपहर 3 बजे राष्ट्रपति भवन पहुंच जाएं. आपका दर्शनाभिलाषी, द लीडर.’ सभी 27 लोग तय समय पर राष्ट्रपति भवन पहुंचे. उन्होंने राष्ट्रपति का अभिवादन करने के बाद घबराते हुए मसाला चाय के साथ ढोकला उठाया.
द लीडर (गला साफ करते हुए) : कल की प्रेस कॉन्फ्रेंस के बाद जो घटनाएं हुई हैं, उनसे माननीय राष्ट्रपति जी बहुत चिंतित हैं. संविधान के संरक्षक होने के नाते वह यह भी समझते हैं कि न ही उन्हें या मुझे इस मामले में दखल देना चाहिए या यह बताना चाहिए कि आपको क्या करना है. इस विवाद का हल आप लोग ही निकाल सकते हैं और आपको ही निकालना होगा. इसलिए माननीय राष्ट्रपति ने आपको दरबार हॉल का इस्तेमाल करने की छूट दी है. आप यहां बैठकर तुरंत बात शुरू करिए.
द लीडर (थोड़ी देर चुप रहने के बाद): मैं और राष्ट्रपति जी यहां से जा रहे हैं. हम उम्मीद करते हैं कि आप खुलकर और पारदर्शी तरीके से चर्चा करेंगे. आपको जितना समय लगाना है, उतना लगाइए. लेकिन कल शाम तक मैं और राष्ट्रपति जी चाहते हैं कि सुप्रीम कोर्ट के लॉन में एक ज्वाइंट प्रेस कॉन्फ्रेंस में आप समझौते का ऐलान करें. सोमवार को सूर्योदय से पहले देश को यह भरोसा हो जाना चाहिए कि यह बुरा सपना खत्म हो चुका है और उलटे इसका सकारात्मक असर हुआ है. इससे सुप्रीम कोर्ट में पारदर्शिता और भरोसा बढ़ा है. भगवान आपकी इसमें मदद करें. इसके बाद राष्ट्रपति और ‘द लीडर’ दरबार हॉल से चले जाते हैं...
न्यूक्लियर बटन का इस्तेमाल तो हुआ, लेकिन शांति कायम करने के लिए.
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Published: 13 Jan 2018,07:47 PM IST