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चुनाव का वक्त करीब आ चुका है. अब से करीब दस महीने बाद देश एक नई सरकार चुन रहा होगा. कोई चमत्कार नहीं हुआ, तो तय मानिए कि बीजेपी को अपने दम पर बहुमत नहीं मिलने जा रहा है. हां वो लोकसभा में सबसे बड़ी पार्टी जरूर होगी.
ऐसे में नरेंद्र मोदी प्रधानमंत्री बनने के इच्छुक होते हैं या नहीं ये इस बात निर्भर करेगा कि बीजेपी अभी के मुकाबले कितनी सीटें गंवाती है.
साल 1989 में जब कांग्रेस अपने 415 सीटों के आंकड़े घटकर 197 पर रह गई थी, तो कांग्रेस सरकार के प्रधानमंत्री राजीव गांधी ने कहा था कि भले ही उनकी पार्टी लोकसभा में सबसे बड़ा दल है फिर भी जनादेश उनके खिलाफ है, इसीलिए वो सरकार बनाने की कोशिश नहीं करेंगे.
अगर बीजेपी 130 से 140 सीटें हार जाती है, जो कि मुमकिन है. तो सवाल रहेगा कि क्या वो राजीव गांधी के फॉर्मूले पर चलेगी? तीन वजहों से ऐसा मुमकिन लगता है.
पार्टी, नेता और असंतोष
संभावित महागठबंधन की पार्टियों के अंकगणित को देखते हुए एक बात पूरे भरोसे के साथ कही जा सकती है कि इनके बीच कांग्रेस सबसे बड़ी पार्टी होगी, क्योंकि बाकी तमाम पार्टियां क्षेत्रीय हैं और इनमें से कोई भी हद से हद 50 सीटें तक जीत सकती हैं.
दूसरी ओर कांग्रेस अगर अपने मौजूदा आंकड़े में 5 सीटों का भी इजाफा करती है, तो लोकसभा में उसके सांसदों की संख्या 53 हो जाएगी. इसके बाद कांग्रेस राहुल गांधी से अलग किसी चेहरे के साथ गठबंधन की सरकार की अगुवाई के लिए सामने आ सकती है. ये स्थिति एक तरह से 2004 के सोनिया-मनमोहन के वक्त के दोहराव की तरह होगी.
ऐसी स्थिति में अगर बीजेपी भी सरकार बनाने से मना कर दे, तो शायद हमारे पास एक और आमचुनाव के सिवा कोई और रास्ता नहीं होगा.
1989 का दोहराव: तब बीजेपी, सीपीएम और सीपीआई सबने जनता दल का समर्थन किया था. आगे भी हम भारतीय राजनीति की ‘बाहर से समर्थन’ की विचित्र घटना देख सकते हैं, जिसमें कि दुश्मन पार्टियां भी बीजेपी को सत्ता से बाहर रखने के नाम पर एक साथ हो सकती हैं. ठीक वैसे ही, जैसा कि 1989 में कांग्रेस को बेदखल करने के नाम पर हुआ था.
हमें ये सोचकर अपनी आंखों में धूल नहीं झोंकना चाहिए कि ऐसी स्थिति दोबारा नहीं आएगी. मैं कह सकता हूं कि यही 2019 चुनाव से निकलने वाली सबसे प्रबल संभावना है.
हम कुछ गंभीर राजनीति उठा-पटक की तरफ बढ़ रहे हैं, जो कुछ समय तक कायम रह सकती है.
(लेखक आर्थिक-राजनीतिक मुद्दों पर लिखने वाले वरिष्ठ स्तंभकार हैं. इस आर्टिकल में छपे विचार उनके अपने हैं. इसमें क्विंट की सहमति होना जरूरी नहीं है)
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Published: 30 Jul 2018,02:39 PM IST