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महाराष्ट्र और झारखंड विधानसभा चुनावों के एग्जिट पोल आ गए हैं. अलग-अलग एजेंसियां अलग-अलग संख्याएं लेकर आई हैं जो वोटरों और दर्शकों को अनुमान लगाने पर मजबूर कर देंगी कि दोनों राज्यों में सरकार किसकी बनने जा रही है. 23 नवंबर को वे अपने टीवी सेटों से चिपके रहेंगे.
एग्जिट पोल आम तौर पर ओपिनियन पोल की तुलना में बेहतर बैरोमीटर होते हैं, और यदि सीटों के मामले में बिल्कुल सटीक नहीं होते हैं, तो भी वे चुनाव के रुझान की दिशा का संकेत जरूर देते हैं. हालांकि, 2024 के आम चुनावों और उसके बाद हुए हरियाणा विधानसभा चुनावों में एग्जिट पोल फेल साबित हुए और लोगों ने उनकी प्रासंगिकता पर सवाल उठाया है.
एग्जिट पोल कराने वाली एजेंसियां हाल के बलंडर के बाद सतर्क हो गयी हैं. इस बार का चुनावी मौसम मतदान एजेंसियों के लिए 'बन जाओ या मर जाओ' वाला हो सकता है. यदि उनकी भविष्यवाणी फिर से गलत हो जाती हैं, तो एग्जिट पोल की इंडस्ट्री को दर्शकों और ऐसे सर्वे करने वाले चैनलों का विश्वास हासिल करने में लंबा समय लग सकता है.
जैसा कि पिछले कुछ चुनावों का ट्रैक रिकॉर्ड रहा है, पोलस्टर्स के बीच इस बात पर कोई सहमति नहीं है कि कौन जीत रहा है. महाराष्ट्र के अबतक के जारी एग्जिट पोल के औसत से पता चलता है कि महायुति 149 सीटों के साथ सत्ता बरकरार रख सकती है. जबकि विपक्षी एमवीए 129 सीटों पर सिमट रही है, जो आम चुनावों में शानदार प्रदर्शन के बाद अपनी गति को बनाए रखने में विफल रही है.
नीचे दिए गए टेबल में महाराष्ट्र के लिए पोल ऑफ एग्जिट पोल्स हैं.
झारखंड में, एग्जिट पोल के अनुसार त्रिशंकु सदन के संकेत मिल रहे हैं. इनमें बीजेपी के नेतृत्व वाले NDA और जेएमएम के नेतृत्व वाले इंडिया ब्लॉक लगभग समान संख्या में सीटें जीत रहे हैं, यानी 39-38. तीन एजेंसियों ने इंडिया ब्लॉक को बढ़त दी है, जबकि चार ने NDA को बढ़त दी है, और एक ने त्रिशंकु विधानसभा की भविष्यवाणी की है.
नीचे दिए गए टेबल में झारखंड के लिए पोल ऑफ एग्जिट पोल्स है.
अनुमानों में असमानताओं के कई कारण हैं. भले पोलस्टर्स वैज्ञानिक सैंपल लेते हैं, वोटर उसी वैज्ञानिक तरीके से प्रतिक्रिया दे भी सकते हैं और नहीं भी. उदाहरण के लिए, कुछ वोटर समूह ऐसे सर्वे में भाग लेने में थोड़ा भयभीत हो सकते हैं, जबकि दूसरे एकदम नहीं.
इसके अलावा, कुछ (यदि बहुत अधिक नहीं) वोटर वास्तव में (किसी भी कारण से) इंटरव्यू लेने वाले से झूठ बोल सकते हैं. इसके बाद पोलस्टर्स को इसमें सुधार करने की आवश्यकता होती है और अक्सर ऐसा करने के लिए वह ऐतिहासिक जानकारी का उपयोग करता है.
इन सब बातों के रहते, एजेंसियों के लिए यह अनुमान लगाना आसान नहीं है कि कौन जीतेगा. हालांकि, फिर भी उनके अनुमानों में अंतर हमें महत्वपूर्ण निष्कर्ष प्रदान कर सकता है.
यदि NDA महाराष्ट्र में जीतता है और झारखंड हार जाता है तो इसका मतलब है कि लड़की बहिन और मैया सम्मान योजना ने दोनों राज्यों में काम किया है. लेकिन यदि NDA दोनों राज्यों में जीतता है, तो इसका मतलब है कि लड़की बहिन योजना तो महाराष्ट्र में काम कर गई, लेकिन इसी तरह की योजना झारखंड में काम नहीं करती है. यह विरोधाभासी है.
यदि महायुति महाराष्ट्र जीतती है, तो यह सुझाव देगा कि कृषि संकट, महंगाई, बेरोजगारी, ग्रामीण संकट, भ्रष्टाचार और मराठा आंदोलन जैसे मुद्दों को लड़की बहिन योजना और बीजेपी के माइक्रो मैनेजमेंट ने मात दे दी है.
यदि MVA जीतती है, जैसा कि दो एजेंसियों ने भविष्यवाणी की है, तो इसका मतलब बिल्कुल विपरीत होगा. यानी, रोजी-रोटी के मुद्दे जनता के लिए मायने रखते हैं, और मतदाताओं के लिए रेवड़ी काम नहीं करता है.
यदि जेएमएम के नेतृत्व वाला गठबंधन झारखंड जीतता है, तो यह माना जाएगा कि आदिवासी अस्मिता ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई, जिसने बीजेपी के 'बंटेंगे तो कटेंगे' नैरेटिव को मात दे दी है. यह हेमंत सोरेन को आदिवासियों के निर्विवाद नेता के रूप में स्थापित करेगा.
यदि NDA झारखंड जीतता है, तो यह संकेत देगा कि बीजेपी की कथित विभाजनकारी राजनीति काम कर गई और गैर-आदिवासी बड़ी संख्या में बीजेपी के पीछे एकजुट हो गए.
अगर NDA महाराष्ट्र और झारखंड दोनों जीतता है, तो बीजेपी यह साबित करने में सक्षम होगी कि 2024 के आम चुनाव में लगा डेंट असामान्य था, और पीएम मोदी धमाकेदार वापसी कर रहे हैं (विशेषकर हरियाणा के बाद). इसके बाद NDA यूसीसी, वक्फ, वन नेशन वन इलेक्शन आदि जैसे विवादास्पद बिलों को आगे बढ़ाएगा.
यदि NDA महाराष्ट्र और झारखंड हार जाता है, तो यह उजागर होगा कि मोदी का जादू वास्तव में फीका पड़ रहा है, और बेरोजगारी और महंगाई बड़े मुद्दे बने हुए हैं, जैसा कि आम चुनावों के नतीजों से पता चलता है.
ओपिनियन पोल सर्वे की तुलना में एग्जिट पोल दर्शकों और क्लाइंट्स के दिमाग में लंबे समय तक रहते हैं. इसलिए, एजेंसियों पर सटीक भविष्यवाणी करने का दबाव बहुत अधिक होता है. यहीं पर पोलस्टर्स की पृष्ठभूमि बहुत मायने रखती है.
वोटिंग के आखिरी दिन से लेकर काउंटिंग के दिन के बीच एग्जिट पोल हमारी जिज्ञासा और उत्साह को शांत करने का जरिया भर है. भले ही वे गलत हों, वे रिजल्ट आने से पहले आकर्षक शुरुआत देते हैं, जैसे फिल्म के पहले दृश्य में होता है. इसलिए बढ़िया होगा, आप एग्जिट पोल को पॉपकॉर्न की तरह ही मानिए.
(अमिताभ तिवारी एक स्वतंत्र राजनीतिक टिप्पणीकार हैं. उनका X हैंडल @politicalbaaba है. यह एक ओपिनियन पीस है और ऊपर व्यक्त विचार लेखक के अपने हैं. क्विंट न तो इसका समर्थन करता है और न ही इसके लिए जिम्मेदार है.)
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Published: 21 Nov 2024,02:45 PM IST