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Manipur: सरकार के साथ UNLF का 'शांति समझौता', क्या है इस ग्रुप का इतिहास?

गृह मंत्री अमित शाह ने इस डेवलपमेंट को "ऐतिहासिक माइलस्टोन यानी मील का पत्थर" बताया.

राजीव भट्टाचार्य
नजरिया
Published:
<div class="paragraphs"><p>Manipur: सरकार के साथ UNLF का 'शांति समझौता' और क्या है इस ग्रुप का इतिहास?</p></div>
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Manipur: सरकार के साथ UNLF का 'शांति समझौता' और क्या है इस ग्रुप का इतिहास?

(फोटो: X/@AmitShah)

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भारत सरकार ने प्रतिबंधित यूनाइटेड नेशनल लिबरेशन फ्रंट ऑफ मणिपुर (UNLF) के साथ एक "शांति समझौता" पर हस्ताक्षर किया है. यूएनएलएफ पूर्वोत्तर में सबसे पुराने विद्रोही संगठनों में से एक है, जो अतीत में कई दशकों तक बातचीत के जरिए समझौते के रास्ते को लगातार खारिज करते आ रहा था.

गृह मंत्री अमित शाह ने इस समझौते को "ऐतिहासिक माइलस्टोन यानी मील का पत्थर" बताया और कहा कि पूर्वोत्तर और मणिपुर में शांति स्थापित होने की इससे उम्मीद है.

समझौते में सरकार और UNLF के बीच संघर्ष की समाप्ति शामिल है और इसे बातचीत के जरिए समाधान के लिए शांति प्रक्रिया की शुरुआत माना जा रहा है.

अंतत: ऐसे ही एक और विद्रोही ग्रुप के साथ किए गए समझौते की ही तरह, ग्रुप की ओर से लिखित मांगें रखी जाएंगी, जिसके बाद समझौते के लिए कई विचार-विमर्श किया जाएगा.

UNLF का संक्षिप्त इतिहास

UNLF की स्थापना 24 नवंबर 1964 को हुई थी, जिसके अध्यक्ष कलालुंग कामेई, उपाध्यक्ष थानखोपाओ सिंगसिट और महासचिव अरंबम समरेंद्र थे. इसका उद्देश्य एक स्वतंत्र संप्रभु मणिपुर की स्थापना करना और म्यांमार से राज्य के "खोये हुए क्षेत्र" को पुनः प्राप्त करना है.

UNLF दूसरा विद्रोही संगठन है, जो 1948 में हिजाम इराबोट के अध्यक्ष के रूप में मणिपुर की कम्युनिस्ट पार्टी के गठन के बाद मणिपुर की इंफाल घाटी में उभरा है.

यह घाटी का अब तक का तीसरा संगठन है, जो सरकार के साथ बातचीत के जरिए समझौते के लिए आगे आया है. 2012 में, कांगलेइपक कम्युनिस्ट पार्टी (केसीपी) के तीन गुटों ने राज्य सरकार और केंद्र के साथ त्रिपक्षीय युद्धविराम समझौते पर हस्ताक्षर किए थे. यूनाइटेड पीपुल्स पार्टी ऑफ कांगलेइपाक (यूपीपीके) ने भी एक साल बाद यही किया.

UNLF (पंबेई) के साथ युद्धविराम

हम इतिहास से 2023 पर वापस आते हैं. कुछ रिपोर्टों में यूएनएलएफ के साथ एक "शांति समझौते" का उल्लेख करते हुए कहा गया कि यह संगठन का "पाम्बेई" गुट है, जिसने सरकार के साथ महीनों की अनौपचारिक चर्चा के बाद समझौते पर हस्ताक्षर किए हैं.

माना जाता है कि सना याइमा उर्फ ​​राजकुमार मेघेन के 2010 में बांग्लादेश में पकड़े जाने और भारत को सौंपे जाने के बाद खुंडाप्रम पामबेई ने संगठन के अध्यक्ष के रूप में कार्यभार संभाला था. संगठन की केंद्रीय समिति की ओर से पाम्बेई को UNLF से निकाले जाने के कारण का 28 फरवरी 2021 को जारी एक प्रेस रिलीज में किया गया.

पाम्बेई पर "पार्टी विरोधी गतिविधियों" और भारत सरकार का "असली एजेंट" होने का आरोप लगाया गया था, उसने "स्वार्थी हितों" के लिए पार्टी के संविधान का उल्लंघन किया था. उस पर अपने परिवार के लिए "वित्तीय संपत्ति जमा करने" और सरकारी कॉन्ट्रैक्ट हथियाने के लिए प्रयास करने का भी आरोप लगाया गया.

पम्बेई के गुट ने आर के अचौ सिंह उर्फ ​​कोइरेंग के नेतृत्व वाले प्रतिद्वंद्वी गुट के खिलाफ जवाबी आरोप लगाए. पिछले साल पम्बेई ग्रुप की एक आम सभा ने एक नई केंद्रीय समिति का चुनाव किया और पम्बेई को संगठन के अध्यक्ष के रूप में पुष्टि की.

24 नवंबर को, यूएनएलएफ का 59वां स्थापना दिवस था, वार्ता के विरोधी गुट की केंद्रीय समिति ने पाम्बेई गुट के किए गए युद्धविराम की निंदा की. फिर, 2 दिसंबर को गुट की ओर से एक प्रेस रिलीज में कहा गया कि पम्बेई के गुट का निर्णय मणिपुर की स्वतंत्रता और संप्रभुता को बहाल करने के यूएनएलएफ के उद्देश्य के साथ "पूरी तरह से विश्वासघात" है.

युद्धविराम के लिए म्यांमार ट्रिगर

सरकार और UNLF के पाम्बेई गुट के बीच युद्धविराम समझौता बिना स्प्रिंग रिवॉल्यूशन के नहीं होता, खासकर अक्टूबर में ऑपरेशन 1027 के बाद.

ऑपरेशन 1027, जिसे ब्रदरहुड एलायंस नामक तीन प्रतिरोध समूहों ने मिलकर अंजाम दिया था, उन्होंने चीन की सीमा से लगे उत्तरी शान राज्य में सैन्य जुंटा से एक विशाल क्षेत्र छीन लिया.

पिछले महीने ऑपरेशन में म्यांमार और भारत-म्यांमार सीमा से लगे सांगाग और चिन स्टेट, जैसे कि इनमें रिहखावदार और खमपत शामिल थे, जहां सेना को कई चौकियों पर नियंत्रण छोड़ने के लिए मजबूर होना पड़ा.

प्रतिरोध आंदोलन के खिलाफ सागांग क्षेत्र में जुंटा के साथ सहयोग करने वाले समूहों में मणिपुर की इंफाल घाटी और शन्नी नेशनलिटीज आर्मी के संगठन शामिल हैं.

पिछले करीब तीन साल में कई मौकों पर इन संगठनों और प्रतिरोध जता रहे ग्रुप्स के बीच झड़पें हुईं. पिछले साल, चिन नेशनल आर्मी ने सागांग क्षेत्र के तमू में पीएलए (पीपुल्स लिबरेशन आर्मी ऑफ मणिपुर) के एक कैंप पर हमला कर दिया था. पिछले कुछ दिनों में, मणिपुर में मोरेह की सीमा से लगे उसी जिले में केवाईकेएल (कांगलेई यावोल कन्ना लूप) और यूएनएलएफ के खिलाफ अधिक हमलों की खबरें आई हैं.

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तामू में कम से कम आठ प्रतिरोध ग्रुप या पीपुल्स डिफेंस फोर्स (पीडीएफ) सक्रिय हैं और सागांग क्षेत्र के अंदर और पड़ोसी चिन राज्य में भी कई और संगठन सक्रिय हैं. ये ग्रुप निश्चित रूप से पिछले साल की तुलना में बेहतर संगठित और अधिक मारक क्षमता से लैस हैं, जो इस साल की शुरुआत में इस लेखक की म्यांमार के कुछ संघर्ष क्षेत्रों की यात्रा और प्रतिरोध समूहों के पदाधिकारियों और नेताओं के दिए गए इंटरव्यू से स्पष्ट था.

ऐसा लगता है कि सेना के पास प्रतिरोध ग्रुप के खिलाफ निरंतर जवाबी कार्रवाई के लिए संसाधन और मनोबल नहीं है. इसलिए, जो क्षेत्र उसने खो दिए हैं, उन पर फिर से नियंत्रण पाना निकट भविष्य में संभव नहीं दिख रहा.

UNLF (पामबेई) सहित मणिपुरी और शन्नी संगठनों ने, जिन्होंने पीयू सॉ हटी मिलिशिया के रूप में जुंटा के साथ हाथ मिलाया था, उन्हें प्रतिरोध ग्रुप से छिपने के लिए मजबूर किया जा सकता है, जिन्हें काचिन इंडिपेंडेंस आर्मी जैसे बड़े संगठनों की ओर से भी सक्रिय रूप से सहायता की जा रही है.

भारत की सीमा से लगे क्षेत्रों में घटनाओं के सटीक घटनाक्रम का अनुमान लगाना अभी जल्दबाजी होगी, लेकिन यूएनएलएफ के पाम्बेई गुट के नक्शेकदम पर और अधिक समूहों के चलने की संभावना से इंकार नहीं किया जा सकता है क्योंकि उनके पास पीडीएफ के निरंतर हमलों का सामना करने के लिए संख्या और संसाधन नहीं हो सकते हैं.

उनके लिए एक अन्य ऑप्शन नागालैंड और अरुणाचल प्रदेश के पूर्वी जिलों से सटे सागांग क्षेत्र में नागा आबादी वाले क्षेत्रों में शरण लेना होना हो सकता है, जहां जुंटा के खिलाफ प्रतिरोध आंदोलन जड़ें नहीं जमा सका.

लेकिन पम्बेई कहां है?

24 नवंबर को UNLF के 59वें स्थापना दिवस पर, पाम्बेई गुट के महासचिव च थानिल ने काकचिंग खुनोउ में नव स्थापित कैंप में सरकार के साथ युद्धविराम समझौते के बारे में बात की और स्पष्ट किया कि जैसा कुछ लोगों ने अनुमान लगाया था, यह प्रक्रिया "आत्मसमर्पण" नहीं थी.

हालांकि, पम्बेई को समारोह में नहीं देखा गया.

वह इस साल की शुरुआत से सागांग क्षेत्र के एक कैंप से लापता है और माना जाता है कि थाईलैंड की यात्रा के दौरान देश के जुंटा द्वारा उसे पकड़ लिया गया था.

वो कहां है, ये लोगों के विभिन्न वर्गों के बीच अटकलों का विषय बन गया है. इंफाल में यूएनएलएफ के एक करीबी सूत्र के मुताबिक, पाम्बेई को जेल से रिहा कर दिया गया है और वह मणिपुर लौटने के लिए सरकार के साथ बातचीत कर रहे हैं.

एक सुरक्षा एजेंसी के अधिकारी का मानना ​​है कि वह अभी भी म्यांमार जुंटा की हिरासत में है, जिसे जल्द ही मणिपुर वापस भेजा जा सकता है.

पूर्वोत्तर में सबसे बड़ी कैडर ताकत वाला संगठन एनएससीएन (IM) यानी नेशनल सोशलिस्ट काउंसिल ऑफ नागालैंड (इसाक-मुइवा) है, जिसमें 4000 से अधिक पदाधिकारी हैं. यह एक ओवरग्राउंड ग्रुप है, जो सरकार के साथ समझौते के लिए बातचीत कर रहा है.

अलगाववादी संगठनों में, यूएनएलएफ को 2500 से अधिक की कैडर शक्ति के साथ पीएलए के बाद सबसे अधिक कैडर के रूप में जाना जाता है.

पाम्बेई गुट की वास्तविक ताकत को लेकर अलग-अलग अनुमान को लेकर कई रिपोर्टें पब्लिश हुईं हैं. एक रिपोर्ट में केवल 70 पदाधिकारियों का अनुमान लगाया गया है, जबकि दूसरे ने माना कि दोनों गुटों में 400-500 से अधिक नहीं हैं, जिनके पास मिक्सड श्रेणियों के लगभग 500 हथियार हैं.

मीडिया ने सुरक्षा एजेंसियों के सूत्रों के हवाले से कहा कि पाम्बेई के समूह की ताकत लगभग 250-300 कैडर है.

अलग-अलग राय के बावजूद, इंफाल में कुछ पर्यवेक्षकों और सुरक्षा एजेंसियों के अधिकारियों का दावा है कि पाम्बेई ग्रुप यूएनएलएफ की कुल ताकत का केवल एक अंश है.

(राजीव भट्टाचार्य गुवाहाटी में एक वरिष्ठ पत्रकार हैं. यह एक राय है और ऊपर व्यक्त विचार लेखक के अपने हैं. क्विंट न तो इसका समर्थन करता है और न ही इसके लिए जिम्मेदार है.)

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